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Thursday, 25 April, 2024
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कैसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्यों में फसे प्रवासियों, छात्रों को लाने का ज़िम्मा केंद्र पर डाल रहे हैं

बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने कहा, अंतर-जिला और अंतर-राज्य यात्राओं पर रोक लगायी, तो नियमों में ढील देना भी केंद्र पर निर्भर है. अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग नियम नहीं हो सकते. हम छात्रों को वापस लाने के लिए तैयार हैं.'

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नई दिल्ली: सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर शिकायत की कि कुछ राज्य केंद्र द्वारा लॉकडाउन से संबंधित नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं और प्रवासी मजदूरों और फंसे हुए छात्रों को उनके राज्यों में लौटने की अनुमति दे रहे हैं.

नीतीश ने कहा कि यह केंद्रीय दिशानिर्देशों से स्पष्ट है कि किसी भी राज्य या जिले में यात्रा की अनुमति नहीं है. लेकिन उन्हें अपने सहयोगी बीजेपी सहित चारों ओर से कोटा और अन्य स्थानों पर फंसे नागरिकों को वापस लाने का दबाव झेलना पड़ रहा है.

पीएम के साथ मीटिंग के तुरंत बाद, बिहार के डिप्टी सीएम और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट किया कि उन्हें उम्मीद है कि कोटा के छात्रों का मुद्दा जल्द ही हल हो जाएगा.

हालांकि, बिहार के जल संसाधन मंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के करीबी, नीतीश सहयोगी संजय कुमार झा ने दिप्रिंट को बताया कि गेंद केंद्रीय गृह मंत्रालय की पाले में थी.

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‘जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत 15 अप्रैल को व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए और अंतर-जिला और अंतर-राज्य यात्राओं पर रोक लगायी, तो नियमों में ढील देना भी केंद्र पर निर्भर है. अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग नियम नहीं हो सकते. हम छात्रों को वापस लाने के लिए तैयार हैं.’

झा ने कहा, ‘हजारों छात्र दिल्ली, ओडिशा, पुणे में फंसे हुए हैं. हम ऐसा नहीं कर सकते कि कोटा के छात्रों के लिए एक नियम बनाएं और पुणे के छात्रों के लिए दूसरा और प्रवासी मजदूरों के लिए कोई और बिहार के बाहर फंसे 25 लाख लोगों ने मुख्यमंत्री राहत कोष के तहत सहायता के लिए आवेदन किया है और हमने 15 लाख लोगों को सहायता प्रदान की है, लेकिन उन्हें वापस लाने के लिए केंद्र को नियमों में बदलाव करना होगा.’

बिहार के चंपारण के बीजेपी सांसद संजय जायसवाल ने भी उम्मीद जताई कि गृह मंत्री अमित शाह ये गुत्थी सुलझा लेंगे.

‘हमें न केवल कोटा बल्कि भारत के अन्य हिस्सों से भी छात्रों को वापस लाने में मदद करने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं और जिला अध्यक्षों से कई फोन आए हैं. हमने सीएम के साथ-साथ अपनी चिंताओं से भी केंद्र को अवगत कराया है. हम उम्मीद कर रहे हैं कि केंद्रीय गृह मंत्री एक-दो दिन में इस मामले को सुलझा लेंगे.’

नीतीश कुमार के सतत प्रयास

नीतीश का रुख दूसरे राज्यों जैसे पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से काफी अलग है. जिसके सीएम, योगी आदित्यनाथ ने कोटा और राज्य की सीमाओं पर 7,000 छात्रों और प्रवासी मजदूरों को वापस लाने के लिए बसें भेजीं. योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद से मजदूरों को एक जिले से दूसरे जिले में यात्रा की भी अनुमति दी.

मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान और गुजरात के विजय रूपानी, दोनों भाजपा ने अपने छात्रों को वापस लाने के लिए इसी तरह की पहल की.

हालांकि, नीतीश ने कोटा में फंसे छात्रों के ऊपर प्रवासी मजदूरों को प्राथमिकता देने की बात की है, खासकर 18 अप्रैल को, जब यूपी ने छात्रों को लाने के लिए 300 बसें भेजी थीं.

बिहार के सीएम ने कहा था ‘कोटा में पढ़ने वाले छात्र अच्छे परिवारों से आते हैं. प्रवासी श्रमिकों को देश के अन्य हिस्सों में फंसे रहते हुए उन छात्रों को घर लाने की तत्काल आवश्यकता क्या है?’

उससे तीन दिन पहले, नीतीश ने केंद्र को यह इंगित करते हुए लिखा था कि छात्रों को यात्रा करने देने से मुश्किलें बढ़ जाएंगी. उनका सवाल था कि ऐसे में आप किस आधार पर प्रवासी श्रमिकों को अंतर-राज्यीय यात्रा से रोक जा सकेगा.

