बाबा नागार्जुन की दो तस्वीरें अक्सर ध्यान खींचती हैं और लगातार सोशल मीडिया के जरिए हमारे सामने से गुजरती हैं. एक तस्वीर में वो फणीश्वरनाथ रेणु के खेतों में धान की रोपनी करते हुए दिखाई दे रहे हैं तो दूसरी में खद्दर (खादी) का कुर्ता और माथे पर ललका (लाल) गमछा लगाए दही-चूड़ा, आम और शक्कर (गुड़) खाते नज़र आते हैं.
इन तस्वीरों से बाबा की उस देशज छवि की एक झलक जरूर समझी जा सकती है जो उनके साहित्य कर्म में रचा बसा है और जिसने उन्हें जनकवि बना दिया.
बाबा नागार्जुन ने खुद कहा था-
‘जनता पूछ रही क्या बतलाऊं,
जनकवि हूं साफ कहूंगा क्यों हकलाऊं’
बाबा तात्कालिकता के स्वर थे. अक्सर तात्कालिक रचनाओं को बेहद रूखी नज़रों से देखा जाता है जिसका भविष्योत्तर समाज में ज्यादा मूल्य नहीं समझा जाता. लेकिन नागार्जुन ने अपनी कविताओं के मार्फत तात्कालिकता के विषयों को शब्दों में बुना, वही उन्हें जनप्रिय बनाती हैं और आज भी उनकी कविताएं याद की जाती हैं.
बिहार के मधुबनी में 1911 में जन्मे वैद्यनाथ मिश्र कई भाषाएं जानते थे. मैथिली में वो यात्री नाम से लिखते थे. राहुल सांकृत्यायन से प्रभावित होकर उन्होंने श्रीलंका जाकर पाली भाषा सीखी और वहीं उन्हें नागार्जुन नाम मिला. मैथिली, हिन्दी, पाली, संस्कृति, बांग्ला समेत उन्हें कई भाषाएं आती थीं. उन्होंने अपनी मातृभाषा मैथिली को भी अपने रचना कर्म से संपन्न किया है.
हाल ही में बिहार के सहरसा जिले के प्रसिद्ध गांव महिषी के रहने वाले तारानंद वियोगी जो खुद भी मैथिली और हिन्दी में लंबे समय से लिखते रहे हैं, उन्होंने बाबा नागार्जुन की जीवनी युगों का यात्री लिखी है. उन्होंने नागार्जुन की जीवनी को ‘भारतीय इंसानियत का इतिहास’ बताया है.
नागार्जुन का समूचा जीवन फक्कड़पन और यायावरी में बीता. लेकिन वो लगातार लिखते रहे. जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, बाल ठाकरे से लेकर मायावती तक को उन्होंने अपनी रचनाओं का हिस्सा बनाया. उनकी रचनाओं में मानवीय पीड़ा, उनका अपना लोक संस्कार, दबे-कुचले लोगों का स्वर, राजनीतिक घटनाओं पर टिप्पणी जगह पाती है.
दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनकी मृत्यु के दो दशक से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद 2020 में उनपर यौन शोषण का आरोप लगाया गया. मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस से पीएचडी कर रही गुनगुन थानवी ने उनपर ये आरोप लगाया. हालांकि आरोप लगने के बाद कई लोगों ने कहा कि उनके साहित्य का मूल्यांकन निजी जीवन के परे करना होगा.
बाबा नागार्जुन की 110वीं जयंती पर दिप्रिंट उनकी रचनाओं और तात्कालिक विषयों पर उनके लेखन पर नज़र डाल रहा है.
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नागार्जुन का रचना संसार
बाबा नागार्जुन अपने जीवन में तीन बार जेल गए. दो बार आजादी से पहले और अंतिम बार महात्मा गांधी की मृत्यु होने के बाद लिखी कविताओं के कारण. गांधी हत्या पर नागार्जुन ने दो कविताएं लिखीं- तर्पण और शपथ.
तर्पण कविता में नागार्जुन में तत्कालीन सत्ता में बैठे नेताओं पर जमकर कटाक्ष किए. उन्होंने लिखा-
‘जो कहते हैं उसको पागल
वह झोंक रहे हैं धूल हमारी आंखों में
वह नहीं चाहते परम क्षुब्ध जनता घर से बाहर निकले
हो जाएं ध्वस्त
इन संप्रदायवादियों के विकट खोह
वह नहीं चाहते पिता, तुम्हारा श्राद्ध, ओह!’
भारत की आजादी के बाद जब ब्रिटेन की महारानी भारत आईं तो बाबा नागार्जुन ने अपनी कविता में उन्हें भी दर्ज किया. उन्होंने लिखा-
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी,
यही हुई है राय जवाहरलाल की
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की
यही हुई है राय जवाहरलाल की
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी!
