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Saturday, 2 November, 2024
होमफीचरन पर्दे की चिंता, न पुरुषों की घूरती निगाहें — दरियागंज का पर्दा बाग कैसे है महिलाओं की अपनी जगह

न पर्दे की चिंता, न पुरुषों की घूरती निगाहें — दरियागंज का पर्दा बाग कैसे है महिलाओं की अपनी जगह

दरियागंज का पर्दा बाग पुरानी दिल्ली की महिलाओं के लिए उनकी अपनी आरामदायक जगह है. अन्य सार्वजनिक स्थान ऐसे पुरुषों और महिलाओं से भरे पड़े हैं जो असुरक्षित महसूस कराते हैं.

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दिल्ली: हाफीज़ा बानो (28) हर रोज़ शाम 4 बजे अपने दो बच्चों के साथ पुरानी दिल्ली के एक पार्क में आती हैं. ऊंचे लोहे के गेट के अंदर जाने के बाद, वे अपना बुर्का उतारती हैं, अपने बच्चों को झूले की तरफ ले जाती हैं, उनके साथ खेलती हैं और दूसरी महिलाओं के साथ खुलकर और जोर-जोर से बातें करती हैं. यहां, उन्हें पुरुषों की निगरानी की ज़रूरत नहीं है. कुछ घंटों बाद, वे फिर से अपना बुर्का पहनती हैं और अपने बच्चों के साथ पार्क से बाहर निकल जाती हैं, उनकी नज़रें नीचे की ओर झुकी रहती हैं.

हाफीज़ा पुरानी दिल्ली की कई पर्दा-जागरूक महिलाओं में से एक हैं, जो मुगलकालीन सार्वजनिक पार्कों को अपना बना रही हैं. दरियागंज का पर्दा बाग उन्हीं में से एक है, जहां वे आराम करती हैं और पर्दे की चिंता किए बिना खुद के साथ वक्त बिताती हैं.

हफीज़ा ने कहा, “यह हमारी जगह है. हम यहां हंस सकते हैं, बातें कर सकते हैं और खेल सकते हैं, चाहे हमारी उम्र कुछ भी हो. हमें यहां कोई भी पुरुष नहीं घूरता है और कोई भी घर पर इस बारे में शिकायत नहीं करेगा कि हम पब्लिक प्लेस में क्या कर रहे हैं.”

जनाना बाग के नाम से भी मशहूर दरियागंज का यह पार्क दिल्ली के उन कुछ “पिंक पार्कों” में से एक है, जो केवल महिलाओं के लिए हैं, इसके अलावा तुर्कमान गेट और जामा मस्जिद का महिला पार्क भी है. इन पार्कों के मुख्य गेट पर चमकीले नीले रंग के साइनबोर्ड लगे हैं, जिन पर स्पष्ट रूप से लिखा है: पार्क में पुरुषों का आना सख्त मना है. केवल पांच वर्ष तक के बच्चे आ सकते हैं.

केवल महिलाओं के लिए बने इन पार्कों के मुख्य गेट पर चमकीले नीले रंग के साइनबोर्ड लगे हैं, जिन पर स्पष्ट रूप से लिखा है: पार्क में पुरुषों का आना सख्त मना है. केवल पांच वर्ष तक के बच्चे आ सकते हैं | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट
केवल महिलाओं के लिए बने इन पार्कों के मुख्य गेट पर चमकीले नीले रंग के साइनबोर्ड लगे हैं, जिन पर स्पष्ट रूप से लिखा है: पार्क में पुरुषों का आना सख्त मना है. केवल पांच वर्ष तक के बच्चे आ सकते हैं | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट

“पिंक पार्कों” के लिए प्रशासन का प्रयास कुछ साल पुराना है, लेकिन यह अवधारणा 17वीं सदी के मुगलकालीन दिल्ली से जुड़ी है, जब बादशाह शाहजहां की बेटियों जहांआरा और रोशनआरा ने पुरानी दिल्ली को सुंदर बनाने का बीड़ा उठाया था. उन्होंने खूबसूरत बगीचे बनवाए और समय के साथ वह महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थान बन गए. अब, लगातार असुरक्षित होती जा रही दिल्ली में, इन बागों ने एक नया रूप ले लिया है.

इतिहासकार स्वप्ना लिडल ने उल्लेख किया कि दिल्ली में बनाए गए सभी बाग, चाहे मुगल महिलाओं द्वारा बनाए गए हों या पुरुषों द्वारा, मुख्य रूप से अपने और अपने मेहमानों के लिए सुंदर स्थान बनाने के उद्देश्य से बनाए गए थे. उन्होंने बताया, “मुगल रानियों द्वारा स्थापित ये बगीचे केवल महिलाओं के लिए नहीं थे; 19वीं सदी तक उनका महत्व अलग-अलग तरीकों से विकसित हुआ.”

