लोकनीति-सीएसडीएस के आंकड़ों से पता चलता है कि एनडीए ने गैर-जाटव दलित वोटों का बड़ा हिस्सा इंडिया ब्लॉक में खो दिया है. लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि सपा को दलितों और यादव दोनों के आधार वाले मतदाता गठबंधन को बनाए रखना मुश्किल हो सकता है.
16 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी ने अपने वोट शेयर को बढ़ाकर 16.68% कर लिया है, जो 2019 में लगभग 13% था, जब उसने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इस उछाल ने एलडीएफ और यूडीएफ दोनों को प्रभावित किया है.
नरेंद्र मोदी के अलावा अमित शाह, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा, शिवराज सिंह चौहान, नितिन गडकरी, एस जयशंकर, जीतनराम मांझी, जेडीयू नेता ललन सिंह इत्यादि ने भी शपथ लिया.
नेताओं ने कहा कि चार चरणों में मतदान, प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाने से मध्य प्रदेश को फायदा हुआ, लेकिन राजस्थान में अनुभवहीन मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष को बदलना और वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार करना भाजपा के खिलाफ गया.
शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ऐसी खिलाड़ी के रूप में उभरी है, जिस पर बीजेपी हावी नहीं हो सकती. इस बीच, कांग्रेस का प्रदर्शन अब उसे विपक्षी एमवीए के भीतर शिवसेना (यूबीटी) के साथ अधिक सौदेबाजी की शक्ति देगा.
कांग्रेस के खाते में सबसे अधिक 29 लोकसभा सीटें हैं, जो विपक्षी दलों को मिलीं हैं. समाजवादी पार्टी को 9, एनसीपी (शरद पवार) को 4 सीटें अन्य शीर्ष लाभ पाने वालों में शामिल हैं.
सीएम ने सभी उम्मीदवारों के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार किया था और दावा किया था कि उनकी पार्टी पंजाब की सभी 13 सीटें जीतेगी. उनके आग्रह पर ही AAP ने राज्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करने का फैसला किया.
भाजपा के कुल वोट शेयर में 1 प्रतिशत से भी कम की गिरावट आई है, जबकि कांग्रेस के वोट शेयर में 1.53 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. लोकसभा के नतीजों में दिख रहे इस विरोधाभास को राज्यवार वोट शेयर का अध्ययन करके समझाया जा सकता है.
पांच साल पहले, पार्टी ने उन सीटों में से 91.26% सीटें जीती थीं, जहां मौजूदा सांसदों को बदला गया था, और जहां पर मौजूदा सांसदों को दोबारा उतारा गया था वहां पर 90.80% सीटें जीती थीं.
अगर मोदी वाजपेयी शैली का एनडीए गठबंधन चलाना चाहते हैं, तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं है. अगर वे तथाकथित मोदी क्रांति की ओर लौटना चाहते हैं, तो गठबंधन मौजूदा शांति से कहीं ज़्यादा मुश्किल में है.