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Thursday, 18 April, 2024
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‘खुले सीवर’ से ‘सफलता की दास्तान’ तक- K-100 कैसे बन गया बेंगलुरू में बरसाती पानी का ‘मॉडल’ नाला

सियोल की चियोंगीचियोन नहर की तर्ज़ पर विकसित के-100 बरसाती नाला, गाद निकालने के भारी प्रयासों की वजह से बेंगलुरू में हाल ही में आए सैलाब के दौरान काम करता रहा.

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बेंगलुरू: इसी महीने भारी बारिशों ने जब बेंगलुरू के कुछ हिस्सों को एक तरह के मनहूस वेनिस में तब्दील कर दिया था, जिसमें बारिश से तरबतर लोग नावों के सहारे सड़कों पर रास्ते पार कर रहे थे, तो शहर के कुछ दूसरे हिस्सों के निवासी, एक ‘मॉडल’ बरसाती नाले की बदौलत सूखे घूम रहे थे.

मैजेस्टिक इलाक़े से शुरू होकर बेलंदूर झील (जिसमें भारी बारिश के बाद बाढ़ आ गई) में बहने वाला कोरामंगला घाटी बरसाती नाला- या के-100- उस शहर में किसी पराए की तरह है, जो गाद से भरे जल निकासी इनफ्रास्ट्रक्चर के लिए जाना जाता है.

कचरे से अटे अपने अधिकतर समकक्षियों के विपरीत, 12 किमी. लंबा ये ड्रेन (जिसका नवीनीकरण अभी पूरा नहीं हुआ है) 4 और 5 सितंबर के बीच की रात अपना काम करता रहा, जब शहर 131.6 मिलीमीटर बारिश में डूबा हुआ था.

मंगलवार को जब दिप्रिंट ने दौरा किया, तो शांति नगर बस स्टेशन के नज़दीक नाले के आसपास का इलाक़ा, जो परियोजना का पहला चरण है, बहुत सुंदर दिख रहा था, जिसमें एक बड़ी सी खुली जगह थी, आकर्षक पौधे थे, और दीवारों पर लिखा था ‘नागरिक जलमार्ग’. दो व्यक्तियों को एक छोटे से पुल के ऊपर से सैर करते हुए, एक रास्ते के बराबर से सीढ़ियां चढ़कर दूसरी ओर जाते हुए देखा जा सकता था.

बस क़रीब दो साल पहले तक, ये ड्रेन कचरे से अटे किसी बंद गंदे नाले से ज़्यादा कुछ नहीं था, लेकिन इसे एक नया जीवन तब मिला जब सियोल में कंक्रीट से ढकी 10.9 किमी. लंबी चियोंगीचियोन धारा के नवीनीकरण से प्रेरित होकर, कर्नाटक सरकार ने शहर के नगर निकाय बृहत बेंगलुरू महानगर पालिके के तत्वावधान में, इसका सुधार कराने का फैसला किया.

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K-100 इसके कायाकल्प से पहले/ स्पेशल अरेंजमेंट

इसके नतीजे सिर्फ दिखने में ही सुंदर नहीं रहे हैं.

इस बीबीएमपी परियोजना की परिकल्पना करने वाले मॉड फाउण्डेशन के सिटी आर्किटेक्ट, नरेश नरसिम्हन ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले सप्ताह की बारिश के दौरान पूरे ड्रेन ने बहुत अच्छे से काम किया, सिवाय शायद एक जगह के जहां बंद अधूरा था’.

के-100 ड्रेन केआर मार्केट, शांति नगर, होसूर मार्ग, एजीपुरा, नेशनल गेम्स विलेज, कोरामंगला, एसटी बेड लेआउट से गुज़रते हुए, बेलंदूर पर जाकर ख़त्म होता है. इसका वॉटरशेड 32 वर्ग किमी. में फैला है और ये शहर के सीवेज का बारहवां हिस्सा अपने साथ ले जाता है.

नरसिम्हन ने आगे कहा, ‘पुराने शहर से गुज़रते हुए भी पानी बहुत अच्छे से बह रहा था. अब सारे पुल एक ही मेहराब में हैं, पानी का रास्ता साफ है, और उसमें कोई गाद या ठोस कचरा नहीं है. लोग भी अब ज़्यादा अनुशासित हो रहे, और ड्रेन में प्लास्टिक नहीं फेंक रहे हैं क्योंकि ड्रेन के साथ साथ बहुत से टिपर्स रखे हुए हैं’.