पर्दा बाग के चारों ओर पैदल मार्ग है; प्रवेश द्वार के बाईं ओर एक महिला शौचालय है. पेड़ों पर बैठे असंख्य तोते, गौरैया, चमगादड़, कीट पतंगों और उल्लुओं के साथ, यह पार्क हर शाम सजीव हो उठता है जब महिलाएं और बच्चे यहां आते हैं.

‘हमारी जगह’

हाफीज़ा जैसी कई महिलाओं के लिए पर्दा बाग अपने और अपनी सहेलियों के साथ वक्त बिताने के लिए सबसे प्रिय जगह है.

दरियागंज में रहने वालीं 42-वर्षीय अस्मा अंसारी ने कहा, “यह पार्क हमें वो वक्त देता है जो हम गृहणियों को घर पर नहीं मिल पाता, चाहे हम कितनी भी कोशिश कर लें. यहां, हम पुरुषों की नज़रों से डरे बिना बात कर सकते हैं, हंस सकते हैं, योगा कर सकते हैं और खेल सकते हैं क्योंकि यह पूरी तरह से महिलाओं का पार्क है. यहां केवल महिलाएं और बच्चे ही होते हैं; कभी-कभी, अजनबी महिलाएं हमारी बातचीत या सैर में शामिल हो जाती हैं. ऐसा लगता है कि हम सभी एक ही वक्त पर एक जैसी कहानियां साझा करते हैं.”

पर्दा बाग पुरानी दिल्ली की महिलाओं के लिए एक छोटी और आरामदायक जगह है. यहां के निवासियों का कहना है कि अन्य जगह पुरुषों और महिलाओं से भरी हैं जो असुरक्षित महसूस करते हैं. अव्यवस्थित पार्कों में और उसके आस-पास नशे में धुत पुरुषों के छिपे रहने के कारण, महिलाएं इससे दूर रहती हैं.

दरियागंज की रहने वाली 21-वर्षीय सामिया जहान ने कहा, “जैसे ही हम पार्क के अंदर कदम रखते हैं, हमें स्वतंत्रता और सुरक्षित महसूस करते हैं. “जब हम बाहर जाते हैं, तो हमें आमतौर पर अपने माता-पिता को अपनी योजनाओं के बारे में बताना पड़ता है. हालांकि, अगर उन्हें पता हो कि हम महिलाओं के पार्क में जा रहे हैं, तो वह कम सवाल पूछते हैं.”

सतत समस्या

हालांकि, दिल्ली के सभी “पिंक पार्क” महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं हैं.

जामा मस्जिद के महिला पार्क में कभी-कभार ही खुशमिजाज़, बातूनी महिलाओं का ग्रुप आता है. पार्क में दिशा-निर्देश देने वाले कोई खास साइन बोर्ड नहीं हैं और रास्ता खोजने की सुविधा भी खराब है. पुरुष बेखौफ होकर अंदर घुस आते हैं और पेड़ों के नीचे बैठकर सो जाते हैं. कोई शौचालय नहीं है और बाकी बुनियादी ढांचे का रखरखाव अधिकारी बमुश्किल करते हैं. बैठने और मौज-मस्ती करने के लिए बहुत कम जगह है — केवल जामा मस्जिद का बड़ा गुंबद ही एक सुखद नज़ारा है.

जामा मस्जिद महिला पार्क की एक रिटायर्ड केयरटेकर ने कहा, “पहले, शाम को पार्क लड़कियों और महिलाओं से भरा रहता था, लेकिन धीरे-धीरे लोगों की संख्या कम होती गई. अब, हम उन्हें कितनी भी बार रोकने की कोशिश करें, पुरुष अक्सर अंदर घुस आते हैं.”

चांदनी चौक के तुर्कमान गेट पर महिला पार्क | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट
चांदनी चौक के तुर्कमान गेट पर महिला पार्क | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट

परिणामस्वरूप, अब पार्क ज्यादातर बंद रहता है. पुरुष बे-रोकटोक अंदर आते हैं, इधर-उधर घूमते हैं और चले जाते हैं.

महिला पार्क गेट के बाहर खजूर की दुकान लगाने वाले 56-वर्षीय अब्दुल खान ने कहा, “पहले शाम को यहां ज़्यादातर महिलाएं बैठ कर बातें करने आती थीं. कभी-कभी जामा मस्जिद से खरीदारी करने के बाद वो यहां आराम करती थीं. शायद जब सर्दी आएगी, तो महिलाएं धूप का मज़ा लेने के लिए वापस आना शुरू कर देंगी.”

