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Saturday, 20 April, 2024
होमदेशपराली से तैयार होगा ईंधन- कैसे IOCL का संयंत्र खेतों में लगी आग और उत्सर्जन दोनों को कम कर सकता है

पराली से तैयार होगा ईंधन- कैसे IOCL का संयंत्र खेतों में लगी आग और उत्सर्जन दोनों को कम कर सकता है

पानीपत में लगा इथेनॉल प्लांट हर साल 2.1 लाख मीट्रिक टन सूखे चावल के भूसे को संसाधित करेगा, जिससे 3 करोड़ लीटर इथेनॉल बनाकर इसे पेट्रोल में मिलाकर बेचा जाएगा.

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पानीपत: क्या सार्वजनिक क्षेत्र की कोई दिग्गज कंपनी किसानों को पराली से निपटने के वैकल्पिक तरीकों को चुनने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है, भारत के कच्चे तेल के आयात बिल को थोड़ा-बहुत कम करने में मदद कर सकती है, और साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को भी इस हद तक रोक सकती है जो सड़कों से 62,000 कारों को हटाने के बराबर हो सकता है? यह लंबा-चौड़ा काम लग सकता है, लेकिन यह ठीक वही चीज है जिसे एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम (सीपीएस आई) – जो कि फॉर्च्यून 500 में शामिल कच्चे तेल और ईंधन क्षेत्र की कंपनी है – हरियाणा के पानीपत में करने जा रही है.

अगले महीने चालू होने के बाद, पानीपत में स्थापित इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) का 2जी (दूसरी पीढ़ी का) इथेनॉल संयंत्र सालाना 2.1 लाख मीट्रिक टन सूखे चावल के भूसे (पराली) को संसाधित करेगा और इसे 3 करोड़ लीटर इथेनॉल में परिवर्तित करेगा. इथेनॉल एक जैव ईंधन है जो मुख्य रूप से चावल, मक्का और चीनी से प्राप्त होता है. इस सूखे चावल के भूसे का अधिकांश हिस्सा हरियाणा और पंजाब में किसानों द्वारा गेहूं की फसल के बाद अगली फसल के लिए अपने खेतों को साफ करते समय जला दिया जाता है.

इस संयंत्र में सूखे चावल के भूसे को संसाधित किये जाने से उत्पन्न इथेनॉल को फिर पेट्रोल के साथ (10 प्रतिशत की मात्रा तक) मिश्रित किया जाएगा और तेल विपणन कंपनियों द्वारा खुदरा बाजार में बेचा जाएगा. वायु प्रदूषण के मोर्चे पर, हालांकि यह 2जी संयंत्र कार्बन उत्सर्जन पर पूरी तरह से लगाम लगाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा, मगर यह अकेले ही प्रति वर्ष लगभग 3 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को पर्यावरण में प्रवेश करने से रोकेगा, जो भारतीय सड़कों से 62,000 कारों को हटाने के बराबर होगा.

आसपास के ही एक ईलाके में बन रहे एक दूसरे 3जी इथेनॉल संयंत्र, जो अभी चालू होने की प्रक्रिया में है, के साथ मिलकर पानीपत वाला यह संयंत्र लंबे समय में भारत के शुद्ध कच्चे तेल के आयात बिल को कम करने में भी योगदान देगा, जो यह देखते हुए अहम बात है कि फ़िलहाल हमारे देश में संसाधित किये जा रहे कच्चे तेल का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा विदेशों से आयात किया जाता है.

कच्चे तेल के लम्बे चौड़े आयात बिल को कम करने के लिए ही सरकार पेट्रोल के साथ एक पौधों से मिलने वाले ईंधन, इथेनॉल, के सम्मिश्रण पर जोर दे रही है. अपने ‘इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम’ के तहत, केंद्र सरकार साल 2025 तक पेट्रोल के साथ 20 प्रतिशत एथेनॉल के सम्मिश्रण का लक्ष्य बना रही है.

