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Thursday, 30 January, 2025
होमफीचर‘ट्रंप की घोषणा, डंकी रूट सूने’ — गुजरात के मेहसाणा में अमेरिकी सपना साकार करने के लिए मेलडी माता से गुहार

‘ट्रंप की घोषणा, डंकी रूट सूने’ — गुजरात के मेहसाणा में अमेरिकी सपना साकार करने के लिए मेलडी माता से गुहार

अवैध प्रवासियों पर ट्रंप की कार्रवाई ने गुजरातियों के अमेरिका जाने के सपने को झटका दिया है. डंकी रूट सूने पड़ गए हैं और प्रवासियों में दहशत है, लेकिन कई पाटीदार अभी भी उनका समर्थन करते हैं: ‘ट्रंप मोदी के जैसे हैं.’

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मेहसाणा: गांव के मंदिर में जय दुर्गा मां के भजन गूंज रहे हैं, युवा जोड़े, थके हारे किसान और बुजुर्ग भक्त मेलडी माता के सामने हाथ जोड़ रहे हैं. वह यहां अच्छी फसल या अच्छी सेहत के लिए प्रार्थना करने नहीं आए हैं — वह अपने अमेरिका जाने के सपने को साकार करने का मौका चाहते हैं, जिस पर अब डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की छाया है.

गुजरात के मेहसाणा जिले के पाटीदार बहुल जसलपुर गांव के निवासियों के लिए मंदिर संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा पर एक पवित्र पड़ाव है. भक्तों का मानना ​​है कि देवी मेलडी — जिन्हें यहां अंग्रेज़ी में ‘मेलोडी’ कहा जाता है — बेहतर ज़िंदगी के लिए अमेरिका जाने का सपना संजोने वालों की प्रार्थनाओं का फल देती हैं. लोग आमतौर पर परिवार के किसी सदस्य के सीमा पार करने पर देवी को सुखड़ी प्रसाद चढ़ाते हैं, लेकिन अवैध अप्रवास पर ट्रंप की कार्रवाई के तहत, आस्था अब डर में तब्दील हो गई है.

भक्त मंदिर में उमड़ रहे हैं और देवी से अपने बेटे-बेटियों को अमेरिकी इमिग्रेशन और सीमा शुल्क प्रवर्तन (ICE) से बचाने की प्रार्थना कर रहे हैं. उन्हें डर है कि ट्रंप किसी भी समय विमान से वहां गए अवैध प्रवासियों को वतन वापस भेज देंगे.

50 बरस के आसपास रहे एक किसान ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “मेरा बेटा पिछले साल मैक्सिको से सीमा पार करके अमेरिका गया था. मुझे डर है कि अब उसे विमान में बिठाकर भारत वापस भेज दिया जाएगा, इसलिए मैं मंदिर में देवी से प्रार्थना करने आया हूं कि वे उसे वहां सुरक्षित रखें.”

किसान ने बताया कि उन्होंने अपने बेटे के अमेरिका जाने के सपने को पूरा करने के लिए अन्य ग्रामीणों से करीब 60 लाख रुपये उधार लिए हैं.

मंदिर के पास एक स्टॉल पर चाय की चुस्की लेते हुए उन्होंने पूछा, “अगर उसे वापस भेज दिया गया तो मैं अपने द्वारा लिए गए सभी कर्ज़ों को कैसे चुका पाऊंगा?”

मेलडी माता मंदिर में एक बोर्ड पर अमेरिका स्थित एनआरआई दानदाताओं का आभार जताया गया है | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
मेलडी माता मंदिर में एक बोर्ड पर अमेरिका स्थित एनआरआई दानदाताओं का आभार जताया गया है | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

डिपोर्टेशन उड़ानों के सपने के साथ, गुजरात के डंकी परिवार अब मदद के लिए देवताओं से मदद मांग रहे हैं. जबकि इमिग्रेशन के लिए डंकी रूट ज्यादातर पंजाब और हरियाणा के निवासियों से जुड़ा है. हालांकि, गुजरात के लोग भी इसका एक बड़ा हिस्सा हैं. जिन एजेंट्स से दिप्रिंट ने बात की, उन्होंने बताया कि ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभालने से पहले ही, अवैध रूप से देश में प्रवेश लगभग असंभव हो गया था. उनके कई ग्राहक मैक्सिको, दुबई जैसी जगहों पर फंसे हुए हैं.

