श्रीनगर: श्रीनगर के बीचों-बीच स्थित एक गुरुद्वारे के बेसमेंट में 52-वर्षीय सिख धार्मिक नेता गुरदीप कौर शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण सभा का नेतृत्व कर रही थीं. इसका विषय था: अपनी सिख बेटियों को इस्लाम के हाथों खोने से कैसे रोकें.
यह जल्द ही परवरिश के पाठ में बदल गया.
कौर, जो साप्ताहिक संगतों में धार्मिक व्याख्यान देती हैं और पंजाबी पढ़ाती हैं, ने कहा, “हमें अपनी बेटियों को धर्म का ज्ञान देने की ज़रूरत है. हमें उन्हें गुरबानी सिखानी होगी. अगर आपकी बेटी पाठ नहीं करती है, तो आप एक मां के रूप में विफल हैं.” वहां बैठी लगभग दो दर्जन महिलाओं ने सहमति में सिर हिलाया.
उनकी यह बातचीत हाल ही में एक कश्मीरी सिख महिला के इस्लाम में धर्मांतरण से प्रेरित है, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल है.
वीडियो में महिला को दावा करते देखा और सुना जा सकता है कि उनका नाम भवनीत कौर है और उन्होंने सात साल से अधिक समय तक इस्लाम पर रिसर्च करने के बाद अपना धर्म परिवर्तन कर लिया है. अब उनका नया नाम क़ुरत उल फ़ातिमा है.
क़ुरत उल फ़ातिमा ने हिंदी में कहा, “सिख धर्म लगभग 300 साल पहले आया था, लेकिन उससे पहले धर्म क्या था? मैं यह जानने के लिए उत्सुक थी और इस तरह मैं इस्लाम के करीब आई. मैं यह वीडियो इसलिए रिकॉर्ड कर रही हूं ताकि मेरे माता-पिता और समुदाय के सदस्यों को पता चले कि मैं अपने मूल धर्म में वापस आ गई हूं.”
कश्मीर के व्यापक संघर्ष में एक नई दरार उभरी है. लगभग 40,000 लोगों का एक छोटा सा सिख समुदाय — कश्मीर की आबादी का लगभग 1 प्रतिशत — युवाओं के बीच अंतर-धार्मिक संबंधों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बनाए रखने का प्रयास कर रहा है. संख्या बहुत बड़ी नहीं है, लेकिन डर वास्तविक है. कोई भी अभी तक राजनीतिक रूप से भारी शब्द ‘लव जिहाद’ का उपयोग नहीं कर रहा है, लेकिन मुट्ठी भर धर्मांतरण ने जो चिंताएं फैलाई हैं, उन्होंने कश्मीर संघर्ष में दशकों से सिखों द्वारा स्थापित की गई नाजुक शांति में उथल-पुथल मचा दी है.
धर्मांतरण के बारे में वीडियो एक व्यक्ति से शुरू होता है जो कश्मीरी में बोल रहा है और लोगों से इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करने का आग्रह कर रहा है. इस पर अब तक 3,900 कॉमेंट्स, 15,000 शेयर और 7,200 से ज़्यादा लाइक आ चुके हैं. वीडियो को 8.5 लाख बार देखा जा चुका है. ज़्यादातर कॉमेंट्स में महिला को बधाई दी गई, जबकि सिख समुदाय के कुछ लोगों ने इस पर हैरानी जताई है.
कॉमेंट सेक्शन में जगबीर सिंह ने लिखा, “आप खुश हो सकते हैं, लेकिन आपके माता-पिता दुखी हैं. यह न तो सिख समुदाय के लिए अच्छा है और न ही मुस्लिम समुदाय के लिए.”
और सबसे पहले माताओं को दोषी ठहराया जाता है. समुदाय के नेता माताओं को अपनी बेटियों में धार्मिक मूल्यों को न डालने के लिए ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं. जबकि कुछ अंतरधार्मिक जोड़े जिनसे दिप्रिंट ने बात की, उन्हें अपने फैसलों पर पछतावा नहीं है और वह अपनी पसंद के साथ खुशी से रह रहे हैं, बड़े सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ और सांप्रदायिक हिंसा की यादें इस बात पर अपनी छाप छोड़ती हैं कि घाटी में ऐसे जोड़े कैसे बातचीत करते हैं. कई लोग अब अपनी शादी को छुपाते हैं या शहर बदल देते हैं, जबकि अन्य सामाजिक दबाव के आगे झुक जाते हैं और अपने रिश्ते को जल्दी खत्म कर देते हैं.