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यह संयंत्र मिस्र के शर्म अल-शेख में हाल ही में संपन्न संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप 27) में भारत द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा का जोरदार समर्थन किये जाने की पृष्ठभूमि में शुरू किया जाएगा. बता दें कि इस सम्मलेन में शामिल विकासशील और विकसित देश एक ‘लॉस एंड डैमेज फंड’ – जो जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों से निपटने में मदद के लिए होगा – स्थापित किये जाने के मुद्दे पर एक ऐतिहासिक सहमति पर पहुंचे है.

इस बात की पुष्टि करते हुए कि पानीपत में स्थित 2जी संयंत्र चालू होने के अंतिम चरण में है, आईओसीएल के मुख्य महाप्रबंधक (परियोजनाएं) जॉयदीप चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘इसमें एक महीना और लगेगा. हमने ट्रायल भी कर लिए हैं. सिर्फ फर्मेंटेशन (किण्वन) और हाइड्रोलिसिस प्रकिया का ट्रायल किया जाना है. हमने अभी तक इथेनॉल का उत्पादन नहीं किया है. यह अगले महीने से बाहर आना शुरू हो जाएगा.’

इस संयंत्र को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले 10 अगस्त को देश को समर्पित किया था.

फिलहाल प्लांट में ट्रायल रन (परीक्षण के तौर पर किया जा रहा काम) चल रहा है, जहां करीब 1,300 कर्मचारी निर्माण के अंतिम चरण को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. इस बीच, इस संयंत्र में फीडस्टॉक (किसी औद्योगिक प्रक्रिया के लिए आवश्यक कच्चा माल) के रूप में इस्तेमाल किये जाने वाले सूखे धान के पुआल या पराली को पानीपत के 50 किलोमीटर के दायरे के गांवों से इकट्ठा किया जा रहा है.


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परिचालन का विशाल पैमाना

पूरी क्षमता से काम करने पर पानीपत के इस संयंत्र को हर साल 3 करोड़ लीटर – लगभग 100 किलो लीटर (1 किलो लीटर 1,000 लीटर) प्रति दिन- इथेनॉल का उत्पादन करने हेतु 2.1 लाख मीट्रिक टन पराली की आवश्यकता होगी.

आईओसीएल के अधिकारियों का मानना है कि उन्हें इस क्षेत्र में पराली की कमी का सामना करने की संभावना नहीं है, और इसके लिए वे एक सरकारी सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहते हैं कि संयंत्र के 50 किलोमीटर के दायरे में पराली का उत्पादन 8.9 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष है. एक आईओसीएल अधिकारी ने कहा, ‘इसमें से हमें तो केवल 2.1 लाख एमटी की ही सालाना तौर पर जरूरत है.’

हालांकि, पराली को एकत्र करना और इसे संयंत्र तक पहुंचाना एक विशालकाय काम होने जा रहा है.

पराली को काटे जाने के समय से लेकर इसकी बेलिंग (बंडल बनाये जाने की प्रक्रिया), भंडारण और संयंत्र, जहां इसे संसाधित किया जाएगा, तक ले जाए जाने के समय तक किसान उत्पादक संगठनों, ट्रक चालकों, डिपो प्रबंधकों और ठेकेदारों सहित एग्रीगेटर्स का पूरा तंत्र लॉजिस्टिक्स का प्रबंधन करने के लिए काम करेगा.

किसान उत्पादक संगठन फीडस्टॉक के रूप में पराली खरीदने के लिए किसानों के साथ समन्वय करेंगे और इसे विशेष डिपो में लाएंगे, जहां ट्रकों के माध्यम से संयंत्र में आपूर्ति किये जाने से पहले उनकी बेलिंग (बंडलों के ढेर बनाना) की जाएगी. इस पूरी कार्यवाही में प्रति दिन औसतन 80-100 ट्रक लगेंगे, जिसमें से प्रत्येक ट्रक में 8 मीट्रिक टन पराली होगी.

आईओसीएल ने डिपो से संयंत्र तक पराली की ढुलाई का काम स्थानीय कंपनियों को आउटसोर्स कर दिया है.

