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Saturday, 20 April, 2024
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कश्मीर के युवा शायर कैसे ऑनलाइन मुशायरों के जरिए समानांतर साहित्यिक सोसाइटी बना रहे हैं

25 वर्षीय ज़ीशान जयपुरी ने अपनी टीम के साथ ‘कश्मीरी टेल्स’ नाम से एक वेबसाइट बनाया है जिससे घाटी के नौजवान और उभरते हुए शायरों को एक मंच मिलेगा.

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श्रीनगर: 2019 में 25 वर्षीय ज़ीशान जयपुरी अपने तीन दोस्तों के साथ, एक नयी तरह की वेबसाइट बनाने में लगे थे, जिसका नाम था ‘द कश्मीर टेल्स’ और जो कश्मीरी और उर्दू साहित्य को बचाने के लिए समर्पित थी.

लेकिन 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 के रद्द होने और इलाके में संचार ठप कर दिए जाने के बाद, उनकी योजना पटरी से उतर गई.

इस साल मार्च में जब आख़िरकार ब्रॉडबैण्ड इंटरनेट पूरी तरह बहाल हुआ, तब जयपुरी ने जो ख़ुद एक शायर हैं, अपने प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करने का फैसला किया. घाटी में अनियमित और लो-स्पीड इंटरनेट के बावजूद, जो कानून व्यवस्था के हालात को देखते हुए अक्सर बंद कर दी जाती थी, टीम आख़िरकार अपनी वेबसाइट लॉन्च करने में कामयाब हो गई.

कश्मीरी, उर्दू और अंग्रेज़ी कविताओं के अलावा, वेबसाइट पर घाटी के सैकड़ों नौजवान और महत्वाकांक्षी कवियों को मंच दिया जाता है, जिन्हें अकसर मुख्यधारा के मंचों पर जगह नहीं मिलती. ‘कश्मीर टेल्स’ की कोर टीम में जयपुरी के अलावा आसिफ भट्ट, जलीस हैदर और वेब डेवलपर सैयद बुरहान शामिल हैं.

वेबसाइट की लोकप्रियता उम्मीद से ज्यादा उस वक़्त बढ़ गई, जब कोविड-लॉकडाउन के दौरान उन्होंने ऑनलाइन मुशायरे और कवि सम्मेलन प्रसारित करने शुरू किए.

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वेबसाइट के सह-क्यूरेटर, 21 वर्षीय भट्ट ने बताया, ‘शुरू में हम अपने दोस्तों के बीच मुशायरा  किया करते थे. हमारा विचार था कि इसे बड़ा बनाएंगे और उभरते हुए नौजवान शायरों के साथ सीनियर शायरों को भी बुलाएंगे ताकि हम जैसे नौजवान उन तजुर्बेकार लोगों से कुछ सीख सकें. लेकिन हमारे प्लांस थम गए. ऐसे हालात में ऑनलाइन मुशायरे करने से काफी राहत महसूस हुई’.


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इंटरनेट बंदिशों और लॉकडाउन के बीच शायरी को ज़िंदा रखना

लॉकडाउन खत्म जाने के फौरन बाद, जो अनुच्छेद-370 रद्द किए जाने के बाद लगाया गया था, कोरोनावायरस संक्रमण रोकने के लिए, 24 मार्च को कश्मीर घाटी में, एक और लॉकडाउन घोषित कर दिया गया.

लेकिन इस बार एक ख़ास फर्क था- इंटरनेट कनेक्शन, कितना भी कमज़ोर सही, लेकिन मौजूद था. और जयपुरी ने अपनी टीम के साथ इस मौके का फायदा उठाकर, ‘अपना अभियान’ जारी रखने का फैसला कर लिया.

कश्मीर यूनिवर्सिटी से अंग्रेज़ी साहित्य में मास्टर्स कर रहे जयपुरी ने बताया, ‘मैं बचपन से ही साहित्य से जुड़ा रहा हूं. मेरे परिवार का कविता का इतिहास रहा है. मेरे दादा अकबर जयपुरी साहब एक मशहूर शायर थे और मैं अक्सर घर पर हुए मुशायरों में बैठा करता था. उनके गुज़र जाने के बाद, घर पर मुशायरे जारी रहे, बस फर्क ये था कि अब वो उनकी याद में होते थे. शायरी से मेरा लगाव बढ़ता गया, जो आख़िरकार मुझे यहां तक ले आया’.

टीम में सबसे मुश्किल काम बुरहान के हिस्से में आया, जो टीम के वेब डेवलपर थे क्योंकि जम्मू-कश्मीर में बैंडविथ की बंदिशों के साथ काम करना आसान नहीं है. वेबसाइट को चालू रखने के लिए, उन्हें इंटरनेट बंदी और कम स्पीड के साथ जूझना पड़ता है.