धर्म परिवर्तन कश्मीर में सिख समुदाय को परेशान करने वाले कई मुद्दों में से एक है. अन्य मुद्दे धीमी गति से पलायन और नौकरियों की कमी हैं.
वर्तमान में समुदाय की मुख्य चिंता धर्म परिवर्तन के सोशल मीडिया अपडेट्स हैं.
धर्म परिवर्तन की खबर फैलाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग उन्हें गुस्सा दिलाता है. दिप्रिंट ने समुदाय के कई सदस्यों से बात की और उन्होंने स्वीकार किया कि जब भी कोई कश्मीरी सिख महिला इस्लाम में धर्मांतरित होती है तो सोशल मीडिया पर जश्न मनाना अल्पसंख्यक समुदाय के लिए अत्यधिक “उत्तेजक” होता है.
अगर उन्हें (मेरे माता-पिता को) पता चल गया तो वह हमें मार देंगे. मैं अक्सर सोचती हूं कि दिल्ली हमारे जैसे अंतरधार्मिक जोड़ों के लिए बेहतर है. वहां आज़ादी है और कोई भी परेशान नहीं करता
— असमा, एक सिख महिला जिन्होंने निकाह के लिए धर्म परिवर्तन किया
दो सितंबर को, जब श्रीनगर के 28-वर्षीय अंगद सिंह ने अपना फेसबुक पेज खोला, तो उन्हें एक वीडियो मिला, जिसका टाइटल था: “अल्लाह हू अकबर, इस सिख लड़की ने इस्लाम स्वीकार कर लिया है.”
सिंह ने अपनी चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “कश्मीरी समाज ने अंतरधार्मिक विवाहों को स्वीकार नहीं किया है. जब ऐसी घटनाओं का महिमामंडन किया जाता है, तो यह समुदाय की भावनाओं को आहत करता है और उन्हें भड़काता है. यह लोगों को बड़े समाज में हाशिए पर महसूस कराता है. महिलाओं को ट्रॉफी की तरह पेश किया जाता है और ऐसा दिखाया जाता है जैसे कि किसी ने आपकी चीज़ को छीनकर जीत का दावा किया हो.”
जम्मू और कश्मीर के ग्रैंड मुफ्ती, मुफ्ती नासिर-उल-इस्लाम ने कहा कि वह विवाह के नाम पर धर्म परिवर्तन को मंजूरी नहीं देते हैं.
उन्होंने कहा, “मैं शादी के लिए किए गए धर्म परिवर्तन को मंजूरी नहीं देता. किसी को इस्लाम के बारे में पढ़ने और यह सुनिश्चित करने के बाद ही धर्म परिवर्तन करना चाहिए कि वह सच में धर्म परिवर्तन करना चाहते हैं.”
अंतरधार्मिक विवाहों के बारे में बोलते हुए ग्रैंड मुफ्ती ने कहा कि लोगों को संविधान के तहत अधिकार मिले हुए हैं और वह उनका पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं.
उन्होंने कहा, “मैं उन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन अगर आप मुझसे पूछें कि लोगों ने धर्म के उचित ज्ञान के बिना विवाह के लिए धर्म परिवर्तन किया है. मैं उन्हें मुसलमान नहीं मानता.”
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दो समुदायों में फंसे
बारामूला की संकरी गलियों में एक शांत कोने में बसा हुआ, एक साधारण घर कुछ साल पहले मुस्लिम मोहल्ले में चर्चा का विषय बन गया था. एक मुस्लिम पुरुष और एक सिख महिला ने शादी कर ली, जिसके बाद महिला ने इस्लाम धर्म अपना लिया — उनकी प्रेम कहानी ने दोनों समुदायों के बीच तनाव को जन्म दिया.
समुदायों के बीच तनाव के कारण महिला को वीडियो बनाना पड़ा, जिसमें उन्होंने कबूल किया कि उन्होंने पुरुष के परिवार के किसी दबाव के बिना स्वेच्छा से इस्लाम धर्म अपनाया है.