Entry gate of IOCL's 2G ethanol plant in Panipat | Pooja Kher | ThePrint
पानीपत में आईओसीएल के 2जी इथेनॉल प्लांट का प्रवेश द्वार | पूजा खेर | दिप्रिंट

संयंत्र तक पहुंचने के बाद दिया को एक विशेष रूप से निर्धारित भंडारण क्षेत्र में रखा जाएगा, जो अभी की स्थिति में दो दिन के उत्पादन हेतु जरुरी पराली को जमा करने जितना बड़ा है. एक बार भंडारण क्षेत्र में आने के बाद पराली को विभिन्न वर्गों में प्रसंस्करण के लिए भेजा जाएगा – मिलिंग, गीली धुलाई, प्री ट्रीटमेंन्ट, हाइड्रोलिसिस और किण्वन.

आईओसीएल की पानीपत रिफाइनरी के कार्यकारी निदेशक (तकनीकी) एमएल डहरिया ने कहा कि हरियाणा सरकार ने किसान उत्पादक संगठनों को एक साथ लाने की प्रक्रिया को सुनिश्चित की है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘वही (हरियाणा सरकार) इन सभी किसान उत्पादक संगठनों एक साथ लायी हैं, उसने ही वह कीमत भी तय कर दी है जिस पर किसान प्रति हमें टन पराली की आपूर्ति करेंगे. जो वैसे तो उनके लिए कुछ भी कीमत वाली नहीं थी.’

यह बताते हुए कि कैसे किसानों को पहले उनकी पराली के बदले में कुछ भी नहीं मिल रहा था, डहरिया ने कहा, ‘अब, किसानों को आईओसीएल को बेचे जाने वाले प्रत्येक टन धान की पराली के लिए एक अच्छी खासी रकम का भुगतान किया जाएगा.’

आईओसीएल किसान उत्पादक संगठनों को चावल की भूसी के लिए 1,800 रुपये प्रति मीट्रिक टन की कीमत देगी और किसान उत्पादक संगठन इसके बदले में किसानों को लगभग 1,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन का भुगतान करेंगे.


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वैश्विक इथेनॉल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी

एक तरफ जहां सरकार अप्रैल 2025 तक बाजार में 20 प्रतिशत मिश्रित ईंधन (पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रित) बिक्री के लिए उतारने की उम्मीद कर रही है, वही चौधरी ने कहा कि मिश्रित ईंधन भारत में अपेक्षाकृत हाल का चलन है.

साल 2014 में तेल विपणन कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाले पेट्रोल में इथेनॉल के मिश्रण की मात्रा 1.4 प्रतिशत थी. आज, यह आंकड़ा 10 प्रतिशत है और अपने ‘इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम’ के तहत केंद्र सरकार साल 2025 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल के सम्मिश्रण का लक्ष्य प्राप्त करने की उम्मीद कर रही है.

दुनिया भर की कई अर्थव्यवस्थाएं पेट्रोल या मोटर स्पिरिट के साथ इथेनॉल का मिश्रण कर रही हैं, जिसमें अमेरिका और ब्राजील का साथ मिलकर किया गया योगदान 92 बिलियन लीटर या वैश्विक हिस्सेदारी का 84 प्रतिशत है. भारत का हिस्सा 3 प्रतिशत के मामूली स्तर पर है.

चौधरी के अनुसार, साल 2025 तक 20 प्रतिशत इथेनॉल सम्मिश्रण के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत को उस समय तक प्रत्येक वर्ष 9 बिलियन लीटर इथेनॉल का उत्पादन करने की आवश्यकता होगी. इसके विपरीत, भारत अभी सालाना 5 बिलियन लीटर इथेनॉल का उत्पादन कर रहा है.

हालांकि, पानीपत में स्थापित यह 2जी संयंत्र चावल के भूसे से इथेनॉल उत्पन्न करेगा, भारत में उत्पादित होने वाले इथेनॉल का एक बड़ा हिस्सा धान की फसलों का बाई-प्रोडक्ट (उप-उत्पाद) नहीं है. चौधरी ने बताया, ‘हमारे देश में गन्ना उद्योग इथेनॉल उत्पादन में प्रमुख योगदानकर्ता है. यह चीनी एवं गुड़ उद्योग से आता है. इसे हम 1G (पहली पीढ़ी का) इथेनॉल कहते हैं.’


