कश्मीर और पीओके के बीच का फर्क अनदेखा करना नामुमकिन है. एक तरफ लोग भोजन और बिजली के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ विकास और शिक्षा की बातें होती हैं.
भारत के फार्मास्यूटिकल सेक्टर का मूल्य 50 अरब डॉलर है. इसने अपनी पहचान किफायती और सुलभ दवाओं पर बनाई है, लेकिन छिंदवाड़ा में हुई मौतें एक अलग कहानी बताती हैं.
शिक्षा, आरक्षण, और सरकारी नौकरी समता और सम्मान दिलाने का लिए है लेकिन हम इससे कितने दूर हैं यह मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंके जाने और हरियाणा के IPS अफसर की आत्महत्या से साफ है. फिल्म ‘होमबाउंड’ एक सबक भी सिखाती है.
तमाम संगठन समय के साथ बदलते हैं, संघ ने भी शायद खुद को बदला है. लेकिन इसका अतीत इस पर राजनीतिक हमले करने के लिए इसके आलोचकों को आसानी से हथियार उपलब्ध कराता है.
1948 में जब इज़रायलियों ने अरबों को खदेड़ा था, तो उन्होंने यह नहीं सोचा था कि ये कटु शरणार्थी उनके नए राज्य के लिए एक स्थायी ख़तरा बन जाएंगे. यह एक भयावह ग़लतफ़हमी थी.
जब उस यूट्यूबर ने, जिसने CJI बी आर गवई के खिलाफ हंगामा मचाया, पुलिस स्टेशन जाने के बाद सोशल मीडिया पर घमंड करते हुए कहा कि ‘सिस्टम हमारा है’, तो दलितों के लिए क्या उम्मीद बचती है?
उत्तराखंड के पास भारत का पहला शून्य-गरीबी वाला राज्य बनने की तकनीक, धन और प्रशासनिक क्षमता है, जिससे यह पहले दो सस्टेनेबल डेवलमेंट गोल्स (SDGs) को पूरा कर सकता है.
किसी दूसरे देश के मुकाबले चीन में उसके उच्चस्तरीय विश्वविद्यालयों से हर साल जितने ग्रेजुएट निकलते हैं उनमें ‘स्टेम’ (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजिनियरिंग, मैथेमेटिक्स) के स्टूडेंट्स की संख्या काफी बड़ी होती है.
कर्नाटक की पीरियड लीव पॉलिसी तारीफ के काबिल है, लेकिन यही देश है जहां किसी भी वक्त मासिक धर्म वाली महिलाओं को बेइज़्ज़त और अपमानित किया जा सकता है — बिना किसी झिझक के.