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Saturday, 4 May, 2024
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भारत निजी स्वास्थ्य सेवाओं को आयुष्मान भारत डिजिटल से बाहर नहीं रख सकता, सरकार को उठाना होगा कदम

डिजिटल स्वास्थ्य प्रणालियों को बेहतर करने की ऊंची श्रम लागत और वित्तीय लागत की वजह से छोटी स्वास्थ्य सेवाओं के इससे जुड़ने की संभावना कम है.

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सतत विकास लक्ष्यों और सभी तक स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाने के टारगेट को हासिल करने के लिए, भारत सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ और सस्ता बनाने के लिए हेल्थकेयर सेक्टर के डिजिटाइजेशन को बढ़ावा दे रही है और इसके लिए उसने महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं.

27 सितंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन शुरू करने की घोषणा की, जिसका मकसद है पहले से मौजूद अलग- अलग डिजिटल हेल्थ सिस्टम्स को एकजुट करके नेशनल डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम के तहत लाना.

फिलहाल आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के पांच मुख्य घटक हैं: 1) आयुष्मान भारत हेल्थ एकाउंट (ABHA) नंबर – जो एक यूनिक हेल्थ आइडेंटिफिकेशन नंबर है, 2) हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स रजिस्ट्री (HPR) – जो आधुनिक और पारंपरिक दोनों तरह की चिकित्सा प्रणालियों के हेल्थकेयर प्रोफेशनलों की एक सूची है, 3) हेल्थ फेसिलिटी रजिस्ट्री (HFR) – जो अस्पतालों, क्लीनिकों, डायग्नॉस्टिक लैब और फार्मेसी समेत सभी सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं की सूची है, 4) यूनिफाइड हेल्थ इंटरफेस (UHI) – मरीजों को स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ जोड़ने वाली डिजिटल हेल्थ सर्विसेज का एक ओपन प्रोटोकॉल, 5) ABHA मोबाइल ऐप- एक ऐप जिसकी मदद से कोई व्यक्ति अपने साथ इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड रख सकता है.


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मिक्स्ड हेल्थकेयर सिस्टम

दोनों रजिस्ट्रीज जाहिर तौर पर भारत के हेल्थकेयर संस्थानों और प्रोफेशनलों का एक डेटाबेस बनाएंगे जिन तक नागरिकों की पहुंच होगी. ABHA नंबर और ऐप नागरिकों को सुरक्षित रूप से अपनी पहचान कराने और किसी भी हेल्थकेयर फेसिलिटी पर अपने हेल्थ रिकॉर्ड ले जाने की सुविधा देंगे. अंत में, यूएचआई स्वास्थ्य सेवाओं तक आसानी से पहुंच की सुविधा देगा. इन सभी गतिविधियों से बहुत बड़े पैमाने पर डेटा का उत्पादन हुआ है और होगा, जो रिसर्च, इनोवेशन और नीतियां बनाने के लिए महत्वपूर्ण होगा. सभी नागरिक, स्वास्थ्य सुविधाएं या संस्थान, और हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स इस बात का विकल्प चुन सकेंगे कि वे आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन में हिस्सा लेंगे या नहीं.

भारत में मिक्स्ड हेल्थकेयर सिस्टम है, जिसका मतलब है कि यहां सार्वजनिक और निजी दोनों तरह की स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले हैं. निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की बड़ी भागीदारी के बगैर, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन की अपने उद्देश्यों को पूरा करने की क्षमता सीमित हो जाएगी. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत के पूरे हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर का करीब 62 फीसदी निजी हाथों में है और निजी क्षेत्र में ही भारत के 81 फीसदी डॉक्टर हैं.

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आबादी ग्रामीण है या शहरी, इस आधार पर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में भी भारी अंतर है. भारत की कुल आबादी का करीब 28 फीसदी शहरी है और उसकी पहुंच अस्पताल में बिस्तरों की कुल संख्या के 66 फीसदी तक है. इसके बावजूद, ऐसा लगता हैकि भारत की ग्रामीण और शहरी दोनों आबादी निजी क्षेत्र से इलाज कराने को प्राथमिकता देती है. ग्रामीण आबादी का सिर्फ 33 फीसदी और शहरी आबादी का 26 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकार पर निर्भर है.

