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Sunday, 1 December, 2024
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हरियाणा के इस क्षेत्र में क्यों उठ रही है गांव का नाम ‘ट्रंप सुलभ गांव’ करने की मांग

2017 में मरोड़ा गांव में शौचालय बनाने के लिए एक एनजीओ अभियान का चेहरा ट्रंप थे. ज़्यादा शौचालय, पानी और सड़कों की उम्मीद में ग्रामीण चाहते हैं कि मरोड़ा का नाम बदलकर ‘ट्रंप गांव’ रखा जाए.

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मरोड़ा, हरियाणा: इसकी शुरुआत दिल्ली स्थित गैर-लाभाकारी संगठन (एनजीओ) सुलभ इंटरनेशनल द्वारा 2017 में चलाए गए अभियान से हुई. अभियान में ट्रंप की तस्वीरों का इस्तेमाल हरियाणा के सबसे पिछड़े जिलों में से एक नूंह के गांव मरोड़ा में शौचालय बनाने के एनजीओ के काम की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए होर्डिंग्स में किया गया. उस समय एनजीओ ने अपने होर्डिंग्स में मरोड़ा का नाम ‘ट्रंप सुलभ गांव’ के रूप में इस्तेमाल किया, जिससे ग्रामीणों ने मरोड़ा का नाम बदलने का प्रस्ताव रखा.

दिल्ली स्थित सुलभ इंटरनेशनल के सुलभ स्वच्छता मिशन की अध्यक्ष मोनिका जैन ने दिप्रिंट को बताया, “हमने सभी शौचालय बनाए. उस समय ट्रंप का अभियान चल रहा था. हमें लगा कि इससे हमारे काम को सपोर्ट मिलेगा, लेकिन यह सिर्फ एक अभियान था. हम कभी भी गांव का नाम नहीं बदलना चाहते थे.”

जब सात साल पहले ग्रामीणों ने ट्रंप के नाम पर मरोड़ा का नाम बदलने का प्रस्ताव रखा, तो जिला अधिकारियों ने इस विचार को खारिज कर दिया और इस तरह के किसी भी प्रयास को वहीं समाप्त कर दिया. हालांकि, ट्रंप के व्हाइट हाउस में फिर से प्रवेश करने के साथ ही, ग्रामीण, जो अभी भी मरोड़ा के विकास में उनके योगदान के प्रति आश्वस्त हैं, नाम परिवर्तन के लिए फिर से प्रशासन से संपर्क करने की तैयारी कर रहे हैं.

मोनिका जैन के अनुसार, दिल्ली स्थित सुलभ इंटरनेशनल, जो वर्तमान में मरोड़ा और हरियाणा के 16 अन्य गांवों में महिलाओं के कौशल विकास पर काम कर रहा है, का ट्रंप से कोई संबंध नहीं है.

जैन ने कहा, “हमें ट्रंप से कोई समर्थन या धन नहीं मिला. हम केवल विकास चाहते थे. मरोड़ा में कोई शौचालय नहीं था. कभी-कभी किसी बड़े नाम से जुड़ने से प्रगति में तेज़ी आती है.”

मरोड़ा में बंद पड़ा एक सार्वजनिक शौचालय | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
मरोड़ा में बंद पड़ा एक सार्वजनिक शौचालय | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

गांव में, साधारण सफेद धोती और शर्ट पहने हुए कबाड़ा का काम करने वाले मोहम्मद यूसुफ (55) ने हाल ही में अपने मोबाइल फोन पर डोनाल्ड ट्रंप की जीत के वीडियो देखने की आदत बना ली है.

स्क्रीन पर अपनी नज़रें गड़ाए हुए उन्होंने कहा, “ट्रंप ने यहां शौचालय बनाने सहित बहुत काम किया है.”

यूसुफ जैसे ग्रामीणों के लिए ट्रंप की जीत मरोड़ा में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद का प्रतीक है. ग्रामीणों का मानना ​​है कि ट्रंप उनकी बुनियादी ज़रूरतों जैसे बिजली, पानी और स्कूल को पूरा करेंगे.

यूसुफ ने कहा, “अगर हमारे गांव में और विकास कार्य होते हैं तो यह बहुत अच्छा होगा. अगर ट्रंप इस गांव का नाम अपने नाम पर रखते हैं तो इससे और भी ज़्यादा विकास होगा.”

मरोड़ा ग्राम पंचायत के सरपंच के प्रतिनिधि अब्बास अहमद ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, “हम अनुरोध करेंगे कि मरोड़ा को आधिकारिक तौर पर ‘ट्रंप विलेज’ के रूप में मान्यता दी जाए ताकि हम उचित विकास देख सकें.”