शादी के तीन साल बाद, शनिवार की सुबह, अस्मा (बदला हुआ नाम) दरवाजे के पास खड़ीं थीं, उनके बाल एक बन में बंधे थे और उनकी एक साल की बेटी उनकी गोद में थी.
“मैं उनसे प्यार करती थी और इसीलिए हमने शादी की. मेरे लिए धर्म कभी कोई मुद्दा नहीं रहा.”
अस्मा की मुलाकात आमिर (बदला हुआ नाम) से तब हुई जब वे महज़ 13 साल की थीं. आमिर ने उन्हें पहली बार तब देखा जब वे ट्यूशन क्लास के लिए जा रहीं थीं और फिर वे हर दिन उनका पीछा करने लगा. श्रीनगर में रहने वाले इस जोड़े ने शादी करने से पहले सात साल तक डेट किया.
रिश्ते के पहले साल में आमिर ने उन्हें एक सोने की अंगूठी गिफ्ट की और अस्मा ने चुपके से घर पर नमाज़ पढ़ना शुरू कर दिया. उन्होंने बताया कि आमिर ने महीनों तक उनका पीछा किया, उसके बाद आखिरकार वे रिश्ते के लिए राज़ी हुईं.
मैं शादी के लिए किए गए धर्म परिवर्तन को मंजूरी नहीं देता. किसी को इस्लाम के बारे में पढ़ने और यह सुनिश्चित करने के बाद ही धर्म परिवर्तन करना चाहिए कि वह सच में धर्म परिवर्तन करना चाहते हैं
— जम्मू और कश्मीर के ग्रैंड मुफ्ती, मुफ्ती नासिर-उल-इस्लाम
अस्मा ने अपना चेहरा धोते हुए और अपनी बेटी को अपनी भाभी को सौंपते हुए कहा, “लोग प्यार में सब कुछ करते हैं. मैं चुपचाप घर पर नमाज़ पढ़ती थी और वे जब भी मिलते थे तो मेरे सामने ‘इक ओंकार’ गाते थे. मुझे हमेशा से पता था कि मुझे उनसे ही शादी करनी है, लेकिन यह नहीं पता था कि हमें इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.”
अस्मा और आमिर को सिख समुदाय की नाराज़गी का सामना करना पड़ा, जिन्होंने आमिर पर कम उम्र में उनकी बेटी को परिपक्व करने और बाद में प्यार की आड़ में उसका धर्मांतरण करने का आरोप लगाया. दूसरी ओर, अस्मा को अपने नए-नए धार्मिक समुदाय में फिट होने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी और सक्रिय रूप से यह दावा करना पड़ा कि वे “बाहरी नहीं हैं.”
उन्होंने कहा, “लेकिन धर्म परिवर्तन से पहले मुझसे पूछा गया कि क्या मैं धर्म परिवर्तन से सहमत हूं. मैंने कहा, हां. मुझे ऐसा नहीं लगता कि मुझ पर कोई दबाव है. मैं प्यार में हूं और अगर धर्म परिवर्तन से ऐसे कठोर समाज में सुरक्षा और पहचान की कुछ झलक मिलती है, तो मैं इसके लिए तैयार हूं.”
अस्मा ने कहा कि वे आमिर के साथ खुश हैं और सभी ने उन्हें स्वीकार कर लिया है, लेकिन उन्हें अपने माता-पिता की याद आती है, लेकिन उनके पास उनसे संपर्क करने की हिम्मत नहीं है. यह उसके रिश्ते के लिए घातक हो सकता है.
ऐसे नतीजों के कारण, कश्मीर में अंतरधार्मिक जोड़े, विशेष रूप से कश्मीरी सिख और मुस्लिम, अक्सर अपने अनुभवों के बारे में बात करने से हिचकते हैं.
26-वर्षीय कश्मीरी लड़के ने कहा, जिनके कश्मीरी मुस्लिम और सिख दोस्त भाग गए और अब शादी के बाद दिल्ली में रहते हैं, “सोशल मीडिया पर जितने अंतरधार्मिक जोड़े दिखते हैं, उससे कहीं ज़्यादा हैं, लेकिन वह बात करने से बहुत डरते हैं. उनमें से कुछ दिल्ली में रह रहे हैं, अन्य अपना नाम नहीं बताते या अपनी पहचान के बारे में ज़्यादा बात नहीं करते.”
