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Tuesday, 19 November, 2024
होमफीचरबिहार के स्कूलों के लिए टीएन शेषन हैं IAS केके पाठक, क्या डर से सुधरेगी चरमराई शिक्षा व्यवस्था

बिहार के स्कूलों के लिए टीएन शेषन हैं IAS केके पाठक, क्या डर से सुधरेगी चरमराई शिक्षा व्यवस्था

शिक्षा के अपर मुख्य सचिव के रूप में पाठक के ‘अलोकतांत्रिक’ कदम बिहार में कुख्यात हैं. वे शिक्षकों को निलंबित करते हैं, सैलरी में कटौती करते हैं और अनुपस्थित स्टूडेंट्स के नाम भी काट देते हैं.

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पटना/वैशाली: 34 पुरुष और महिलाओं से भरे एक एसी रूम में लगातार फोन की घंटियां बजती रहती हैं और बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों से लगातार शिकायतें आती हैं — स्कूल में कोई टीचर नहीं हैं, मिड-डे मील देर से आता है, स्टूडेंट्स को उनकी वर्दी नहीं मिली है. अपनी कंप्यूटर स्क्रीन पर नज़र गड़ाए, वे सब कुछ पर नजर रखते हैं और बिहार की शिक्षा प्रणाली की कई दिक्कतों को दूर करते हैं. यह कोई कॉल सेंटर नहीं है, बल्कि पटना सचिवालय में राज्य शिक्षा विभाग का कमांड-एंड-कंट्रोल सेंटर है — जो आईएएस अधिकारी केशव कुमार पाठक की सोच का नतीज है..

पाठक बिहार के शिक्षा जगत के टीएन शेषन की तरह हैं. उनकी कड़क मिजाज़ छवि भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त की याद दिलाती है. उन्होंने छात्रों, शिक्षकों और स्कूल प्रशासकों के बीच भय का माहौल बना दिया है. चुनावी प्रणाली में शेषन की तरह, पाठक बिहार के स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता, उपस्थिति से लेकर पढ़ाई की स्थिति को बेहतर करना चाहते हैं.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पाठक को शिक्षा विभाग का अपर मुख्य सचिव (एसीएस) नियुक्त किए जाने के बाद से सात महीनों में 1990 बैच के आईएएस अधिकारी पर उग्र तरीकों और “अलोकतांत्रिक” दृष्टिकोण के बहुत सारे आरोप लगे हैं. उन्होंने शिक्षकों को निलंबित किया है, उनकी सैलरी में कटौती की है और यहां तक कि अनुपस्थिति के लिए बच्चों का स्कूल से नाम भी काट दिया है.

उन्होंने शिक्षकों को यूनियन बनाने से भी रोक दिया है, स्कूल के घंटों के दौरान कोचिंग कक्षाएं चलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, धार्मिक छुट्टियों की संख्या में कटौती की है, राज्य संचालित स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती के लिए डोमिसाइल की ज़रूरत को खत्म कर दिया, सचिवालय में कर्मचारियों के जींस और टी-शर्ट पहनने पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू किया और स्कूलों का समय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक बढ़ा दिया है जो कि पहले सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक था.

Patna secretariat command and control centre
केके पाठक ने बिहार की शिक्षा प्रणाली की निगरानी के लिए सितंबर 2023 में कमांड-एंड-कंट्रोल सेंटर की स्थापना की, जो कि पटना सचिवालय से संचालित होता है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

सरकार अब तक कई प्रोत्साहनों के साथ स्कूल में उपस्थिति बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. पाठक अब नामांकन और उपस्थिति स्थायी बनाना चाहते हैं, लेकिन बिना किसी शर्त के.