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2जी क्या है और पानीपत ही क्यों?

दूसरी पीढ़ी (2G) एक ऐसी तकनीक है जिसमें चावल के भूसे या गेहूं के भूसे – अनाज के बजाय पौधे का एक बचा हुआ हिस्सा – उपयोग में लाया जाता है और इथेनॉल उत्पन्न करने के लिए हाइड्रोलिसिस और किण्वन की प्रक्रिया के माध्यम से गुजरा जाता है.

चावल के भूसे में सेल्युलोज, हेमिकेलुलोज और लिग्निन होता है. हाइड्रोलिसिस के लिए हेमिकेलुलोज और सेल्यूलोज की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु प्री-ट्रीटमेंट के दौरान लिग्निन को अलग करना पड़ता है, जो सेल्यूलोज और हेमिकेलुलोज को चीनी में बदलने के लिए एंजाइम की उपस्थिति में किया जाता है. फिर चीनी को किण्वन वाले अनुभाग में भेजा जाता है जहां इसे खमीर की उपस्थिति में 2 प्रतिशत इथेनॉल का उत्पादन करने के लिए किण्वित किया जाता है. यह फिर आसवन (डिस्टिलेशन) और निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) वाले अनुभाग में जाता है, जहां 98.6 प्रतिशत इथेनॉल प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त पानी को हटा दिया जाता है. यही इथेनॉल फिर भंडारण वाले टैंकों में जाता है और सम्मिश्रण क्षेत्र में भेजा जाता है, जहां इसे पेट्रोल के साथ मिश्रित किया जाता है.

35 एकड़ के क्षेत्र में फैला, पानीपत का यह 2जी इथेनॉल प्लांट पंजाब-हरियाणा में चावल के उत्पादन वाली बेल्ट में स्थित है. इस इलाके में चावल की बहुतायत है, जो साल में केवल एक बार उगाया जाता है और सितंबर और अक्टूबर में काट लिया जाता है. कटाई के बाद, बेलिंग मशीनों का उपयोग करके पराली को बंडलों में बदल दिया जाता है.

इस बारे में समझाते हुए कि किसान पराली कयों जला देते हैं, आईओसीएल के इस 2जी संयंत्र के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘अब, यदि आप वर्तमान में फसल काटने के लिए उपयोग में लायी जाने वाली हार्वेस्टर मशीनों को देखें, तो यह मिट्टी के ऊपर 8-10 इंच का अवशेष छोड़ जाती है. यह उस स्तर से ऊपर से ही फसल काटती है. इस पराली को बाहर निकालना किसानों के लिए बहुत कठिन काम होता है और फिर एक बार जब वे इसे हटा देते हैं तो उन्हें फिर से इससे छुटकारा पाने की चिंता करनी पड़ती है. तो, उनके लिए सबसे आसान तरीका यह है कि इसे आग के हवाले कर दें.’

पराली को जलाने की यह प्रथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में साल दर साल वायु प्रदूषण के स्तर को और ख़राब कर रही है. अधिकारी ने कहा, ‘इस 2जी संयंत्र के साथ, सरकार मूल रूप से किसानों को इस चीज के लिए प्रोत्साहित कर रही है कि वे पराली न जलाएं.’

आईओसीएल के पानीपत वाले संयंत्र के अलावा, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) ओडिशा के बरगढ़ में एक एकीकृत 2जी और 1जी बायोइथेनॉल रिफाइनरी लग रही है. इसी तरह हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) पंजाब के बठिंडा में एक बायो एथनॉल प्लांट लगा रही है और मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (एमआरपीएल) कर्नाटक के दावणगेरे में एक 2G एथेनॉल स्थापित कर रहा है.


