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Friday, 26 April, 2024
होमहेल्थभारत को तीसरी लहर से निपटने के लिए सर्विलांस बढ़ाना चाहिए, तमाम वैरिएंट पर नजर रखना जरूरी : सौम्या स्वामीनाथन

भारत को तीसरी लहर से निपटने के लिए सर्विलांस बढ़ाना चाहिए, तमाम वैरिएंट पर नजर रखना जरूरी : सौम्या स्वामीनाथन

डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन का कहना है कि इस दावे का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि तीसरी लहर में बच्चे और किशोर अधिक प्रभावित होंगे.

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नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की चीफ साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा है कि भारत को अपना सर्विलांस बढ़ाना चाहिए और संभावित तीसरी लहर के खतरों को कम करने के लिए कोविड-19 से जुड़े प्रमुख संकेतकों पर गहन नजर रखनी चाहिए.

डॉ. स्वामीनाथन ने कहा, ‘भारत को जीनोमिक सर्विलांस समेत अपनी हर तरह की सर्विलांस बढ़ानी चाहिए, रिसर्च और डाटा विश्लेषण करना चाहिए और कुछ प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य संकेतकों पर भी गहन नजर रखनी चाहिए.’ साथ ही जोड़ा, ‘यह सरकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी की जिम्मेदारी है.’

उन्होंने कहा, ‘जिला स्तर पर उपलब्ध डाटा जैसे टेस्टिंग रेट, पॉजीटिविटी रेट जैसी सर्विलांस गतिविधियों के साथ-साथ सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी इंफेक्शन (एसएआरआई) और इन्फ्लुएंजा लाइक इलनेस (आईएलआई) आदि पर गंभीरता से नजर रखनी होगी.’

उन्होंने कहा, ‘दूरवर्ती और ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड के इलाज की सुविधा उपलब्ध होना सुनिश्चित करना भी बेहद महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि महामारी बड़े शहरों से छोटे शहरों और गांवों तक पहुंच सकती है.’

वैज्ञानिक के अनुसार, जीनोमिक सर्विलांस, पहली और दूसरी लहर से उपलब्ध डाटा पर रिसर्च और विश्लेषण और सीरो-सर्विलांस से जुड़ा डाटा भी इसमें खासी अहमियत रखता है.

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उन्होंने कहा कि देश को क्लस्टर की निरंतर पहचान के साथ-साथ अपने यहां बेड भरे होने की दर पर भी लगातार नजर रखने की जरूरत है.

उनके मुताबिक, ‘तीसरी लहर की किसी भी संभावना से पहले हमें और रिसर्च, डॉक्यूमेंटेशन और डाटा विश्लेषण के जरिये ये समझने की जरूरत है कि वैरिएंट के बीच क्या अंतर है, संक्रमण फैलाने के मामले में वे कैसा व्यवहार करते हैं, उनका इलाज कितना जटिल है, टीके पर क्या प्रतिक्रिया रहती है…..हमें पुन: संक्रमण पर मौजूदा डाटा के गहन विश्लेषण की भी जरूरत है ताकि यह पता लगाया जा सके कि लोग कितने समय तक इम्यून रहते हैं.’

डॉ. स्वामीनाथन ने यह तथ्य भी रेखांकित किया कि भारत के जिन शहरों में पिछले साल सीरोप्रिवलेंस की दर उच्च स्तर की थी, उनमें भी इस साल मामलों में वृद्धि देखी गई.

उन्होंने कहा, ‘तो क्या इसका मतलब यह है कि डेल्टा वैरिएंट (जो भारत में पहले पाया गया) उन्हीं लोगों को फिर से संक्रमित करने में सक्षम था जो पहले संक्रमित हुए थे, या फिर इम्यूनिटी कमजोर होने से ऐसा हुआ अथवा पूरी तरह से नई आबादी—जो पहले वायरस की चपेट में नहीं आई थी—इससे संक्रमित हुई? यही बात हमें ठीक से समझने की जरूरत है.’

उन्होंने बताया कि जीनोमिक सर्विलांस बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि हमें वैरिएंट की अहमियत पता है.

उन्होंने कहा, ‘हमारे यहां डेल्टा वैरिएंट है, जो मूल वायरस (जिसने पिछले साल भारतीय आबादी को संक्रमित किया था) और यहां तक कि अल्फा वैरिएंट की तुलना में बहुत अधिक संक्रामक है. हमें विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिहाज से अलग-अलग रणनीतियां बनाने की जरूरत है. उदाहरण के तौर पर शहरी झुग्गियों में जो तरीका काम करता है, वह गांवों के ढांचे में काम नहीं करेगा.’

संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी ने कोविड-19 के बी.1.617.1 वैरिएंट को वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट ‘कप्पा’ नाम दिया है, जबकि बी1.617.2 वैरिएंट को वैरिएंट ऑफ कंसर्न ‘डेल्टा’ करार दिया गया है. दोनों वेरिएंट सबसे पहले भारत में पाए गए थे. अल्फा बी.1.1.7 वैरिएंट है, जिसकी पहचान सितंबर 2020 में पहली बार ब्रिटेन में हुई थी.