अहमद ने दावा किया कि सुलभ इंटरनेशनल के अधिकारियों ने उन्हें 2017 में बताया था कि ट्रंप चाहते हैं कि गांव का नाम उनके नाम पर रखा जाए. उन्होंने कहा कि ट्रंप ने मरोड़ा में 97 और निज़ामपुर में 48 शौचालय बनवाने में मदद की और सोलर पैनल और लाइटिंग की भी व्यवस्था की.

उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि हम नाम बदलने और अन्य कागज़ात के लिए अपनी मांग केंद्र और राज्य सरकारों को सौंप देंगे. इससे हमारे क्षेत्र और इसकी समस्याओं पर ध्यान जाएगा.”

अहमद को उम्मीद है कि ट्रंप उनका समर्थन करते रहेंगे. गांव की आबादी में लगभग सौ से ज़्यादा लोगों की वृद्धि हुई है और अब उसे कम से कम 150 शौचालयों की ज़रूरत है.

झूठी कहानी

मरोड़ा में ट्रंप के विकास कार्यों की कहानियां घूम रही हैं.

अपने फोन से जूझते हुए यूसुफ ने तुरंत वॉयस कमांड दी: “ट्रंप आया मरोड़ा गांव में सुलभ शौचालय बनाने.”

कुछ हिंदी समाचार लेख और यूट्यूब वीडियो सामने आए. यूसुफ ने सुलभ इंटरनेशनल द्वारा पोस्ट किया गया एक यूट्यूब वीडियो खोला.

जून 2017 के वीडियो में सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक दिवंगत डॉ. बिंदेश्वर पाठक को शौचालय का उद्घाटन करते और ट्रंप के पोस्टर की पृष्ठभूमि में मरोड़ा का नाम बदलकर ‘ट्रंप सुलभ गांव’ करते हुए दिखाया गया है.

जून 2017 की घटनाओं को याद करते हुए अहमद ने कहा कि मरोड़ा सरकारी स्कूल के मैदान में एनजीओ के कार्यक्रम में कई बाहरी लोग शामिल हुए थे. ग्रामीणों का मानना ​​है कि ट्रंप को भी कार्यक्रम में शामिल होना था, लेकिन वे नहीं आ सके.

यह तब की बात है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार वाशिंगटन डीसी में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की थी.

अहमद ने कहा, “एनजीओ ने हमें बताया कि राष्ट्रपति ट्रंप गांव का नाम अपने नाम पर रखना चाहते हैं और इसके विकास में व्यक्तिगत रूप से योगदान देना चाहते हैं. हम खुश थे कि हमारे गांव का नाम अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम पर रखा जाएगा.”

हालांकि, जिला अधिकारियों ने स्थानीय और सरकारी निकायों से औपचारिक अनुमति न मिलने का हवाला देते हुए उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया और सभी होर्डिंग और बैनर भी हटा दिए.

नाम न बताने की शर्त पर मरोड़ा के एक सरकारी स्कूल ने कहा कि एनजीओ ने स्कूल को ट्रंप की यात्रा के लिए एक कार्यक्रम आयोजित करने के बारे में बताया और एक मंच और फूड स्टॉल के लिए जगह मांगी. शुरुआत में स्कूल ने सुरक्षा और सफाई कर्मचारियों की कमी का हवाला देते हुए अनुरोध को अस्वीकार कर दिया, लेकिन बाद में अनुमति दे दी.

अधिकारी ने कहा कि स्कूल में 170 से अधिक छात्र प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते हैं, जिसमें चार शिक्षक और दो और संकाय पद रिक्त हैं. स्कूल में बिजली नहीं है, जिससे वाई-फाई का उपयोग नहीं हो पाता.

हालांकि, गांव में सबसे बड़ी समस्या पानी की है.

गांव में पानी की आपूर्ति नहीं है | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
गांव में पानी की आपूर्ति नहीं है | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

यूसुफ ने कहा, “यहां सीधे पानी की आपूर्ति नहीं होती है. हम बाहर से पानी के टैंकर मंगवाते हैं.”

परिवार जितना बड़ा होता है, उसे उतने ही ज़्यादा पानी के टैंकर की ज़रूरत होती है. हर टैंकर लगभग 10 दिन तक चलता है और इसकी कीमत 1,100 रुपये होती है. गर्मियों में हर परिवार को हर महीने चार टैंकर की ज़रूरत होती है.

