देशभर में स्कूल पाठ्यक्रम का नया खाका तैयार करने के उद्देश्य से पिछले साल गठित केंद्र सरकार की समिति गैरसरकारी संगठनों, कॉरपोरेट्स, शिक्षकों, अभिभावकों और अन्य लोगों से भी परामर्श कर रही है.
यूजीसी ने बुधवार को संस्थानों से कहा कि सरकारी प्लेटफॉर्म स्वयं के जरिये पाठ्यक्रम उपलब्ध कराएं. लेकिन शिक्षाविदों ने क्लासरूम इंस्ट्रक्शन की जरूरत और बुनियादी ढांचे के अभाव जैसे मुद्दों का हवाला देते हुए इस कदम पर सवाल उठाए हैं.
शिक्षा मंत्रालय ने इसी हफ्ते परफॉर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स की रिपोर्ट जारी की है. यह पहला ग्रेडिंग इंडेक्स है जिसमें राज्य स्तर पर नहीं बल्कि जिला स्तर पर स्कूल शिक्षा प्रणाली का व्यापक मूल्यांकन किया गया है.
इस पहल का उद्देश्य हर राज्य में ‘विकलांगता के अनुकूल’ कम से कम एक तकनीकी संस्थान स्थापित करना है. कुछ संस्थानों को पहले ही सुलभता ऑडिट के लिए चिन्हित कर लिया गया है.
इसी शैक्षणिक सत्र से कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट शुरू किया जाएगा. कॉलेज छात्रों को एडमिशन देने के लिए कुछ इस तरह से इसका इस्तेमाल करने की योजना बना रहे हैं.
50% क्रेडिट स्कोर उनके सैन्य प्रशिक्षण के आधार पर होगा, बाकी यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन पर निर्भर करेगा. प्रशिक्षण पूरा करने में असमर्थ रहने वाले रंगरूट डिग्री पाने के लिए अतिरिक्त क्रेडिट अर्जित कर सकते हैं.
डीयू के 52 प्रोफेसरों ने एक पिटीशन में तर्क दिया कि गणित के लिए प्रस्तावित सिलेबस में इलेक्टिव पेपर्स को अनावश्यकर अहमियत देते हुए मुख्य पाठ्यक्रमों के लिए क्रेडिट ऑवर्स को कम कर दिया गया है.
एफएटी कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी से जुड़े है, जिसे गृह मंत्रालय द्वारा गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्रतिबंधित किया गया है.
माता-पिता पहले से ही अपने बच्चों को टीचर और कक्षाओं के परिचित कराने में लगे हैं, वहीं स्कूल उन बच्चों को नए माहौल में ढालने के लिए जरूरी कदम उठा रहे हैं जो अभी तक ऑनलाइन पढ़ाई ही करते रहे हैं.
अब तक भारतीय शिक्षा में तकनीकी बूम की खासियत ऑनलाइन वीडियो सेशन और रिकॉर्डिड क्लासेज रहीं है. लेकिन अब मेटावर्स में वर्चुअल क्लासरूम इससे आगे की कड़ी के रूप में सामने आ रहा है.
भारत आज दुनिया में जिस बेहतर हैसियत में है वैसी स्थिति में वह शीतयुद्ध के बाद के दौर में कभी नहीं रहा. हमें तय करना पड़ेगा कि विश्व जनमत को हम महत्वपूर्ण मानते हैं या नहीं. अगर मानते हैं तो हमें उनकी मीडिया, थिंक टैंक, सिविल सोसाइटी के साथ संवाद बनाना चाहिए.