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Thursday, 9 May, 2024
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दिल्ली पुलिस के खिलाफ अदालती लड़ाई के एक साल बाद अब घर लौट रहे हैं 36 तबलीगी

2020 में 44 तबलीगियों ने फैसला किया कि वो वीज़ा शर्तों और कोविड प्रोटोकॉल्स के उल्लंघन के दिल्ली पुलिस के आरोपों को स्वीकार नहीं करेंगे. उन सभी को अदालत ने बरी कर दिया.

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नई दिल्ली: अहमद बिन अब्दुल्लाह अली (45) बहुत खुश थे कि दिल्ली पुलिस को सरेंडर करने के तकरीबन एक साल बाद आखिरकार सोमवार को उन्हें साकेत ज़िला न्यायालय से अपना पासपोर्ट वापस मिल गया.

अली और 14 अन्य विदेशी नागरिकों को कोर्ट से अपने पासपोर्ट मिले, जिसके लिए उन्हें दिल्ली पुलिस से एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी, जिसने उनपर पिछले साल मार्च में निज़ामुद्दीन मरकज़ में तबलीगी जमात के जलसे में शरीक होने का आरोप लगाया था.

31 मार्च 2020 को 950 से अधिक विदेशी नागरिकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई, जो उस जलसे में शरीक हुए थे. उन सभी पर सरकार की ओर से जारी कोविड-19 लॉकडाउन प्रोटोकॉल तोड़ने का आरोप लगाया गया था.

चार्जशीट में नामित 955 विदेशियों में से 911 ने, प्ली बारगेनिंग कर ली और जुर्माना देकर देश से वापस चले गए. लेकिन उनमें से 44 ने, जिनमें ऊपर उल्लिखित 15 लोग भी थे, कहा कि वो दोषी नहीं हैं और उन्होंने आरोपों का विरोध किया.

अगस्त 2020 में, इनमें से 8 लोगों को डिस्चार्ज कर दिया गया और बाकी 36 को दिसंबर 2020 में बरी कर दिया गया.

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आदेश जारी करते हुए, चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (सीएमएम) अतुल कुमार गर्ग ने भी कहा था कि इस बात की ‘यथोचित संभावना’ है कि पुलिस ने अभियुक्तों को केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) के निर्देशों पर, ‘दुर्भावनापूर्ण तरीके’ से मुकदमा चलाने के लिए पकड़ा था.

चूंकि दिल्ली पुलिस ने दो महीने पुराने बरी करने के आदेश को, उच्च न्यायालय में चुनौती नहीं दी, इसलिए 20 फरवरी को सीएमएम गर्ग ने उसे आदेश दिया कि 36 तबलीगियों के पासपोर्ट्स लौटा दिए जाएं, जिससे कि उन्हें अपने मुल्क लौटने में आसानी हो जाए.


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‘कोई गलत काम नहीं किया’

मार्च 2020 में, तबलीगी जमात उस समय एक बड़े विवाद में घिर गई, जब उसने दिल्ली के निज़ामुद्दीन मरकज़ स्थित, बंगलेवाली मस्जिद में एक जलसे का आयोजन किया.

अधिकारियों का आरोप था कि प्रतिभागियों ने कोविड की वजह से लगी निषेधाज्ञाओं का उल्लंघन किया था और वो वायरस के ह्यूमन कैरियर्स बन गए थे.

एक अप्रैल को, एमएचए ने 960 विदेशियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया और उनके वीज़ा रद्द कर दिए, ये आरोप लगाते हुए कि तबलीगी जमात के जलसे में उनकी शिरकत, उनकी वीज़ा शर्तों का उल्लंघन थी. गृह मंत्री के कार्यालय से ये भी कहा गया कि दिल्ली पुलिस और उन राज्यों के पुलिस प्रमुख, जहां वो तबलीगी रह रहे थे, उनके खिलाफ विदेशी अधिनियम, और आपदा प्रबंधन अधिनियम के अंतर्गत कानूनी कार्रवाई करें.

