scorecardresearch
Tuesday, 8 October, 2024
होमदेशजमानत पर बाहर दलित कार्यकर्ता नौदीप कौर ने पुलिस पर जातिसूचक गालियां देने और प्रताड़ित करने का लगाया आरोप

जमानत पर बाहर दलित कार्यकर्ता नौदीप कौर ने पुलिस पर जातिसूचक गालियां देने और प्रताड़ित करने का लगाया आरोप

एक्टिविस्ट नौदीप कौर का दावा है कि पुलिस हिरासत के दौरान उनसे कहा गया कि दलित ‘समाज में ऊंचे नहीं उठ सकते’ और यह आरोप भी लगाया कि उन्हें पुलिस स्टेशन ले जाने से पहले पीटा गया था.

Text Size:

नई दिल्ली: दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर 12 जनवरी को एक श्रमिक यूनियन का प्रदर्शन हिंसक हो जाने के बाद गिरफ्तार की गई दलित श्रम अधिकार कार्यकर्ता नौदीप कौर ने हिरासत के दौरान पुलिस बर्बरता का आरोप लगाया है और यह भी कहा कि उन्होंने दलितों को लेकर उल्टी-सीधी बातें बोलीं.

कौर को 46 दिन जेल में बिताने के बाद उनके खिलाफ तीसरी और अंतिम प्राथमिकी, जिसमें हत्या का प्रयास, चोरी और जबरन वसूली के आरोप शामिल हैं, में जमानत मिलने पर शुक्रवार को रिहा कर दिया गया था.

गिरफ्तारी के बाद से 24 वर्षीय यह एक्टिविस्ट सिंघु सीमा पर किसान-मजदूर एकता का चेहरा बन गई थी.

नौदीप ने आरोप लगाया कि अपनी गिरफ्तारी के दिन वे मजदूर अधिकार संगठन (एमएएस)— एक श्रमिक यूनियन के अन्य सदस्यों के साथ 30 मिनट का प्रदर्शन कर रही थीं. उनका दावा है कि वे लोग रोके गया वेतन देने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे जब पुलिस ने उनकी पिटाई की.

नौदीप ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्होंने मुझे और अन्य महिलाओं को पीटा. जब अन्य मजदूरों ने मुझे पिटते देखा तो वे हिंसा पर उतर आए. मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मेरी कोई बात नहीं सुनी. जब पुलिस ने मुझे पकड़ा तब मेरे पास कोई हथियार नहीं था, मेरे हाथों में कुछ नहीं था. मेरे खिलाफ आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धाराओं के तहत ऐसे आधारहीन आरोप लगाए गए हैं, जो यहां कतई लागू नहीं होते हैं.’

उन्होंने दावा किया, ‘मुझे गिरफ्तार करने के बाद वे पहले तो मुझे कुंडली क्षेत्र की एक सुनसान सड़क पर ले गए जहां मेरे साथ मारपीट की गई. इसके बाद मुझे कुंडली थाने में ले गए और वहां भी मुझे पीटा और फिर अंत में मुझे करनाल जेल ले जाया गया. मुझे पुरुष पुलिसकर्मियों ने पीटा, आसपास कोई महिला कांस्टेबल नहीं थी. मेरे प्राइवेट पार्ट को भी चोट पहुंचाई गई. मेरी मेडिकल रिपोर्ट इसकी गवाही देती है कि मुझे कितनी बेरहमी से पीटा गया था.’

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट को शुक्रवार को सौंपी गई मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया कि जिन डॉक्टरों ने गिरफ्तारी के 13 दिन बाद 25 जनवरी को सोनीपत के सिविल अस्पताल में नौदीप की जांच की, उन्होंने उनके शरीर के विभिन्न हिस्सों पर चोट के निशान पाए, जिनमें बाईं जांघ पर ‘10 सेंटीमीटर बाई 7 सेंटीमीटर’ और पीठ पर ‘6 सेमी. बाई 5 सेमी.’ का निशान शामिल हैं.

नौदीप ने यह भी आरोप लगाया कि कुंडली के एसएचओ रवि कुमार ने कहा था, ‘समाज में दलित इतने ऊंचे कभी नहीं उठ सकते कि लोगों की आवाज बन जाएं. आपको हर किसी के लिए बोलने का अधिकार किसने दिया?’

हालांकि, कुंडली एसएचओ ने नौदीप के दावों को ‘झूठा आरोप’ करार देते हुए नकार दिया है. दिप्रिंट से फोन पर हुई बात में रवि कुमार ने कहा, ‘हमने ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की है. यहां कई दलित पुलिस कांस्टेबल भी हैं…मैं उनसे ऐसा व्यवहार नहीं करता.’

पुलिस ने हिरासत में प्रताड़ित किए जाने के आरोपों से भी इनकार किया है. जांच अधिकारी शमशेर सिंह ने दिप्रिंट को बताया था कि नौदीप की गिरफ्तारी में निर्धारित प्रोटोकॉल का पालन किया गया था. सोनीपत पुलिस ने भी 6 फरवरी को जारी बयान में कहा था कि एमएएस सदस्य और मजदूर ‘हिंसक हो गए और भारी लाठी-डंडों से पुलिस अधिकारियों की पिटाई शुरू कर दी.’


