scorecardresearch
Sunday, 24 November, 2024
होमफीचरचमकीला की हत्या को 30 साल बीत गए, लेकिन पंजाब में यह पहेली आज भी अनसुलझी है

चमकीला की हत्या को 30 साल बीत गए, लेकिन पंजाब में यह पहेली आज भी अनसुलझी है

चमकीला के गांव में कड़वाहट और अफसोस का माहौल है — मेहसामपुर को हत्या वाले क्षेत्र के नाम से जाना जाता है.

Text Size:

लुधियाना के पास डुगरी में एक छोटा सा मंदिर उस स्थान को दर्शाता है, जहां गायक अमर सिंह चमकीला का जन्म 20 जुलाई 1960 को एक गरीब दलित सिख परिवार में हुआ था. गायक और उनकी जाट पत्नी अमरजोत कौर की लैमिनेटेड अखबार की कतरनें और तस्वीरें जलते हुए दीये की लौ में टिमटिमाती हैं जिसकी देखभाल एक बुजुर्ग करते हैं. कूड़ा-कचरा उतारने की जगह के बगल में स्थित, इस मंदिर को देखना आसान है, लेकिन हर साल 8 मार्च को यह क्षेत्र एक मेले में तब्दील हो जाता है — सैकड़ों गायक, कलाकार और गांवों के निवासी चमकीला और अमरजोत को याद करने के लिए इकट्ठा होते हैं जिनकी 1988 में पंजाब में उग्रवादी अलगाववादी विद्रोह के चरम के दौरान हत्या कर दी गई थी.

चमकीला पंजाब में हर जगह है — सड़क किनारे के ढाबों, ट्रकों, शादियों और घरों में. उनका पहला रिकॉर्ड किया गया गीत, ‘टकुए ते टकुआ’ अभी भी विशेष रूप से कुछ गांवों में लोकप्रिय है और स्थानीय संगीतकार उनकी तस्वीरों को अपने गीतों में डालते हैं और उन्हें ‘गुरु’ कहते हैं. अब, दिलजीत दोसांझ और परिणीति चोपड़ा अभिनीत इम्तियाज़ अली की नेटफ्लिक्स बायोपिक चमकीला ने गायक को लोगों के ज़हन में फिर से ज़िंदा कर दिया है. 12 अप्रैल को रिलीज़ हुई इम्तियाज़ की फिल्म में चमकीला कहते हैं, “हमारे रिकॉर्ड ब्लैक में बेचे जा रहे हैं, जैसे अमिताभ बच्चन की फिल्मों के टिकट बिकते थे.”

‘पंजाब का एल्विस’, जो अपनी आवाज़ और गीत की ताकत से भारी भीड़ (अखाड़ों) को नियंत्रित करने का बूता रखते थे, उनकी हत्या के समय वे केवल 27 साल के थे. उन्होंने सामंती पंजाब में जाट गौरव, कृषि श्रमिकों की दुर्दशा, शराब, दहेज, घरेलू हिंसा और नशीली दवाओं के दुरुपयोग पर गीत लिखे और गाए. उन्होंने ऐसी कहानियां सुनाईं जो इसल ज़िंदगी में त्रुटिपूर्ण और प्रासंगिक थीं. उनका आकर्षण ऐसा था कि जाट सिखों ने भी उनके गीतों को गले लगा लिया.

कई लोग उनके गानों को अश्लील, फूहड़ मानते थे. ‘ललकारा’ में वे एक महिला द्वारा अपने प्रेमी के प्रति अपनी लत को स्वीकार करने के बारे में गाते हैं. ‘मार ले होर ट्राई जीजा’ गीत एक महिला के बारे में है जो अपने जीजा से बच्चा पैदा करने का आग्रह करती है, जब उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी बच्चे पैदा नहीं कर सकती. ‘ड्राइवर रोक गड्डी’ पंजाब के एक ट्रक ड्राइवर को उत्तर प्रदेश की एक लड़की से प्यार हो जाने के बारे में एक और लोकप्रिय गाना था. लड़की ड्राइवर को खिलाड़ी बुलाती है और अपने बेटे की खातिर उसे अपने पास वापस आने के लिए कहती है. ये पंजाब में वर्जित विषय थे जो अलगाववादियों के अधीन था जो यह तय करते थे कि लोगों को कैसे रहना है, लेकिन लोगों ने चमकीला के लिए बारात में एक साथ पांच से अधिक लोगों के न जाने जैसे निर्देशों की अवहेलना की.

