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Friday, 3 May, 2024
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ड्राई स्टेट बिहार में शराब की बोतलों से चूड़ियां बनाने की योजना, उद्योगपतियों को इसे लेकर संशय

आबकारी आंकड़ों के मुताबिक अकेले अगस्त में राज्य में 3.7 लाख लीटर शराब जब्त की गई. नीतीश सरकार ने शराब की बोतलों से चूड़ियां बनाने के विचार को अपने सामाजिक सशक्तिकरण कार्यक्रम ‘जीविका’ में शामिल किया है.

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पटना: बिहार में शराबबंदी कानून लाने वाली नीतीश कुमार सरकार अब जब्त शराब की बोतलों से कांच की चूड़ियां बनाने की तैयारी कर रही है. उनके इस कदम को महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

बिहार के आबकारी आयुक्त बी. कार्तिकेय धनजी ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य पहले से ही अपने ग्रामीण आजीविका संवर्धन कार्यक्रम के जरिए इस तरह की पहल पर काम कर रहा है, जिसे स्थानीय रूप से जीविका के नाम से जाना जाता है.

जीविका के लिए विश्व बैंक फंडिंग कर रहा है. यह एक ग्रामीण सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण कार्यक्रम है जो बिहार के ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत आता है.

धनजी ने कहा कि छापेमारी के दौरान जब्त की गई शराब की बोतलों को पहले कचरा समझा जाता था और उन्हें तोड़कर फेंक दिया जाता था. उन्होंने बताया, ‘लेकिन अब हम ये (बोतलें) जीविका कार्यकर्ताओं को देंगे, जिन्हें चूड़ी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है. प्रोग्राम के अंतर्गत इसके लिए एक कारखाना बनाया जाएगा. इस काम के लिए हम पहले ही एक करोड़ रुपये निर्धारित कर चुके हैं. अगर योजना सफल होती है, तो हम कारखानों की संख्या बढ़ाने पर विचार कर सकते हैं.’

लेकिन उनके इस विचार को लेकर हर कोई उत्साहित नहीं है. 2016 के शराब प्रतिबंध ने हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री को बुरी तरह प्रभावित किया है, ऐसा मानने वाले उद्योगपति इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या यह कदम आर्थिक रूप से व्यवहार्य है?

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पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की बिहार शाखा के अध्यक्ष सत्यजीत सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह कदम इनोवेटिव लग सकता है. लेकिन कई और भी कारक हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए.’

वह सवाल उठाते हैं, ‘फैजाबाद, मुंबई और हैदराबाद में कांच की चूड़ियों के कारखाने लगे हुए हैं. कांच की चूड़ियों का 75 फीसदी हिस्सा कांच से बनता है. (लेकिन) अन्य सामग्रियां भी हैं, जैसे सोडा और चूना पत्थर. क्या सरकार कारखानों के साथ इन्हें भी मुहैया कराएगी?’

सिंह ने आगे पूछा, ‘क्या अवैध शराब की जब्त की गई बोतलें फैक्ट्री चलाने के लिए काफी होंगी और (क्या यह) आर्थिक रूप से व्यवहार्य होगी? जीविका कार्यकर्ता राज्य के बाहर के कांच की चूड़ी निर्माताओं के साथ- वित्तीय और गुणवत्ता दोनों का मुकाबला कैसे करेंगे?’

कुछ इस बात को लेकर संशय में हैं कि क्या नीतिगत निर्णय सफल भी हो पाएगा.

एक उद्योगपति ने अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘यह ठीक वैसा हो सकता है जैसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने नीरा– ताड़ के रस (नेक्टर) को फर्मंटेड करके मीठी ताड़ी बनाने का वादा किया था.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मुख्यमंत्री ने नीरा के स्वास्थ्य लाभों के बारे में बात की थी लेकिन योजना कभी भी दिन का उजाला नहीं देख पाई. इसी तरह यह कारखाना भी सिर्फ एक प्रचार स्टंट साबित होकर रह जाएगा.’