पाठक ने दिसंबर 2023 में नव नियुक्त शिक्षकों के एक समूह को संबोधित करते हुए कहा, “सरकार ने माता-पिता से कहा है कि अगर आप अपने बच्चे को भेजते हैं, तो हम उन्हें साइकिल, वर्दी, स्कॉलरशिप देंगे और उन्हें शिक्षित करेंगे, लेकिन देने के चक्कर में पढ़ाई पीछे छूट गई है. अगर हम बच्चों को नहीं पढ़ाएंगे, तो घर पर उन्हें पढ़ाने वाला कोई नहीं है.”

पाठक बिहार के मुख्यमंत्री के पसंदीदा नौकरशाहों में हैं, लेकिन उनके तरीके, जो नतीजों पर निर्भर हैं, ने उन्हें अपने ही शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के निशाने पर ला दिया है, जिन्होंने नीतीश से उनके काम करने के तरीके और उन्हें मिली खुली छूट के बारे में शिकायत भी की थी.

हालांकि, अन्य लोग पाठक को एक ज़रूरी परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में देखते हैं.

वह निडर हैं और उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि सरकार उन्हें हटा भी सकती है. वह एक फाइटर हैं और अब राज्य की जनता को भी लग रहा है कि वाकई कुछ हो रहा है, लेकिन उन्हें विवादित विषय चुनने से बचना चाहिए

-विजय शंकर दुबे, पूर्व मुख्य सचिव, बिहार

पाठक के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) रवि शंकर ने कहा, “हम शिक्षा प्रणाली को विकेंद्रीकृत करने की दिशा में काम कर रहे हैं.” कमांड-एंड-कंट्रोल सेंटर मुख्य केंद्र की तरह काम करता है. यह एक ग्रीवेंस रिड्रेसल सेंटर (शिकायत निवारण कक्ष) की तरह काम करता है, जिसमें रोज़ाना 250 से अधिक फोन कॉल्स आती हैं.

सेंटर का एक कर्मचारी अपने हेडफोन को संभालते हुए पूछता है, “आप कहां से फोन कर रहे हैं? यह कौन सा स्कूल है? टीचर कब से नहीं आ रहे हैं?”

शिकायत पूर्णिया जिले के एक सुदूर गांव के निवासी की है. टीचर की अनुपस्थिति अब सिस्टम में लॉग इन हो गई है, जिला अधिकारियों को सूचित किया जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. यह दो दिनों के भीतर हो जाएगा. कर्मचारी अगली कॉल पर जाने से पहले कॉल करने वाले को आश्वासन देता है.

राज्य के पूर्व मुख्य सचिव त्रिपुरारी शरण ने कहा, “बिहार में शिक्षा सुस्पतता व्यवस्था में है. इसे झकझोरने की ज़रूरत है और पाठक वही कर रहे हैं.”

बिहार की लड़खड़ाती शिक्षा व्यवस्था को सुधारना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. 2006 में लड़कियों को मुफ्त साइकिल देने के नीतीश कुमार के प्रोत्साहन को सराहा गया था और इसे छह अफ्रीकी देशों में अब तक अपनाया जा चुका है. बिहार के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में 60 प्रतिशत से कम उपस्थिति अभी भी राष्ट्रीय औसत लगभग 72 प्रतिशत से काफी कम है.


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पाठक थोड़े ‘ओल्ड स्कूल’ हैं

पाठक की कोई लोकप्रिय होने की चाहत नहीं है और वह न ही ऐसा चाहते हैं. शिक्षा विभाग में अपर मुख्य सचिव के रूप में नियुक्ति के बाद से उन्होंने एक भी इंटरव्यू नहीं दिया और जबकि कई आईएएस अधिकारी सोशल मीडिया सेलिब्रिटी बन रहे हैं, पाठक थोड़े पुरानी सोच (Old School) के व्यक्ति हैं. वह इंस्टाग्राम, फेसबुक और एक्स (ट्विटर) से दूर रहते हैं, लेकिन उनके कठोर तरीकों ने उन्हें वैसे भी बिहार में सोशल मीडिया सनसनी बना दिया है.

