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Friday, 19 April, 2024
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अश्लीलता से घूंघट की ओर बढ़ रहे हरियाणवी गाने – घूंघट और मर्दों का घूरना सेक्शुअलिटी का प्रतीक बन रहा

52 गज का दामन और चटक मटक जैसे गाने हरियाणा में लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं. गायकों के पास परेशान करने वाली इस प्रवृत्ति के आगे घुटने टेकने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

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मैं अपने ससुर के सामने घूंघट में चलूंगी’; ‘मैं अपने देवर का ध्यान तब अपनी ओर खींचती हूं जब मैं उनके पास से घूंघट में गुजरती हूं’; ‘मैं अपनी 52 गज की पोशाक पहनकर चलूंगी लेकिन मैं घूंघट नहीं करूंगी’ – ये पंक्तियां तीन अलग-अलग हरियाणवी गीतों से हैं. ‘घूंघट’ में थिरकने वाले गायक/नर्तक हरियाणा की म्यूजिक इंडस्ट्री के लिए अगला रास्ता तय कर रहे हैं, जिसे यूट्यूब पर एक बिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है.

डॉली शर्मा, सपना चौधरी, और रेणुका पंवार/प्रांजल दहिया के गाए ये तीनों गाने दिखाते हैं कि आज हरियाणा की पॉप संस्कृति में क्या चल रहा है: गहरी पितृसत्तात्मक संस्कृति जो कि महिलाओं के संकोची होने और पुरुषों द्वारा उनको घूरे जाने को दिखाता है. डीजे कल्चर के साथ YouTube के जरिए और भी लोकप्रिय बने, ये गाने शादियों, जन्मदिन पार्टियों, कॉलेज फेयरवेल और रेस्तरां में बजाए जाते हैं. हरियाणा में यह एक परेशान करने वाला नया चलन है.

रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में जनसंचार के प्रोफेसर हरीश कुमार कहते हैं, “इसे अलग करके नहीं देखा जा सकता है. अन्य ट्रेंड्स भी इसी के साथ-साथ चल रहे हैं. एक खुद को दर्द पहुंचाने से तो दूसरा गन कल्चर के महिमामंडन से संबंधित है.” दोनों प्रवृत्तियां पुरुषों द्वारा महिलाओं को ‘विजित’ किए जाने को दिखाती हैं. वह आगे कहते हैं, “और साथ ही महिला शर्माते हुए अपना मेकअप खरीदने के लिए अपने पति से मदद मांगती है या उसकी बुरी आदतों को छोड़ने के लिए भीख मांगती है.”

बेहद लोकप्रिय इन सिंगर और डांसर की चर्चा हरियाणा में घर-घर में है, लेकिन उनके कंटेट में बहुत दम नहीं है.

17 साल के करियर के साथ एक प्रमुख महिला गायिका और डांसर अनु कादयान ने एक बार अपने गीतकार से उन्हें “मजबूत पंक्तियां” देने के लिए कहा. गीतकार ने उसके लिए बहू काले की (एक सांवली चमड़ी वाले आदमी की पत्नी) नाम से एक गीत बनाया, जिसमें एक औरत अपने पति को उसके सांवले रंग के कारण छोड़ने की धमकी दे रही है.

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30 वर्षीय कादयान, जो अब हरियाणा की राजनीति में उतरने के बारे में सोच रही हैं, उनका कहना है कि, “पच्चानवे प्रतिशत गीत पुरुषों द्वारा लिखे गए हैं. उनके लिए यह स्वाभाविक है कि अगर उन्हें एक पारंपरिक महिला के बारे में लिखने के लिए कहा जाए, तो वे घूंघट वाली एक महिला के बारे में ही सोचेंगे,”

कई गीत लोकगीतों से लिए गए हैं. कुछ बदलाव, एक आकर्षक धुन, डांस करने योग्य बीट्स और बड़ पैमाने पर इसे शेयर किए जाने की क्षमता की वजह से यह काफी लोगों को पसंद आती है.

लेकिन हर कोई ‘क्रिएटिविटी’ की सराहना नहीं करता.

रोहतक स्थित नारीवादी और कार्यकर्ता जगमती सांगवान का कहना है कि इन गीतों का ‘नयापन’ एक तमाशा है. वह कहती हैं,“यह एक आदमी की पुरानी सोच को ही दिखाता है जहां वह महिलाओं को लिपस्टिक, सलवार सूट और चूड़ियों की मांग करने वाली अपने से कमतर समझता है. पॉप कल्चर का दरअसल में वास्तविकता से कुछ लेना-देना नहीं है.”