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बिहार में शराबबंदी: बढ़ती गिरफ्तारियां और भीड़भाड़ वाली जेलें

5 अप्रैल 2016 को पेश किया गया ‘बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम 2016’ ने राज्य में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था. यह नीतीश कुमार की सरकार के चौथी बार फिर से चुने जाने के छह महीने से भी कम समय के बाद अस्तित्व में आया था.

हालांकि कानून के बावजूद बिहार में जितनी शराब जब्त की जा रही है, इसके आंकड़े चौंकाने वाले हैं. राज्य के आबकारी विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि अकेले अगस्त में राज्य ने 3.7 लाख लीटर शराब जब्त की. आंकड़ों से पता चलता है कि शराब के खिलाफ अभियान तेज करते हुए उसी महीने एक लाख से ज्यादा छापे मारे गए थे.

राज्य के आबकारी विभाग के एक अन्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘जरा सोच कर देखें कि बिहार में आने वाली शराब की वास्तविक मात्रा कितनी होगी.’

शराबबंदी कानून के चलते राज्य की जेलों में बढ़ती भीड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट और पटना उच्च न्यायालय द्वारा बार-बार खिंचाई किए जाने के बाद बिहार सरकार ने इस साल की शुरुआत में घोषणा की कि वह अपने कानून में ढील दे रही है.

मार्च में बिहार विधानसभा ने शराबबंदी अधिनियम में संशोधन करने वाला एक विधेयक पारित किया. ‘बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क (संशोधन) विधेयक 2022’ कहता है कि शराब पीने वाले को अब मजिस्ट्रेट के सामने जुर्माना भरना होगा और उन्हें जेल नहीं भेजा जाएगा.

पटना उच्च न्यायालय के जिलों और उपखंडों में विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेट के रूप में नामित अधिकारियों को न्यायिक शक्ति देने से इनकार करने के बाद संशोधन अभी भी लागू होने के इंतजार में है.

नतीजतन, गिरफ्तारी की पुरानी व्यवस्था जारी है. आबकारी विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि अकेले अगस्त में शराबबंदी के कानूनों का उल्लंघन करने के लिए 30,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

शराब निषेध नीति कई विवादों का विषय रही है. उनमें से प्रमुख आरोप यह है कि कानून ने राज्य की न्यायिक प्रक्रियाओं को बाधित किया है.

दिसंबर 2021 में बिहार पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने कथित तौर पर पटना में शादी के पांच दिन बाद शराब की बोतलों की खोज में एक महिला के बेडरूम में तलाशी ली थी.

इस साल जनवरी में जब नीतीश सरकार ने शिक्षकों को शराब की बिक्री और खपत के संबंध में अधिकारियों को सूचित करने का आदेश दिया, तो उन्होंने विरोध प्रदर्शन किया था.

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने दिप्रिंट को बताया, ‘शराब कानून के उल्लंघन के कारण बिहार की जेलें भर गईं हैं. कानून तोड़ने वाले लगभग 1.5 लाख लोग बिहार की जेलों में हैं. उनमें से अधिकांश समाज के निचले और दलित वर्ग के हैं जो जेल से बाहर निकलने के लिए रिश्वत नहीं दे सकते. मैं बिहार सरकार से जेल में बंद लोगों को एकमुश्त छूट देने की अपील करता हूं.’ लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी पार्टी ने हमेशा राज्य में शराबबंदी का समर्थन किया है.

भाजपा नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) का सहयोगी दल था. पिछले महीने मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से हाथ मिलाने के लिए उससे नाता तोड़ लिया.

राजद भी अतीत में राज्य की शराब नीति की आलोचना कर चुका है. राजद नेता तेजस्वी यादव, जो अब बिहार के उपमुख्यमंत्री हैं, का कानून को लेकर विधानसभा में नीतीश के साथ कई बार आमना-सामना हुआ है. हालांकि सत्ता में आने के बाद से पार्टी इस मुद्दे पर खामोश है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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