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शुक्रवार, 18 अप्रैल, 2025
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नेशनल इंट्रेस्ट

किन पांच वजहों से पैदा हुआ है दुनियाभर में इस्लाम पर संकट

दुनियाभर के करोड़ों मुसलमानों को अगर यह लगता है कि उन्हें व्यापक ‘इस्लामोफोबिया’ का निशाना बनाया जा रहा है. उनके परम पूज्य पैगंबर मोहम्मद साहब का जानबूझकर अपमान किया जा रहा है, तो यह निश्चित ही उनमें अविश्वास और अलगाव की दहशत पैदा करता है.

ट्रम्प या बाइडेन? भारत-अमेरिका के संबंध में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि दोनों देशों के बीच रणनीतिक गलबहियां हैं

भारत और अमेरिका एक-दूसरे से गहरी गलबहियां कर चुके हैं, पुराने बहाने इतिहास में दफन कर दिए गए हैं और सर्वोपरि राष्ट्रहित ही रणनीतिक फैसले करवा रहा है.

मोदी-शाह के अश्वमेध यज्ञ में NDA बलि चढ़ाने वाले घोड़े की तरह है जिसके सहारे वो भारतीय राजनीति की नई परिभाषा लिख रहे हैं

मोदी-शाह की नयी राजनीति आपको कबूल है तो आपका ही भला है, नहीं कबूल है तो इस अश्वमेध के घोड़े को चुनौती देने के लिए आपको वायरल होने वाले ट्वीट्स से आगे बढ़कर कुछ करना पड़ेगा.

अर्णब के रिपब्लिक बनाम दूसरे चैनलों की लड़ाई में कैसे मीडिया खुद अपनी ‘कब्र’ खोद रहा है

खुद से ही लड़ता, कमजोर पड़ चुका मीडिया किसी भी सत्तातंत्र के लिए उसके मामले में दखल देने की आदर्श स्थिति बना देता है. हमारे पेशे की बागडोर थामने वालों ने आत्मघाती कदम उठा लिया है.

मोदी अगर सच्चे सुधारक हैं तो वे वोडाफोन के प्रेत को दफन करेंगे और बिहार के चुनाव प्रचार में आर्थिक सुधारों को मुद्दा बनाएंगे

हम देख चुके हैं कि चुनावों में आर्थिक सुधारों और वृद्धि आदि की बात करने का क्या हश्र होता है, खासकर तब जब आप दोबारा सत्ता में आने के लिए लड़ रहे हों, इसलिए बिहार के इस अहम चुनाव में कोई ‘पंगा’ न लेना ही मोदी को मुफीद नज़र आएगा.

सब पर शक करो, सबको रास्ते पर लाओ! क्या यही हमारे नये ‘राष्ट्रीय शक्की देश’ का सिद्धांत बन गया है

केवल मोदी सरकार और भाजपा ही नहीं बल्कि राज्य सरकारों से लेकर अदालतें तक सब शक की मानसिकता के शिकार हो गए दिख रहे हैं, क्या भारत एक ‘राष्ट्रीय शक्की देश’ बनता जा रहा है?

भारत तीन संकटों से जूझ रहा है, इस समय क्यों मोदी को देश में बांटने की राजनीति से पल्ला झाड़ लेना चाहिए

भारत आज कई गंभीर, आपस में जटिलता से उलझे हुए संकटों का सामना कर रह है, उसे राजनीतिक जमीन तथा भरोसे की जरूरत है, और यह मोदी और उनकी सरकार के ऊपर है कि वह इसे बनाने की ज़िम्मेदारी किस तरह निभाती है.

चीन, कोविड, नौकरियां जाने के बावजूद मोदी का किला सलामत, उनको हराने की ताकत आज एक ही नेता में है

नरेंद्र मोदी के आलोचक काफी परेशान हैं कि आखिर इतनी परेशानियां झेलने के बावजूद लोग मोदी के खिलाफ क्यों नहीं हो रहे? वास्तव में लोकप्रिय, मजबूती से सत्ता में बैठे किसी भारतीय नेता को कोई प्रतिद्वंद्वी कभी नहीं हरा पाया है, मोदी ही खुद को हरा सकते हैं.

भारत के बारे में कमला हैरिस के विचार उनके DNA से नहीं, हमारी अर्थव्यवस्था की हालत से तय होंगे

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कमला हैरिस आधी भारतीय मूल की हैं, भारत के बारे में उनके विचार इससे नहीं तय नहीं होंगे कि वे किस मूल की हैं बल्कि इससे तय होंगे कि अगली जनवरी में भारतीय अर्थव्यवस्था किस हाल मैं होगी.

राम मंदिर के साथ मोदी ने सेक्युलरिज्म को अपना नया रंग दिया, हिंदू वोटर सोनिया के लेफ्ट वर्जन से तंग आ चुके हैं

राम मंदिर भूमि पूजन से भारतीय धर्मनिरपेक्षता की मौत नहीं हुई है. वह तो हमारे संविधान के बुनियादी ढांचे में ही मौजूद है और उसकी रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहना जरूरी है. 

मत-विमत

50 साल से ठंडे बस्ते में पड़ा परिसीमन मसला भारतीय लोकतंत्र के लिए बना सियासी टाइम बम

1976 तक तो लोकसभा, राज्यसभा और राज्यों की विधानसभाओं की सीटों की संख्या इस तरह तय की जाती रही ताकि आबादी के प्रतिनिधित्व का समान अनुपात बना रहे, लेकिन 42वें संविधान संशोधन ने सीटों की संख्या 2001 की जनगणना के आधार पर स्थिर कर दी.

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राजनीति

देश

डीयू के प्रोफेसर को अमेरिका यात्रा की अनुमति के लिए भाषण का पाठ प्रस्तुत करने की ‘सलाह’ दी गई

नयी दिल्ली, 17 अप्रैल (भाषा) दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के प्रोफेसर अपूर्वानंद झा ने दावा किया कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें सलाह दी है कि...

लास्ट लाफ

सुप्रीम कोर्ट का सही फैसला और बिलकिस बानो की जीत

दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चुने गए दिन के सर्वश्रेष्ठ कार्टून.