समस्या फिल्म ‘छावा’ नहीं है. समस्या यह है कि राजनेताओं ने किस तरह से भावनाओं का फायदा उठाया. फिल्म में औरंगजेब की कब्र को तोड़ने की बात नहीं कही गई, बल्कि राजनेताओं ने ऐसा किया.
दक्षिण भारतीय नेताओं का दावा है कि संसदीय प्रतिनिधित्व कम करने से संसाधन आवंटन प्रभावित हो सकता है. उन्हें याद रखना चाहिए कि दक्षिण में विकास बिहार और ओडिशा की कीमत पर हुआ है.
भीड़ और भगदड़ के मामले में भारत का रिकॉर्ड खराब है. बार-बार ऐसी घटनाएं और मौतें होने के बावजूद भीड़ नियंत्रण के मामले में प्रशासन के रुख में कोई खास बदलाव नहीं आया है.
एशिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले और ताकतवर देशों, चीन और भारत के बीच लंबे समय से चल रहा तनाव, कभी-कभी सशस्त्र संघर्ष में बदलता रहा है. जलवायु संकट के कारण दक्षिण एशिया के देशों के बीच संघर्ष और भी बदतर होने की आशंका है.
पूर्व नरेश के कई समर्थक उन्हें उम्मीद की एक किरण के रूप में देखते हैं. उनका मानना है कि वे देश में राजनीतिक स्थिरता बहाल कर सकते हैं, जो कि 17 वर्षों से दूर का सपना बना हुआ है.
भारत वर्षों से देसी एटीजीएम बनाने की कोशिश में जुटा है ताकि उसकी सैन्य क्षमता मजबूत बने, विदेशी हथियार सप्लायरों पर निर्भरता घटे और सेना के ऑपरशन्स ज्यादा असरदार बने.
पहले कार्यकाल में ज़मीन अधिग्रहण विधेयक और दूसरे कार्यकाल में कृषि कानूनों पर पीछे हटने के बाद, ऐसा लगता है कि पीएम मोदी ने तीसरे कार्यकाल में सुधारों के लिए अपनी इच्छा समाप्त कर दी है.
ये नियम दखलंदाजी या प्रोत्साहनों पर आधारित नहीं हैं. बल्कि, काउंसलिंग, डिजिटल कुशलता के साधन, या गेम की स्वैच्छिक सीमा जैसे उपाय आचरण में दीर्घकालिक बदलाव को बढ़ावा दे सकते हैं.
विधायक तापसी मंडल के पार्टी बदलने के बाद — जिसके लिए उन्होंने भाजपा के ‘विभाजनकारी एजेंडे’ को जिम्मेदार ठहराया — शुभेंदु अधिकारी की सांप्रदायिक टिप्पणियों की बाढ़ आ गई. ममता के सिपहसालारों ने भी उसी तरह पलटवार किया.