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Friday, 26 April, 2024
होमदेश'बाढ़ के लिए बाहरियों को दोष देना आसान'- बेंगलुरू के लोग 'आरोप-प्रत्यारोप के खेल' की राजनीति से हुए दुखी

‘बाढ़ के लिए बाहरियों को दोष देना आसान’- बेंगलुरू के लोग ‘आरोप-प्रत्यारोप के खेल’ की राजनीति से हुए दुखी

रेनबो ड्राइव के 13 रेजिडेंट्स को स्ट्रोमवाटर ड्रेन के कथित अतिक्रमण के लिए नोटिस दिए गए हैं. यह इलाका काम की तलाश में कर्नाटक आए बहुत से लोगों का घर है. जल कार्यकर्ता का कहना है कि 'उचित जल निकासी व्यवस्था' की जरूरत है.

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बेंगलुरु: बेंगलुरु के रेनबो ड्राइव कॉलोनी में अंदर घुसते ही ऐश्वर्या डिपार्टमेंटल स्टोर की दीवारों पर बाढ़ के पानी के निशान साफ देखे जा सकते हैं. किराना दुकान का मालिक समीर एक छोटे से स्टूल पर बैठकर अपने स्टाफ की निगरानी कर रहे हैं. हाथ में रबर के दस्ताने पहने वे सभी पिछले हफ्ते की बाढ़ से बर्बाद हुए सामान को छांटने में लगे हुए थे.

कहीं और बेचने के लिए उनकी दुकान से दाल खरीद रहे एक विक्रेता से उन्होंने कहा, ‘दाल को पैकेट से निकाल कर, थोड़ा सा सुखा लेना. और फिर से पैक कर लेना. यह ठीक हो जाएगी.’ दालों के पैकेट ऊंचे शेल्फ पर रखे हुए थे. इसलिए जब दुकान में कमर तक पानी भरा तो वो भीगने से बच गए. लेकिन बाकी समान के साथ ऐसा नहीं था. समीर पिछले 15 सालों से दुकान चला रहे है. इस बार उन्हें जितना नुकसान झेलना पड़ा, उसका लंबा-चौड़ा बिल उनके पास है. उनकी दुकान के सभी रेफ्रिजरेटर फट गए जिसके कारण दुकान की छत पूरी काली काली हो गई है.

हलनायकनहल्ली झील के पास सरजापुर रोड पर बसा रेनबो ड्राइव, लगभग 25 साल पहले बनाया गया था. इस गेटेड कालोनी में लगभग 300 घर हैं.

Ruined provisions at Aishwarya Departmental Store, Rainbow Drive Layout, Bengaluru | Credit: Sowmiya Ashok, ThePrint
ऐश्वर्या डिपार्टमेंटल स्टोर, रेनबो ड्राइव कॉलोनी, बेंगलुरु में बर्बाद हुए खाने का सामान/ सौम्या अशोक/दिप्रिंट

सोमवार, अगस्त 2022 को जारी एक सर्कुलर में बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) ने महादेवपुरा निर्वाचन क्षेत्र में आईटी पार्कों और डेवलपर्स द्वारा कथित रूप से किए गए 15 अतिक्रमणों का नाम दिया गया है. इस सूची में रेनबो ड्राइव के कुछ घर भी शामिल हैं.

सर्कुलर पर प्रतिक्रिया देते हुए जल कार्यकर्ता और बेलंदूर निवासी नागेश अरास ने दिप्रिंट को बताया, ‘जनता के हंगामे के मद्देनजर इस तरह के किसी भी बयान को एक चुटकी नमक की तरह लिया जाना चाहिए. जब बीबीएमपी को घेरा जाता है तो वह आमतौर पर एक सॉफ्ट टारगेट की तलाश करता है और फिर उसे ही बलि का बकरा बना दिया जाता है. अगली आपदा आने तक कुछ नहीं किया जाएगा. और जब फिर से ऐसा होता है, तो वे आरोप-प्रत्यारोप को खेल खेलने लग जाते हैं.

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5 सितंबर को रेनबो ड्राइव में बाढ़ आ गई, जिससे निचले इलाके में स्थित 20-25 घर प्रभावित हुए. यहां रहने वाले कुछ लोग तो पीने के पानी के बिना घंटों तक बाढ़ में फंसे रहे थे. निवासियों ने दावा किया कि पानी 10 इंच से बढ़कर पांच फीट तक पहुंच गया था.

वह पास ही में एक आईटी कंपनी में काम करते हैं और बाढ़ आने से काफी परेशान हैं. उन्होंने अपना नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया. ‘लोग कहानियां बना रहे हैं कि हमारे घर एक झील पर बने हुए हैं.’ वह आगे कहते हैं, ‘आउटसाइडर्स’ (जो कर्नाटक के बाहर से यहां काम करने के लिए आए हैं) को दोष देना आसान है. दरअसल यह मामला अमीरों और गरीबों के बारे में हो गया है. लोग हमें दोष देने के लिए इस अवसर का फायदा उठा रहे हैं.’

