scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होमदेशकोविड को रोकने और मरीज़ों की पहचान के लिए पटियाला में कैसे ली गई केमिस्टों और डॉक्टरों की मदद

कोविड को रोकने और मरीज़ों की पहचान के लिए पटियाला में कैसे ली गई केमिस्टों और डॉक्टरों की मदद

ज़िला प्रशासन ने तमाम दवा विक्रेताओं, और झोलाछाप व स्थानीय डॉक्टरों से कहा है, कि ऐसे लोगों के बारे में ख़बर दें, जो कोविड की दवाओं या इलाज के लिए आते हैं. इससे बीमारों को फैलने से रोकने में मदद मिल रही है.

Text Size:

पटियाला: पंजाब में पटियाला प्रशासन ने ग्रामीण इलाक़ों में, कोविड-19 के संभावित मामलों का पता लगाने के लिए, एक अलग तरकीब निकाली है- ऐसे लोगों का पता लगाना, जो कोविड में दी जाने वाली दवाओं, आइवरमेक्टिन और पैरासिटेमॉल के लिए, स्थानीय स्थानीय केमिस्टों के पास आते हैं, और ऐसे लोगों की जांच कराना. जो लोग पंजीकृत चिकित्सकों (आरएमपीज़), यहां तक कि झोलाछाप डॉक्टरों के पास भी, कोविड जैसे लक्षणों के साथ आ रहे हैं, उन पर भी ऐसे ही नज़र रखी जा रही है.

पटियाला के 1,038 गांवों में, प्रशासन ने मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) को निर्देश दिया है, कि वो अपने अपने इलाक़ों में, आरएमपी चिकित्सकों, झोलाछाप, और केमिस्टों के संपर्क में रहें, और जो भी उनके पास, कोविड जैसे लक्षण के साथ, या कोविड की दवाएं लेने के लिए आता है, उनके आंकड़े जमा करें, और उनका विवरण तुरंत ज़िला प्रशासन को भेजें.

प्राप्त हुए इस डेटा को सेंट्रल कंटोल रूम में चढ़ा दिया जाता है. इसके बाद संबंधित लोगों से संपर्क किया जाता है, और उनकी जांच के लिए, एक टीम भेज दी जाती है.

पटियाला डिप्टी कमिश्नर कुमार अमित का कहना है, कि इस तरीक़े ने ‘बहुत अच्छा काम किया है जिससे ज़िले में, वायरस से संक्रमित लोगों की प्रभावी रूप से पहचान करने, उनपर नज़र रखने, और उन्हें अलग रखने में मदद मिली, और आगे चलकर मौतों की संख्या को भी क़ाबू किया जा सका’.

इस पहल की शुरूआत 20 मई को हुई थी.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

पंजाब प्रशासन के पास उपलब्ध डेटा के अनुसार, 21 मई तक राज्य में हुई कुल मौतों में, 11 प्रतिशत से अधिक पटियाला में देखी गईं. उस तारीख़ तक केस मृत्यु दर के हिसाब से, पंजाब में 8,963 मौतें दर्ज की जा चुकीं थीं. इनमें से 1,019 अकेले पटियाला से थीं.

अधिकारियों का कहना है कि इस पहल से, टेस्टिंग को भी बढ़ावा मिला है.

अधिकारियों का दावा है कि 21 मई के बाद से, पटियाला के गांवों से 68,233 जांच नमूने लिए जा चुके हैं, जो संख्या अप्रैल में केवल कुछ हज़ार थे. इससे ज़्यादा मामलों का पता लगाने में मदद मिली है. 8 अप्रैल से 7 मई के बीच 2,866 मामलों की अपेक्षा, 8 मई से 7 जून के बीच ये संख्या, बढ़कर 3,736 हो गई.

ग्रामीण पटियाला से अभी तक अधिकारिक रूप से, 170 कोविड मौतें दर्ज की जा चुकी हैं. लेकिन, ज़िला प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक़, इसके गांवों से पिछले 15 दिन में, कोविड से कोई मौत नहीं हुई है.