उत्तर गुजरात के एक एजेंट ने दिप्रिंट को फोन पर बताया, “ग्राहक दुबई और मैक्सिको से लौट रहे हैं. पिछले चार महीनों से सभी लाइनें (अवैध मार्ग) धीमे पड़ गए हैं या पूरी तरह से बंद हैं.”

ट्रंप द्वारा इन कार्यकारी आदेशों की घोषणा किए हुए अभी कुछ ही दिन हुए हैं और छापेमारी शुरू हो गई है. हमारे बीच डर है. कुछ भी हो सकता है

— मेहसाणा से एक केंटकी गैस स्टेशन वर्कर

वैध वर्क वीज़ा पर रहने वाले लोग भी परेशान हैं. वकील गुजराती डायसपोरा को आश्वस्त करने के लिए वीडियो बनाकर ज़ूम मीटिंग आयोजित कर रहे हैं. अमेरिका में कुछ भारतीय माता-पिता अपने बच्चों के लिए जन्मसिद्ध नागरिकता सुरक्षित करने के लिए इमरजेंसी सी-सेक्शन डिलीवरी के लिए दौड़ रहे हैं, इससे पहले कि ट्रंप का कार्यकारी आदेश इस पर प्रतिबंध लगाए, जो 19 फरवरी को प्रभावी होगा.

प्यू रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय संयुक्त राज्य अमेरिका में तीसरा सबसे बड़ा अवैध अप्रवासी समूह हैं. ICE ने इस हफ्ते सिर्फ दो दिनों में 2,000 से ज़्यादा अवैध अप्रवासियों को गिरफ्तार करके दबाव को बढ़ा दिया है और 18,000 भारतीयों पर कथित तौर पर डिपोर्टेशन का खतरा मंडरा रहा है और कई और लोगों के देश लौटने की संभावना है.

हालांकि, विदेश मंत्रालय ने कहा है कि कितने लोगों को देश लौटना होगा, इस बारे में कोई भी बात करना “अभी ज़ल्दबाज़ी होगी” और इससे अवैध अप्रवासी भारतीयों की वापसी में मदद मिलेगी.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा, “अगर वह भारतीय नागरिक हैं और तय समय से ज़्यादा समय तक देश में रह रहे हैं या किसी खास देश में बिना ज़रूरी दस्तावेज़ के हैं, तो हम उन्हें वापस ले लेंगे, बशर्ते कि वह हमारे साथ दस्तावेज़ साझा करें ताकि हम उनकी राष्ट्रीयता (नागरिकता) की पुष्टि कर सकें.”

फिर भी, गुजराती भारत और अमेरिका दोनों में ट्रंप के सबसे मुखर समर्थकों में से हैं और जसलपुर में, कुछ लोग तर्क देते हैं कि ट्रंप की नीतियां शायद भारतीयों को अन्य अप्रवासी समूहों की तरह कठोर रूप से लक्षित न करें.

अल्पेश पटेल, जिनका भतीजा अमेरिका में खुदरा व्यापार में काम करता है, ने कहा, “भारत के लोग अपराधी नहीं हैं. हम अमेरिका की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और हम वहीं रहेंगे. हम जो काम करते हैं, उसे श्वेत लोग करने को तैयार नहीं हैं. हमें सामूहिक रूप से वापस भेजना असंभव है.”


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दहशत का माहौल

जबकि भक्त मेलडी माता की वेदी पर प्रार्थना कर रहे हैं, एनआरआई का एक समूह मंदिर प्रांगण में इकट्ठा होकर ट्रंप के प्रति अपनी प्रशंसा के बारे में बात कर रहा है. इन लोगों ने लगभग 30 साल पहले सीमा पार करने के बाद अमेरिका में अपनी नई ज़िंदगी शुरू की, लेकिन वह हर सर्दियों में गांव लौट आते हैं.

