scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होममत-विमतभारत में उपभोक्ताओं के बढ़ते भरोसे और उम्मीद को कैसे टिकाऊ बनाया जा सकता है

भारत में उपभोक्ताओं के बढ़ते भरोसे और उम्मीद को कैसे टिकाऊ बनाया जा सकता है

सीएमआईई के उपभोक्ता भावना सूचकांक और रिजर्व बैंक के उपभोक्ता विश्वास सूचकांक में जुलाई में स्पष्ट सुधार वर्तमान स्थिति, अपेक्षाओं और भविष्य की संभावनाओं का एक आकलन प्रस्तुत करते हैं.

Text Size:

कोविड-19 महामारी के कारण लंबे समय तक सुस्त आर्थिक वृद्धि के बाद हाल के सप्ताहों में सुधार देखा जा रहा है जिससे उपभोक्ताओं का भरोसा भी बढ़ रहा है. भारतीय रिजर्व बैंक के उपभोक्ता विश्वास सूचकांक (सीसीआई) और सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडिना इकोनॉमी (सीएमआईई) के उपभोक्ता भावना सूचकांक (सीएसआई), दोनों में जुलाई के महीने में स्पष्ट सुधार दिखा. रोजगार, घरेलू आय और खर्च को लेकर धारणाओं में सुधार के कारण उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ा है. इन धारणाओं को मजबूत बनाने की जरूरत है.

खुदरा बिक्री, कारों की बिक्री, क्रेडिट कार्ड से खर्चों और खुदरा उधार को लेकर उपभोक्ताओं की मांग के सूचकांकों में महीनों तक सुस्ती के बाद सुधार दिख रहा है. मुद्रास्फीति में नरमी के शुरुआती संकेतों, मेल-जोल वाली सेवाओं के सेक्टर का खुलना, त्यौहारों के मौसम का आगमन और कृषि की बेहतर संभावना भी उपभोक्ताओं के भरोसे में वृद्धि कर रही है. उपभोक्ताओं का भरोसा तभी टिकाऊ होगा जब वे अपने रोजगार, अपनी आय और महंगाई को लेकर आश्वस्त होंगे.


यह भी पढ़ें: बिहार, पंजाब, राजस्थान वित्तीय रूप से परेशान क्यों हैं? हर राज्य के अपने मूल कारण हैं


उपभोक्ता भावना में सुधार

सीएमआईई के उपभोक्ता भावना सूचकांक (सीएसआई) और भारतीय रिजर्व बैंक के उपभोक्ता विश्वास सूचकांक (सीसीआई), दोनों में जुलाई के महीने में स्पष्ट सुधार दिखा. ये दोनों सूचकांक वर्तमान स्थिति, अपेक्षाओं और भविष्य की संभावनाओं का एक आकलन प्रस्तुत करते हैं.

जून में सीसीआई का आंकड़ा 68.44 था, जो जुलाई में 73.05 पर पहुंच गया. यानी एक महीने में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई. जून में इसमें केवल 1 फीसदी की वृद्धि हुई थी. इस लिहाज से यह तेज वृद्धि है. ग्रामीण उपभोक्ताओं की भावनाओं में भी जुलाई में 7 फीसदी का मजबूत सुधार आया. दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के आगमन के साथ कृषि क्षेत्र में सुधार की उम्मीद ने इसमें बड़ी मदद की है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
रमनदीप कौर का ग्राफिक | दिप्रिंट.

शहरी उपभोक्ताओं की भावनाओं में भी जुलाई में 4.8 फीसदी का सुधार हुआ. व्यापक आधार वाला यह सुधार सभी पेशों के लोगों में हुआ है. वेतनभोगी कर्मचारियों और व्यापारिक तबकों के मुक़ाबले किसानों और दिहाड़ी मजदूरों की भावनाओं में ज्यादा तेज सुधार हुआ है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

रिजर्व बैंक का द्विमासिक उपभोक्ता विश्वास सर्वे भी दर्शा रहा है कि जुलाई में यह सुधार आया है, हालांकि यह मामूली है. यह सर्वे चालू धारणा का, और एक साल बाद आम आर्थिक स्थिति, रोजगार, महंगाई, घरेलू आय और खर्च का एक आकलन प्रस्तुत करता है. परिवारों ने अपने चालू खर्चों में पिछले सर्वे की तुलना में आशा दर्शाई है और उम्मीद है कि यह प्रवृत्ति आगे भी जारी रहेगी. सर्वे बताता है कि उपभोक्ता आर्थिक स्थिति और अगले एक साल तक खर्चों को लेकर आशावादी हैं, हालांकि रोजगार, कीमतों, आय में वृद्धि आदि को लेकर पिछले सर्वे की तुलना में कम आशावादी हैं.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
रमनदीप कौर का ग्राफिक | दिप्रिंट.

रिजर्व बैंक का घरेलू महंगाई अपेक्षा सर्वे बताता है कि घरों की धारणा है कि महंगाई में नरमी रहेगी. अगर महंगाई के शुरुआती संकेत कायम रहते हैं तो उपभोक्ताओं के विश्वास में स्पष्ट वृद्धि दिखेगी. उदाहरण के लिए, अमेरिका में हाल में महंगाई में मंदी आई, तो मिशिगन यूनिवर्सिटी का उपभोक्ता भावना सूचकांक जुलाई में 51.5 से बढ़कर अगस्त में 55.1 के प्रारंभिक स्तर पर पहुंच गया.