ग्रामीणों को सड़कों की भी समस्या है और उनमें से सबसे गरीब लोगों के पास घर भी नहीं है.

यूसुफ ने कहा कि उन्होंने गांव में ट्रंप को नहीं देखा और उन्हें नहीं पता कि ट्रंप किस देश के हैं, लेकिन उनके लिए ट्रंप हीरो हैं.

एक बंद पड़े सार्वजनिक शौचालय की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “ट्रंप ने यहां बहुत कुछ किया है. हमारे यहां उनके नाम पर शौचालय भी हैं, जिससे हमें लगता है कि उन्होंने हम पर निवेश किया है.”


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कार्टरपुरी की कहानी

मोनिका जैन के अनुसार, उन्होंने ग्रामीणों की सकारात्मक प्रतिक्रिया के कारण ट्रंप अभियान के लिए मरोड़ा को चुना. पड़ोसी गांवों ने अभियान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इससे कोई वास्तविक बदलाव नहीं आएगा.

नगीना निवासी मोहम्मद आसिफ ने पूछा, “क्या विकास केवल ट्रंप के नाम पर ही होगा? क्या मरोड़ा का नाम प्रगति नहीं ला सकता?”

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब किसी गांव का नाम बदलकर अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम पर रखा गया हो. गुरुग्राम नगर निगम के वार्ड नंबर 3 — कार्टरपुरी का नाम बदलकर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के नाम पर रखा गया था.

कार्टरपुरी के नंबरदार मनोहर लाल (76) ने पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें निकालीं, जिसमें 3 जनवरी 1978 को दौलतपुर नसीराबाद के नाम से जाने जाने वाले गांव के निवासी कार्टर और उनकी पत्नी रोजलिन कार्टर को माला पहनाते हुए दिखाई दे रहे हैं.

कार्टरपुरी में जिमी कार्टर के दौरे की तस्वीरें आज भी गांव में घूम रही हैं | मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
कार्टरपुरी में जिमी कार्टर के दौरे की तस्वीरें आज भी गांव में घूम रही हैं | मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

लाल ने याद किया कि भारत की आज़ादी से पहले जिमी कार्टर की मां लिलियन कार्टर अक्सर सामाजिक कल्याण कार्यों के लिए दौलतपुर नसीराबाद गांव आती थीं.

उनके बेटे आगे चलकर संयुक्त राज्य अमेरिका के 39वें राष्ट्रपति बने. अपनी भारत यात्रा के दौरान जिमी कार्टर ने अपनी मां की सलाह पर दौलतपुर नसीराबाद का दौरा किया.

यात्रा के दौरान जिमी कार्टर और उनकी पत्नी ने ग्रामीणों द्वारा मुहैया कराए गए पारंपरिक हरियाणवी परिधान पहने थे.

हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवी लाल, जो दंपति के साथ थे, ने मंच से ग्रामीणों से पूछा, “हम इस गांव का नाम बदलकर कार्टरपुरी रखना चाहते हैं. क्या आप इस नाम परिवर्तन से सहमत होंगे?”

ग्रामीणों ने अपनी सहमति व्यक्त की.

“चलिए इसका नाम कार्टरपुरी रखते हैं” और भीड़ ने तालियां बजाईं.

नंबरदार ने कहा, हालांकि, नाम परिवर्तन से कार्टरपुरी में विकास के लिए अतिरिक्त सरकारी सहायता नहीं मिली.

कार्टरपुरी के निवासी मनोज राव ने दिप्रिंट को बताया, “कार्टरपुरी विकास की स्वाभाविक प्रक्रिया से गुज़र रहा है. इस गांव का इतिहास समृद्ध है. इस पृष्ठभूमि को देखते हुए यहां का विकास उस स्तर तक नहीं पहुंच पाया है, जो पहुंचना चाहिए था.”

उन्होंने गांव के विकास का श्रेय राजमार्ग और हवाई अड्डे के समीप इसके स्थान को दिया. साथ ही, उन्होंने अतिक्रमण और स्वच्छता और कानून प्रवर्तन में खामियों को उजागर किया.

जब दिप्रिंट ने अहमद और यूसुफ को बताया कि ट्रंप का उनके गांव से कोई संबंध नहीं है, तो वह निराश हो गए.

अहमद ने पूछा, “अगर ट्रंप का हमारे गांव से कोई संबंध नहीं है, तो एनजीओ खुद यहां और शौचालय बनाने के लिए आगे क्यों नहीं आते?”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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