यह भी पढ़ें: आज़ादी- ‘तेज़ी से तैयार होती भारतीय फासीवाद की इमारत’


‘हमारे साथ मारपीट करने वालों पर कोई एफआईआर नहीं’

नौदीप मुखर महिला कार्यकर्ताओं के परिवार से आती हैं, जिसने अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कई तरह की कठिनाइयां झेली हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी के खालसा कॉलेज में पढ़ाई की फीस जुटाने के लिए उसने कुंडली औद्योगिक क्षेत्र में काम करना शुरू किया था. नौदीप के मुताबिक, यहां आकर ही उसने मजदूरों का उत्पीड़न देखा और इसी वजह से एमएएस में शामिल हो गई.

नौदीप के मुताबिक, ‘हम कुछ समय से कुंडली औद्योगिक क्षेत्र में वेतन का भुगतान नहीं होने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. पुलिस ने मेरे खिलाफ तो एफआईआर दर्ज कर ली लेकिन कुंडली इंडस्ट्रियल एसोसिएशन (केआईए) की तरफ से नियुक्त क्विक रेस्पॉन्स टीम (क्यूआरटी) के खिलाफ कभी ऐसा नहीं किया जो कई बार हमारे साथ मारपीट कर चुकी है.’

हालांकि, केआईए का कहना है वेतन का भुगतान न होने का कोई मुद्दा नहीं है. साथ ही इस बात से भी इनकार किया कि क्यूआरटी ने मजदूरों के साथ मारपीट की थी.

केआईए के कार्यकारी अधिकारी धीरज चौधरी ने दिप्रिंट को बताया था, ‘कोई भी उद्योग अपने मजदूरों को वेतन क्यों नहीं देगा? ऐसा कोई यह मामला नहीं है. हमने हिंसा या मारपीट करके किसी को नहीं धमकाया है…यदि वेतन रोका गया होगा तो कुछ कारण से होना चाहिए— उदाहरण के तौर पर जैसे कर्मचारी कंपनी के नियमों का पालन नहीं कर रहा हो.’

खबरों के मुताबिक केआईए अध्यक्ष सुभाष गुप्ता ने कहा है, ‘हमारे साथ कई बार लूटपाट हुई. हमारे जेनरेटर चोरी हो गए और लोगों ने अंदर घुसने की कोशिश की. यही कारण है कि हम लोग गार्ड रखते हैं.. उन्होंने कई बार हमें झंडे लेकर नारे लगा रहे लोगों के समूह से भी बचाया है.’


यह भी पढ़ें: BJP थिंक टैंक ने चुनाव से पहले दी रिपोर्ट- बंगाल में रोजगार की स्थिति सुधारें, पुचका और पर्यटन को बढ़ावा दें


नौदीप का आरोप शिव कुमार को भी हिरासत में पीटा गया

नौदीप के सहयोगी और एमएएस अध्यक्ष शिव कुमार की गिरफ्तारी भी सुर्खियों में रही है. नौदीप के उलट शिव कुमार अब भी जेल में हैं. उनके परिवार का आरोप है कि कुमार को 16 जनवरी को ‘अवैध’ ढंग से पुलिस हिरासत में लिया गया था लेकिन पुलिस का कहना है कि उन्हें 23 जनवरी को गिरफ्तार किया गया और निर्धारित प्रक्रिया का पालन हो रहा है.

गुरुवार को जारी उनकी चिकित्सा रिपोर्ट में पता चला है कि उनके हाथ और पैर में कई जगह फ्रैक्चर हैं और किसी धारदार वस्तु या हथियार के कारण भी चोटें आई है, जिसके बारे में कुमार का आरोप है कि ये चोटें सोनीपत के पुलिस कर्मियों ने पहुंचाई हैं.

नौदीप का कहना है, ‘लोगों का समर्थन मिलने के कारण शिव कुमार का मेडिकल चंडीगढ़ के एक अस्पताल में करना संभाव हो पाया जिससे यह बात सामने आ पाई कि पुलिस हिरासत में उन्हें कितनी बेरहमी से पीटा गया है.’ कुमार ने 17 फरवरी को पुलिस हिरासत के दौरान ही 24 वर्ष की आयु पूरी की है और उन्हें एक आंख से दिखाई नहीं देता है.

दिप्रिंट ने मामले में टिप्पणी के लिए सोनीपत के पुलिस अधीक्षक जशनदीप सिंह रंधावा से फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये संपर्क किया लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

जेल में करीब एक महीने से अधिक समय बिताने के बावजूद नौदीप का कहना है कि वह अब भी दलित श्रम अधिकारों के लिए लड़ने को प्रतिबद्ध हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं अपना जीवन इस तरह की लड़ाई के लिए समर्पित करना चाहती हूं…मैं अब किसी डिग्री में भरोसा नहीं करती जिसे हासिल करने के बाद भी उसके आधार पर नौकरी पाना बहुत कठिन है. मैं अपना पूरा जीवन मजदूरों और किसानों के अधिकारों की जंग लड़ने के लिए समर्पित कर दूंगी.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: दिल्ली पुलिस के खिलाफ अदालती लड़ाई के एक साल बाद अब घर लौट रहे हैं 36 तबलीगी


 

share & View comments