सभी पाटीदार समुदाय के लोग अब अमेरिका में मोटल, फ्रैंचाइज़ रेस्तरां, शराब की दुकानें या गैस स्टेशन चलाते हैं और वह सभी ट्रंप सरकार का समर्थन करते हैं.

न्यू जर्सी में कई गैस स्टेशनों की देखरेख करने वाले एक व्यक्ति ने कहा, “ट्रंप मोदी के जैसे हैं. वे एक राष्ट्रवादी हैं और डेमोक्रेट्स ने बहुत लंबे समय तक अनियंत्रित प्रवास की अनुमति दी है. इसे रोकने के लिए कुछ किया जाना चाहिए.”

जसलपुर के एक टैक्सी चालक जगदीश पटेल जिन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 20 साल तक काम किया | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
जसलपुर के एक टैक्सी चालक जगदीश पटेल जिन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 20 साल तक काम किया | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

ग्रामीण मानते हैं कि समुदाय से बाहर जाने वाले ज़्यादातर लोग “2 नंबर” (अवैध) हैं, लेकिन उनमें से कुछ नए नियमों से परेशान नहीं हैं.

मंदिर के एक स्वयंसेवक जिनका बेटा पिछले साल अवैध तरीके से अमेरिका गया था और अब वहां के एक स्टोर पर काम करता है, ने कहा, “जो भी होगा, होगा. मैं इससे परेशान नहीं हूं, हमारा समुदाय बहुत मददगार है, मुझे पता है कि संकट के समय हर कोई मेरे साथ खड़ा होगा.”

अन्य लोग ज़रा कम आश्वस्त हैं. अल्पेश पटेल ने कहा कि उनके कई दोस्तों और परिचितों ने ‘एजेंट’ से उनकी फाइलें वापस करने के लिए कहा है और अपनी इमिग्रेशन की योजनाओं को रोक दिया है.

अमेरिका में अप्रवासी समुदाय के भीतर घबराहट साफ दिखाई दे रही है.

पटेलों ने अवैध रूप से यहां आने वालों को काम पर रखना बंद कर दिया है और अगर वह उन्हें रखते भी हैं, तो प्रवासियों को अंडरग्राउंड रखा जाता है, नहीं तो, ICE उनकी दुकानें बंद कर देगा

— अवैध इमिग्रेशन ‘एजेंट’

केंटकी में काम करने वाले मेहसाणा के एक व्यक्ति ने दिप्रिंट को फोन पर बताया, “ट्रंप द्वारा इन कार्यकारी आदेशों की घोषणा किए हुए अभी कुछ ही दिन हुए हैं और छापेमारी शुरू हो चुकी है. हमारे बीच डर का माहौल है. कुछ भी हो सकता है. जिनके पास कागजात नहीं हैं, वह परेशान हैं.”

30-वर्षीय गैस स्टेशन कर्मचारी ने कहा कि अप्रवासी अब कम दिखने की कोशिश कर रहे हैं. अधिकांश लोग केवल काम के लिए घर से निकलते हैं और फिर सीधे घर लौट आते हैं.

उन्होंने कहा, “मेरे दोस्त बहुत डरे हुए हैं. हर कोई अपनी रिहाई के कागज़ात अपनी जेब में रखता है. अगर आपके पास रिहाई के कागजात हैं, तो एजेंट आपको जाने देते हैं — अगर आप उनके बिना पाए जाते हैं, तो आपको हिरासत में लिए जाने का जोखिम होता है.”

मेहसाणा की जिला अदालत, जिसमें गुजरात से अमेरिका में कानूनी और डंकी दोनों रूट से सबसे अधिक संख्या में प्रवासी आते हैं | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
मेहसाणा की जिला अदालत, जिसमें गुजरात से अमेरिका में कानूनी और डंकी दोनों रूट से सबसे अधिक संख्या में प्रवासी आते हैं | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

इस बीच, गुजरात के एजेंटों का कहना है कि उनका कारोबार कम हो गया है. मैक्सिको बॉर्डर या कनाडा के रास्ते पलायन बहुत मुश्किल हो गया है, लेकिन यह असंभव नहीं है और कुछ लोग अभी भी अपनी किस्मत आजमाने के लिए प्रीमियम पैसे देने को तैयार हैं.