वेबसाइट की सामग्री भी बढ़ती जा रही है. कविता और गद्य से ऊपर उठकर, ‘कश्मीर टेल्स’ में अब कहानी सेक्शन में 13 श्रेणियां हैं. इनमें गद्य की अलग-अलग शैलियां हैं- संक्षिप्त कहानियां, उपन्यास, हॉरर, माइथोलॉजी और थ्रिलर्स वगैरह.

बुरहान ने कहा, ‘हम लोगों को इसमें लगाए रखना चाहते हैं. कश्मीर के लोगों में ऐसी सामग्री को लेकर काफी दिलचस्पी है, पढ़ने में भी और लिखने में भी. पिछले दस दिन में हमें 1,000 पेज रिव्यूज़ मिले हैं, न सिर्फ कश्मीर से, बल्कि अमेरिका और कनाडा जैसे देशों से भी. इसमें समय लगेगा लेकिन हमें उम्मीद है कि ये जल्दी ही बढ़ जाएंगे’.


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शायरों को बराबर मौके देने की मुहिम

जयपुरी के लिए यह सब एक मुहिम का हिस्सा है, जिसका मकसद कश्मीर में सभी साथी शायरों को बराबर मौके देना है. 25 वर्षीय जयपुरी अपने आपको ख़ुशकिस्मत समझते हैं लेकिन उससे परेशान भी होते थे. ये उनकी बेचैनी ही थी, जिसने उनके अंदर ऐसा प्लेटफॉर्म लॉन्च करने की इच्छा पैदा की.

उन्होंने कहा, ‘मैं अपनी ख़ुशकिस्मती को समझता हूं. एक मशहूर शायर का पोता होने की वजह से, मुझे शायरी के आयोजनों और चर्चाओं में बुलाया जाता था. लेकिन मेरे बहुत से दोस्त हैं और मैं ऐसे काफी शायरों को जानता हूं, जो ज़बर्दस्त शायरी करते हैं, लेकिन उन्हें ऐसे ख़ास क्लबों में नहीं बुलाया जाता. मैं उन्हें एक मंच देकर इस कल्चर को तोड़ना चाहता था. मेरे लिए ये एक मुहिम है. कश्मीर के आने वाले अदब को बचाकर रखना’.

इसलिए ऑनलाइन मुशायरे इस मुहिम का एक हिस्सा थे.

विचार बहुत सादा है, शायर अपनी रिकॉर्ड की हुई वीडियोज़ या तो इंटरनेट से भेजते हैं या खुद आकर देते हैं और फिर जयपुरी की टेक्निकल टीम उन वीडियोज़ को अपलोड करके, उनका प्रचार करती है और उन्हें कमेंट्स, फीडबैक, यहां तक कि रचनात्मक आलोचना के लिए खोल देती है.

लेकिन कश्मीर जैसी जगह में जहां इंटरनेट तकरीबन एक लग्ज़री है, एक सादे आइडिया को अमल में लाना भी बेहद मुश्किल है. एक वैबसाइट चलाना, ई-मेल्स के ज़रिए दर्जनों लेखकों और कवियों के साथ समन्वय करना, कंटेंट को अपलोड और डाउनलोड करना एक बड़ा काम है, जिसके लिए बहुत धैर्य की ज़रूरत होती है.

लेकिन टीम के सदस्य अपनी कोशिशों के नतीजों से बहुत ख़ुश हैं.

भट्ट जो खुद भी साहित्य के छात्र हैं, ने कहा, ‘हम कश्मीर के नौजवान कवियों और लेखकों की एक कम्यूनिटी बनाने में कामयाब हो गए हैं. हम एक दूसरे से सीखते हैं’.


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जयपुरी को उम्मीद है कि उनकी वेबसाइट मुख्यधारा के साहित्य के शिकंजे को तोड़ देगी.

उन्होंने कहा, ‘हमारा विचार एक ऐसा समानांतर संस्थान बनाने का है, जो कुछ लोगों की एक्सक्लूसिविटी को चुनौती दे सके, जिसे उन्होंने कला और कविता का इस्तेमाल करके बनाया है और जिसमें कुछ चुनिंदा लोगों का ही दबदबा है, जो गेटकीपर की तरह काम करते हैं, अपनी पसंद के लोगों को आगे बढ़ाते हैं और नापसंद लोगों को रोकते हैं. मैं इस यथास्थिति को तोड़ना चाहता हूं और कश्मीर के तमाम शायरों को एक जगह लाना चाहता हूं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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