बांग्लादेश में भी पाकिस्तान की तरह ही भारत के प्रति बढ़ती हुई विदेशी घृणा और राजनीतिक दुश्मनी की लहर चल रही है. बांग्लादेश में कुछ शैक्षणिक संस्थानों ने फर्श पर भारतीय ध्वज और इस्कॉन का प्रतीक पेंट कर दिया और छात्रों से उस पर चलने को कहा.
इस हफ्ते इस कॉलम के लिए बिल्कुल माकूल तीन मुद्दे सामने थे: पुरानी, गरीबी दूर करने वाले ट्रेंड वापस आ गए हैं, स्टील इंडस्ट्री इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाने की पैरवी कर रहा है; आर्थिक सुधारों के एडी श्रौफ सरीखे पैरोकार आज दिख नहीं रहे.
मीडिया की दुश्मनी आम लोगों को प्रभावित कर रही है. इस दुश्मनी के कारण सीमावर्ती शहरों में होटल मालिक, अस्पताल और अन्य सर्विस प्रोवाइडर्स बांग्लादेश से आने वाले लोगों के लिए अपने दरवाज़े बंद कर रहे हैं.
हयात तहरीर अल-शाम के सदस्य, जो लेवांट मुक्ति आयोग के नाम से भी जाने जाते हैं, ने सेना की 46वीं रेजिमेंट को किनारे करते हुए पिछले सप्ताह दूसरी बार अलेप्पो पर कब्जा कर लिया.
ईवीएम से छेड़छाड़ की घिसे-पिटे नैरेटिव पर जोर देने के बजाय, कांग्रेस को लोगों के दिमाग को हैक करने का तरीका खोजने पर फोकस करना चाहिए — जो भाजपा ने किया है.
ऐसा लगता है कि सरकार के राजनीतिक गणित में समृद्ध और वंचित तबकों के हित ही शामिल हैं, मिडिल-क्लास को लगभग दरकिनार किया गया है. बढ़ती राजनीतिक उपेक्षा ने इस तबके में मोहभंग की भावना भर दी है.
मोदी सरकार की प्राथमिकताएं बेहद अव्यवस्थित हैं. अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के बजाय, मोदी और उनके साथी चुनाव जीतने के लिए धार्मिक संघर्षों को बढ़ावा देने में व्यस्त हैं.
इस उपमहादेश में क्रिकेट वाले रिश्ते खेल से जुड़े विवाद की वजह से नहीं, न ही हिंदू-मुस्लिम मसले के कारण बल्कि इन मुल्कों के हालात और उनके आपसी मनमुटाव की वजह से बिखरे हैं.
अगर कोई सरकार जानती है कि अमीरों को कैसे एकजुट किया जाए और उसने यह पता लगा लिया है कि सीधे पैसे भेजने से गरीबों के वोट कैसे जीते जाएं, तो उसे मध्यम वर्ग की कोई ज़रूरत नहीं है.