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Wednesday, 24 April, 2024
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चंद्रशेखर आज़ाद – महात्मा गाँधी से भिन्न चलने वाले क्रांतिकारी की कहानी

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रंग दे बसंती में दिखाई गयी रेल डकैती के असली हीरो चंद्रशेखर आज़ाद का आज 112वां जन्मदिन है।

1906 में जन्मे क्रन्तिकारी स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आज़ाद का आज 112वां जन्मदिन है। सफ़ेद बनियान पहनकर मूंछों को ताव देती हुई चंद्रशेखर आज़ाद की तस्वीर साहस एवं राष्ट्रप्रेम की एक ऐसी मिसाल है जो हर भारतीय के ज़ेहन में हमेशा रहेगी।

आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के एक महत्वपूर्ण अंग थे और भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की चौकड़ी का एक हिस्सा थे।

आज़ाद का जन्म तत्कालीन मध्यप्रदेश के अलिराजपुर ज़िले के भाभरा गाँव में हुआ था में हुआ था और उनका बचपन का नाम चंद्रशेखर तिवारी था। वे अपने गाँव में रहनेवाली भील जनजाति के बच्चों के साथ बड़े हुए और उनका खेलों से विशेष लगाव था। आज़ाद प्राकृतिक रूप से फुर्तीले एवं तंदुरुस्त थे। तीरंदाज़ी एवं भालाफेंक में उन्हें विशेष महारथ हासिल थी।

उन्हें संस्कृत की पढाई के लिए बनारस के काशी विद्यापीठ भेजा गया जहाँ राष्ट्रवादी आंदोलन से उनका परिचय हुआ।

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‘आज़ाद’ एवं एचआरए

चंद्रशेखर तिवारी का नाम आज़ाद तब पड़ा जब हिरासत में न्यायाधीश द्वारा परिचय पूछे जाने पर उन्होंने अपना नाम ‘आज़ाद, स्वतन्त्र भारत का बेटा ‘ बताया। न्यायाधीश ने गुस्से में आकर आज़ाद को पंद्रह कोड़े लगाए जाने की सज़ा तो सुना दी लेकिन इस घटना के फलस्वरूप वे स्वंत्रता सेनानियों के बीच प्रसिद्ध हो गए ।

1919 के जलियांवाला हत्याकांड ने उन्हें काफी गहराई से प्रभावित किया था और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने का फैसला कर लिया। 1922 में महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिए जाने से आज़ाद काफी गुस्से में थे और तभी उनकी मुलाकात एचआरए (हिंदुस्तान रिपब्लिक असोसिएशन ) के संस्थापक रामप्रसाद बिस्मिल से भी हुई

आज़ाद एवं एचआरए के अन्य सदस्य सरकारी संपत्ति लूटकर अपनी क्रन्तिकारी गतिविधियों के लिए पैसे इकठ्ठा करते थे। इसके अलावा कुछ धनाढ्य कांग्रेसी भी इस संस्था को चंदा देते थे।

1925 में आज़ाद ने बिस्मिल एवं अन्य के साथ मिलकर शाहजहांपुर से लखनऊ सरकारी पैसे जानेवाली एक ट्रेन को लूटने की योजना बनाई। उन्होंने इस रेलगाड़ी को लखनऊ के पास काकोरी में अपना निशाना बनाया लेकिन इस घटना के इस संस्था पर कई दूरगामी प्रभाव पड़े। बिस्मिल समेत कई क्रन्तिकारी गिरफ्तार कर लिए गए। काकोरी ट्रेन डकैती की इस घटना को आमिर खान ने बड़े परदे पर भी दिखाया था।

हालाँकि आज़ाद भाग निकलने में सफल हुए और बनारस ओरछा के जंगलों में किसी तरह अपना गुज़ारा किया। वहीँ उन्होंने नए सदस्यों को बन्दूक चलाने की ट्रेनिंग भी दी।

1925 से 1928 के बीच आज़ाद ऐसी कई घटनाओं में भागीदार रहे थे, चाहे वह भारत के वाइसराय को बम से उड़ाने की कोशिश हो या अँगरेज़ पुलिस अफसर जेपी सौंडर्स की हत्या।

एचएसआरए

आज़ाद ने 1928 में भगत सिंह के साथ मिलकर एचआरए को पुनर्जीवित किया और इसे एक नया नाम दिया – हिन्दोस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक असोसिएशन (एचएसआरए )

उनकी गतिविधियों अगले तीन वर्षों तक तबतक जारी रहीं जबतक वे अंग्रेज़ों की गिरफ्त में न आ गए। आज़ाद की मौत 1931 में इलाहबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुई। एक ख़बरी ने अंग्रेज़ अधिकारियों को उस इलाके में आज़ाद के मौजूद होने की टिप दे दी। मुंहतोड़ जवाब देने के बावजूद वे इस गोलीबारी में घायल हो गए थे और आज़ाद ने स्वयं को गोली मार ली क्योंकि उन्होंने ब्रिटिशों की गिरफ्त में नहीं आने का संकल्प लिया था।

उनके द्वारा इस्तेमाल की गयी पिस्तौल इलाहबाद म्यूज़ियम में प्रदर्शित की गयी है। भले ही राष्ट्रवाद को लेकर उनके विचार महात्मा गाँधी के विचारों से से न मिलते हों लेकिन उनकी मृत्यु भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के लिए एक गहरा आघात थी

आज भी आज़ाद एक निडर क्रन्तिकारी के रूप में जाने जाते हैं। उनके 112 वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक ट्वीट के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की।

Read in English : Chandra Shekhar Azad — the revolutionary who was at odds with Mahatma Gandhi

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