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Thursday, 26 December, 2024
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CCP युद्ध सिर्फ चिप और सेना को लेकर नहीं है, NYT दिखाता है कि यह विचारधारा और प्रभाव की लड़ाई है

चीन के इन्फ्लुएंस ऑपरेशन का नेटवर्क कुछ समय से सक्रिय है, लेकिन NYT लेख में नए डिटेल्स से पता चला है कि बीजिंग कैसे प्रॉक्सी के ज़रिए से प्रभाव डालना चाहता है.

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अमेरिकी करोड़पति और सामाजिक कार्यकर्ता नेविल रॉय सिंघम को समाचार वेब पोर्टल न्यूज़क्लिक से जोड़ने वाली न्यूयॉर्क टाइम्स की नवीनतम जांच की कहानी पुरानी हो चुकी है जब प्रवर्तन निदेशालय ने मीडिया प्लेटफॉर्म और करोड़पति के बीच संबंधों के संकेत दिए थे, जो कथित तौर पर चायनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) से संबद्ध है. लेकिन NYT की स्टोरी सिंघम के सीसीपी से संबंधों के बारे में नई डिटेल्स देती है – और भारत में चीन के इन्फ्लुएंस ऑपरेशन पर एक नई रोशनी डालती है.

नए शीत युद्ध में, चीन के साथ भारत की चिंताएं विचारधारा को लेकर उतनी ही हैं जितनी पूर्वी लद्दाख में सैन्य तनाव को लेकर हैं.

ईडी ने आरोप लगाया कि न्यूज़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ को सिंघम से जुड़ी कंपनियों से 2018 और 2021 के बीच 86 करोड़ रुपये मिले. अब, हम न्यूज़क्लिक को ट्राइकॉन्टिनेंटल लिमिटेड इंक और जस्टिस एंड एजुकेशन फंड इंक के माध्यम से प्राप्त फंडिंग के बारे में जानते हैं, जो कि अमेरिका में हॉलो यूपीएस एड्रेस वाली एक प्रमुख कंपनी है. ईडी को अभी भी मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी कानून के तहत आरोप पत्र दाखिल करना बाकी है – जो जल्द ही हो सकता है.

सिंघम की कहानी से एक बार फिर पता चलता है कि सीसीपी के लिए, अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्द्धा का संबंध उनकी राजनीतिक व्यवस्था की व्यवहार्यता की तुलना में वैचारिक टकराव से अधिक है. जो लोग NYT जांच से आश्चर्यचकित हैं वे अब वही देख रहे हैं जो चीन का अध्ययन करने वाले अन्य लोग हर दिन देखते हैं – विचारधारा और प्रभाव की लड़ाई.

क्या है पृष्ठभूमि

सिंघम की संपत्ति उस वक्त कई गुना बढ़ गई जब उन्होंने 1993 में स्थापित सॉफ्टवेयर कंसल्टेंसी कंपनी थॉटवर्क्स को 2017 में निजी इक्विटी फर्म एपेक्स पार्टनर्स को 720 मिलियन डॉलर में बेच दिया. उस समय सिंघम की कंपनी के बेंगलुरु कार्यालय में 2,600 भारतीय कर्मचारी काम करते थे.

सिंघम मामले में स्पष्ट सबूत शंघाई में प्रोपैगैंडा अधिकारियों के साथ उनका जुड़ाव है, जहां प्रसिद्ध चीनी विशेषज्ञ, जिनमें सीसीपी नेतृत्व के करीबी राजनीतिक सिद्धांतकार झांग वेईवेई और अन्य लोग शामिल थे, इस बात पर चर्चा करने के लिए एकत्र हुए थे कि “चीन की कहानी को अच्छी तरह से कैसे बताया जाए”. इसका मकसद चीन के बारे में एक ‘पॉज़िटिव माहौल’ पैदा करना है क्योंकि दुनिया भर में लोगों की राय चीन के बारे में काफी खराब हो रही है.

सिंघम अब शंघाई में रहते हैं और शहर के प्रोपेगैंडा डिपार्टमेंट के साथ काम करते हैं. इस स्टोरी के बाद, अमेरिका सिंघम के सीसीपी से साथ संबंधों की जांच कर सकता है.


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भारतीय वामपंथ को और अधिक करने की ज़रूरत

चीन का कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन जैसे देशों और यूरोप के कुछ हिस्सों में यूनाइटेड फ्रंट एप्रोच का उपयोग करने का एक लंबा इतिहास है जहां चीनी प्रवासी की महत्वपूर्ण उपस्थिति है. भारत में, वामपंथी राजनीति और इससे जुड़े मीडिया संगठन कुछ हद तक इसी तरह के इन्फ्लुएंस ऑपरेशन टैक्टिक्स के लिए उपयोगी हो गए हैं, जिनका पता लगाना अक्सर मुश्किल होता है. भारतीय वामपंथ – और अन्य प्रगतिशील – राजनीतिक विचारधाराओं को एक नए वैश्विक दृष्टिकोण की तलाश करने की आवश्यकता है जिसमें वे केवल सीसीपी प्रोपेगैंडा का एक मात्र उपकरण न हों.

इन्फ्लुएंस ऑपरेशन्स का एक नया नेटवर्क कुछ समय से सक्रिय है, लेकिन NYT लेख में नए विवरणों से पता चला है कि बीजिंग कैसे प्रॉक्सी के माध्यम से प्रभाव डालना चाहता है.

भारतीय राजनीतिक हलकों में हुए हंगामे में उन प्रोपैगैंडा गतिविधियों की व्यापकता शामिल नहीं है जिनका दिल्ली को निशाना बनाने का एक लंबा इतिहास है और जो लगातार तेज़ होती जा रही हैं.

