रूस और चीन जैसे अमेरिका के विरोधी यह सोचकर उत्साहित हैं कि अगर अमेरिका अपनी वैश्विक भूमिका से पीछे हटता है तो उसे फायदा होगा. खासतौर पर चीन अपने इलाके और शायद पूरी दुनिया में नेता बनने के लिए बहुत उत्सुक है.
मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के मंदिर के किनारे वाले सुंदर पर्दे और आकर्षक ग्राफिक तत्वों के बारे में इतना कम क्यों कहा जाता है. उन्होंने अपनी भूमिका को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से निभाया है.
देखा जाए तो रक्षा के क्षेत्र से संबंधित संयुक्त बयान में सभी उचित मुद्दों को छुआ गया है. लेकिन भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग के पिछले दो दशकों में वादे तो बहुत किए गए लेकिन उनसे बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ.
कई मायनों में, एमके स्टालिन के पत्र ने वही व्यक्त किया जो कई दक्षिण भारतीय महसूस करते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि वे कहें. हिंदी पट्टी की विफलताओं से दक्षिण भारत को कब तक पीछे रखा जाएगा?
हां, हमारे चारों ओर अपराध है, लेकिन जब यह हमारे घरों के अंदर टीवी स्क्रीन पर चौबीसों घंटे सामने आ रहा हो, तो कुछ न कुछ तो करना ही होगा. मैं हमेशा इस डर में रहती हूं कि आखिर क्या होगा.
कोई सिर्फ सोच सकता है कि एकनाथ शिंदे के डिप्टी के तौर पर देवेंद्र फडणवीस कितने दुखी रहे होंगे, लेकिन अब सिक्का बदल गया है और शिंदे को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
मुझे विश्वास है कि संवेदनशीलता से कदम उठाया जाए तो अच्छी तादाद में नक्सल लड़ाके अंडरग्राउंड ज़िंदगी छोड़ देंगे और राष्ट्र की मुख्यधारा में आ जाएंगे. आखिर हम किन्हें मार रहे हैं? वह तो हमारे ही नागरिक हैं.
बेलथंगडी (दक्षिण कन्नड़), 22 अप्रैल (भाषा) कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले के मंगलुरु में सोमवार शाम को गुरुवायणकेरे-कार्कल रोड पर अलडांगडी में दो कारों...