अस्मा के लिए उनके माता-पिता को नहीं पता कि वे अपने पति के साथ कश्मीर में रहती हैं.
अस्मा ने कहा, “अगर उन्हें पता चल गया तो वह हमें मार देंगे. मैं अक्सर सोचती हूं कि दिल्ली हमारे जैसे अंतरधार्मिक जोड़ों के लिए बेहतर है. वहां आज़ादी है और कोई भी परेशान नहीं करता.”
उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें घर की बहुत याद आती है.
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समुदाय की व्याख्या
गुरुद्वारे में स्थित लाइब्रेरी सिख समुदाय के सदस्यों के लिए इस तरह के धर्मांतरण के पीछे के कारणों पर चर्चा करने का केंद्र बन गई है. समुदाय के एक दर्जन से अधिक सदस्य एकत्र हैं और इसे तीन प्रमुख कारणों तक सीमित कर दिया है: वासना, इच्छा और किशोरावस्था का मोह.
47-वर्षीय जगजीत सिंह ने दावा किया कि हर साल चार से पांच सिख महिलाएं कश्मीरी मुसलमानों से शादी करने के लिए इस्लाम धर्म अपनाती हैं. हालांकि, सिंह ने स्वीकार किया कि उनके पास इस बारे में कोई दस्तावेज़ नहीं है कि अब तक कितनी महिलाओं ने धर्म परिवर्तन किया है.
सिंह ने पूछा, “इसमें एक पैटर्न है. किशोर सिख लड़कियों को निशाना बनाया जाता है. वे किसी रिश्ते में आ जाती हैं और फिर अचानक उनसे शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा जाता है. हमें उनके शादी करने से कोई दिक्कत नहीं है. लोग प्यार कर सकते हैं, लेकिन धर्म परिवर्तन क्यों करना है?”
लाइब्रेरी में मौजूद एक अन्य महिला ने नाम न बताने की शर्त पर महिलाओं को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि घर पर भावनात्मक रूप से कमजोर महिलाएं, खासकर टूटे-बिखरे परिवारों में पली-बढ़ी महिलाएं, इस तरह के धर्मांतरण के लिए अधिक संवेदनशील होती हैं.
चर्चा जल्दी ही आंतरिक सामुदायिक संघर्ष पर आ गई.
हमें उनके शादी करने से कोई दिक्कत नहीं है. लोग प्यार कर सकते हैं, लेकिन धर्म परिवर्तन क्यों करना है?
— जगजीत सिंह
लाइब्रेरी मीटिंग में मौजूद लोगों ने कहा कि जब वह अपने सिख साथियों से अपनी बेटियों के मुस्लिम पुरुषों के साथ संबंधों के बारे में बात करने के लिए संपर्क करते हैं, तो परिवार अक्सर उन्हें गलत जानकारी फैलाने का आरोप लगाते हुए खारिज कर देते हैं.
शामिल लोगों में से एक ने कहा कि भवनीत कौर, जिसने हाल ही में धर्म परिवर्तन किया है, एक दशक पहले स्कूल में उनकी सहपाठी थीं. उन्होंने एक मुस्लिम लड़के के साथ उनके रिश्ते के बारे में बात करने के लिए उनके माता-पिता से संपर्क किया था. उन्होंने दावा किया कि लड़की के परिवार ने उनका अपमान किया और उन्हें अपने घर से जाने के लिए कहा.
नाम न बताने की शर्त पर सीने पर कृपाण बांधे एक अन्य 32 वर्षीय व्यक्ति ने कहा, “ऐसी स्थिति में कोई क्या कर सकता है? भवनीत कौर के हाल ही में धर्म परिवर्तन के मामले में भी, जब मैं उनके परिवार के पास गया, तो उन्होंने मुझे उनकी छवि खराब करने का आरोप लगाते हुए जाने के लिए कहा.”
कश्मीर यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर नूर अहमद बाबा ने 1980 के दशक के मध्य में एक कश्मीरी पंडित के इस्लाम धर्म अपनाने के मामले को याद किया, जब महिला ने एक कश्मीरी मुस्लिम से शादी की थी और कैसे यह पंडित समुदाय द्वारा आंदोलन का केंद्र बिंदु बन गया था. बाबा ने कहा कि महिलाओं को अक्सर “सम्मान के प्रतीक” के रूप में देखा जाता है और इस तरह के धर्मांतरण को उस सम्मान का उल्लंघन माना जाता है.
