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Friday, 26 July, 2024
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मोदी सरकार ने मंत्रालयों से कहा- कैबिनेट की मुहर वाले सार्वजनिक उपक्रमों को बंद करना शुरू करें

केंद्र को इस वित्तीय वर्ष में सरकारी कंपनियों के विनिवेश और निजीकरण के जरिये 65,000 करोड़ रुपये जुटाने की उम्मीद है. सरकारी अधिकारी कहते हैं कि इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संसाधनों की बर्बादी न हो.

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नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने मंत्रालयों और विभागों से कहा है कि उन सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) को बंद करने या उनके विनिवेश में तेजी लाने के लिए एक कार्ययोजना तैयार करें, जिन्हें बंद करने के लिए कैबिनेट की मंजूरी पहले ही मिल चुकी है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की अध्यक्षता में 12 अगस्त को हुई समीक्षा बैठक में घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों को बंद करने पर चर्चा हुई. दिप्रिंट को मिले इस मीटिंग के मिनट्स से पता चला है कि उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे ऐसे सार्वजनिक उपक्रमों को बंद करने की योजना पर अमल में देरी होने पर कारण भी बताएं.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘हमें सरकारी संसाधनों की बर्बादी को रोकना सुनिश्चित करने की जरूरत है और ऐसे मामलों जिसमें सीपीएसई (केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों), स्वायत्त इकाइयों और अन्य संस्थाओं को बंद करने को कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है, इस पर तत्काल अमल शुरू कर दिया जाना चाहिए.

गौबा की बुलाई बैठक का उद्देश्य केंद्र सरकार के लिए ‘विजन इंडिया@2047’ की तैयारी के रोडमैप पर चर्चा करना था. ‘विजन इंडिया@2047’ भारत को विश्व की शीर्ष-3 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल कराने और एक विकसित राष्ट्र की स्थिति के करीब पहुंचाने की योजना है.

गौरतलब है कि पीएसयू ऐसी कंपनियां होती हैं जिनमें केंद्र सरकार या अन्य पीएसयू की सीधी हिस्सेदारी 51 फीसदी या उससे अधिक है. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के मुताबिक, कुल 607 ऐसे सार्वजनिक उपक्रम हैं जिनमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सरकारी हिस्सेदारी है. रिपोर्ट तैयार करते समय करीब 90 कंपनियों ने कैग को अपना फाइनेंशियल स्टेटमेंट नहीं दिया. इन 697 में से करीब 488 कंपनियां सरकारी हैं, छह निगम के दर्जे वाली हैं और 203 सरकारी नियंत्रण वाली अन्य कंपनियां हैं.

कैग ने दिसंबर 2021 की अपनी रिपोर्ट में बताया कि करीब 181 सरकारी कंपनियों को 2019-20 में 68,434 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ, जो 2018-19 में 40,835 करोड़ रुपये था. पिछले पांच सालों की बात करें तो इनमें से 115 को तीन से पांच साल के बीच घाटा हुआ है, जबकि 64 पांच साल से लगातार घाटे में चल रही हैं. 31 मार्च, 2020 तक पिछले दो वर्षों के दौरान इन 181 कंपनियों का घाटा कुल 1,55,060 करोड़ रुपये रहा है.

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, बीएसएनएल और एयर इंडिया उन 14 कंपनियों में शामिल थीं, जिन्होंने 2019-20 में 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान उठाया. हालांकि, एयर इंडिया का अब निजीकरण हो चुका है और टाटा समूह के टैलेस प्राइवेट लिमिटेड ने इसका अधिग्रहण भी कर लिया है.

विनिवेश मामले में केंद्र ने तीन कंपनियों, तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी), जीवन बीमा निगम (एलआईसी), और पारादीप फॉस्फेट्स लिमिटेड (पीपीएल) में अपनी हिस्सेदारी बेचने में कामयाबी हासिल की है और मौजूदा वित्तीय वर्ष में इसके जरिये अब तक करीब 24,544 करोड़ रुपये जुटाए हैं. इसमें से 90 प्रतिशत से अधिक राशि एलआईसी की लिस्टिंग से जुटाई गई है.

सरकार का अनुमान है कि 2022-23 में सरकारी कंपनियों के विनिवेश और निजीकरण के जरिये 65,000 करोड़ रुपये जुटा लिए जाएंगे.

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जून में कहा था कि सरकार के विनिवेश कार्यक्रम का उद्देश्य किसी यूनिट या कंपनी को बंद करना नहीं है, बल्कि उन्हें अधिक कुशल और पेशेवर ढंग से संचालित करना है. उन्होंने जोर देकर कहा कि सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण का उद्देश्य कंपनियों को अधिक कौशल के साथ चलाना है.


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सारी सरकारी खरीद जीईएम के जरिये

सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जीईएम) पोर्टल के जरिये सरकारी खरीद को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य की गौबा ने घोषणा की है कि मंत्रालयों और विभागों की तरफ से हर खरीद जीईएम के माध्यम से की जाएगी और केवल यदि कोई उत्पाद या सेवा पोर्टल पर उपलब्ध नहीं है, तभी इससे बाहर कोई विकल्प देखा जाएगा.

गौबा की अध्यक्षता में रिव्यू मीटिंग के मिनट्स बताते हैं कि यह भी तय किया गया कि हर माह जीईएम खरीद की समीक्षा की जाएगी और इस पर लगातार नजर रखी जाएगी.

2016 में लॉन्च जीईएम भारत में सार्वजनिक खरीद का एक ऑनलाइन मंच है, जिसे सरकारी खरीदारों के लिए एक खुला और निष्पक्ष प्रॉक्योरमेंट प्लेटफॉर्म बनाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था.

पीआईबी की एक रिलीज के मुताबिक, जीईएम के प्लेटफॉर्म पर 61,440 सरकार से जुड़े खरीदार संगठन सूचीबद्ध हैं. इसमें 47.99 लाख विक्रेता और सेवा प्रदाताओं के अलावा, 41.44 लाख से अधिक उत्पादों और 1.9 लाख सेवाओं की सूची भी उपलब्ध है.

जीईएम पर राज्यों द्वारा संचालित लगभग 239 कंपनिया भी रजिस्टर्ड हैं और इस पोर्टल के माध्यम से महत्वपूर्ण खरीद प्रक्रिया का हिस्सा बन रही हैं.

वित्तीय वर्ष 2021-22 में जीईएम पोर्टल के माध्यम से 1,06,760 करोड़ रुपये के माल की खरीदारी हुई. वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने जुलाई में कहा था, ‘एक सिंगल पोर्टल के माध्यम से खरीद के कारण मांग एक साथ नजर आने से सरकारी खरीदारों के लिए खरीद की लागत घटाने में भी मदद मिलेगी.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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