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Wednesday, 22 May, 2024
होमदेशआंकड़े बताते हैं, लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के लिए आयुष्मान भारत योजना 'वरदान' साबित नहींं हुई

आंकड़े बताते हैं, लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के लिए आयुष्मान भारत योजना ‘वरदान’ साबित नहींं हुई

आयुष्मान भारत की पीएम-जय योजना के तहत शीर्ष 5 राज्यों में से केवल बिहार में मई और जून में पोर्टेबिलिटी के मामलों की संख्या में वृद्धि देखी गई है.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री की जन आरोग्य योजना (पीएम-जय), प्रधानमंत्री मोदी की स्वास्थ्य बीमा योजना आयुष्मान भारत के अंतर्गत आनेवाली की तीसरी फ्लैगशिप योजना है. जिसे यह बताया जा रहा है कि यह कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के लिए वरदान साबित हुई है.

हालांकि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण, इस योजना का प्रबंधन करने वाली एजेंसी के आंकड़ों से पता चलता है कि इस योजना का प्रवासी मजदूर समूह को सरकार के दावों के विपरीत बहुत लाभ नहीं हुआ है.

पीएम-जय में पोर्टेबिलिटी की सुविधा भी है, जिसके बारे में पीएम मोदी ने कहा था, लाभार्थियों को देश के किसी भी सूचीबद्ध अस्पताल में इलाज के लिए जाने की अनुमति देता है, चाहें वह किसी भी स्थान या लाभार्थी के पंजीकरण के स्थान पर हो या न हो. इसका उद्देश्य गरीब मरीजों को एम्स, नई दिल्ली और मुंबई में टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल जैसे प्रमुख टरशियरी केयर वाले अस्पतालों में इलाज कराने में मदद करना था.

लॉकडाउन के दौरान, यह माना गया था कि पोर्टेबिलिटी की वजह से प्रवासी मजदूर अलग-अलग स्थानों में जहां उन्होंने खुद को पंजीकृत कराया है उसके अलावा देश के किसी भी राज्य में या स्थान पर इसका उपयोग कर सकेंगे. लेकिन लगता है ऐसा नहीं हो पाया है. एनएचए के डेटा से पता चलता है कि कुल दावों के प्रतिशत के रूप में पोर्टेबिलिटी का दावा मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे कुछ शीर्ष राज्यों में नीचे चला गया, और केवल उत्तर प्रदेश में थोड़ा बढ़ा है. इनमें सिर्फ बिहार ही शीर्ष राज्यों में से एक है जहां पोर्टेबिलिटी के दावों में काफी वृद्धि देखी गई है.

पीएम-जय योजना के तहत जो दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम है उसमें लॉकडाउन के दौरान अस्पताल में भर्तियों में काफी कमी आई है.  एनएचए ने अब प्रवासी श्रमिकों तक पहुंचने के लिए एक अभियान भी शुरू किया है.

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23 सितंबर, 2018 को शुरू की  गई आयुष्मान भारत योजना के तहत 10.74 करोड़ परिवारों को प्रति परिवार 5 लाख रुपये का वार्षिक स्वास्थ्य कवर प्रदान किया गया है.


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पोर्टेबिलिटी डेटा

एनएचए डेटा से पता चलता है कि मध्य प्रदेश राज्यों की सूची को सबसे ऊपर है जहां पोर्टेबिलिटी के मामले देखे गए हैं उसके बाद उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा राज्य आते हैं.

कोविड से पहले के महीनों जैसे दिसंबर 2019 और जनवरी 2020 में,9.1 और 8 फीसदी रोगियों ने उनके गृह राज्य से अलग इस सुविधा का लाभ उठाया था. मई और जून में यह आंकड़ा 5 प्रतिशत के नीचे आ गया.

Infographic: Soham Sen | ThePrint

इन्फोग्राफिक्स:सोहम सेन/दिप्रिंट

उत्तर प्रदेश के आंकड़ों को अगर देखें तो दिसंबर और जनवरी महीने में पोर्टेबिलिटी का परसेंटेज 6.4 से 6 फीसदी तक था लेकिन मई और जून महीने में यह आंकड़ा बढ़कर 7.2 फीसदी और 6.8 फीसदी हो गया.