एक दूसरे एजेंट ने फोन पर दिप्रिंट को बताया, “ट्रंप की जीत के बाद भले ही घबराहट हो, लेकिन चार्टर्ड और कनेक्टिंग फ्लाइट सहित कई उड़ानें लगातार उड़ान भर रही हैं. एजेंटों ने कुछ एयरलाइन्स के साथ सीधे दिल्ली से न्यूयॉर्क के लिए उड़ान भरने की सेटिंग की है. डिपोर्टेशन के जोखिम में लोग रिपब्लिकन स्टेटस को छोड़कर डेमोक्रेटिक स्टेटस में जा रहे हैं.”

यहां कोई नौकरी नहीं है. लोगों के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है. भारत में युवा 15,000 रुपये महीना कमा पाते हैं, लेकिन अमेरिका में वह 3500 डॉलर (करीब 3 लाख रुपये) तक कमा लेते हैं. घर भेजने के लिए यह बहुत ज़्यादा पैसा है

— अल्पेश पटेल, जसलपुर निवासी

हालांकि, कुछ एजेंट मानते हैं कि वह गुजरात के गांवों में मुखबिरों के घूमने के डर से लगातार निगरानी रख रहे हैं.

एजेंट यह भी बताते हैं कि बिना दस्तावेज़ वाले अप्रवासी अब शरण (asylum) के लिए आवेदन नहीं कर सकते.

तीसरे एजेंट ने कहा, “पहले लोग राजनीतिक या सामाजिक आधार पर शरण पा सकते थे, लेकिन अब यह भी संभव नहीं है.” उनके अनुसार, एक और झटका यह है कि अमेरिका में पटेल भी अवैध प्रवासियों से खुद को दूर कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “पटेलों ने अवैध रूप से यहां आने वालों को काम पर रखना बंद कर दिया है और अगर वह उन्हें रखते भी हैं, तो प्रवासियों को अंडरग्राउंड रखा जाता है, नहीं तो, ICE उनकी दुकानें बंद कर देगा.”


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पाटीदार और अमेरिकी जुनून

धर्मज आणंद का एक ‘मॉडल गांव’ है, जिसकी प्रसिद्धि का एक बड़ा दावा है — यहां के लगभग हर परिवार का कम से कम एक सदस्य संयुक्त राज्य अमेरिका में रहता है. लगभग सभी पाटीदार समुदाय से हैं.

उत्तरायण (जनवरी में मनाया जाना वाला पतंग उत्सव) के कम से कम एक हफ्ते बाद, अपने वार्षिक दौरे पर आए एनआरआई साथी ग्रामीणों के साथ बातचीत करने के लिए गांव के घंटाघर के नीचे इकट्ठा हुए. वह सभी एक बोल्ड अमेरिकी लहज़े में बोलते हैं, भले ही उनकी व्याकरण कमज़ोर हो.

“अमेरिका रिटर्न” होना गर्व की बात है और संयुक्त राज्य अमेरिका जाना सफलता का प्रतीक माना जाता है.

इससे बेहतर शादी की संभावनाएं और भारी दहेज मिलता है — जबकि अमेरिका से संबंध न रखने वाले परिवारों को दया का सामना करना पड़ता है. स्थानीय निवासियों ने समाचार रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि धर्मज के आसपास के 16 राष्ट्रीयकृत बैंकों में लगभग 1,100 करोड़ रुपये जमा हैं.

आणंद जिले में धर्मज का घंटाघर, जिसे ‘एनआरआई गांव’ के नाम से जाना जाता है. यह भारत के सबसे अमीर गांवों में से एक है | फोटो: Instagram/@chccept
आणंद जिले में धर्मज का घंटाघर, जिसे ‘एनआरआई गांव’ के नाम से जाना जाता है. यह भारत के सबसे अमीर गांवों में से एक है | फोटो: Instagram/@chccept

अल्पेश ने कहा, “हमारे समुदाय में अमेरिका जाने का क्रेज़ है. अगर कोई युवा अमेरिका में नहीं है, तो उसके लिए साथी ढूंढना मुश्किल है.”