हर कोई कहता है कि उन्होंने अश्लील गाने गाए, लेकिन वे वास्तविकता, ग्रामीण जीवन के गाने थे. मैं कहूंगा कि आज के गाने अश्लील हैं. क्या आप एक परिवार में एक साथ बैठकर इन गानों को एक साथ देख सकते हैं?

— सुरिंदर सिंह, गांव मेहसामपुर के पूर्व सरपंच, जहां चमकीला की हत्या की गई थी

उन्हें और अमरजोत को अखाड़ों में गाते देखने के लिए भीड़ उमड़ती थी — महिलाएं छतों पर और आदमी और बच्चे अखाड़ों में मैदान में रहते थे. उन्होंने ढोलक, हारमोनियम के अलावा सिर्फ एक माइक और एक तुम्बी के साथ उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया.

उनकी और अमरजोत की गोली मारकर हत्या किए जाने के 15 दिन बाद, आतंकवादियों ने क्रांतिकारी कवि पाश की हत्या कर दी और उसी साल दिसंबर में लोकप्रिय अभिनेता वीरेंद्र सिंह (धर्मेंद्र के चचेरे भाई) की हत्या कर दी गई.

मेहसामपुर गांव के पूर्व सरपंच सुरिंदर सिंह ने कहा, “हर कोई कहता है कि उन्होंने अश्लील गाने गाए, लेकिन वे वास्तविकता, ग्रामीण जीवन के गाने थे. मैं तो कहूंगा कि आज के गाने अश्लील हैं. क्या आप परिवार के साथ बैठकर इन गानों को एक साथ देख सकते हैं?” इसी गांव में 1988 में चमकीला और उनकी पत्नी की हत्या की गई थी.

लुधियाना के पास डुगरी में एक छोटा सा मंदिर उस स्थान को दर्शाता है, जहां गायक अमर सिंह चमकीला का जन्म हुआ था | फोटो: टीना दास/दिप्रिंट
लुधियाना के पास डुगरी में एक छोटा सा मंदिर उस स्थान को दर्शाता है, जहां गायक अमर सिंह चमकीला का जन्म हुआ था | फोटो: टीना दास/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: इतिहास या प्रोपेगैंडा? ‘ग्रेट कलकत्ता किलिंग्स’ पर बनी हिंदी फिल्म को लेकर राइमा सेन को मिल रहीं धमकियां


वो गांव जहां उनकी हत्या हुई थी

लुधियाना से सिर्फ एक घंटे की दूरी पर मेहसामपुर गांव में गुरुद्वारे के सामने डॉ. भीमराव आंबेडकर की एक बड़ी मूर्ति खड़ी है. गांव वाले निर्देशकों, पत्रकारों, प्रभावशाली लोगों, प्रशंसकों और यूट्यूबर्स को अपना गांव दिखाने के आदी हैं.

एक स्थानीय गाइड ने कहा, “यही वो स्थान है जहां यह घटना घटी थी.” एक अन्य ग्रामीण ने कहा, “यह वो घर है, जहां चमकीला ने आखिरी बार खाना खाया था, जहां उन्होंने रोटी ठंडी होने की शिकायत की थी.”

गांव के चारों ओर के खेतों में गेहूं की पकी हुई फसलें लहलहा रही हैं. हर दूसरे घर के बाहर गुलाब की झाड़ियां खिली हुई हैं, लेकिन वहां कड़वाहट और अफसोस है — मेहसामपुर को हत्या वाले क्षेत्र के नाम से जाना जाता है.

लुधियाना के डुगरी में स्थित चमकीला का घर | फोटो: टीना दास/दिप्रिंट

8 मार्च 1988 को सुबह करीब 11 बजे चमकीला और अमरजोत एंबेसडर कार में लुधियाना से निकले. उन्हें गांव के एक परिवार ने एक शादी में अखाड़ा लगाने के लिए बुक किया था.

सिंह ने कहा, “मैं 15 साल का था और तब तक मैंने केवल चमकीला के गाने ही सुने थे. मैं उन्हें देखने जाने के लिए तैयार था और बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था. गांव एक शादी के लिए सजाया गया था.” सिंह ने आगे कहा कि वे कभी चमकीला को गाते हुए नहीं देख पाए.

