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Friday, 22 November, 2024
होमदेश‘क्या उससे शादी करोगे?'-CJI बोबडे ने नाबालिग के साथ बार-बार दुष्कर्म करने वाले सरकारी कर्मचारी से पूछा

‘क्या उससे शादी करोगे?’-CJI बोबडे ने नाबालिग के साथ बार-बार दुष्कर्म करने वाले सरकारी कर्मचारी से पूछा

महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिक प्रोडक्शन कंपनी लिमिटेड में टेक्नीशियन के तौर पर काम करने वाले मोहित सुभाष चव्हाण पर 2014 में एक लड़की के साथ दुष्कर्म करने का आरोप है जो कि उस समय नाबालिग थी.

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नई दिल्ली: देश के चीफ जस्टिस एस.ए. बोबडे ने सोमवार को एक 23 वर्षीय सरकारी कर्मचारी से पूछा कि क्या वह उस महिला से शादी करेगा जिसने उस पर बलात्कार का आरोप लगाया है.

कोर्ट महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिक प्रोडक्शन कंपनी लिमिटेड के टेक्नीशियन मोहित सुभाष चव्हाण के खिलाफ एक केस की सुनवाई कर रही थी, जिस पर 2014-15 में एक नाबालिग लड़की का बलात्कार करने का आरोप लगा था. वह उस समय कथित तौर पर 17-18 साल का था और लड़की उसकी दूर की रिश्तेदार और कक्षा 9 की छात्रा थी.

निचली अदालत से चव्हाण को मिली अग्रिम जमानत बांबे हाई कोर्ट ने 5 फरवरी को लड़की की तरफ से दायर एक आवेदन के आधार पर रद्द कर दी थी. उसने तब इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और अग्रिम जमानत की गुहार लगाई.

सुनवाई के दौरान सीजेआई बोबडे ने चव्हाण के वकील से पूछा, ‘क्या आप उससे शादी करेंगे?’

इसके जवाब में वकील ने कोर्ट से कहा कि वह अपने मुवक्किल से पूछकर बताएंगे.

सीजेआई ने कहा, ‘आपको लड़की को बहलाने-फुसलाने और बलात्कार करने से पहले सोचना चाहिए था. हम जानते हैं कि तुम एक सरकारी नौकर हो…हम तुम्हें शादी करने को मजबूर नहीं कर रहे. हमें बताएं कि क्या आप ऐसा करेंगे, अन्यथा आप कहेंगे कि हम आपको उससे शादी करने के लिए मजबूर कर रहे हैं.’

चव्हाण के वकील ने तब अदालत को बताया कि वह शुरू में उससे शादी करना चाहता था लेकिन लड़की ने इनकार कर दिया था.

उन्होंने आगे कोर्ट से कहा, ‘अब मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि पहले से शादीशुदा हूं.’

इसके बाद पीठ, जिसमें जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन भी हैं, ने उसे नियमित जमानत के लिए आवेदन की अनुमति देते हुए चार सप्ताह के लिए गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दे दी.

वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा के अनुसार, जब मामला जमानत के चरण में था तो न्यायाधीश को शादी को लेकर इस तरह की टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी.

अरोड़ा ने दिप्रिंट से कहा, ‘जरूरी नहीं था कि वह ऐसा कुछ कहते… मुझे नहीं लगता कि पीड़ित को यह सुझाव देना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘अपराध बलात्कार से जुड़ा है और मामला अभी बहुत आगे पहुंचा नहीं है. कानूनन यह अपराध है और स्टेट और जनता के खिलाफ है. बलात्कार की शिकार लड़की से शादी कर लेने से अपराध कम नहीं हो जाता है.’

हालांकि, आरोपी और नाबालिग लड़की की उम्र को देखते हुए अरोड़ा ने यह भी कहा कि कानून का यह हिस्सा ‘काफी मुश्किल भरा’ है.

उन्होंने कहा, ‘दरअसल जरूरत यह है कि विधायिका बालिग होने के एकदम करीब पहुंच चुके नाबालिग संग आपसी सहमति वाले संबंधों के मामले पर फिर से मंथन करे, कानून को युवाओं के बीच आपसी सहमति से यौन संबंध वाले मामलों को अलग तरह से देखना चाहिए खासकर जहां लड़की 18 साल की न हो लेकिन निर्णय लेने में पूरी तरह सक्षम हो. असल समस्या यही है कि कानून ऐसे मामलों में न्यायाधीश के पास कोई विकल्प नहीं छोड़ता.’