न्यूयॉर्क, अमेरिका के निवासी अली ने कहा कि उन्होंने यहीं रुकने का फैसला किया क्योंकि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया था.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने कोई गलत काम नहीं किया था, इसलिए मैंने लड़ने का फैसला किया. अमेरिकी दूतावास ने मुझसे कहा कि मैं अपना दोष स्वाकार कर लूं लेकिन मैंने उनका सुझाव मानने से इनकार कर दिया’.

अली 12 मार्च 2020 को अपनी पत्नी, ससुर, और सास के साथ, जलसे में शिरकत करने के लिए भारत आए थे और उन्होंने दावा किया कि भारतीय इमिग्रेशन अधिकारियों ने उन्हें कभी नहीं बताया कि निज़ामुद्दीन मरकज़, ठहरने के लिए कोई अवैध जगह या बिल्डिंग थी.

उन्होंने कहा, ‘मरकज़ के लिए मैं दूसरी बार भारत आया हूं, अगर जलसे के बारे में कुछ गैर-कानूनी था, तो अधिकारियों को हमें एयरपोर्ट पर ही रोक देना चाहिए था’.

अली ने तबलीगी जमात से जुड़ी गलतफहमियों को भी दूर किया और स्पष्ट किया कि ये कोई ऐसी संस्था नहीं है, जिसके सदस्य होते हैं. ‘तबलीगी का मतलब है एक दूसरे को अच्छा मुसलमान बनने की याद दिलाना, हमारे यहां कोई अध्यक्ष या ट्रेज़री नहीं होता, हम सब पवित्र क़ुरान के विचारों के आदान-प्रदान के लिए जमा होते हैं’.

थाईलैंड के एक फ्रीलांस डिज़ाइनर अब्दुल सलाम ने भी, अली की भावनाओं का समर्थन किया और कहा कि कोई कारण नहीं था कि वो खुद को दोषी महसूस करते.

सलाम छह महीने के दौरे पर भारत और बांग्लादेश आए हुए थे और जिस समय लॉकडाउन का ऐलान हुआ, वो घर वापसी के लिए, दिल्ली से फ्लाइट पकड़ने वाले थे.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने कुछ गलत काम नहीं किया. मैं यहां मरकज़ में शिरकत के लिए आया था, जो कि एक वैध जलसा है’.


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‘हम कोरोना-पॉज़िटिव नहीं थे’

अहमद और सलाम दोनों का कहना है कि पुलिस की ये थ्योरी सरासर झूठी थी कि वो सभी लोग जिन्होंने जलसे में शिरकत की थी, वायरस के कैरियर थे.

अली ने कहा कि हालांकि उन्हें और उनके ससुर को, कोविड-19 के इलाज के लिए अस्पताल भेज दिया गया था लेकिन पुलिस ने न तो उन्हें कभी जांच रिपोर्ट्स दिखाईं, न ही अस्पताल में उन्हें कोई दवाएं दी गईं.

सलाम को भी बताया गया कि वो कॉविड पॉज़िटिव थे, लेकिन पुलिस के इस दावे के समर्थन में, उन्हें कोई रिपोर्ट्स नहीं दिखाई गईं.

इसके अलावा उन्होंने ये भी देखा, जो 44 विदेशी अपना केस लड़ने के लिए भारत में रुक गए थे, उनमें से किसी में भी कोविड-19 के कोई लक्षण नहीं थे.

अली ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें एक क्वारेंटाइन सेंटर भेज दिया गया, जहां उनके पासपोर्ट और फोन ले लिए गए.

उन्होंने कहा, ‘हमें एक मस्जिद में भेज दिया गया और लॉकडाउन की वजह से हम कहीं और नहीं जा सकते थे. 3 अप्रैल को पुलिस मस्जिद में आई, और हमें क्वारेंटाइन सेंटर ले गई. उन्होंने हमारे पासपोर्ट और फोन ले लिए और हमें ये आभास कराया कि ये उन्हें कुछ दिनों के लिए चाहिएं थे’.

अब तकरीबन एक साल के बाद, वो न्यूयॉर्क में अपने तीन बच्चों से मिलने को उत्सुक हैं, जो इस दौरान उनकी साली की देखरेख में थे.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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