उपभोक्ता की ओर से मांग में तेजी

अर्थव्यवस्था का मूल आधार मानी गई उपभोक्ता मांग अक्टूबर-दिसंबर 2021 की तिमाही में 7.4 फीसदी से जनवरी-मार्च 2022 की तिमाही में गिरकर 1.8 फीसदी पर पहुंच गई. हालांकि 2021-22 में निजी उपभोग कोविड से पहले (2019-20) के अपने स्तर को पार कर गया है लेकिन यह सुधार बहुत धीमा रहा. आर्थिक अनिश्चितता और बढ़ी हुई कीमतों ने उपभोक्ताओं की भावना और मांग को कमजोर किया.

लेकिन कोविड की तीसरी लहर के कमजोर पड़ने के बाद से मेल-जोल आधारित सेवाओं के फिर से शुरू होने और सप्लाई कड़ी की गांठें ढीली पड़ने के साथ उपभोक्ता मांग के कुछ संकेतक सुधर रहे हैं. पिछले सप्ताह खुदरा बिक्री कोविड से पहले के इसी सप्ताह के अपने स्तर को पार कर गई है. जुलाई में यात्री वाहनों की रिकॉर्ड बिक्री हुई, जिसका कुछ कारण कच्चे माल की आपूर्ति की बाधाओं का कम होना है. वाहन रजिस्ट्रेशन, दैनिक विमान उड़ानों की संख्या, विमान यात्रियों की संख्या, खुदरा और मनोरंजन यात्राओं की संख्या में हाल के सप्ताहों में वृद्धि दर्ज की गई.

ग्रामीण मांग लंबे समय से ठंडी पड़ी है लेकिन हाल के महीने में उसमें भी सुगबुगाहट दिख रही है. हालांकि जुलाई में दुपहियों की बिक्री बढ़ी, लेकिन ट्रैक्टर की बिक्री में अभी तेजी नहीं आई है. फसलों की ऊंची कीमत, आर्थिक गतिविधियों में सुधार के कारण कामगारों का शहरों की ओर प्रवास ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव को कम करेगा.

ग्रामीण रोजगार बाज़ार में हलचल

महामारी के दौरान सरकारी कार्यक्रम ‘मनरेगा’ में रोजगार की मांग बढ़ गई थी. यह योजना लॉकडाउन में गांव लौटे मजदूरों के लिए रोजगार का अहम स्रोत बन गई थी. इस योजना में रोजगार की बढ़ी मांग बताती है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था दबाव में थी क्योंकि रोजगार के दूसरे विकल्प नहीं उपलब्ध थे. महामारी जब चरम पर थी तब मांग गिर गई थी, हालांकि यह अभी भी महामारी के पहले के अपने स्तर से ऊपर बनी हुई है.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
रमनदीप कौर का ग्राफिक | दिप्रिंट.

मनरेगा में रोजगार की मांग जून के मुक़ाबले जुलाई में गिरकर आधी हो गई. कृषि और उससे इतर गतिविधियों में वृद्धि, कामगारों का शहरों में लौटने के कारण मनरेगा में रोजगार की मांग घटी. ग्रामीण क्षेत्रों में लोक निर्माण कार्यक्रमों को नीतिगत बढ़ावा देने से ग्रामीण रोजगार बाज़ार पर दबाव घटेगा.

रोजगार के मोर्चे पर कुल मिलाकर मिले-जुले संकेत उभर रहे हैं. सीएमआईई के अनुमानों के मुताबिक कृषि कार्यों में वृद्धि और बेहतर मॉनसून के कारण बेरोजगारी की दर जुलाई में छह महीने के अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई. इसके पीछे ग्रामीण इलाकों में आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि का हाथ है. इसके विपरीत शहरी इलाकों में जुलाई में बेरोजगारी में वृद्धि दर्ज की गई.

खुदरा उधार में वृद्धि

उपभोग पर खर्चों में वृद्धि निजी कर्जों में आई वृद्धि में भी परिलक्षित होती है. जून में निजी कर्जों में जोरदार 18 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई. निजी कर्जों में हाउसिंग लोन का हिस्सा आधे से ज्यादा का होता है, और उसमें जून में 15 फीसदी की वृद्धि हुई. इससे हाऊसिंग की बिक्री बढ़ेगी.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint
रमनदीप कौर का ग्राफिक | दिप्रिंट

उपभोक्ता सामान के लिए लिए जाने वाले उधार में भी तेज सुधार आया, जो निजी खर्चों में वृद्धि दर्शाता है. ताजा आंकड़े बताते हैं कि ऐसे सामान के लिए उधार में 77 फीसदी का उछाल आया है. यह महामारी के दौरान की स्थिति के उलट है, जब जेवरों को गिरवी रखकर लिए गए कर्ज में भारी वृद्धि हो गई थी.

(राधिका पांडेय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में एक सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: क्यों मोदी सरकार राजकोषीय घाटे पर मजबूत स्थिति में है लेकिन कुछ राज्यों के सामने भारी चुनौती


 

share & View comments