मोदी और शाह के बीच सत्ता का ऐसा अनूठा समीकरण है जैसा न तो नेहरू-पटेल के बीच था और न ही वाजपेयी-आडवाणी के बीच था. लेकिन दिल्ली में पार्टी की हार के बाद शाह ने अपने राजनीतिक करियर के नये अपरिचित दौर में कदम रख दिया है.
भारत के बड़े शहर बदहाल हो रहे हैं, वे विशाल झोंपड़पट्टियों में तब्दील होते जा रहे हैं, और जब उन्हें सुधारने की कोशिश की जाती है तो ‘कोरल’ यानी मूँगे की चट्टानें आड़े आने लगती हैं जैसा कि मुंबई में हुआ.
बिराज अधिकारी ने 1956 में चोग्याल के नई दिल्ली दौरे को ‘राजकीय दौरा’ बताने और उनके स्वागत में सिक्किम का राष्ट्रगान बजाने के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय को दोषी ठहराया है. उनकी किताब उनकी पीढ़ी की कई दुविधाओं का जिक्र करती है: क्या सिक्किमी लोग सचमुच पूर्ण भारतीय नागरिक हैं, खासकर अनुच्छेद 371-एफ के मद्देनजर?