के-100 को आज एक पायलट परियोजना की तरह दिखाया जा रहा है, जिसे बेंगलुरू को बाढ़ से बचाने के लिए और बढ़ाया जा सकता है. चूंकि ये अलग अलग तरह के भूमि उपयोग वाली जगहों से होकर गुज़रता है जिनकी परिस्थितियां अलग होती हैं, इसलिए परियोजना से ये इनपुट्स मिलते हैं कि उसे बढ़ती आबादी वाले शहर की विभिन्न परिस्थितियों के अनुकूल कैसे बनाया जाए.


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परियोजना कैसे शुरू हुई

2016 में, एक ऐतिहासिक फैसले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने बेलंदूर लेक वेटलैण्ड पर 2,300 करोड़ रुपए की एक परियोजना के लिए दी गई पर्यावरण मंज़ूरी को रद्द कर दिया. निर्माण पर रोक लगाने के अलावा ग्रीन कोर्ट ने ये भी कहा कि झील की 3.10 एकड़ ज़मीन का पुनरुद्धानर किया जाए, और कई बरसाती नालों को नए सिरे से बहाल किया जाए.

जब एनडीटी ने आदेश दिया कि नाले की पूरी लंबाई से कंक्रीट को हटाया जाए, तो नागरिक प्राधिकरण ने इस पूरे हिस्से के नवीनीकरण के बारे में ग़ौर करना शुरू कर दिया.

बीबीएमपी ने बेंगलुरू-स्थित मॉड फाउण्डेशन के अर्बन डिज़ाइनर्स और अर्किटेक्ट्स की सहायता से, के-100 के नवीनीकरण की परियोजना शुरू की.

बीबीएमपी इंजीनियरिंग-इन-चीफ बीएस प्रहलाद के अनुसार, परियोजना पर अभी तक 150-160 रुपए ख़र्च किए जा चुके हैं, जिसका उद्देश्य ‘1200 करोड़ रुपए मूल्य की 32 एकड़ सार्वजनिक जगह को वापस हासिल करना है’.

लेकिन परियोजना की राह में मुश्किलें भी कम नहीं थीं.

जब टीम ने बरसाती नाले के नवीनीकरण काम काम शुरू किया, तो वो किसी खुले गंदे सीवर की तरह दिखता था. अंधाधुंध ढंग से फेंके गए कचरे की भरमार थी, नाले के साथ लगी संपत्तियों से कचरा सीधे उसके अंदर फेंका जाता था, और औद्योगिक कचरा सीवेज और बारिश के पानी में मिल जाता था.

प्रहलाद ने बताया, ‘के-100 में हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती पाइप ड्रेनेज सिस्टम में बदलाव करके, उसे खुले प्रवाह से पाइप द्वारा प्रवाह में तब्दील करना था. हम सीवेज को नालों से अलग करने में कामयाब हो गए, और वहां से 900 ट्रक गाद निकाली गई’.

उन्होंने कहा कि आख़िरकार, टीम पहले के ढाल को बहाल करने में सफल हो गई, क्योंकि बरसाती नाले में बह रहे इंसानी कचरे ने उसमें दो मीटर की गाद जमा कर दी थी. इस अतिरिक्त गाद के हटने से ड्रेनेज सिस्टम फिर से सुचारु रूप से बहने लगा.

उन्होंने कहा, ‘इससे पहले, ड्रेन के साथ के इलाक़ों में, जिनमें कोरामंगला भी शामिल है, हर साल पानी भर जाता था’.


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K-100 का एक दृश्य/सौम्या अशोक/ दिप्रिंट

जनता की सहायता से बेंगलुरू की जल विरासत की बहाली

बेंगलुरू के तेज़ी से हो रहे शहरीकरण के साथ, मूल राजाकलूवेस या के-100 जैसी पारंपरिक नहरें संकरी हो गई हैं, और कचरे से अटी रहती हैं.

प्रहलाद का मानना है कि के-100 में अपनाई गई प्रक्रिया को इन नहरों में दोहराने से, बहुत अच्छे नतीजे हासिल किए जा सकते हैं, लेकिन उसके लिए लोगों की इच्छा और सहमति की दरकार होगी.

