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Friday, 10 May, 2024
होमहेल्थकोविड के बाद सभी को स्वास्थ्य बजट में अच्छी-खासी वृद्धि की उम्मीद पर सरकार सतर्कता बरत रही

कोविड के बाद सभी को स्वास्थ्य बजट में अच्छी-खासी वृद्धि की उम्मीद पर सरकार सतर्कता बरत रही

जब महामारी ने भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली की क्षमताओं से पूरी तरह से कसौटी पर कस दिया है, मोदी सरकार को स्वास्थ्य संबंधी वित्तीय जरूरतों और आर्थिक हालात की वास्तविकता के बीच एक अच्छा संतुलन बनाना पड़ सकता है.

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नई दिल्ली: 1 फरवरी 2020 को जब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने स्वास्थ्य मंत्रालय का बजट 3.75 फीसदी बढ़ाने की घोषणा की थी, स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने इसे ‘सराहनीय वृद्धि’ करार दिया था. धीमी अर्थव्यवस्था और कई क्षेत्रों के लिए कटौती के बीच इसे अतिश्योक्ति नहीं बल्कि एक प्रशंसनीय वृद्धि के रूप में देखा गया था.

एक साल बाद, जब हर किसी के दिमाग में स्वास्थ्य ही एकमात्र ही सबसे बड़ा मुद्दा है—महामारी की शुरुआत में कोविड-19 के आंकड़ों और बेड की उपलब्धता से लेकर अब टीके तक—इस बार हर किसी को स्वास्थ्य बजट में अधिक उल्लेखनीय वृद्धि की उम्मीद है.

जीडीपी के प्रतिशत के तौर पर पिछले वर्ष का 69,000 करोड़ रुपये का परिव्यय भारत की कुल वित्तीय प्रतिबद्धता का सिर्फ 1.25 प्रतिशत था—और यह देश के अपने लिए निर्धारित दीर्घकालिक लक्ष्य 2.5 फीसदी का मात्र आधा ही है.

भले ही प्रतिशत वृद्धि के मामले में लक्ष्य पूरे हो या नहीं लेकिन महामारी के कारण वित्तीय प्रतिबद्धाओं में हुई भारी वृद्धि को देखते हुए इस वर्ष स्वास्थ्य बजट (आवंटन) में वार्षिक आधार पर अधिकतम बढ़ोत्तरी देखी जा सकती है.

2019 में स्वास्थ्य बजट में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इससे एक साल पहले यह सिर्फ 5 फीसदी बढ़ा था. इसलिए पिछले रुझानों से देखें तो 20 फीसदी (13,800 करोड़ रुपये) की बढ़ोतरी भी काफी होगी.

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हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार आर्थिक स्थिति और राज्यों की भागीदारी—केंद्र और राज्यों के बीच फंडिंग पैटर्न 60:40 के अनुपात में है—को लेकर काफी सतर्क है.

एक सरकारी सूत्र ने कहा, ‘हम कुछ बहुत बड़ा (बढ़ोतरी के संदर्भ में) होने की उम्मीद नहीं कर रहे हैं. यह सच है कि इस साल ने स्वास्थ्य जरूरतों को उजागर किया है लेकिन अर्थव्यवस्था को भी खासा नुकसान हुआ है. राजस्व को झटका लगा है. जब आपके पास कुछ करने के बहुत ज्यादा विकल्प ही नहीं है तो आप बहुत चाहकर भी कुछ कर नहीं सकते हैं.’

सूत्र ने कहा, ‘इसके अलावा जिस तरह की वृद्धि की अटकलें लगाई जा रही हैं, उसके लिए राज्यों को भी अपने हिस्से के खर्च के लिए आगे आने को तैयार रहना होगा.’

महामारी के दौरान भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली का हर पहलू तो कसौटी पर कस गया लेकिन जिस पर सबसे कम चर्चा की गई है, वो है भारी-भरकम वित्तीय बोझ—शुरुआती दिनों में अतिरिक्त बेड की व्यवस्था किए जाने से लेकर, टेस्टिंग, कांटैक्ट ट्रेसिंग और क्वारेंटाइन के संसाधन मुहैया कराने तक, सटीक जांच में सक्षम बनाने के लिए लैब को अपग्रेड करना और अब टीकों को खरीदना और उन्हें लाभार्थियों तक पहुंचाने की व्यवस्था करना.

अपना नाम न बताने के इच्छुक स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, लागत का एक अनुमान भी नहीं निकाला गया है.

आइये नजर डालें ऐसे कुछ बदलावों पर जिन्हें स्वास्थ्य बजट का हिस्सा बनाया जा सकता है…


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शहरी एचडब्ल्यूसी

वैसे कुल मिलाकर महामारी से निपटने में भारत की स्थिति अच्छी ही रही है लेकिन एक पहलू जिसमें वह कमजोर पड़ा, वह है कांटैक्ट ट्रेसिंग. खासकर एक्रीडेटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट (आशा) जैसे समर्पित सामाजिक स्वास्थ्य कार्यबल के अभाव में दिल्ली, मुंबई और पुणे जैसे शहरों को अन्य जगहों की तुलना में ज्यादा लंबे समय तक कोरोनोवायरस को झेलना पड़ रहा है.

