ऐसा लगता है कि मोदी सरकार एक्स से खुद को अलग नहीं कर पा रही है. वह सोशल मीडिया पर बढ़ते गुस्से को बढ़ावा दे रही है और अपने ही बनाए राक्षस को चुपचाप और बड़ा कर रही है.
नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मोरारजी देसाई जैसे भारतीय नेताओं को पश्चिम ने अहंकारी माना, जबकि पाकिस्तानी नेता हमेशा घुटनों पर झुकने को तैयार रहते थे.
युवा विद्रोह के गुस्से के पीछे एक पुरानी, कठोर और अटूट सामाजिक व्यवस्था छिपी हुई है, जो देश की राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था को आकार दे रही है: जाति.
योगी आदित्यनाथ के एक फ़ोन ने अलीगढ़ के आईपीएस अधिकारी अमृत जैन को एक बड़े ज़मीन घोटाले की तह तक पहुंचा दिया, जिसमें आईएएस अधिकारी भी ठगे गए थे. "किसान और ख़रीदार, दोनों ठगे गए."
प्रधानमंत्री मोदी ने 'रेवड़ी' की राजनीति पर हमला बोलकर सही मायने में शुरुआत की. यही उनकी विरासत हो सकती थी. लेकिन उन्होंने पार्टी के फायदे के लिए विपक्ष को रेवड़ी बांटने में मात देना शुरू कर दिया.
दंगों के 5 साल से ज़्यादा समय बीत जाने के बाद भी, एफआईआर 59/2020 पर आधारित मामले की सुनवाई अभी तक गति नहीं पकड़ पाई है. आदेशों और कार्यवाहियों की 1,156 प्रतियों का दिप्रिंट द्वारा किया गया विश्लेषण कई कारकों पर नज़र डालता है.
हमने बाढ़ वाले मैदानों पर निर्माण कर दिया है, हर जगह इमारतें बना दी हैं, और कचरा नालियों को बंद कर देता है. नतीजा? पानी के जाने के लिए कोई जगह नहीं बची, न घरों में, न सड़कों में, और न ही हमारी ज़िंदगियों में.
जेएनयू को ‘पूरी तरह से एक नई यूनिवर्सिटी’ बनाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, जिसमें आलोचनात्मक सोच की मजबूत भावना हो. हालांकि, इसका एंटी-एस्टैब्लिशमेंट (सत्ता-विरोधी) चरित्र खासकर पिछले 10 साल में काफी बदल गया है.
1948 में जब इज़रायलियों ने अरबों को खदेड़ा था, तो उन्होंने यह नहीं सोचा था कि ये कटु शरणार्थी उनके नए राज्य के लिए एक स्थायी ख़तरा बन जाएंगे. यह एक भयावह ग़लतफ़हमी थी.