हर कोई गाने पर नाच रहा है, लेकिन कुछ ही ऐसे हैं जो कि इसमें छिपे मैसेज पर ध्यान देते हैं.


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अश्लीलता से घूंघट तक

‘क्लीन’ कंटेंट, पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुरूप होने और अश्लीलता कम होने के कारण चटक मटक जैसे गीतों को हरियाणा में गांव के बुजुर्गों और पंचायतों द्वारा काफी पसंद किया गया है. यहां तक कि यूट्यूब के कमेंट्स भी इसकी तारीफ से भरे पड़े हैं. एक कमेंट में कहा गया है: “यह (गीत) उन लोगों के मुंह पर एक करारा तमाचा है जो विदेशी संस्कृति को अधिक तरजीह देते हैं और अपनी समृद्ध और रंगो से भरी संस्कृति को भूल जाते हैं. कोई अश्लीलता या अभद्रता नहीं, फिर भी एक बड़ा मुकाम हासिल किया.”

हरियाणा में संगीत में अश्लीलता बिल्कुल भी नहीं है. पंचायतों ने शादियों और पार्टियों में डीजे किराए पर लेने और इस तरह के गाने बजाने पर न केवल प्रतिबंध लगा दिया है बल्कि 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है.

सोनीपत के गीतकार मुकेश जाजी कहते हैं, “पहले हरियाणवी गानों में बहुत अश्लीलता होती थी. वे ज्यादातर देवर-भाभी संबंधों के बारे में होते थे. हमने अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर वापस जाने और दामन व घूंघट को फिर से लाने का फैसला किया.” जाजी ने 52 गज का दामन गीत लिखा था, जिसे YouTube पर 1.5 बिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है. आखिरकार, घूंघट उनके अनुसार संस्कारी है.

लेकिन जाजी का तर्क है कि ‘घूंघट गाने’ की मांग अकेले ग्रामीण क्षेत्र से नहीं आ रही है. अर्बन, जेन-जेड लिसनर और मिलेनियल्स इस तरह के गानों के लिए पॉप इंडस्ट्री को उत्सुकता से फॉलो कर रहे हैं. इंस्टाग्राम रील्स इसका सबूत हैं.

उन्होंने आगे कहा, “हमने देखा कि वे सबसे आकर्षक लाइन चुनते हैं और इसे लाखों बार Instagram पर परफॉर्म करते हैं.” सोशल मीडिया पर यह युवा पीढ़ी है जो घूंघट को पॉपुलर बना रही है.

बढ़ती प्रसिद्धि

हरियाणवी संस्कृति 2010 में सुर्खियों में तब आई जब भारत ने राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी की. राज्य के एथलीट कुल 101 पदकों में से 37 मेडल जीतकर देश में चर्चा में आ गए.

वे जीते गए कुल 38 स्वर्ण पदकों में से आधे से अधिक अपने घर ले गए, और टीवी पर इंटरव्यूज़ देने के साथ साथ रातों-रात हीरो बन गए. हरियाणवी तौर-तरीकों, बोली और संस्कृति ने बॉलीवुड और टीवी धारावाहिक निर्माताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा.

2015 की इंडियन रोमांटिक कॉमेडी तनु वेड्स मनु रिटर्न्स में कंगना रनौत द्वारा निभाए गए हरियाणवी किरदार दत्तो ने इस गति को बनाए रखा. अपनी बेटियों को प्रशिक्षित करने वाले हरियाणा के पहलवान के जीवन पर आधारित आमिर खान की दंगल (2016) की रिलीज़ ने और भी बड़ा असर डाला.

“म्हारी छोरी के छोरों से कम हैं” हरियाणा में जुमला बन गया. लेकिन तमाम ग्लैमर की आड़ में एक और खुलेपन की संस्कृति पनप रही थी जिसकी आइकॉन सपना चौधरी थीं. 2018 तक, वह हरियाणा और अन्य जगहों पर न केवल एक सेक्स प्रतीक बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में उभरी थी.

लेकिन घूंघट वाली महिला अभी भी गानों में जगह नहीं बना सकी थी.


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घूंघट की वापसी

हरियाणवी पॉप संगीत ने पिछले कुछ वर्षों में एक अलग विषय के साथ कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. डेढ़ दशक पहले हर किसी की जुबां पर देशभक्ति के गाने होते थे. हर दूसरा हरियाणवी राजू पंजाबी और विक्की काजला की देसी देसी गुनगुना रहा था. इसके बाद शराब की लत, परिवार, ‘चिड़चिड़ी’ पत्नी और ‘डिमांडिंग’ शहरी गर्लफ्रेंड के बारे में गाने आने शुरू हो गए.