नूरमहल थाने में दर्ज एफआईआर के अनुसार, बैंड दोपहर 2 बजे मेहसामपुर पहुंचा.

अपना दोपहर का भोजन समाप्त करने के बाद वे परफॉर्म करने के लिए अखाड़े की ओर चले गए. सबसे पहले गाड़ी से चमकीला बाहर निकले उसके बाद अमरजोत आईं. हालांकि, उत्सुक दर्शक और प्रशंसक स्टार के आगमन पर खुशी मना रहे थे.

हर किसी को स्कूटर पर पगड़ी पहने तीन लोग — जिनके चेहरे कपड़े से ढके हुए थे — बंदूकें लिए हुए — याद आ रहे थे और फिर उन्होंने गोलीबारी शुरू कर दी. कुछ ही मिनटों में स्तब्ध ग्रामीण चीखने-चिल्लाने लगे और खुद को बचाने के लिए खेतों में भागने लगे. हलवाई जलेबियां बना रहा था और पकौड़े तल रहा था, तभी लोग तेज़ी से उस जगह पर आ गए, इधर-उधर भागते हुए, उन तीन लोगों से जितना संभव हो सके दूर जाने की कोशिश कर रहे थे, जिन्होंने अभी-अभी चमकीला और अमरजोत को गोली मारी थी. तेल की कढ़ाई पलट गई, जिससे सभी पर गर्म तेल छिड़क गया, जिससे त्रासदी और बढ़ गई.

उस दिन चमकीला और अमरजोत समेत चार लोगों की मौत हुई. जांघ में गोली लगने के बाद बैंड सदस्य लाल चंद ने अपना ढोलक फेंक दिया और भाग गए.

जब तीनों हमलावर चले गए और दहशत कम हो गई, तो केवल शव, खून और एक गांव ही बचा था, जिसकी पहचान हमेशा के लिए बदल दी गई थी. मक्खन सिंह उन चार लोगों में से एक थे, जो चमकीला के शव को ट्रॉली पर रखकर 10 किलोमीटर दूर फिल्लौर ले गए थे.

सरपंच ने कहा, “हर कोई महीनों तक सदमे में था. कोई भी डर के मारे इकट्ठा नहीं हुआ और वे केवल काले दिन के बारे में बात कर रहे थे”

ग्रामीणों के मुताबिक, चमकीला और अमरजोत को बुलाने वाले परिवार ने इसके लिए खुद को जिम्मेदार ठहराया. कई लोगों ने भी उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया.

सिंह ने कहा, “इसके तुरंत बाद परिवार चला गया. खूब बदनामी हुई. वे यहां नहीं रह सके और उन्हें कनाडा पलायन करना पड़ा.”


यह भी पढ़ें: ‘बस्तर से अनुच्छेद 370’ तक — बॉलीवुड में प्रोपेगेंडा फिल्में BJP की ताकत को बढ़ा रही हैं


पंजाब की लोकप्रिय संस्कृति में

यह गायक की अत्यधिक लोकप्रियता का प्रमाण है कि फिल्म निर्माता उनकी ज़िंदगी पर आधारित कहानी को बनाने के लिए आकर्षित हुए हैं — दलित कथा, गाने, पृष्ठभूमि, अमरजोत के लिए अपनी पहली पत्नी को छोड़ने और मृत्यु के बारे में कहानियां, धमकी.

बायोपिक में दिलजीत यानी कि चमकीला मदद मांगने के लिए आयकर विभाग के अधिकारी स्वर्ण सिविया के पास जाते हैं, जब उन्हें ‘अश्लील’ गीतों को गाने से रोकने के लिए पत्र मिलने लगते हैं. उनका समाधान एक भक्ति एल्बम का निर्माण करना था.

सिविया ने यूट्यूब चैनल आरपीडी 24 पर एक इंटरव्यू में कहा, “वे चाहते थे कि मैं देखूं कि क्या वो पत्र सच हैं या कोई उन्हें बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहा है.” उन्होंने मुझे सभी धमकी भरे पत्र दिखाए. एक भिंडरावाले टाइगर फोर्स से था जिस पर रशपाल सिंह चंद्रा ने हस्ताक्षर किए थे. अन्य पत्र खालिस्तान कमांडो फोर्स और खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के थे.” सिविया, जो भक्ति एल्बम के गीतकार थे, ने स्वर्ण मंदिर में ‘खरकू सिंह’ की एक बैठक की स्थापना की.