दूसरे पिंक पार्क — तुर्कमान गेट के महिला पार्क में भी नियमों की अनदेखी आम बात है.

एमसीडी सुपरवाइजर सूरज चौधरी ने कहा, “हम लोगों को अंदर आने से रोकने की कोशिश करते हैं, लेकिन जब हम नहीं होते, तो स्थानीय (निवासी) अक्सर गेट का ताला तोड़कर पार्क में शराब पीने के लिए घुस जाते हैं.”

पिंक पार्क में मौजूद कई युवा लड़के और पुरुषों का कहना है कि वह बस घूम रहे थे. अपने दोस्तों के साथ आए एक युवा लड़के ने कहा, “हम बस टहलने के लिए अंदर आए, एक चक्कर लगाया और चले गए.”

चेतावनी के संकेतों की अनदेखी करते हुए अक्सर पुरुषों को इन महिलाओं के लिए बने पार्क में घुसते देखा जा सकता है | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट
चेतावनी के संकेतों की अनदेखी करते हुए अक्सर पुरुषों को इन महिलाओं के लिए बने पार्क में घुसते देखा जा सकता है | फोटो: अलमिना खातून/दिप्रिंट

17वीं सदी से लेकर अब तक

अप्रैल 2023 में दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने नगर निकाय के 250 नगरपालिका वार्डों में से प्रत्येक में “पिंक पार्क” बनाने का फैसला लिया. इन पार्कों में शौचालय, CCTV कैमरे, ओपन जिम की सुविधा और दीवारों पर ग्राफिटी होने थे, जो केवल महिलाओं के लिए विशेष स्थान बनते.

दिप्रिंट ने इस पर अपडेट के लिए MCD से संपर्क किया, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिल पाया है.

इनमें से कई पार्कों को बाद में ध्वस्त कर दिया गया, उनका पुनर्निर्माण किया गया और मौजूदा स्थानों में फिर से बनाया गया.

जहां आज पर्दा बाग है, वहां पहले, पुरानी दिल्ली की किंवदंती के अनुसार, यात्रियों के आराम करने के लिए एक कारवां सराय हुआ करती थी. जामा मस्जिद के हैरिटेज विशेषज्ञों का सुझाव है कि कारवां सराय को 1860 के आसपास अंग्रेज़ों ने ध्वस्त कर दिया और एक टाउन हॉल, पुरुषों के लिए एक कंपनी बाग और महिलाओं के लिए पर्दा बाग की स्थापना की गई.

अंग्रेज़ मुगल राजाओं और राजकुमारियों के नक्शेकदम पर चल रहे थे जिन्होंने दिल्ली को कई हरे-भरे बगीचों से सुशोभित किया था.

लिडल ने कहा, “अपने योगदान, वास्तुकला और इस प्रकार के बगीचों के निर्माण के माध्यम से, उन्होंने सुनिश्चित किया कि उनके नाम और उपलब्धियों को आने वाली पीढ़ियों द्वारा याद किया जाएगा. आज दिल्ली मुगल काल के समय की तुलना में कहीं अधिक हरी-भरी है, जब मौसम शुष्क और बंजर हुआ करता था.”

उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी जगहें आज भी शहर के इतिहास और आकर्षण का अभिन्न अंग बनी हुई हैं.

सरकार को काम करने की ज़रूरत

तुर्कमान गेट महिला पार्क की संकरी गली से गुज़रते हुए 60-वर्षीय बिनीता रानी ने कहा कि अक्सर बारिश का पानी भर जाता है और जब पानी निकल जाता है, तब भी ज़मीन पर काफी कीचड़ रहता है. इससे कई लोग यहां आने से कतराते हैं. उन्होंने कहा, “जब झूले (जिम की मशीनें) लगाए गए, तब से बहुत कुछ नहीं बदला है. लोग तभी आएंगे जब पार्क सुंदर होगा और इसका रख-रखाव किया जाएगा.”

जबकि दरियागंज पार्क कई महिलाओं के लिए एक स्वागत योग्य स्थान है, जिसमें वॉशरूम और एक आउटडोर जिम भी है, वहीं अन्य पार्कों में महिलाएं अभी भी बेहतर सुविधाओं की तलाश कर रही हैं. बिनीता रानी के साथ संकरी गली से बाहर निकलते हुए सरिता ने कहा, “हम अक्सर यहां बैठने के लिए आते हैं, लेकिन कई बार पार्क की हालत इतनी खराब हो जाती है कि हम यहां नहीं आना चाहते. सरकार को और भी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है, जैसे शौचालय बनाना और यहां आने वाले पुरुषों पर जुर्माना लगाना ताकि ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएं यहां आने में सहज महसूस करें.”

(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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