विदेश में कारोबार शुरू करने के बाद वापस लौटने वाले एनआरआई गांव के युवाओं को प्रेरित करते हैं. कनाडा के प्रति पंजाब का जुनून भले ही ज़्यादा हो, लेकिन अमेरिका में काम करने के प्रति गुजरात का जुनून भी उतना ही गहरा है.

पाटीदार समुदाय, जिसे आमतौर पर पटेल सरनेम से जाना जाता है, इसके लोगों ने 1960 के दशक के मध्य में काम की तलाश में अमेरिका में पलायन करना शुरू कर दिया था, जब देश ने अपने इमिग्रेशन नियमों में ढील दी थी. दशकों से, उन्होंने वहां कई कारोबार शुरू किए, जिनमें से अधिकांश में फ्रैंचाइज़ी रेस्तरां, मोटल और गैस स्टेशन के मालिक और संचालक हैं.

बर्थटूरिज़्म की बहुत डिमांड है. हर साल हज़ारों-लाखों लोग अपने बच्चे को जन्म देने के लिए अमेरिका जाते हैं. ऐसे परिवारों की संख्या गिनना मुश्किल है

— प्रफुल पटेल, गो कूल के मालिक, आनंद में वीज़ा इमिग्रेशन एजेंसी

जैसे-जैसे पाटीदारों की क्रीमी लेयर ने अपने अमेरिकी सपने साकार किए, गांवों से उनके कम सुविधा प्राप्त समकक्षों ने डंकी रूट से अमेरिका में अवैध रूप से प्रवेश किया. फिर वह आम तौर पर पाटीदारों के स्वामित्व वाले कारोबारों में काम पाते हैं.

पाटीदारों के बीच, परिवार अक्सर समुदाय के सदस्य को पलायन करने में मदद करने के लिए संसाधन जुटाते हैं.

अल्पेश ने कहा, “पाटीदार हमेशा एक-दूसरे के लिए खड़े होते हैं.”

लेकिन कुछ लोगों के लिए, यात्रा खतरनाक है. कुछ लोग अपनी जान गंवा देते हैं, जैसे कि गुजरात के डिंगुचा गांव के चार लोगों का परिवार जनवरी 2022 में यूएस-कनाडा बॉर्डर के पास ठंड के कारण मर गया, जबकि बाकी फंसे हुए हैं.

गुजरात के एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “बहुत से लोग दुबई जैसे देशों में फंस जाते हैं क्योंकि यहीं उनके एजेंट उन्हें छोड़ देते हैं. यह लोग मानव तस्करी के शिकार बन जाते हैं.”


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डंकी नेटवर्क, ‘बर्थ टूरिज्म’

अमेरिका की हर अवैध यात्रा के पीछे तस्करों और एजेंटों का एक नेटवर्क होता है, जो हताशा से लाभ कमाते हैं.

अवैध अप्रवास के कई मामलों की जांच करने वाले सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने कहा कि गुजरात में लोकल एजेंट बस एक छोटा सा पहिया है. वे मुंबई या दिल्ली में हैंडलर को रिपोर्ट करते हैं, जो बदले में मैक्सिको, कनाडा या दुबई जैसे ट्रांजिट हब में एजेंटों से बात करते हैं. यह सिस्टम अंततः प्रवासियों को संयुक्त राज्य अमेरिका में पहुंचाता है.

पूर्व पुलिस अधिकारी ने कहा, “अवैध इमिग्रेशन के जाल में शामिल बहुत से लोग पाटीदार या पंजाबी हैं, जो खुद अवैध रूप से बॉर्डर पार कर गए हैं. उन्होंने इस तरह के इमिग्रेशन के नेटवर्क और कामकाज का पता लगा लिया और खुद एजेंट बन गए.”