ऐसे में इस पर नजर रहेगी कि क्या शहरी स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (एचडब्ल्यूसी) स्थापित करने की योजना वित्तमंत्री सीतारमण के आगामी बजट में जगह बना पाती है.

हर शहरी एचडब्ल्यूसी की परिकल्पना 15,000-20,000 की आबादी की जरूरतों के मद्देनजर डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स स्टाफ के अलावा पांच आशा और ऑक्सीलरी नर्स मिडवाइव्स (एएनएम) के साथ की गई है. ये आयुष्मान भारत के तहत स्थापित किए जा रहे दोनों एचडब्ल्यूसी से अलग हैं.

नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वतंत्रता दिवस पर की गई घोषणा के अनुरूप नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन (एनडीएचएम) देशव्यापी रोलआउट के लिए पूरी तरह से तैयार है. बहुत संभव है कि नेशनल डिजिटल हेल्थ आईडी पर अब तक के अनुभव के आकलन और इस पर आगे बढ़ने की सरकार की सोच के मुताबिक बजट में एनडीएचएम का भी उल्लेख किया जाए.

एनडीएचएम का लक्ष्य प्रत्येक भारतीय के लिए एक व्यक्तिगत स्वास्थ्य आईडी, डॉक्टरों और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए पहचानकर्ता और व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड के पूरे ब्यौरे के साथ एक डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम बनाना है. यह सब एक एप या एक वेबसाइट के माध्यम से सुलभ होगा, लेकिन इन स्वास्थ्य रिकॉर्ड का ‘स्वामित्व’ पूरी तरह संबंधित व्यक्ति के पास ही होगा. केवल तभी डॉक्टर या अन्य व्यक्ति उस रिकॉर्ड को देख पाएगा जब संबंधित व्यक्ति उसे ऐसा करने की अनुमति देगा, वो भी एक सीमित अवधि के लिए.

आयुष्मान भारत के तहत टीकाकरण

यद्यपि कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम शुरू हो गया है, लेकिन यह उतने सुचारू ढंग से नहीं चल रहा है जितनी सरकार ने उम्मीद की थी. आने वाले दिनों में एक सबसे मुश्किल सवाल यह खड़ा होने वाला है कि इन टीकों के लिए फंड कहां से आएगा.

पहले चरण में तीन करोड़ स्वास्थ्य और फ्रंटलाइन कर्मियों वाले प्राथमिकता समूह के लिए प्रधानमंत्री मोदी पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि सभी टीके केंद्र सरकार खरीदेगी और उन्हें राज्यों को मुफ्त में मुहैया कराएगी.

यह मॉडल उन सभी 30 करोड़ लोगों के लिए अपनाना संभव नहीं हो सकता है, जो प्राथमिकता वाले समूहों में आते हैं. इनमें कोमोर्बिडिटी वाले लोग और 50 साल से अधिक उम्र के लोग शामिल हैं.

सभी की निगाहें केंद्रीय बजट पर होंगी कि क्या उससे यह स्पष्ट होता है कि आगे की राह कैसी होगी.

इसके अलावा, स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण के इस दावे के मद्देनजर कि सरकार अभी शायद सभी भारतीयों के टीकाकरण पर विचार नहीं कर रही है, यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार टीकाकरण कवरेज को व्यापक बनाने के लिए कौन से अन्य विकल्प तलाश सकती है.

एक विकल्प यह भी हो सकता है कि कोविड-19 टीकाकरण को उस प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) के तहत कवर किया जाए, जो कि मोदी सरकार के प्रमुख स्वास्थ्य कार्यक्रम आयुष्मान भारत के तहत देखभाल की तीसरे स्तर योजना है.

2018 में मोदी की तरफ से शुरू पीएमजेएवाई का उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011 के तहत ‘गरीब’ की श्रेणी में सूचीबद्ध सभी 10.74 परिवारों को प्रति परिवार 5 लाख रुपये का वार्षिक स्वास्थ्य कवर प्रदान करके किसी संकट के समय स्वास्थ्य खर्चों के कारण होने वाली परेशानी से बचाना है.

वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, एक बार वैक्सीन निजी क्षेत्र में उपलब्ध होने पर, जो साल के आखिरी आधे हिस्से में होने की उम्मीद है, इसे कवरेज लिस्ट में शामिल करने पर टीकाकरण का दायरा काफी व्यापक किया जा सकता है.

अपना नाम न देने की शर्त पर स्वास्थ्य मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, ‘यह एक सिफारिश है (वैक्सीन को पीएमजेएवाई के तहत कवर किया जाए). लेकिन स्वीकार करना या न करना सरकार के हाथ में है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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