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन में भागीदारी स्वैच्छिक है, इस वजह से निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के काफी बड़े हिस्से ने खुद को यूनिवर्सल प्रोग्राम और यूएचआई से बाहर रखा है. धर्मार्थ अस्पताल, क्लीनिक, डायग्नॉस्टिक लैब, फार्मेसी, या नर्सिंग होम जैसे छोटे स्वास्थ्य सेवा प्रदाता बड़े खर्चों की वजह से इस प्रोग्राम से जुड़ने के ज्यादा इच्छुक नहीं हैं. पहला बड़ा खर्च है इन स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए अपने हेल्थ रिकॉर्ड्स और दूसरे डेटा को डिजिटाइज करने के लिए जरूरी श्रम घंटे यानी इस काम को कराने के लिए होने वाला खर्च. दूसरा खर्च है आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन और यूएचआई से जुड़ने के लिए जरूरी बुनियादी मानकों को पूरा करने के लिए अपने डिजिटल हेल्थ सिस्टम को बेहतर करने या बदलने पर होने वाली वास्तविक वित्तीय लागत.


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भागीदारी ना होने का असर

इसके विपरीत, अपोलो हॉस्पिटल्स और फोर्टिस ग्रुप की एसआरएल लैब्स जैसे बड़े संस्थान आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन में भागीदार बनने और यूएचआई से जुड़ने के लिए ज्यादा इच्छुक दिखते हैं. उन्होंने पहले ही रिकॉर्ड्स डिजिटाइज कर लिए हैं और जरूरी मानकों को पूरा करने वाले डिजिटल हेल्थ सिस्टम विकसित कर लिए हैं. इससे उन्हें आबादी के एक बड़े हिस्से तक अपनी पहले से मौजूद टेली- हेल्थ और टेली- कंसल्टिंग सर्विसेज देने का मौका भी मिलता है. हेल्थ स्टार्ट-अप्स की भी भागीदार बनने की संभावना ज्यादा है क्योंकि उन्हें यूएचआई जैसे एक ओपन प्रोटोकॉल के माध्यम से सर्विस देकर फायदा होगा और उन्हें स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की तरह खर्चे भी नहीं करने होंगे.

निजी क्षेत्र से भागीदारी की कमी आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के उद्देश्यों पर दो प्रमुख तरीकों से नकारात्मक प्रभाव डालेगी. शहरी क्षेत्रों में निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की बड़ी संख्या को ध्यान में रखा जाए तो, उनकी कम भागीदारी की वजह से ग्रामीण आबादी की पहुंच से अब तक बाहर रही सेवाओं को उन तक पहुंचाने की यूएचाई की क्षमता सीमित हो जाएगी. फिर ग्रामीण आबादी को उन स्वास्थ्य सेवाओं का फायदा लेने के लिए खुद चलकर जाना होगा. दूसरा प्रभाव ये होगा कि आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन और यूएचआई के इस्तेमाल से निकले आंकड़े अधूरे रहेंगे, जिसका नतीजा होगा
पॉलिसी प्लानिंग और प्रोग्राम डिलीवरी का सकारात्मक प्रभाव सिकुड़ जाना.

ऐसा लगता है कि आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन और यूएचआई के लिए जवाबदेह नेशनल हेल्थ अथॉरिटी को निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए आने वाली चुनौतियों के बारे में जानकारी है. आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन का एक घोषित उद्देश्य है ‘आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के निर्माण में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राधिकरणों के साथ निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवा संस्थानों और प्रोफेशनलों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना’.

यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी के लिए प्रोत्साहन का सहारा लेना चाहती है या शासनादेश का. दोनों दृष्टिकोणों के बगैर, ऐसा लगता है कि आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन में छोटे निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की भागीदारी कम रहेगी, हालांकि देखना होगा कि इसमें आगे जाकर चीजें कैसे चलती हैं.

अर्जुन कंग जोसेफ कार्नेगी इंडिया के टेक्नोलॉजी एंड सोसायटी प्रोग्राम में सीनियर रिसर्च एनालिस्ट और ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट के सह- संयोजक हैं.

यह लेख प्रौद्योगिकी की भू-राजनीति की पड़ताल करने वाली सीरीज का हिस्सा है, जो कार्नेगी इंडिया के सातवें ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट की थीम है. विदेश मंत्रालय के साथ संयुक्त मेजबानी में ये समिट 29 नवंबर से 1 दिसंबर तक होगी. रजिस्टर करने के लिए यहां क्लिक करें. प्रिंट इसमें डिजिटल सहयोगी है. सभी लेख यहां पढ़ें.

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(अनुवाद: आदिता सक्सेना)


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