उन्होंने बैठक को याद किया, “चमकीला ने हाथ जोड़कर माफी मांगी. उन्होंने कहा कि मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है, कृपया मुझे माफ कर दीजिए. उन्होंने (खरकू) कहा कि आप भगवान से माफी मांगिए और फिर हमसे बात कीजिए.”

नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म चमकीला की ज़िंदगी की कहानी को दिखाने वाली कोई पहली फिल्म नहीं है. फिल्म निर्देशक कबीर सिंह चौधरी और लेखक अक्षय सिंह ने चमकीला के हत्यारों पर शोध करने में एक साल बिताया, लेकिन निर्माता खुद गायक पर एक कहानी चाहते थे. इसलिए, उन्होंने मेहसामपुर (2018) बनाने का फैसला किया, जो 98 मिनट की एक फिल्म है, जो चमकीला की कहानी को ‘क्रैक’ करने की कोशिश कर रहे लोगों के बारे में एक डॉक्यूमेंट्री, फिक्शन और बायोपिक को एक साथ जोड़ती है. उन्होंने चमकीला के ढोलक वादक लाल चंद और जिस महिला के साथ वे अमरजोत से पहले गाते थे, सुरेंद्र सोनिया को भी फिल्म में अपना किरदार निभाने के लिए मना लिया.

यह कल्पना, वास्तविकता और चमकीला की किंवदंती का एक साथ आना था, जो फिल्म की लगभग अवास्तविक गुणवत्ता को बढ़ाता है, जिसमें असल फुटेज सीन, ब्लैक एंड व्हाइट व्यवस्था से बढ़ जाती है.

चौधरी बताते हैं, “मुझे याद है जब हम शूटिंग कर रहे थे, डबल हार्वेस्टर मेहसामपुर के खेतों में काम कर रहे थे, और वे चमकीला के गाने बजा रहे थे और यह एक पूर्ण चक्र जैसा महसूस हो रहा था.”

फिल्म का प्रीमियर 2018 सिडनी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में हुआ था और 2018 MAMI (मुंबई एकेडमी ऑफ मूविंग इमेज) फेस्टिवल में ग्रैंड जूरी अवॉर्ड जीता. इसने मोज़ेक इंटरनेशनल साउथ एशियन फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ साउंड डिजाइन और 2019 में डायोरमा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एडिटिंग अवॉर्ड भी जीता.

2022 में अभिनेत्री-निर्देशक दीपा राय ने पंजाबी फिल्म 22 चमकीला फॉरएवर रिलीज़ की, जिसके बाद जोड़ी (2023) आई, जो चमकीला और अमरजोत के बीच की प्रेम कहानी पर आधारित एक और पंजाबी भाषा की रोमांटिक फिल्म थी. संयोग से दिलजीत को गायक, अमर सिंह सितारा का किरदार निभाने के लिए चुना गया. सोनी लिव का चमक (2023) चमकीला के बेटे के अपने माता-पिता की मृत्यु के रहस्य को सुलझाने के लिए लौटने पर एक काल्पनिक कहानी है और पंजाब की म्यूज़िक इंडस्ट्री पर एक टिप्पणी है.

चमकीला कभी भी लोकप्रिय कल्पना से ओझल नहीं हुए और ऐसा इसलिए भी है क्योंकि इसका कोई समापन नहीं हुआ है. उनके किसी भी हत्यारे को गिरफ्तार नहीं किया गया. मामला आज तक अनसुलझा है.


यह भी पढ़ें: बिहार को मनोज बाजपेयी, पंकज त्रिपाठी पर गर्व है: अब पटना को NSD की तरह एक ड्रामा स्कूल भी मिलने जा रहा है


ज़मीनी अपील, विवादास्पद गीत

पंजाब की म्यूज़िक इंडस्ट्री के करोड़ों डॉलर की इंडस्ट्री बनने से पहले चमकीला की अपनी म्यूज़िक इंडस्ट्री थी, लेकिन चमकीला बनने से पहले, वे धनी राम थे, जिन्हें संगीत का शौक था और वे लुधियाना की एक होजरी की फैक्ट्री में काम करते थे.