जल्द ही, घूंघट, बंदूकों और गैंगस्टरों ने धाक जमा ली. इस ट्रेंड का विरोध करने वाले पीछे छूट गए.

गायक मासूम शर्मा कहते हैं, “तीन साल तक, मैंने एक भी गाना नहीं गाने की कसम खाई थी, जो बंदूक की संस्कृति और पीछे ले जाने वाली मानसिकता जैसी सामाजिक बुराइयों का महिमामंडन करता हो. लेकिन मेरे गाने हिट नहीं हुए.” चूंकि वह उससे लड़ नहीं सका इसलिए वह उसके साथ हो गया. शर्मा ने कहा, “आखिरकार, मुझे अपना घर चलाना है.”

कुछ गायक, जो गानों से जुड़ी समस्या के बारे में जानते हैं, उन्होंने उनके पास जो कुछ है, उसके साथ काम चलाना सीख लिया है.

बहू काले की के बारे में कादयान कहते हैं, ”कम से कम गाने में महिला अपनी बात खुल के कह रही थी.” गाना एक दुर्लभ उदाहरण पेश करता है जहां एक महिला अपनी बात कहते हए दिखती है, तो क्या हुआ अगर यह दूसरे अर्थों में पिछड़ा या नस्लभेदी है. शर्मा की तरह, कादयान ने भी इस कल्चर के सामने हार मान ली है.

कादयान के अन्य गाने पुरुषों द्वारा घूरे जाने को लेकर हैं. इनमें आधुनिक महिलाओं की या तो बहुत सारी ‘सेटिंग्स’ (रिश्ते) होती हैं या वे बहुत चालाक होती हैं.

खोड़िया का पतन

खोड़िया जैसे नृत्यों के पतन के साथ घूंघट वाले गानों का उदय हुआ. ये गाने महिलाओं के लिए और महिलाओं द्वारा गाए गए थे. खुले तौर पर सेक्शुअल टाइप के ये गाने शादियों के दौरान गाए जाते थे. कुछ ने पुरुषों की काम वासना का मजाक बनाया कुछ ने महिलाओं की ताकत और पुरुषों की मर्दानगी का सामना करने और उनसे लड़ने का अंहंकार दिखाया. महिलाओं ने गाने के बोल लिखे और स्टेप्स को भी कोरियोग्राफ किया, जिसे बंद दरवाजों के पीछे किया गया. परंपराओं ने ऐसा करते वक्त पुरुषों की नजर से बचने का मौका दिया.

बुजुर्ग से लेकर युवा विवाहित महिलाएं ऐसी सभाओं में शामिल होने के लिए कई दिनों तक इंतजार करती हैं. हर बार जब पुरुषों की एक बारात गांव से निकलती थी, तो महिलाएं घूंघट कर लेती थीं खुलकर अपनी कामुकता के मजे लेती थीं. रोहतक की रहने वाली गीतकार जगमती सांगवान बताती हैं, ”ये महिलाओं की वंचना, जरूरतों और उनकी भावनाओं से संबंधित गाने थे.”

खोड़िया का पुरुष वर्जन रागिनी था. महिलाओं को इसे देखने और प्रदर्शन करने से रोक दिया गया था. सपना चौधरी ने एक बार हरियाणवी समाज में जाति के एंगल को दिखाते हुए 36 जाट रागिनी परफॉर्म किया और मुसीबत में पड़ गईं – उनका मजाक उड़ाया गया, उनका उपहास किया गया और उन्हें शर्मिंदा किया गया.

आज घूंघट वाले गानों की यह लहर खोड़िया परंपराओं पर और भी तेजी से रोक लगा रही है. महिलाओं की युवा पीढ़ी इन गीतों को सुनना चाहती है और घूंघट करके उन पर डांस करना चाहती है.

रेवाड़ी की 50 वर्षीय कौशल्या यादव कहती हैं, ”नई बहुएं (बहू) और बेटियां (बेटियां) लोकगीतों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाती हैं. एक समय था जब वह खोडिय़ों के लिए सबसे अधिक मांग वाली कलाकार थीं. लेकिन उनकी शायद आखिरी पीढ़ी है. डीजे आया और फिर यह मोबाइल फोन. सबके बीच में मैं अकेली होती हूं जिसकी उंगलियों पर अभी भी खोड़िया गाने हैं.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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