देखा जाए तो अमित शाह ही जम्मू-कश्मीर को चला रहे हैं, लेकिन उनसे सुरक्षा चूक के लिए जवाबदेही मांगना अनुचित होगा क्योंकि उन्हें देश भर के हर चुनाव में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करनी है.
कांग्रेस से लेकर भाजपा तक दलितों को साधने की होड़ में जुटे हैं सभी दल, लेकिन क्या सपा-बसपा अपनी ज़मीनी पकड़ और भरोसे को फिर से बहाल कर पाएंगे या हिंदुत्व को खुला मैदान मिलेगा?
पाकिस्तान भले ही आर्थिक मुसीबतों से घिरा है लेकिन जम्मू-कश्मीर में छद्मयुद्ध छेड़ने की उसकी क्षमता घटी नहीं है. पहलगाम में हमला भारत के ‘नया कश्मीर’ के सपने को तोड़ने की मंशा से किया गया.
एक समय, आईएसआई का सोच यह था कि यहां के हिंदू अपने यहां के अल्पसंख्यकों से बदला लेने पर उतर आएंगे. वे भारत में इस तरह का संकट पैदा करने की कोशिश करते रहे हैं कि इस देश में गृहयुद्ध छिड़ जाए.
इस्लामाबाद को पता चल गया है कि वह कश्मीर नहीं जीत सकता. उसकी सेना का उद्देश्य कश्मीर जीतना या पाकिस्तान के लिए रणनीतिक लाभ कमाना नहीं है, बल्कि भारत को कष्ट पहुंचाना है.
अवामी लीग पर प्रतिबंध बांग्लादेश में गहरी राजनीतिक अस्थिरता के संकेत देते हैं. हाल में जो घटनाएं घटी हैं उनके कारण बड़ी चिंता यह उभरी है कि अंतरिम सरकार बच पाएगी या नहीं.