पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान एक साल से ऊपर से, भारत की तरफ़ से झूठे फ्लैग ऑपरेशन का इंतज़ार कर रहे हैं. मई में उन्होंने दो बार भारत के हमले की संभावना जताई.
सरकार के फैसले से जिन करोड़ों लोगों की आजीविका छिन जाती है, उनके लिए न केवल रोजी-रोटी के इंतजाम, बल्कि मुआवजा देने की व्यवस्था सरकार को ही क्यों नहीं करनी चाहिए?
भारतीय उद्योग ने निजी तौर पर, आवाज उठाने के लिए राजीव बजाज की प्रशंसा की, लेकिन लॉकडाउन के लिए मोदी सरकार की आलोचना करने की बजाय, पूरे तीन महीने नुक़सान सहना पसंद किया.
अगर सरकार किसानों के फायदे के लिए खेती-बाड़ी से संबंधित कानूनों में सचमुच ऐतिहासिक बदलाव ही लाना चाहती थी तो उसे इन कानूनों पर संसद और सर्वजन के बीच बहस और जांच-परख से कन्नी काटने की क्या जरूरत थी?
कोल्सटन की तरह ही क्या दलितों, नीच कही जाने वाली जातियों और महिलाओं के लिए घृणा के पात्र मनु की मूर्ति को भी राजस्थान हाईकोर्ट परिसर से हटाकर उसी तरह नष्ट कर दिया जाए या पानी में या कूड़ेदान में फेंक दिया जाए, लेकिन नहीं, इतिहास के सबसे बुरे और क्रूर अध्यायों को भी शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए, बचाकर रखना चाहिए.
मानसून का आगमन होने ही वाला है. बाढ़ की विभीषिका की नई तस्वीरें सामने आएगी. हम लोग उन तस्वीरों को देखकर च्च..च्च..च्च.. करेंगे और मजदूरों के पलायन की तस्वीरें धीरे-धीरे धुंधला जाएगी.
भारत को अपनी अर्थव्यवस्था और सैन्य ताकत को सुदृढ़ करने के लिए मज़बूत नेतृत्व और निर्णायक कार्रवाइयों की ज़रूरत है. राष्ट्रवाद की बातों भर से काम नहीं चलेगा.
स्पष्ट कारणों से, अगर भारत को जानबूझकर पाकिस्तान में लाखों लोगों पर सूखा डालने वाला माना जाता है, तो अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करना ज़रा मुश्किल होगा.