यह भी पढ़ेंः भारत को तीसरी लहर से निपटने के लिए सर्विलांस बढ़ाना चाहिए, तमाम वैरिएंट पर नजर रखना जरूरी : सौम्या स्वामीनाथन


दवा विक्रेताओं और झोलाछाप डॉक्टरों को साथ लेना

दूसरी लहर के दौरान, जब ग्रामीण पटियाला में कोविड जैसे लक्षणों के साथ, मौतों की संख्या बढ़नी शुरू हुई, तो प्रशासन ने एक सर्वे किया जिसमें पता चला, कि बहुत से केमिस्ट गांव वालों को, आइवरमेक्टिन, पैरासिटेमॉल, यहां तक कि स्टेरॉयड जैसी दवाएं तक बेंच रहे थे, जो उनके पास बुख़ार, बदन दर्द, गले में ख़राश, और उल्टी जैसी शिकायतें लेकर आ रहे थे- जो सब कोविड के लक्षण हैं.

अमित ने कहा कि तब जाकर प्रशासन को अहसास हुआ, कि अगर संदिग्ध कोविड मामलों की शिनाख़्त करनी है, और उन्हें अलग करके, संक्रमण के फैलाव को रोकना है, तो केमिस्टों तथा स्थानीय डॉक्टरों को साथ लेना होगा. आरएमपीज़ तथा केमिस्टों के साथ एक मीटिंग करके, इस क़वायद का ख़ुलासा किया गया.

अमित ने कहा, ‘ये डॉक्टर और केमिस्ट किसी भी गांव वासी के लिए पहला संपर्क होते हैं, जो बीमार पड़ता है और यही कारण है, कि हमारे लिए ज़रूरी था कि उन्हें साथ लें, जिससे हमें संदिग्ध कोविड-19 मामलों की शिनाख़्त में सहायता मिल जाए’.

उन्होंने कहा कि बहुत से ग्रामीण, बिना किसी निगरानी के दवा लेने से, मौत का शिकार हो गए थे.

उन्होंने आगे कहा, ‘शुरू में ऐसे लोगों का पता लगाना मुश्किल था, जो संक्रमित हो सकते थे. बीमार पड़ने पर ये लोग अमूमन, इन डॉक्टरों के पास जाते थे, या ये सोचकर केमिस्ट से दवा लेते थे, कि ये सामान्य फ्लू है’. उन्होंने कहा, ‘उन्होंने वायरस को फैला दिया. बिना निगरानी के दवाएं लेने से कई मौतें हुईं. हमें कभी पता ही नहीं चल पाया, कि ये मौतें कोविड से थीं या किसी और वजह से थीं, क्योंकि उन लोगों ने कभी जांच ही नहीं कराई’.

उन्होंने आगे कहा, ‘जब मुझे पता चला कि इन केमिस्टों और झोलाछाप डॉक्टरों ने, इतने सारे लोगों को आइवरमेक्टिन, पैरासिटेमॉल, यहां तक कि स्टेरॉयड जैसी दवाएं तक दी थीं, तो हमने उन्हें हिदायत दी, कि कोविड-19 संदिग्धों को कोई भी दवा न दें, बल्कि उनके आंकड़े रखें, और अधिकारियों को तुरंत सूचित करें, जिससे कि उन लोगों की जांच करके उन्हें अलग रखा जा सके, और उनकी समुचित चिकित्सा देखभाल की जाए’.


यह भी पढ़ेंः वैक्सीन लगवाने के लिए 250 किलोमीटर तक की यात्रा कर रहे हैं दिल्ली-NCR के लोग


‘तीन लगातार मौतों के बाद, हमने ख्याल रखा कि यहां कोई न मरे’

बोलर कलां गांव के आरएमपी गुरध्यान सिंह, अपने दिन भर के कोविड मरीज़ों का रिकॉर्ड अपडेट कर रहे थे, जब दिप्रिंट ने इस हफ्ते उनसे बात की.

Patients visit Gurdhyan Singh, a registered medical practitioner at Bolar Kalan | Ananya Bhardwaj | ThePrint
बोलर कलां में एक रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर गुरध्यान सिंह के पास बैठे मरीज़ । अनन्या भारद्वाज । दिप्रिंट

उन्होंने एक स्पेशल नोटबुक बनाई हुई है, जिसमें बुख़ार, खांसी, लगातार सर दर्द, बदन दर्द, यहां तक कि दस्तों जैसे लक्षण वालों के लिए, एक अलग कॉलम है, और वो हर रोज़ ब्लॉक अधिकारियों को, अपने गांव के संदिग्ध कोविड मामलों के बारे में अपडेट करते हैं.