उन्होंने कहा, ‘(के-100) यक़ीनन एक मॉडल है. लेकिन सबसे पहले, लोगों को आगे आकर कहना चाहिए कि हमारे राजाकलूवेस सीवेज-मुक्त होने चाहिएं. अगर बरसाती नालों से सीवेज को निकाल दिया जाए, तो हम उनसे गाद निकालने के बाद एक कृत्रिम नदी बना सकते हैं. अगर भूजल में सुधार होता है तो बाढ़ में कमी लाई जा सकती है, और हम इस शहर में नदी व्यवस्था के गौरव को वापस ला सकते हैं’.

मॉड फाउण्डेशन की एक अर्बन डिज़ाइनर निधि भटनागर ने भी कहा कि परियोजना का आधार शहर और इसके लोगों को उनकी ‘जल विरासत’ से जोड़ना था, लेकिन, उन्होंने ये भी कहा कि बहुत से लोगों को पता भी नहीं है कि ये मौजूद भी है.

उन्होंने पूछा, ‘अगर आपको पता ही नहीं है कि किसी ख़ास जगह पर कोई जल स्रोत है चूंकि वो बाड़ से घिरा है, तो आप लोगों को बताएंगे कैसे कि ये एक ऐसी चीज़ है जो उनकी है?’

प्रेरणा के लिए टीम ने चीन, कोरिया, और फिलीपीन्स की मिसालें देखीं.

एक पहलू जो सामने नज़र आया वो ये था, कि जलमार्ग नवीनीकरण परियोजना की कामयाबी में जनता की भागीदारी एक बहुत अहम पहलू है.

नरसिम्हन ने कहा, ‘मनीला में पासिग नदी के (नवीनीकरण) मामले में दिलचस्प बात ये थी, कि इसमें जनता की भादीगारी काफी थी’.

के-100 परियोजना में शहर और राज्य की कई एजेंसियों ने साथ मिलकर काम किया, और आपस में सहयोग करके ड्रेन के दोनों ओर रह रहे लोगों के बीच जागरूकता फैलाई.

अब यहां समुदायों की ओर से दीवारों के साथ साथ लगे प्लांटर्स में पौधे लगाए जाते हैं, और लोग खुली जगह का आनंद लेते हैं. जितने सालों से ये परियोजना चल रही है, टीम ने बरसाती नाले में जाने वाले सीवेज और कचरे की मात्रा में कमी देखी है.

नरसिम्हन ने कहा, ‘जब तक आप मौजूदा नालों से सीवेज, ठोस कचरा, और गाद बाहर नहीं निकालते, तब तक कोई योजना काम नहीं करेगी. आपको सिर्फ यही काम करना है, और 80 प्रतिशत समस्या हल हो जाएगी’. उन्होंने आगे कहा, ‘अतिक्रमण इसका एक हिस्सा है. असली बड़ी समस्या गाद, ठोस कचरा और सीवेज है, और ये भी कि साथ ही साथ चैनल की चौड़ाई को भी बढ़ाते जाने की ज़रूरत है’.

नरसिम्हन ने आगे कहा कि दूसरे देशों के उदाहरणों को देखने से पता चला, कि नालों को ठीक करने और कृत्रिम दलदली भूमि के इस्तेमाल से पानी को साफ और फिल्टर करने के लिए, प्राकृतिक जल प्रणालियां बहुत महत्व रखती हैं.

नरसिम्हन ने कहा, ‘ये एक अहम चीज़ है जिसे हमें भारत लाने की ज़रूरत है, इसे निर्मित दलदल कहा जाता है. हम अकसर ये मान लेते हैं कि अपशिष्ट पानी या तरल कचरे का उपचार करने का एकमात्र तरीक़ा यही है, कि उन्हें महंगे मेम्ब्रेन-आधारित जल उपचार संयंत्रों से गुज़ारा जाए, जिन्हें चलाने के लिए बिजली और रासायनों की ज़रूरत होती है’.

आर्किटेक्ट ने आगे कहा, ‘इस परियोजना का मार्गदर्शक सिद्धांत यही था, कि हमें ग्रे से एक ग्रीन इनफ्रास्ट्रक्चर उदाहरण की ओर बढ़ना है. हमें पब्लिक इनफ्रास्ट्रक्चर में लोगों को शामिल करना होगा’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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