रेनबो ड्राइव में रहने वाले ‘पर्यावरण के प्रति जागरूक ग्रुप’ होने का दावा करते हैं. 2020 में वर्षा जल संचयन के प्रयासों और उपयोग किए गए पानी के पुनर्चक्रण के लिए इस समुदाय की प्रशंसा की गई थी.

बाढ़ के मुद्दे को राजनीतिक मोड़ लेने में ज्यादा समय नहीं लगा. 9 सितंबर को मीडिया से बात करते हुए, बेंगलुरु दक्षिण के भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने कहा कि यह कांग्रेस और ‘निहित स्वार्थों’ वाले लोगों का एक ‘वर्ग’ है जो कुछ हिस्सों में आई बाढ़ को पूरे शहर में बाढ़ आने की गलत धारणा के साथ फैला रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘यह बेंगलुरु को बदनाम करने की साजिश है, हमारी सरकार को बदनाम करने की साजिश है.’

उधर मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने पिछली कांग्रेस सरकार पर अतिक्रमणों की जांच नहीं करने का आरोप लगाते हुए कहा कि बाढ़ के प्रमुख कारण माने जाने वाले स्ट्रोमवाटर ड्रेन पर कथित अतिक्रमण को हटाने के अभियान में कोई पक्षपात नहीं किया जाएगा.

बीबीएमपी ने सोमवार को आठ जगहों पर अतिक्रमण विरोधी अभियान शुरू किया. उनका मानना था कि इसी वजह से महादेवपुरा क्षेत्र के बेलंदूर और उसके आसपास बाढ़ आई है. पिछले दिन बेंगलुरु पूर्वी तहसीलदार ने गेटेड समुदाय के 13 निवासियों को एक स्ट्रोमवाटर ड्रेन के कथित अतिक्रमण के लिए नोटिस जारी किया है.

रिपोर्टों के अनुसार, अधिकारियों ने आरोप लगाया कि इन लोगों के रिहायशी इलाकों ने पुलिया के प्रमुख क्षेत्रों को अवरुद्ध कर दिया और  की वजह से ही बारिश के दौरान बाढ़ आ गई. अगस्त के पहले सप्ताह में निवासियों ने कहा कि वे बाढ़ का कारण बनने वाले मुद्दों को ठीक नहीं करने के लिए सिविल अधिकारियों की उदासीनता के विरोध में सड़कों पर उतरे थे.

पानी को लेकर काम कर रहे एक्टीविस्ट अरास ने कहा, ‘इस नक्शे के पीछे पुनर्विकसित गांव हैं जो ऊंची जमीन पर बने हैं. उनका पानी और सीवेज रेनबो ड्राइव की ओर गिरता है. जब लोग ऐसे इलाकों का निर्माण करते हैं जहां यातायात, सीवेज या पानी की आवा-जाही का बंदोबस्त नहीं होता है, तो आपको समस्या होती है. कॉलोनी के परे रहने वाले लोगों को मुख्य सड़क पर आने के लिए एक बड़ा चक्कर लगाना होगा, लेकिन पानी और सीवेज किसी का इंतजार नहीं करेंगे. यह बस निचले इलाकों में घुस आता है.’


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कंक्रीट का जंगल

एलिवेशन मैप से पता चलता है कि रेनबो ड्राइव एक घाटी क्षेत्र में बना है, जो हलनायकनहल्ली और जुन्नासंद्रा की झीलों को नीचे की ओर शाऊल केरे से जोड़ता है.

इससे पहले कि नागरिक निकाय अपने अतिक्रमण विरोधी अभियान के साथ यहां पहुंचे, बाढ़ के पानी ने रेनबो ड्राइव क्लब हाउस के पीछे परिसर की दीवार के कुछ हिस्सों को पूरी तरह से तबाह कर दिया है. जब दिप्रिंट ने घटनास्थल का दौरा किया, तो टेनिस और बास्केटबॉल कोर्ट गंदे पानी से भरे हुए थे. ऐसा ही कुछ हाल स्वीमिंग पूल का था.

नक्शे के आधार पर बनी मुख्य सड़क पर बीबीएमपी का स्टाफ 30 स्वच्छता कर्मचारियों के बेड़े की निगरानी कर रहा था. उन्होंने कहा, ‘हम यहां पिछले तीन से चार दिनों से लगातार काम कर रहे हैं. बाढ़ के पानी से कीचड़ को साफ करने की कोशिश की जा रही हैं. लोग परेशान और गुस्से में हैं’

रेनबो ड्राइव में रहने वाले जिन भी लोगों ने दिप्रिंट से बात की उन सभी ने नाम न छापने का अनुरोध किया. उन्हें डर था कि बदले में स्थानीय अधिकारियों से कुछ प्रतिक्रिया मिल सकती है. कुछ निवासियों ने यह भी आरोप लगाया कि एक-दूसरे पर आरोप लगाने का ये खेल शक्तिशाली डेवलपर्स ने शुरू किया है, जो अपनी संपत्तियों को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए कॉलोनी के जरिए सड़क बनाना चाहते हैं.