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‘आगे संभावित लहरों पर काबू पाने के लिए भारत को मामलों पर नियंत्रण रखना होगा’

डब्ल्यूएचओ की शीर्ष वैज्ञानिक ने कहा कि भारत के लिए जरूरी है कि संक्रमण के मामले कम से कम रहें.

उन्होंने कहा, ‘संक्रमण रोकने और उसे निचले स्तर पर बनाए रखने में सक्षम ज्यादातर देशों में आमतौर पर क्या होता है, यही कि अधिकारी क्लस्टर की पहचान करते हैं और उसका अच्छी तरह मुआयना करते हैं और कांटैक्ट में आए सभी लोगों (क्लस्टर के साथ) का टेस्ट करते हैं.’

डॉ स्वामीनाथन, जो भारत के शीर्ष अनुसंधान संस्थान भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की पूर्व महानिदेशक हैं, ने इस संबंध में चीन और दक्षिण कोरिया का उदाहरण दिया.

उन्होंने बताया, ‘उनके पास जब ऐसे मामले आते हैं तो अधिकारी ये सुनिश्चित करने के लिए सैकड़ों-हजारों लोगों का टेस्ट करते हैं कि वे क्लस्टर में हर उस व्यक्ति का पता लगा रहे हैं जो पॉजिटिव है और फिर इलाज संबंधी सभी उपायों को अपनाया जाता है. इस तरह आप संक्रमण फैलना एकदम निचले स्तर पर बनाए रखते हैं.’

उसने चेताया कि अगर सरकार संक्रमण दर निचले स्तर पर होने के बावजूद ट्रांसमिशन पर नियंत्रण रखने में नाकाम रहती है, तो फिर इस चेन को तोड़ने के लिए लॉकडाउन ही एक विकल्प रह जाता है.

उन्होंने कहा, ‘यह उस स्थिति में एकमात्र समाधान होता है जब बड़ी संख्या में मामलों और मृत्युदर बढ़ने के कारण स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर जरूरत से ज्यादा बोझ पड़ने लगता है. तभी संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए आपको कठोर उपायों की जरूरत होती है.

उन्होंने कहा, ‘किसी लॉकडाउन से बचा जा सकता है यदि चेतावनी के संकेतों को पहले ही, शुरुआती चरण में ही समझ लिया जाए…तब जबकि केस बढ़ने का ट्रेंड (संक्रमण के) नजर आने लगे, लेकिन आप उस प्वाइंट तक न पहुंचे हों जब स्वास्थ्य प्रणाली चरमराने लगे या फिर मौतों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जाए.’

‘बच्चों, किशोरों के अधिक प्रभावित होने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं’

डब्ल्यूएचओ की वैज्ञानिक ने कहा कि यह बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि तीसरी लहर से बच्चे और किशोर अधिक प्रभावित होंगे.

हालांकि, डॉ. स्वामीनाथन, जो एक बाल रोग विशेषज्ञ भी हैं, ने कुछ बच्चों के इस बीमारी के गंभीर रूप से पीड़ित होने की संभावना से इंकार नहीं किया. उन्होंने बच्चों के लिहाज से स्वास्थ्य देखभाल का बुनियादी ढांचा तैयार करने की सलाह भी दी.

उन्होंने कहा, ‘जब टीकाकरण कार्यक्रम का विस्तार हुआ तो उन्होंने ज्यादा उम्र के लोगों के साथ शुरुआत की. आपने उम्रदराज लोगों को प्रतिरक्षा क्षमता देने से शुरुआत की इसलिए युवा और कम उम्र के लोगों के लिए जोखिम ज्यादा रहेगा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अब तक हमने जो वैरिएंट देखे हैं, उनका बच्चों पर कोई खास असर नहीं होता. हम जानते हैं कि बच्चे संक्रमित हो सकते हैं और संक्रमण फैला सकते हैं, लेकिन आखिरकार स्कूल और कॉलेज खोलने तो पड़ेंगे ही. हमें याद रखना होगा कि आमतौर पर बच्चों में बीमारी का हल्का संक्रमण होता है और किसी बच्चे के गंभीर रूप से बीमार पड़ने की स्थिति कम ही आती है.’

उन्होंने कहा, ‘बच्चों की गहन चिकित्सा के लिए आईसीयू की व्यवस्था, डॉक्टरों और नर्सों को प्रशिक्षण, उपकरण लगाना, स्वास्थ्य प्रणाली को दुरुस्त करना एक अच्छा विचार है, लेकिन इसलिए नहीं है क्योंकि तीसरी लहर बच्चों को बुरी तरह प्रभावित करेगी.’