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लॉजिस्टकस, भूमि अधिग्रहण हैं प्रमुख चुनौतियां

पानीपत वाले 2जी प्लांट के बारे में बात करते हुए आईओसीएल के अधिकारियों का कहना है कि लॉजिस्टिक्स और भूमि अधिग्रहण उनके सामने आई सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है.

एक अधिकारी ने कहा, ‘चुनौती पराली की उपलब्धता नहीं है. चुनौती इसे जुटाने में लगने वाला लॉजिस्टिक्स है. इसमें बहुत सारी मैनुअल हैंडलिंग, भण्डारण और परिवहन (ट्रांसपोर्टेशन) सम्बन्धी चीजें शामिल होती है. हम एक बड़ी मात्रा की तरफ देख रहे हैं और यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे कच्चे तेल की तरह पाइपलाइन के माध्यम से पंप किया जा सके.‘

प्रत्येक वर्ष सितंबर-अक्टूबर में फसल की कटाई के पहले की 15-20 दिनों की अवधि – जब पराली को एकत्र किया जाता है – का जिक्र करते हुए डहरिया कहते हैं, ‘फीडस्टॉक मौसमी तौर पर उत्पादित होता है और इसे पूरे वर्ष के लिए स्टॉक किया जाना होता है. आपको उन दो महीनों के दौरान खरीदारी करनी होगी और बाकी साल के लिए स्टॉक जमा करना होगा.’

पराली को रखने के लिए जगह का इंतजाम करना एक और बड़ी चुनौती है.

पानीपत में एक साल के फीडस्टॉक को जमा करने के लिए आईओसीएल को 150-200 एकड़ जमीन की जरूरत होगी. इस बारे में डहरिया ने कहा, ‘जमीन हासिल करने में थोड़ी दिक्कत है, लेकिन इसे सुलझा लिया जाएगा. हमने हरियाणा सरकार से एक लाख मीट्रिक टन धान की पराली जमा करने के लिए 100 एकड़ जमीन मांगी है. अब तक, उन्होंने लगभग 56 एकड़ भूमि के तीन खंडों को हमें सौंप दिया है.’

Storage area for dry rice straw at IOCL's 2G ethanol plant | Pooja Kher | ThePrint
आईओसीएल के 2जी इथेनॉल प्लांट में सूखे चावल के भूसे के लिए स्टोरेज क्षेत्र | पूजा खेर | दिप्रिंट

40,000 मीट्रिक टन सुखी पराली को जमा करने के लिए संयंत्र में उपलब्ध जगह के अलावा, आईओसीएल ने इसी मकसद से संयंत्र के बाहर भी तीन डिपो भी स्थापित किए हैं.

‘अभी के लिए व्यावसायिक तौर पर फ़ायदेमंद नहीं’

विशुद्ध व्यावसायिक दृष्टिकोण से यह 2G इथेनॉल संयंत्र अभी एक लाभदायक उद्यम नहीं है.

ऊपर उद्धृत एक आईओसीएल अधिकारी ने कहा, ‘यह तभी लाभदायक होगा जब आप जिस चीज (इथेनॉल) का मिश्रण कर रहे हैं वह आपके उत्पाद (पेट्रोल) से कम लागत की हो. इस समय यह समीकरण बहुत अनुकूल नहीं है. पेट्रोल में मिलाए जाने वाले इथेनॉल की कीमत पेट्रोल की बिक्री की कीमत से कहीं ज्यादा है.’

लेकिन आईओसीएल पानीपत परियोजना को मुनाफे के चश्मे से नहीं देख रही है.

चौधरी ने कहते हैं, ‘यह शुद्ध हाइड्रोकार्बन से इथेनॉल की ओर बढ़ने की राह में आईओसीएल की ओर से उठाया गया एक कदम है. अभी के लिए, एक देश के रूप में, हम विभिन्न प्रकार के इथेनॉल उत्पादन के साथ प्रयोग कर रहे हैं. संभवतः 1जी इथेनॉल 2जी की तुलना में व्यावसायिक रूप से अधिक लाभदायक होने जा रहा है. ‘

(अनुवाद: रामलाल खन्ना, संपादन: अलमिना खातून)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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