बिहार भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘नीतीश कोटा के छात्रों को गरीब प्रवासी मजदूरों के साथ जोड़कर अपने वोट बैंक की रक्षा कर रहे हैं. भाजपा अपने स्वयं के वोट बैंक की रक्षा कर रही है, जो आम तौर पर मध्यम वर्ग है, जिनके बच्चे कोटा, पुणे और अन्य में फंस गए हैं.’

नेता ने कहा कि पिछले सप्ताह भाजपा के प्रदेश प्रभारी भूपेंद्र यादव और पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा को इस मुश्किल स्थिति से अवगत कराया गया था.

विरोध से वोट पर नहीं पड़ेगा असर

जद(यू) के एक नेता ने कहा कि नीतीश के दृष्टिकोण का उनके या पार्टी के चुनावी भविष्य पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

‘नीतीश एक चतुर राजनेता हैं और उनके पास मतदाताओं को समझाने की शक्ति है. वह दिखा रहे हैं कि वह इस कठिन समय में केवल पीएम मोदी की जान बचाने वाले सन्देश का ही पालन कर रहे हैं. संदेश यह है कि यदि आपने इस दौरान कठिनाई का सामना किया है, तो यह कोई समस्या नहीं है, क्योंकि यह आपके जीवन को बचाने के लिए आवश्यक थी. लोगों ने कठिनाइयों के बावजूद नोटबंदी का समर्थन किया. वे इस मुद्दे पर भी नीतीश का समर्थन करेंगे.’

जद (यू) के एक अन्य नेता ने कहा कि नीतीश ने सोच समझ कर कदम लिया है. वह जानते हैं कि प्रवासियों के बड़े पैमाने पर आने की अनुमति देने में दो जोखिम है. संख्या बहुत बड़ी है – हमें राज्य के बाहर बिहारियों से 25 लाख आवेदन मिले हैं, जो संकट में हैं और जिन्हें मदद की जरूरत है. बसें भेजकर उन्हें वापस लाना संभव नहीं है. इसके लिए रणनीति, संसाधनों और केंद्रीय समर्थन की आवश्यकता होगी.’

जद (यू) नेता ने बताया, दूसरा, इतनी बड़ी प्रवासी आबादी कोरोनावायरस फैला सकती है. इसलिए क्वारंटाइन के लिए जगह और अन्य सुविधाओं की आवश्यकता है. यदि फिलहाल नियंत्रित मामलों की संख्या उनके घर आने के बाद बढ़ जाती है, तो यह एक और चुनौती होगी.’

राजद ने लगाया मानवीय आपदा का आरोप

विपक्षी दल राजद छात्रों और प्रवासियों को वापस लाने के लिए नीतीश की ‘विफलता’ के बारे में लगातार सवाल उठा रहा है. पार्टी के राज्य प्रमुख और पूर्व मंत्री जगदानंद सिंह ने कहा, ‘बिहार को दो संकटों का सामना करना पड़ रहा है – कोरोनोवायरस द्वारा बनाई गई एक चिकित्सा आपदा और नीतीश कुमार द्वारा बनायी गयी मानवीय आपदा, जो प्रवासियों और छात्रों को वापस लाने के मुद्दे पर उनके खराब संचालन की वजह से हुई है.’

जद (यू) के तर्क पर कि प्रवासियों और छात्रों की राज्य में वापसी से कोरोनोवायरस मामले बढ़ सकते हैं. सिंह ने कहा, ‘यह तर्क बेकार है क्योंकि यदि मामले बढ़ने होते तो वहां क्यों नहीं बढ़ रहे जहां ये लोग वर्तमान में रह रहे हैं?’

हालांकि, उपरोक्त नाम न बताने वाले जदयू नेता ने ये लालू प्रसाद यादव की अनुपस्थिति में में कहा, जो चारा घोटाले में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में हैं. जदयू की चुनावी संभावनाओं को कम नुकसान होने की संभावना है.

उन्होंने कहा, ‘लालू की अनुपस्थिति में राजद की कोई विश्वसनीयता नहीं है और नीतीश की विश्वसनीयता बरकरार है. वह वर्तमान आलोचना का बुरा नहीं मानते. यदि वह इस स्थिति को अच्छी तरह से संभाल लेते हैं, तो किसी को भी इस समय की कठिनाइयों को छह महीने बाद याद नहीं होगा, जब राज्य में चुनाव होने वाले होते हैं. फिलहाल, जान बचाना ज़रूरी है. पूरी आबादी को स्क्रीन करने की नीतीश की पल्स पोलियो अभियान जैसी पहल को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है, और यह लंबे समय में गेम-चेंजर हो सकता है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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