हम सिख कश्मीर में एक छोटा-सा समुदाय हैं. हमारे पास कोई राजनीतिक प्रतिनिधित्व या अधिकार नहीं है. सरकार ने हमें अल्पसंख्यक का दर्जा भी नहीं दिया है
— बरकत कौर रतन, अधिवक्ता
बाबा ने कहा, “जब भी इस तरह के धर्मांतरण होते हैं, तो वह कई तरह की असुरक्षाओं को भड़काते हैं खासकर अल्पसंख्यक समुदाय के भीतर. वो इसे अपनी जनसांख्यिकी के लिए खतरे के रूप में देखते हैं. यह प्रतिक्रिया पहचान चेतना की बढ़ी हुई भावना और इसमें शामिल महिलाओं द्वारा प्रयोग की जाने वाली स्वायत्तता की डिग्री में निहित है.”
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‘अल्पसंख्यक समुदाय’
सिर्फ सिख महिलाओं को ही समाज और परिवार से बहिष्कृत नहीं किया गया है.
1980 के दशक के मध्य में परबजीत सिंह को जम्मू में अपने पड़ोसी शबनम से प्यार हो गया था. सिंह ने कई सालों तक शबनम का पीछा किया, लेकिन दुर्घटना के बाद उनका रिश्ता और गहरा हो गया. शबनम ने अपने प्यार का इज़हार किया, लेकिन शादी आसान नहीं थी.
सिंह ने इस्लाम धर्म अपना लिया, लेकिन शबनम का परिवार राज़ी नहीं हुआ. आखिरकार, दंपति कश्मीर भाग गए.
श्रीनगर में अपने घर में आराम से बैठी शबनम ने बताया कि कैसे उनके पति, जिन्हें अब धर्म परिवर्तन के बाद मोहम्मद अली के नाम से जाना जाता है, को पंजाब में सिख समुदाय से धमकियां मिल रही थीं. अली की आठ साल पहले किडनी फेल होने के कारण मृत्यु हो गई, लेकिन उनके परिवार का कोई भी सदस्य उनसे मिलने नहीं आया.
शबनम ने अपने फोन पर अपने पति की फोटो दिखाते हुए कहा, “फिल्मों में अंतरधार्मिक शादियों को परियों की कहानियों की तरह दिखाया जाता है, लेकिन असलियत में इसमें अनगिनत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और कुछ भी आसान नहीं होता. अंत में, आप काफी कुछ खो देते हैं — या तो परिवार, या उनका विश्वास या अपनी मासूमियत.”
शबनम के घर से दो किलोमीटर दूर महजूर नगर में अधिवक्ता बरकत कौर रतन, जिन्होंने दावा किया कि वे श्रीनगर की निचली अदालत में वकालत करने वाली एकमात्र सिख महिला हैं, ने याद किया कि कैसे उनके पड़ोस की एक सिख महिला दो साल पहले एक मुस्लिम व्यक्ति के साथ भाग गई थीं.
कौर ने कहा, “धर्मांतरण कश्मीर में हमारे अस्तित्व के लिए खतरा है.”
कौर ने कहा कि धर्मांतरण करने वाली महिलाएं सोच सकती हैं कि बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय में शामिल होने से उन्हें कुछ राजनीतिक मूल्य मिल सकता है.
कौर ने दुख जताया, “हम सिख कश्मीर में अल्पसंख्यक समुदाय हैं. हमारे पास कोई राजनीतिक प्रतिनिधित्व या अधिकार नहीं है. सरकार ने हमें अल्पसंख्यक का दर्जा भी नहीं दिया है.”
उन्होंने कहा कि धर्मांतरण की ऐसी घटनाएं घाटी में सिखों और मुसलमानों के बीच बढ़ते तनाव को और बढ़ा रही हैं. अंतरधार्मिक शादी में होने के बावजूद, शबनम इस विचार का समर्थन नहीं करती हैं.
शबनम ने कहा, “हम जिस तरह के समाज में रह रहे हैं, ऐसी शादियां आसान नहीं हैं. हालांकि, अगर शादी कई अन्य सामान्य शादियों की तरह सफल नहीं होती है, तो महिला को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. क्या महिलाएं इतना बड़ा जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं? उन्हें पहले सोचना चाहिए.”
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