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Saturday, 18 January, 2025
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मोदी-शाह के चुनावी प्रचार से पाकिस्तान, बांग्लादेश और आतंकवाद जैसे मुद्दे इस बार क्यों गायब हैं

इस बार के चुनावों में मोदी-शाह जोड़ी के प्रचार अभियान में पाकिस्तानियों, बांग्लादेशियों, आतंकवादियों पर हमले नहीं हो रहे हैं तो ऐसा लगता है कि उन्हें घरेलू राजनीति और राष्ट्रीय रणनीतिक हितों के द्वेषपूर्ण घालमेल के खतरों का एहसास हो गया है.

पाकिस्तान भारत के साथ शांति क्यों चाहता है, और मोदी भी इसे जंग से बेहतर विकल्प मानते हैं

अगर भारत को लगता है कि उसे दो सरहदों पर मोर्चा संभालना पड़ रहा है, तो पाकिस्तान के लिए चुनौतियां कहीं और गंभीर हैं, वह भारत से दुश्मनी जारी रख सकता है और चीन के उपनिवेश वाली हैसियत में बना रह सकता है.

मोदी का भारत विश्वगुरू बनना चाहता है, लेकिन तुनकमिजाजी इतनी कि जरा सी असहमति बर्दाश्त नहीं

दुनिया को भारत से बड़ी अपेक्षाएं हैं, जो पूरी नहीं होतीं तो वह शिकायत करने लगती है; मोदी सरकार को दुनिया से अपनी वाहवाही तो बहुत अच्छी लगती है मगर आलोचना से वह नाराज क्यों होती है और उसे खारिज करने पर क्यों आमादा हो जाती है.

मोदी सरकार को रोकना नामुमकिन, कांग्रेस की नैया डूब रही है और राहुल अपने डोले दिखा रहे

हम संस्थाओं को कमजोर किए जाने, एजेंसियों के दुरुपयोग, भेदभावपूर्ण क़ानूनों, देशद्रोह की धारा के इस्तेमाल, विधेयकों को जबरन पारित करवाने आदि की शिकायतें भले करें लेकिन ऐसे सभी प्रमुख मसलों पर निष्क्रियता का सारा दोष कांग्रेस के मत्थे जाता है.

हैबियस पोर्कस: ‘जेल नहीं बेल’ के सिद्धांत का कैसे हमारी न्यायपालिका गला घोंट रही है

हमारी स्वाधीनता की सुरक्षा करना न्यायपालिका की बड़ी ज़िम्मेदारी है और इसके लिए ‘हैबियस कॉर्पस’ की व्यवस्था का सहारा लिया जाता है लेकिन आज मजिस्ट्रेट इस तरह फैसले कर रहे हैं मानो नियम तो ‘जेल देने का ही है, बेल देना तो उनके ओहदे के दायरे से बाहर है’.

भारत के सामने दो सीमा पर युद्ध से बचने की चुनौती, क्या मोदी रणनीतिक हितों के लिए राजनीति को परे रखेंगे

भारत को रणनीति के मामले में चीन और पाकिस्तान के साथ मिलकर बनने वाले त्रिकोण को तोड़कर बाहर निकलना ही होगा लेकिन इससे पहले उसे यह तय करना होगा कि क्या वह घरेलू चुनावी फायदों के चक्कर में अपने रणनीतिक विकल्प सीमित करना चाहता है?

भारतीय राजनीति में विचारधाराओं को लेकर नई मोर्चाबंदी: मोदी का निजी क्षेत्र बनाम राहुल का समाजवाद

कृषि कानूनों के साथ, मोदी सरकार ने श्रम सुधारों को पारित किया है और प्रमुख कंपनियों के निजीकरण का वादा किया है. इसने अर्थिक दक्षिण-वाम को विभाजित किया है, और यह एक अच्छी बात है.

मोदी सरकार कृषि कानून की लड़ाई हार चुकी है, अब सिख अलगाववाद का प्रेत जगाना बड़ी चूक होगी

कृषि क़ानूनों पर जंग तो मोदी सरकार हार ही चुकी है, अब अगर वह किसानों के आंदोलन को लेकर सिख अलगाववाद का राग अलापती रहेगी तो और भी गंभीर भूल करेगी

जैसे जैसे UP गर्त में जा रहा, योगी के सितारें बुलंद हो रहे हैं- इतने कि वो मोदी से लाइमलाइट की होड़ में है

योगी के राज में उत्तर प्रदेश की हालत शायद ही बेहतर हुई है लेकिन उनका अपनी राजनीतिक हैसियत इतनी जरूर बढ़ गई है कि मोदी को उस पर ध्यान देना पड़ रहा है.

वो 7 कारण जिसकी वजह से मोदी सरकार ने कृषि सुधार कानूनों से हाथ खींचे

कृषि सुधार मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की बड़ी उपलब्धि बन सकते थे मगर समझदारी तथा धैर्य की कमी और अतीत के प्रति नफरत ने इसे एक संकट में बदल दिया है.

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नयी दिल्ली, 18 जनवरी (भाषा) लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने शनिवार को आरोप लगाया कि यहां अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के...

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