न्यूज़क्लिक की स्टोरी के बारे में संसद में – और बाहर – तीव्र बहस उस व्यापक तस्वीर को नज़रअंदाज़ कर देती है जहां चीन बहुत लंबे समय से विभिन्न माध्यमों से भारत में प्रभाव डालने की कोशिश कर रहा है और ऐसा करना जारी रखता है.

भारत के व्लॉगर्स के एक समूह – कम से कम चार – को हाल ही में अक्साई चिन और झिंजियांग सहित चीन के दूरदराज़ के क्षेत्रों में वीज़ा और ऐक्सेस प्रदान की गई थी. औसत भारतीयों को उन स्थानों पर वीज़ा नहीं मिल सकता है, और इन व्लॉगर्स को चीन के बारे में एक निश्चित दृष्टिकोण फैलाने के लिए वहां आमंत्रित किया गया था.

चीन के शहरों में खुलेपन और बेहतर ट्रांसपोर्टेशन के बारे में स्टोरी बताने वाले इन व्लॉग्स को लाखों लोगों ने देखा. हालांकि व्लॉग किसी यात्रा का वृत्तांत या कहानी नज़र आते हैं, लेकिन उनके काफी सूक्ष्म प्रोपेगैंडा इफेक्ट ने लाखों लोगों पर प्रभाव डाला. बीजिंग ने प्रोपैगैंडा के लिए स्वतंत्र कंटेंट क्रिएटर्स का उपयोग किया है, और ये विज़िट्स चीन के बारे में भारतीयों के मन को बदलने के लिए एक मिली-जुली एक्टिविटी का हिस्सा रहे हैं.

विचारधाराओं की लड़ाई

हम किसी को भी अपनी राय व्यक्त करने से नहीं रोक सकते, लेकिन चीन जनमत को आकार देने के लिए सूक्ष्म इन्फ्लुएंस ऑपरेशन का उपयोग करता रहेगा. चीन से जुड़े थिंक टैंक्स के लिए लिखने के लिए अनौपचारिक चैनलों के माध्यम से भारत की मीडिया इंडस्ट्री से नियमित रूप से संपर्क किया जाता है. चीन के साथ वैचारिक प्रतिस्पर्धा – अगर हम इसे स्वीकार करना चाहें – न्यूज़क्लिक की तुलना में कहीं अधिक जटिल है.

NYT की स्टोरी लंदन में नो कोल्ड वॉर और कोड पिंक जैसे समूहों द्वारा आयोजित एंटी-कोल्ड वॉर विरोध प्रदर्शन से शुरू होती है. वे हाल ही में तेजी से उभरे हैं और दुनिया भर में अमेरिकी सैन्य गतिविधियों का मुकाबला करने के एजेंडे का पालन करते हैं. भारतीय कार्यकर्ता विजय प्रसाद – एक समाजवादी – ट्राइकॉन्टिनेंटल के निदेशक और अमेरिका विरोधी वामपंथी समूहों के अगुवा हैं. इनका अक्सर चीन की राज्य मीडिया द्वारा इंटरव्यू लिया जाता है. विजय लंबे समय से भारत की वामपंथी पार्टियों से जुड़े रहे हैं और वर्षों से वामपंथी नेताओं का समर्थन करते रहे हैं.

लेकिन ये समूह – बहुत बारीकी से या प्रकट रूप से – सीसीपी और उसकी नीतियों की प्रशंसा करते हैं. कुछ वक्त पहले, इस लेखक ने लंदन में इन समूहों से जुड़े लोगों से उनके वैश्विक दृष्टिकोण को समझने के लिए बात की.

ये समूह पुरानी सोवियत शैली की अमेरिका विरोधी बयानबाजी का समर्थन किया करते थे, लेकिन अब उन्हें सीसीपी की प्रचार मशीनरी द्वारा चुना जा रहा है जो वैचारिक संघर्ष के माध्यम से अमेरिका के नेतृत्व वाली उदार व्यवस्था और लोकतांत्रिक संस्थानों को चुनौती देना चाहता है.

21वीं सदी की शक्ति को लेकर बड़ी प्रतिस्पर्द्धा केवल सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी या अत्याधुनिक रिसर्च पर उच्च तकनीकी प्रतिस्पर्द्धा नहीं होगी – यह प्रतिस्पर्द्धा विचारधारा के बारे में भी है. सीसीपी के अनुकूल दुनिया में, इसके विचारों को टिकटॉक वीडियो की तरह आसानी से पचा लिया जाता है – बिना शोर मचाए.

भारतीय राजनीति को यह समझने की ज़रूरत है कि हम वैचारिक टकराव की दुनिया में उतने ही ज़्यादा हैं जितने कि मिलिट्री पावर की दुनिया में. मल्टी-अलाइनमेंट का गीत जिसे नरेंद्र मोदी सरकार गाना पसंद करती है, एक सुविधाजनक खुद को विश्वास दिलाने वाली बात है जिसका परीक्षण अगले कुछ वर्षों में किया जाएगा जब विचारधाराओं की लड़ाई तेज हो जाएगी. उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच एक तटस्थ भारत सीसीपी का लक्ष्य है – और पैसा और प्रभाव की तलाश व्यापक होगी.

(लेखक एक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह पहले बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में चीनी मीडिया पत्रकार थे. वह वर्तमान में ताइपे में स्थित MOFA ताइवान फेलो हैं और उनका ट्विटर हैंडल @aadilbrar है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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