बाबा अपने कविता में अपनी प्रतिबद्धता को इस तरह दर्ज करते हैं-
अविवेकी भीड़ की ‘भेड़या-धसान’ के खिलाफ़…
अंध-बधिर ‘व्यक्तियों’ को सही राह बतलाने के लिए…
अपने आप को भी ‘व्यामोह’ से बारंबार उबारने की खातिर…
प्रतिबद्ध हूँ, जी हाँ, शतधा प्रतिबद्ध हूँ!
देश में दलित राजनीति का चेहरा रहीं मायावती पर उन्होंने लिखा-
मायावती मायावती
दलितेन्द्र की छायावती छायावती
जय जय हे दलितेन्द्र
प्रभु, आपकी चाल-ढाल से
दहशत में है केन्द्र
1975 में इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाया और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जो आंदोलन चल रहा था जिसमें देशभर के छात्र सत्ता की बर्बरता के खिलाफ लामबंद हो रहे थे तो उन्होंने इंदिरा गांधी के लिए लिखा-
क्या हुआ आपको?
क्या हुआ आपको?
सत्ता की मस्ती में
भूल गई बाप को?
इन्दु जी, इन्दु जी, क्या हुआ आपको?
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!
क्या हुआ आपको?
क्या हुआ आपको?
रानी महारानी आप
नबाबों की नानी आप
नफ़ाखोर सेठों की अपनी सभी माई बाप
सुन रही सुन रही गिन रही गिन रही
हिटलर के घोड़े की एक एक टाप को
छात्रों के ख़ून का नशा चढ़ा आपको
बाबा की रचनाओं से उठते स्वर
नागार्जुन वामपंथी धारा से आते थे. इस धारा से आने वाले लोगों ने भारतीय साहित्य, संस्कृति, कला, संगीत, सिनेमा को काफी संपन्न किया है.
कवि विष्णु खरे ने बाबा नागार्जुन पर लिखे अपने विस्तृत लेख में उनकी कविताओं और फिक्शन को पॉलीफोनिक बताया है जिसका मतलब है कि उनकी रचनाओं में एक से ज्यादा स्वर उभरते हैं.
बाबा की गिनती उनके समकालीन कवियों केदारनाथ अग्रवाल, शमशेर सिंह और त्रिलोचन, रघुवीर सहाय से अक्सर होती है. इन कवियों को प्रगतिशील धारा का माना जाता है जिन्होंने देश में हो रही उथल-पुथल को अपने रचना संसार में जगह दी.
आपातकाल के समय तक भारतीय कविता संसार में सौंदर्यबोध और छायावाद का गहरा असर था जिसे निराला, महादेवी वर्मा जैसे लोगों ने मजबूत किया था लेकिन सत्ता और समाज के बदलते तेवर ने कविता कर्म के विषयों को भी बदला.
अकाल के दिनों में लिखी उनकी कविता में दारुण्य का वो भाव नज़र आता है जो किसी कवि से अपेक्षा की जाती है. उन्होंने लिखा-
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त
दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद
नागार्जुन ने कई उपन्यास, करीब एक दर्जन कविता संग्रह, एक मैथिली उपन्यास लिखा. 1969 में उन्हें मैथिली कविता संग्रह पत्रहीन नग्न गाछ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. संस्कृत और बांग्ला भाषा में भी उन्होंने कविताएं लिखीं. उनका लेखन संसार काफी बड़ा है लेकिन उसे पढ़े जाने की जरूरत है.
उनके कविता संग्रह में युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, खिचड़ी, हजार हजार बाहों वाली, पुरानी जूलियों का कोर्स, तुमने कहा था, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने और इस गुबारे की छाया में शामिल हैं.
बाबा की प्रसिद्ध उपन्यासों में रति नाथ की चाची, बलचनमा, बाबा बटेशर नाथ, वरुण के बेटे, दुख मोचन, उग्रतारा, जमानिया का बाबा, पारो, आसमां में चंदा तारे शामिल हैं.
जून के अंत तक उत्तर भारत को मॉनसून घेर लेता है और कुछ हफ्तों तक लगातार बारिश का मौसम रहता है जो तपती धरती और गर्मी से लोगों को निजात दिलाती है. अभी कुछ ऐसा ही समय चल रहा है. नागार्जुन अपने रचना संसार में इसे कुछ इस तरह दर्ज करते हैं-
अब फुहारोंवाली बारिश होगी
बड़ी-बड़ी बूँदें तो यह
शायद कल बरसेंगे…
शायद परसों…
शायद हफ़्ता बाद…
बाबा नागार्जुन का रचना संसार काफी विशाल है जिसके समूचे अध्यन की जरूरत मौजूदा दौर में सबसे ज्यादा हो चली है.
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