जगदीश बलदेवभाई पटेल, वैशालीबेन जगदीशकुमार पटेल और उनके बच्चों की फाइल फोटो. जनवरी 2022 में कनाडा से अमेरिका में घुसने की कोशिश करते समय परिवार की मौत ‘मानव तस्करी’ के रूप में वर्णित एक मामले में हुई थी | फेसबुक: Royal Canadian Mounted Police in Manitoba
जगदीश बलदेवभाई पटेल, वैशालीबेन जगदीशकुमार पटेल और उनके बच्चों की फाइल फोटो. जनवरी 2022 में कनाडा से अमेरिका में घुसने की कोशिश करते समय परिवार की मौत ‘मानव तस्करी’ के रूप में वर्णित एक मामले में हुई थी | फेसबुक: Royal Canadian Mounted Police in Manitoba

जो लोग अमेरिका में प्रवेश कर जाते हैं, उनके लिए यह मुश्किल समय हमेशा के लिए खत्म नहीं हो जाता. अवैध प्रवासियों को अक्सर स्थानीय अधिकारी पकड़ लेते हैं, कोर्ट में पेश करते हैं और केवल GPS ट्रैकर के साथ ज़मानत पर रिहा करते हैं. एक बार रिहा होने के बाद, वह लोग हर जगह अपने रिहाई के कागजात साथ लेकर चलते हैं क्योंकि उनके बिना पकड़े जाने पर हिरासत में लिए जाने का जोखिम रहता है. कुछ लोग नए सिरे से शुरुआत करने के लिए दूसरे अमेरिका के बाकी राज्यों में चले जाते हैं, लेकिन अमेरिका की धरती पर रहने के जोखिमों के बावजूद घर वापस जाना उनके लिए संभव नहीं है.

अल्पेश ने कहा, “यहां कोई नौकरी नहीं है. लोगों के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है. भारत में, युवा पुरुष हर महीने औसतन 15,000 रुपये कमा पाते हैं, लेकिन अमेरिका में वह 3500 डॉलर (करीब 3 लाख रुपये) तक कमा लेते हैं. घर भेजने के लिए यह बहुत ज़्यादा है. युवा लोगों को यकीन है कि एक बार जब वह वहां पहुंच जाते हैं, तो 2-3 साल के संघर्ष के बाद वे एक बेहतरीन ज़िंदगी जी सकते हैं.”

भारत मेरी मातृभूमि है और अमेरिका मेरी कर्मभूमि है. दोनों देशों में अब और अप्रवासियों की ज़रूरत नहीं है

— मूल रूप से आणंद निवासी एनआरआई

अमेरिका में अवैध रूप से रहने का एक और तरीका है टूरिस्ट वीज़ा पर अधिक समय तक रहना.

अल्पेश ने कहा, “अगर वह अधिक समय तक नहीं भी रुकते हैं, तो लोग छह महीने का वीज़ा ले लेते हैं, कुछ महीने वहां काम करते हैं और बचत का एक बड़ा हिस्सा लेकर घर लौट आते हैं.”

कुछ लोग तो और भी कठोर कदम उठाते हैं. लंबे समय से पाटीदार महिलाओं द्वारा गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में बॉर्डर पार कर अमेरिका में अपने बच्चों को जन्म देने का चलन रहा है, जिससे उन्हें जन्म से ही नागरिकता मिल जाती है. पाटीदार समुदाय के कई सदस्यों ने कहा कि यह परिवार शायद ही कभी भारत लौटते हैं.

आणंद में वीज़ा इमिग्रेशन एजेंसी गो कूल के मालिक प्रफुल पटेल ने कहा, “बर्थ टूरिज्म की बहुत डिमांड है. हर साल हज़ारों लोग सिर्फ बच्चे को जन्म देने के लिए अमेरिका जाते हैं. ऐसे परिवारों की संख्या गिनना मुश्किल है.”

आणंद में वीज़ा इमिग्रेशन एजेंसी गो कूल के मालिक प्रफुल पटेल ने कहा कि अमेरिका और कनाडा में सख्त इमिग्रेशन पॉलिसी के कारण कारोबार कम हो गया है | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
आणंद में वीज़ा इमिग्रेशन एजेंसी गो कूल के मालिक प्रफुल पटेल ने कहा कि अमेरिका और कनाडा में सख्त इमिग्रेशन पॉलिसी के कारण कारोबार कम हो गया है | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

इस बीच, कानूनी रास्ते कम होते जा रहे हैं.

