क्या हम यह कह रहे हैं कि एक राष्ट्र के तौर पर हम अलग-अलग विचारों को नहीं संभाल सकते? कि हम असहमत होने के लिए बहुत कमज़ोर हैं? अगर अभिव्यक्ति की आज़ादी के साथ समय और लहज़े के बारे में चेतावनी भी दी जाती है, तो क्या यह वाकई आज़ाद है?
यूरोप के देशों ने अमेरिका से हो रहे ब्रेन ड्रेन को देखते हुए जल्दी कदम उठाए हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने दुनिया के सबसे होनहार माइंड्स को फ्रांस आने के लिए खुला निमंत्रण दिया है.
चाहे आप इसे पसंद करें या नहीं, पाकिस्तानी सेना ने दिखा दिया है कि वह लड़ने के लिए तैयार है. और इससे कश्मीर में पाकिस्तान समर्थक लोगों में नई उम्मीद जगी है.
मणिपुर को पांचवीं या छठी अनुसूची के अंतर्गत लाने की मांग में दम है, लाभकारी खेती को आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय तथा तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई जाए ताकि बाज़ार के अनुकूल कृषि उपजों, सघन वृक्ष रोपण, और लघु सिंचाई को बढ़ावा मिले.
मणिपुर, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और असम में परिसीमन का काम तीन महीने के अंदर शुरू करवाने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश इस विस्फोटक क्षेत्र में जातीय दरारों को और बढ़ा सकता है.
पाकिस्तान और उसके छद्म सैनिकों को लगभग हर सात साल पर जबरदस्त खुजली होती रही है. युद्ध को बढ़ाने वाली हर कार्रवाई भारत को औसतन कई वर्षों तक पाकिस्तान के अंदर खौफ पैदा करने का मौका देता है.
जबकि देश के ज़्यादातर लोगों ने इस बयान की निंदा की है, लेकिन एक सवाल पूछना ज़रूरी है: सत्ता के पद पर बैठा कोई व्यक्ति इस तरह की बात कहने में कैसे सहज महसूस करता है?
1960 के दशक में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी द्वारा कश्मीर पर मध्यस्थता के प्रयास ने पाकिस्तान को अपनी तलवार तेज करने के लिए प्रेरित किया था, न कि उसे हल चलाने के लिए प्रेरित किया था.
समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता ऐसे शब्द हैं जिन्हें भाजपा नेता न पूरी तरह अपनाना चाहते हैं और न ही खुले तौर पर नकार पा रहे हैं. इसी उलझन की वजह से पार्टी अब इन विचारों का अपना मतलब गढ़ने की कोशिश कर रही है और वह भी थोड़े अटपटे और बेतुके तरीके से.