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‘एयरोसोल ट्रांसमिशन से दहशत नहीं फैलनी चाहिए’

ट्यूबरकुलोसिस पर अपने काम के कारण ख्यात डॉ स्वामीनाथन के मुताबिक, यह बताने के दौरान कि कोविड हवा से फैलने वाली एक बीमारी है, देशों को लोगों के बीच दहशत फैलने और उनके जागरूक होने के बीच अंतर को अच्छी तरह कायम रखना होगा.

उन्होंने कहा, ‘हमें दहशत नहीं फैलानी चाहिए. वायरस हवा में नहीं उड़ रहा है और यह दरवाजे और खिड़कियों से नहीं आ सकता. हम अभी नहीं जानते हैं कि किसी व्यक्ति को संक्रमित (कोविड-19 से) करने के लिए कितने वायरस कणों की आवश्यकता होती है और यह संभवतः अलग-अलग व्यक्तियों पर अलग-अलग तरह से असर करता है. प्रतिरक्षा प्रणाली में भी बहुत कुछ ऐला है जो हम अभी सीख ही रहे हैं.’

उन्होंने समझाया कि मुंह से निकलने वाले कुछ वायरस कण या बूंदे ऐसी होती हैं जो छोटी और हल्की होती हैं और कुछ समय के लिए हवा में तैरती रहती हैं.

उन्होंने कहा, ‘यदि आप कहीं बंद जगह पर हैं, जहां कोई वेंटिलेशन नहीं है और एक बंद कमरे में बहुत से लोग हैं और लंबे समय तक साथ वक्त बिता रहे हैं, और वह भी मास्क के बिना, तो संक्रमित होने का खतरा होता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इस तरह से यह एक व्यक्तिगत व्यवहार है जो लोगों को वायरस की चपेट में आने से बचा सकता है. भीड़-भाड़ वाली जगहों में जाने से बचें, लोगों से खुली जगहों पर मिलें और अगर आप उनसे दूरी बनाकर नहीं रख सकते हैं तो फिर अच्छी तरह फिट होने वाला मास्क पहनें जिससे आपकी नाक और मुंह पूरी तरह से ढके हों.

‘भारत में मिले वैरिएंट के बारे में अभी पता लगा रहे’

डब्ल्यूएचओ की वैज्ञानिक ने यह भी कहा कि संगठन पहली बार भारत में पाए गए वैरिएंट के बारे में अभी जानकारी जुटा रहा है.

उन्होंने कहा, ‘मुख्य रूप से अध्ययन ब्रिटेन से आ रहे हैं क्योंकि यह वहां पर एक प्रमुख वैरिएंट बन रहा है. यह अल्फा वैरिएंट की तुलना में 50 गुना अधिक संक्रामक है.

उन्होंने बताया, ‘अल्फा वैरिएंट पहली पहली बार 2020 में ब्रिटेन में पाया गया था जो कि मूल वुहान स्ट्रेन की तुलना में 40-50 गुना अधिक संक्रामक था. इलाज के असर को लेकर अभी तक कुछ स्पष्ट नहीं है और यहीं पर हमें भारत से डाटा की जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘सामने आ रहे डाटा से पता चलता है कि वैक्सीन पर प्रतिक्रिया में न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबॉडीज टाइट्रेस कई गुना तक घट जाते हैं, डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले लगभग 5 से 7 गुना तक…इसका मतलब है कि किसी खास वायरस को न्यूट्रीलाइज करने के लिए आपको उच्च स्तर की न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबॉडीज की जरूरत होगी.’

‘70-80% आबादी के टीकाकरण पर दुनिया को मिल सकती है हर्ड इम्युनिटी’

स्वामीनाथन ने कहा कि अभी तक इस बारे में कोई ठोस जानकारी तो नहीं है कि किस स्तर पर दुनिया में हर्ड इम्यूनिटी विकसित होगी लेकिन ‘यह कुल आबादी का लगभग 70-80 प्रतिशत होगा.’

उन्होंने कहा, ‘कोई वैरिएंट जितने ज्यादा लोगों को संक्रमित करने की क्षमता रखता होगा, उतने ही ज्यादा लोगों को संरक्षित करना जरूरी होगा. यदि आर-नॉट 2.5 है, तो आपको हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने के लिए लगभग 66 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण करना होगा. यह 70-80 फीसदी के दायरे में हो सकता है.

टीकाकरण के बारे में उन्होंने कहा कि अभी ग्लोबल कवरेज बहुत कम है, शायद 5 प्रतिशत से कम है. उन्होंने कहा, ‘यदि आप उच्च आय वाले और कम आय वाले देशों पर नजर डालें तो कवरेज में खासा अंतर दिखाई देगा. वैश्विक औसत का कोई मतलब नहीं है. कुछ देश 40 से 60 प्रतिशत कवरेज की ओर बढ़ रहे हैं जबकि अन्य देश अभी एक प्रतिशत टीकाकरण भी नहीं कर पाए हैं.’

उन्होंने कहा, ‘ऐसे में हम यही उम्मीद कर रहे हैं कि इस साल के अंत तक हर देश में 30 प्रतिशत और अगले साल के मध्य तक 60 प्रतिशत कवरेज हो जाएगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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