वीज़ा और आईईएलटीएस एजेंसी इंडस्ट्री विदेश में बसने के इच्छुक छात्रों और श्रमिकों का एक महत्वपूर्ण मार्ग-लगभग ठप्प हो गया है. सबसे पहले, कनाडा ने जस्टिन ट्रूडो के तहत अपनी इमिग्रेशन पॉलिसी को सख्त किया और अब ट्रंप के सख्त रुख ने कई लोगों को अमेरिका में आवेदन करने से हतोत्साहित किया है.

प्रफुल पटेल ने कहा, “कोविड के बाद कारोबार में तेज़ी आई क्योंकि देशों ने अपनी इमिग्रेशन पॉलिसी को उदार बना दिया था, लेकिन अब, जैसे-जैसे दरवाज़े बंद होते गए, व्यापार कम से कम 80 प्रतिशत तक सिकुड़ गया है. कई एजेंसियां भी बंद होने की कगार पर हैं.”


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टीम ट्रंप मुस्तैद

ट्रंप के दूसरे राष्ट्रपति कार्यकाल में इमिग्रेशन सीरीज़ के हर स्तर पर चिंता की लहरें भेजी हैं, ‘बर्थ टूरिज्म’ और डंकी रूट से लेकर H1B वीजा धारकों तक.

डॉक्टरों को भारतीय दंपतियों को समय से पहले डिलीवरी के खिलाफ सावधान करना पड़ा है क्योंकि कई लोग यह सुनिश्चित करने के लिए अस्पतालों में भाग रहे हैं कि उनका बच्चा ट्रंप की 19 फरवरी की समय सीमा से पहले पैदा हो जाए, जिसमें जन्मसिद्ध नागरिकता समाप्त करने की बात कही गई है.

फिर भी, कुछ H1B वीज़ा धारक उम्मीद पर कायम हैं.

8 साल से अमेरिका में रह रहे 39-वर्षीय जमीक पटेल ने कहा, “कंपनियां हमारे लिए लड़ेंगी. एलन मस्क हमारे लिए लड़ेंगे.”

उनके व्हाट्सएप ग्रुप 14वें संशोधन के बारे में वीडियो और संसाधनों से गुलज़ार हैं, जो अमेरिका में जन्म या प्राकृतिककरण द्वारा नागरिकता की गारंटी देता है.

फिर भी, जबकि कई गुजराती खुद को ट्रंप की नीतियों के तीखे प्रहार में पाते हैं, पाटीदार समुदाय अभी भी उनका कड़ा समर्थन करता है.

आणंद में अपने गांव का दौरा करने वाले एक एनआरआई भारतीय नीलेश पटेल ने कहा, “अब और इमिग्रेशन नहीं होना चाहिए. हम सभी कानूनी रास्ते से अमेरिका गए थे और अब मेहनती, टैक्स भरने वाले नागरिक हैं. हम इन अप्रवासियों की भलाई के लिए क्यों भुगतेंगे?”

बहुत से पाटीदार एनआरआई अमेरिका में मैक्सिकन और भारत में बांग्लादेशियों के बीच समानताएं भी बताते हैं.

न्यूजर्सी में शराब की दुकान चलाने वाले आणंद के एक व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हमें बांग्लादेशी पसंद नहीं हैं और हम उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं, है न? फिर अगर अमेरिका भी यही चाहता है तो इसमें क्या गलत है?”

कई लोगों के लिए ट्रंप और मोदी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.

आणंद में एक अन्य एनआरआई ने कहा, “ट्रंप राष्ट्रवादी हैं और हम अमेरिका में ट्रंप का समर्थन उसी तरह करते हैं जैसे हम भारत में मोदी का समर्थन करते हैं. भारत मेरी मातृभूमि है और अमेरिका मेरी कर्मभूमि है. दोनों देशों में अब और इमिग्रांट्स की ज़रूरत नहीं है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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