बदली हुई परिस्थितियों में उस दुश्मनी की बर्फ तो खैर काफी हद तक पिघल गई है, लेकिन उसे 1993 की ऐतिहासिक यारी और उसकी बिना पर अपने सुनहरे दौर तक ले जाने के लिए जिस राजनीतिक विवेक की जरूरत है, सपा व बसपा के दुर्दिन में भी वह उनके नेतृत्वों में दिखायी नहीं दे रहा.