यहां लंबे समय से रह रहे एक निवासी ने दिप्रिंट को बताया कि 1990 के दशक में जब उनका परिवार यहां रहने के लिए आया था, तब यहां ज्यादा कुछ बना हुआ नहीं था. अब, एंट्री करते ही आपको परिसर की दीवार से सटी लोकप्रिय कपड़ों के ब्रांड और एक रेस्तरां श्रृंखला वाली ऊंची इमारत दिख जाएगी. उन्होंने कहा, ‘पिछले एक दशक में ही यह पूरा सरजापुर क्षेत्र कंक्रीट के जंगल में बदल गया है.’

उन्होंने दिप्रिंट से इस बदलाव को देखने के लिए उपग्रह चित्रों पर नजर डालने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, ‘आप पाएंगे कि यहां के आसपास का बहुत सारा इलाका खेती की जमीन का था.’

अरास ने दिप्रिंट को बताया कि रेनबो ड्राइव को निर्माण के तीन चरणों में विकसित किया गया था. उन्होंने कहा, ‘एक बीबीएमपी से संबंधित है, अन्य दो चरण दो अलग-अलग गांवों से संबंधित हैं. ये दोनों गांव जिला परिषद के अंतर्गत आते हैं और बीबीएमपी के साथ कोई समन्वय नहीं है.’ वह आगे बताते हैं, ‘कॉलोनी ढलान बीबीएमपी द्वारा शासित भागों की तरफ और गांवों से सीवेज व बारिश का पानी बीबीएमपी क्षेत्र में लुढ़क जाता है.’

Stagnant water at Rainbow Drive Layout, Bengaluru | Credit: Sowmiya Ashok, ThePrint
रेनबो ड्राइव कॉलोनी, बेंगलुरु में बाढ़ के बाद रुका हुआ पानी | फोटो: सौम्या अशोक, दिप्रिंट

उन्होंने कहा कि यहां ड्रेनेज या सीवरेज सिस्टम बनाने की कोशिश करना मुश्किल होगा क्योंकि यह क्षेत्र अब पूरी तरह से बन चुका है.

अरास ने कहा, बाढ़ का एक अन्य कारक, ‘बी खारब’ भूमि (सरकारी गैर-कृषि योग्य भूमि) का बड़े पैमाने पर अतिक्रमण है, जिसका इस्तेमाल बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए किया जा सकता था. लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों ने इसे निजी हाथों में जाने दिया और यहां तक कि अतिक्रमण को रेगुलराइज भी कर दिया. रेनबो ड्राइव के मामले में बाढ़ ने बीबीएमपी को मजबूर कर दिया है. अब वह घरों को गिराकर इस जमीन को फिर से हासिल करना चाहता है.

बाढ़ प्रभावित गरीबों की मदद

रेनबो ड्राइव की तरह दिव्यश्री 77 के अपमार्केट क्षेत्र और एप्सिलॉन रेजिडेंशियल विला भी पूरी तरह से जलमग्न थे. यहां बेंगलुरु के कुछ तकनीकी सीईओ के घर भी हैं. हालांकि दिप्रिंट को इलाके के किसी भी घर में जाने की अनुमति नहीं दी गई. एप्सिलॉन के एक सुरक्षा गार्ड ने दिप्रिंट को बताया, ‘मामूली जलभराव था, अब यह समस्या हल हो गई है.’

एप्सिलॉन के मकान भी बीबीएमपी के सर्कुलर में कथित अतिक्रमणकारियों के नामों शामिल हैं.

अमीर इलाकों से दूर, 14 साल से बेंगलुरु में रहने वाली मोया कैडी अपने दोस्तों के साथ बाढ़ से प्रभावित झुग्गी-झोपड़ियों के लोगों की मदद कर रही है. उनकी टीम दशरहल्ली, वीरन्नापाल्य और बेल्लाहल्ली में झुग्गी बस्तियों में रहने वालों को चावल, दाल, आटा, तेल, चाय और चीनी उपलब्ध करा रही है. अगले कुछ दिनों में उनकी टीम ने वरथुर और व्हाइटफील्ड में बस्तियों का दौरा करने की योजना बनाई है.

कैडी ने दिप्रिंट को बताया, ‘इनमें से कई इलाके माइग्रेंट कैंप हैं’ उन्होंने बताया कि ये प्रवासी कामगार हैं जो शहर की बढ़ती आबादी की सेवा में जुटे हैं. ये लोग मैड, ड्राइवर या चौकीदार के रूप में काम करते हैं. वह कहती है, ‘इन झुग्गियों का दौरा करने के बाद हमने महसूस किया कि सरकार इन लोगों के लिए जो कर रही हैं, वह काफी नहीं है. गरीब पीड़ित हैं और जनता को आगे बढ़कर कुछ करने की जरूरत है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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