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‘निचली अदालत ने संवेदनशीलता में कमी दिखाई’—बांबे हाई कोर्ट

चव्हाण की याचिका के मुताबिक, नाबालिग लड़की ने आरोप लगाया था कि वह स्कूल जाने के दौरान उसका पीछा करता था.

चव्हाण पर यह आरोप भी लगा है कि उसने लड़की के साथ लगभग एक दर्जन बार बलात्कार किया था, जिस समय वह कक्षा 9 में पढ़ती थी. उसने कथित तौर पर लड़की यह धमकी भी दी थी कि अगर किसी को इस बारे में बताया तो उस पर तेजाब फेंक देगा और उसके परिवार के लोगों पर हमले की बात भी कही थी.

चव्हाण की याचिका के मुताबिक, उन्होंने जून 2018 में एक लिखित करार भी किया था जिसमें दावा किया गया था उनके यौन संबंध आपसी सहमति वाले थे और लड़की के 18 वर्ष की आयु पूरी कर लेने पर शादी करने पर सहमति थी. हालांकि, याचिका यह भी बताती है कि वह जब उस उम्र में पहुंच गई तो चव्हाण की मां ने दोनों की शादी कराने से इनकार कर दिया जिसके बाद ही लड़की ने उसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई.

लड़की की तरफ से की गई शिकायत में भी कहा गया है कि उसने और उसकी मां ने आरोपी से उससे शादी करने को कहा था, लेकिन उसने इनकार कर दिया और इसलिए उसने शिकायत दर्ज कराई क्योंकि उसने उस समय जबरन कई बार उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए जब वह नाबालिग थी.

चव्हाण के खिलाफ प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार), 417 (धोखाधड़ी), 506 (धमकाना) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) कानून 2012 की धारा 4 (पेनेट्रेटिव यौन उत्पीड़न) और धारा 12 (यौन उत्पीड़न) के तहत दर्ज की गई थी.

हालांकि, निचली अदालत ने उसे यह कहते हुए अग्रिम जमानत दे दी कि ‘याचिकाकर्ता को झूठ के आधार पर फंसाने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है जो कि अब एक सरकारी कर्मचारी है.’

न्यायाधीश ने कहा कि लड़की के साथ जो कुछ भी हुआ, वह उसे ‘अच्छी तरह समझ’ सकती थी क्योंकि उसने याची द्वारा गर्भनिरोधक के इस्तेमाल के बारे में बारीकी से ब्योरा दिया है.

हालांकि, निचली अदालत के निर्णय पर बांबे हाई कोर्ट का कहना था कि ‘जज की तरफ से इस तरह का तर्क दिया जाना ऐसे गंभीर मामलों पर उनमें संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है.’

हाई कोर्ट ने उसे दी गई अग्रिम जमानत खारिज करते हुए कहा, ‘इस तरह का दृष्टिकोण स्पष्ट संकेत है कि विद्वान जज में क्षमता का पूरी तरह अभाव है. यह वास्तव में एक मामला है जिस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए.’


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जजों में लैंगिक संवेदनशीलता की जरूरत

पिछले साल नवंबर में अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि जजों को लैंगिक संवेदनशीलता को लेकर शिक्षित करने की जरूरत है.

वेणुगोपाल नौ महिला वकीलों की तरफ से दायर एक याचिका के मामले में कोर्ट का सहयोग कर रहे थे जिसमें मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के 30 जुलाई के एक आदेश के खिलाफ अपील की गई थी. मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने अपने फैसले में एक यौन अपराधी को ये कहकर जमानत दे दी थी कि वह रक्षा बंधन पर महिला से अपनी कलाई पर राखी बंधाएगा और भविष्य में उसकी गरिमा की रक्षा करने का वचन देगा.

वेणुगोपाल ने अदालत से कहा कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश की तरफ से दिए गए निर्देश की निंदा की जानी चाहिए क्योंकि जज ‘कोरा दिखावा’ कर रहे थे.

वेणुगोपाल ने आगे कहा, ‘सुझाव ये है कि राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी और राज्य न्यायिक अकादमी में लैंगिक संवेदनशीलता पर कार्यक्रम होने चाहिए. जहां तक समिति का सवाल है तो सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को राज्य सूचना प्रणाली में डाला जाना चाहिए जो अधीनस्थ अदालतों तक पहुंच जाएगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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