कहानी यह है कि एक अखाड़े के दौरान सहायक का काम करते हुए उन्होंने प्रसिद्ध पंजाबी लोक गायक सुरिंदर शिंदा को प्रभावित किया. शिंदा ने उनके टैलेंट को पहचाना और उन्हें अपने ग्रुप में शामिल कर लिया, लेकिन जब उन्होंने गायिका सुरिंदर सोनिया के साथ साझेदारी की तो वे (चमकीला) स्टार बन गए. जब शिंदा कनाडा के दौरे पर थे, तब सोनिया और धनी राम ने ‘टकुए ते टकुआ खड़के’ एल्बम रिकॉर्ड की. यह हिट रही और अमर सिंह चमकीला का जन्म हुआ.

“लुधियाना के मॉडल टाउन में सोनिया का घर चमकीला और अन्य गायकों की मिलने की जगह हुआ करता था. सुरेंद्र सोनिया की बहू मीना सोनी ने बताया, 1980 के दशक की शुरुआत में कम से कम 50 लोगों की लगातार भीड़ के साथ यहां मजलिस लगा करती थी.

चमकीला के गानों में एक ज़बरदस्त अपील थी.

यही कारण है कि चमकीला की हत्या क्यों और किसने की, इसके बारे में सिद्धांत प्रचलित हैं. कुछ लोग कहते हैं कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने अमरजोत से शादी कर ली थी, जो ऊंची रामघरिया जाति से थीं. कुछ का कहना है कि यह एक प्रतिद्वंद्वी संगीतकार द्वारा करवाया गया काम था जो इस बात से परेशान थे कि लोग केवल चमकीला को सुनना चाहते थे.

गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर जगरूप सेखों ने कहा, “वे बमुश्किल से पढ़े-लिखे थे, लेकिन उनके पास रूढ़िवादी मानदंडों से परे, आधार स्तर पर कथा निर्माण, प्रतिनिधित्व और सामाजिक संबंधों को चित्रित करने का एक तरीका था. विशेष रूप से निम्न-मध्यम वर्ग, भैया भाभी के बीच और सामाजिक आलोचना की एक तीव्र केंद्रित आवाज़ थी.”

अब भी चमकीला के गाने Spotify पर लोकप्रिय हैं. 4 लाख से अधिक मंथली लिस्टनर के साथ, उनके शानदार वीडियोज़ भी हैं, जो 80 के दशक के वीसीआर निर्माताओं द्वारा यूट्यूब पर अपलोड किए गए थे. उनकी मृत्यु के बाद उनकी लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ी.

जिस चीज़ ने चमकीला को लोकप्रियता दिलाई, उससे उन्हें ईर्ष्या और मौत की धमकियां भी मिलीं. सेखों ने कहा, “अलगाववादियों की तरह आध्यात्मिक नेता भी उनसे नाराज़ थे, लेकिन वे दोनों को खुश करने के लिए गए थे और यहां तक कि स्वर्ण मंदिर में सिख आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले से भी मिले थे.”

36 साल बाद न तो इम्तियाज़ की फिल्म का, न शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों या यहां तक कि पुलिस के पास कोई जवाब है. थोड़े समय के लिए इससे पहले कि उन्हें चुप करा दिया जाता, चमकीला ने पंजाब को चकाचौंध कर दिया.

अपनी बायोपिक के साथ इम्तियाज़ अली ने चमकीला को पंजाब के विद्रोही काल से अपरिचित भारतीयों की एक नई पीढ़ी से परिचित कराया. कबीर सिंह चौधरी इस लहर पर सवार होकर अपने अगले प्रोडक्शन, लाल परी पर काम शुरू करना चाहते हैं.

उन्होंने कहा, “यह तीन हत्यारों में से एक के बारे में होगा, जो अभी भी ज़िंदा है. मेहसामपुर बनाने से पहले मैंने उनके साथ समय बिताया है.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: रक्तबीज और प्रधान से बोनबीबी तक-क्या फिल्में बंगाल में राजनीतिक विरोध की भूमिका निभा रही हैं?


 

share & View comments