शुरू में, सिंह भी ऐसे लक्षणों के साथ उनके पास आने वालों को, दवाएं लिख देते थे, बिना ये सोचे कि हो सकता है कि वो, मरीज़ों का फायदे से अधिक नुक़सान कर रहे हों. लेकिन, उन्होंने कहा कि अब उन्हें अहसास हो गया है, कि उन्हें गांव में लक्षण वाले केस की सूचना देने की ज़रूरत है.

उन्होंने कहा, ‘लोग मेरे पास आते थे और कहते थे, कि उन्हें सरदर्द या बुख़ार है, और मैं उन्हें दवाएं दे देता था. लेकिन अब, चूंकि हमसे कहा गया है, कि हम आने वाले कोविड लक्षण वाले मरीज़ों का डेटा रखें, इसलिए हम उनके नाम, पते, और फोन नंबर लिख लेते हैं, और इस सूचना को प्रशासन को भेज देते हैं, ताकि जांच के लिए उनके घरों पर टीम भेजी जा सके’.

उन्होंने आगे कहा, ‘अब हम समझते हैं कि ये इतना ज़रूरी क्यों है, और हम इसका पालन कर रहे हैं, ताकि वायरस को क़ाबू किया जा सके’.

गांव के निवासी भी, जहां तक़रीबन 470 घर हैं, पूरी तरह से इस पहल के साथ हैं. गांव वालों का कहना है, कि बहुत कम लोगों ने कोविड को गंभीरता से लिया था, जब तक कि मई के पहले सप्ताह में, इस बीमारी के लक्षणों के साथ, एक के बाद एक तीन लोगों की मौत नहीं हो गई.

मरने वाले एक आदमी की उम्र 30 से अधिक थी, जो तभी उत्तराखंड के कुंभ मेले से लौटा था, जबकि दूसरा व्यक्ति एक दूधिया था, जो किसानों के घरों पर दूध देने के लिए जाता था. तीसरी मौत इसके कुछ ही दिन बाद हुई, और गांव के बहुत से लोग, कोविड-19 के लक्षणों के साथ बीमार पड़ने लगे.

गांव सरपंच के पति रणदीप राणा ने दिप्रिंट को बताया, ‘उस समय कोई कोविड को गंभीरता से नहीं ले रहा था. लेकिन जब जल्दी-जल्दी तीन लोगों की मौत हो गई, और हर घर में लोग बीमार पड़ने लगे, तो हम समझ गए कि कुछ गड़बड़ है. हम से से ज़्यादातर लोग, लोकल डॉक्टर के पास जाते थे, या केमिस्ट से दवा ख़रीद लेते थे’.

उन्होंने आगे कहा, ‘फिर एक दिन, प्रशासन की ओर से एक टीम हमारे पास आई, और पूछा कि हम ये दवाएं क्यों ले रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने हमारा विवरण लोकल केमिस्टों से लिया है. फिर उन्होंने हमसे जांच कराने के लिए कहा, और 20 से ज़्यादा लोग पॉज़िटिव पाए गए’.

सनौर ब्लॉक के प्रखंड विकास एवं पंचायत अधिकारी, धरम पाल शर्मा ने कहा, कि कोविड-जैसे लक्षणों वाले लोगों का पता लगाना आसान हो गया है, चूंकि स्थानीय आरएमपी डॉक्टरों और दवा विक्रेताओं ने, उनके आंकड़े रखने शुरू कर दिए.

उन्होंने कहा, ‘डॉक्टर साहब अब लक्षण वाले लोगों का ब्योरा अधिकारियों को देते हैं, और एक टीम जांच के लिए आ जाती है. फिर उस व्यक्ति को अलग कर दिया जाता है, और समय पर उसका इलाज हो जाता है. इससे हमारे गांव में बीमारी का प्रकोप क़ाबू करने में मदद मिली है. पिछले 15 दिनों में, गांव से किसी मौत की ख़बर नहीं मिली है’.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः केंद्र सरकार ने Covishield की 25 और Covaxin की 19 करोड़ खुराक का दिया ऑर्डर


 

share & View comments