Infographic: Soham Sen | ThePrint

इन्फोग्राफिक्स:सोहम सेन/दिप्रिंट

सिर्फ बिहार में पोर्टेबिलिटी के मामले में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई. इसका प्रतिशत दिसंबर और जनवरी महीने में क्रमश: 8.1 और 9 फीसदी था लेकिन मई और जून में ये बढ़कर क्रमशः 16.8 प्रतिशत और 17 प्रतिशत तक हो गया.

Infographic: Soham Sen | ThePrint

इन्फोग्राफिक्स:सोहम सेन/दिप्रिंट

मध्यप्रदेश की तरह पंजाब और हरियाणा में भी  लॉकडाउन के दौरान इस संख्या में जबरदस्त गिरावट देखी गई. चूंकि लॉकडाउन के दौरान लोगों के एक स्थान से दूसरे स्थान जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था इसलिए प्रवासी अपने काम के स्थान से वापस घर नहीं जा सके थे.

Infographic: Soham Sen | ThePrint

इन्फोग्राफिक्स:सोहम सेन/दिप्रिंट

पंजाब में दिसंबर और जनवरी में पोर्टेबिलिटी के क्रमशः 3.5 प्रतिशत और 3.4 प्रतिशत मामले देखने को मिले, जो मई और जून में 1.4 प्रतिशत और 1.6 प्रतिशत तक नीचे आ गए. हरियाणा में दिसंबर और जनवरी में पोर्टेबिलिटी के मामले 4.7 प्रतिशत और 4.8 प्रतिशत थे परंतु मई और जून में 3.6 प्रतिशत की गिरावट देखी गई.

प्रत्येक राज्य में, लॉकडाउन के दौरान मामलों की संख्या में तेजी से गिरावट देखी गई.

यात्रा में प्रतिबंध से बदला उपयोग का पैटर्न

एनएचए सीईओ इंदु भूषण ने कहा था कि यह आंकड़ा इस बात का प्रतिबिंब हो सकता है कि यात्रा में प्रतिबंध लगाए जाने से किस तरह स्वास्थ्य की जरूरतों में भी बदलाव आया.

भूषण ने कहा, ‘ पोर्टेबिलिटी के दो तरह के मरीज हैं. पहले वो हैं जो अपने राज्य में बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं होने की वजह से बाहर जाकर इलाज कराते हैं.और ये लोग लॉकडाउन की वजह से आगे नहीं जा सके.’

उन्होंने आगे कहा, ‘फिर एक दूसरा समूह वह है जो अपने राज्य को छोड़कर बाहर दूसरे राज्यों की सेवाओं का लाभ उठाता है, बिहार की पोर्टेबिलिटी संख्या बढ़ने की वजह हो सकती है क्योंकि बिहारी दूसरे समूह में आते है.

पिछले पांच महीनों में अस्पताल की प्रोफाइल में ‘डिस्टोर्शन’ की समस्या भी देखी गई है. कई अस्पताल विशेषतौर पर कोविड सुविधाओं के लिए अंगीकृत किए गए हैं, जबकि कुछ ने  गैर कोविड मरीजों की कमी की वजह से खुद को बंद कर दिया.

भूषण ने आगे कहा, ‘कई मरीज़ एम्स दिल्ली आए लेकिन सर्विस को रोक दिए जाने की वजह से उनका इलाज संभव नहीं हो सका. और यह सभी आंकड़ों पर प्रभाव डाल रहे हैं. मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल ने अभी सेवाओं में किसी तरह की कटौती नहीं की, लेकिन फिरभी वहां मरीज़ पहुंच नहीं सके.


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प्रवासी मजदूरों के लिए अभियान

अब, एनएचए ने प्रवासी मजदूरों तक पहुंचने के लिए अभियान शुरू किया है जिसका शीर्षक है, ‘स्वास्थ्य की छांव, शहर हो या गांव”. इसके अंतर्गत उन्हें आयुष्मान भारत की पीएम-जय योजना की पोर्टेबिलिटी सुविधाओं की जानकारी देते हुए मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाओं की जानकारी दी जाएगी जिसका वो लाभ उठा सकें.

बता दें, 17 जुलाई तक लगभग 1.09 करोड़ स्वास्थ्य के एडमिशन में से, 14.61 लाख पोर्टेबिलिटी के मामले थे, जो  2,077.8 करोड़ रुपये तक का दावा किया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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