पाठक के स्कूल इंस्पेक्शन के दौरान, स्थानीय लोगों और पत्रकारों ने शिक्षकों को डांटते हुए उनके वीडियो रिकॉर्ड किए. ये क्लिप अक्सर वायरल होते रहते हैं, जिसमें अक्सर उन्हें गॉगल्स लगाए और गले में अपना आईडी कार्ड लटकाए दिखाया जाता है, इन वीडियो के कैप्शन होते हैं, “पाठक ने स्कूल के प्रिंसिपल की लगा दी क्लास” और “शिक्षक की भाषा सुन भड़क गए केके पाठक”.

KK Pathak
बिहार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक, अपना ट्रेडमार्क काला चश्मा पहने हुए एक स्कूल इंस्पेक्शन दौरे के दौरान कुछ कहते हुए | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

इंस्टाग्राम की एक वायरल रील में वर्दी पहने हुए पांच बच्चे स्कूल जाते हुए दिखाई दे रहे हैं, जिसका टाइटल है: “केके पाठक के खौफ से स्कूल जाना पड़ रहा है”. एक अन्य वीडियो में एक महिला टीचर पाठक की मुस्कान की तारीफ कर रही हैं, जिससे वह जोर से हंसने लगती है, लेकिन कई लोगों की मुस्कुराहट भी लड़खड़ा गई है.

आईएएस अधिकारी और उनकी टीम ने 14,248 शिक्षकों की लिस्ट बनाई, जिन्होंने कुछ दिनों से लेकर छह महीने तक की अनिर्धारित छुट्टी ली और 14,242 की सैलरी काटी गई है. यहां तक कि स्टूडेंट्स को भी नहीं बख्शा गया. संख्या बढ़ाने के अभियान के तहत, उन्होंने स्कूल नहीं आने के कारण 23.83 लाख छात्रों के नाम काट दिए. इनमें 2.66 लाख वो छात्र शामिल थे जो इस बार दसवीं और 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा देने वाले थे. दो सितंबर 2023 को एक अधिसूचना में उन्होंने जिला मजिस्ट्रेटों को लगातार 15 दिनों तक अनुपस्थित रहने वाले स्टूडेंट्स का स्कूल से नाम काटने का आदेश दिया. स्कूल अब रोज़ाना की अटेंडेंस जिला शिक्षा अधिकारी को भेजते हैं.

शिक्षक, जिन्हें अब स्कूल में पहले के मुकाबले ज्यादा समय गुजारना पड़ता है, पाठक के तरीकों को अलोकतांत्रिक बताते हैं, जबकि जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) गठबंधन के कुछ नेता पाठक के तरीकों को पब्लिसिटी स्टंट बताते हैं.

मुझे पाठक सर सख्त छवि के विपरीत लगे. उन्होंने मुझसे स्कूल की समस्याओं के बारे में पूछा और जाते-जाते मुझे छात्र विकास कोष खर्च करने की अनुमति दे दी

– कृष्णकांत, सेंदुआरी हाई स्कूल के प्राचार्य

हर कोई इस बात से सहमत नहीं है कि बिहार की शिक्षा प्रणाली को बल और भय का प्रयोग कर सुधारा जा सकता है. तब नहीं जब राज्य लंबे समय से योग्य शिक्षकों की कमी से जूझ रहा है. पिछले छह महीनों में 2 लाख से अधिक शिक्षकों को नौकरी दी गई है, लेकिन एक लाख से अधिक शिक्षकों को री-वेरीफाई किया जा रहा है. इसके अलावा कथित तौर पर खराब कामकाजी परिस्थितियों का हवाला देते हुए 150 से अधिक नए अध्यापक पहले ही नौकरी छोड़ चुके हैं. कई लोगों का कहना है कि पाठक की चौंकाने वाली रणनीति चीज़ों को अस्थायी रूप से हिला सकती है, लेकिन यह स्थायी प्रणालीगत सुधार लाने का तरीका नहीं है.

पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर ने कहा, “केके पाठक सिर्फ पैबंद लगाने का काम कर रहे हैं.” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विविधता और क्षेत्रों के हिसाब से राज्य को विचार करने की ज़रूरत है. दिवाकर ने कहा, “पाठक के पास संस्थागत बैकअप नहीं है.”

KK Pathak office
पटना सचिवालय में केके पाठक का ऑफिस | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

पाठक के काम करने के तरीके पर महागठबंधन सरकार के नेता भी सवाल उठा रहे हैं. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के विधायक संदीप सौरव ने कहा, “सरकारी स्कूलों में निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है. शिक्षकों को यूनियन न बनाने का आदेश संविधान के अनुच्छेद 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है.”

19 दिसंबर को बिहार विधान परिषद के 25 सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल पाठक की शिकायत करने के लिए राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर से मिला. इसके बाद राज्यपाल के प्रमुख सचिव ने राज्य के मुख्य सचिव को एक पत्र लिखा. पत्र में कहा गया, “वे (एमएलसी) आदेशों को असंवैधानिक, निरंकुश और साथ ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 194 के तहत उन्हें दिए गए विशेषाधिकारों का उल्लंघन मानते हैं.” हालांकि चिट्ठी में पाठक का नाम नहीं था.

फिर 27 दिसंबर को जेडीयू और गठबंधन दलों के एमएलसी के एक प्रतिनिधिमंडल ने नीतीश कुमार से मिलकर शिकायत की. जेडीयू एमएलसी वीरेंद्र नारायण यादव ने बताया, “स्कूल का समय पहले की तरह 10 से 4 बजे करने के लिए हम सभी ने सीएम से मुलाकात की और उन्होंने हमारी मांग मान ली.” लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक आदेश नहीं आया है.

यहां तक कि जेडीयू के भीतर पाठक के समर्थक भी उनके बड़बोलेपन को स्वीकार करते हैं. यादव ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि केके पाठक शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं और वह एक कमरे में बैठकर काम करने वाले व्यक्ति नहीं हैं लेकिन फैसला चर्चा के जरिए लिया जाना चाहिए.”


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शराबबंदी से लेकर शिक्षा तक

पाठक द्वारा व्यवहारिक कुशलता पर भरोसा करने या अहंकार को बढ़ावा देने से इंकार करने के परिणामस्वरूप एक सिविल सेवक के रूप में उनके 33 साल में कई तबादले हुए हैं. वह हरियाणा के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के कुख्यात ट्रांसफर रिकॉर्ड से बिल्कुल मेल नहीं खाते हैं, लेकिन पाठक भी कुछ कम नहीं हैं.

1968 में उत्तर प्रदेश के बलिया में जन्मे केशव कुमार पाठक जब आईएएस अधिकारी बने तो उन्होंने पारिवारिक परंपरा का पालन किया. उनके पिता, जीएस पाठक, बिहार में एक वरिष्ठ नौकरशाह थे, जो लघु जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव रहे हैं. जूनियर पाठक 1990 में तब अधिक प्रसिद्ध हुए जब बाढ़ के एसडीओ के रूप में उन्होंने बख्तियारपुर में नीतीश कुमार के पैतृक घर को तोड़ने का आदेश दिया क्योंकि यह राष्ट्रीय राजमार्ग पर था. हालांकि, तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने हस्तक्षेप किया और ध्वस्त किए जाने से पहले पाठक का तबादला कर दिया.

2005 में जब वे गोपालगंज के डीएम थे तब उन्होंने एक बार फिर खुद को सरकार से अलग पाया. इस बार उन्होंने लालू की पत्नी राबड़ी देवी को नाराज़ कर दिया. वह एक स्थानीय अस्पताल के बच्चों के वार्ड का उद्घाटन करने वाली थीं, लेकिन तारीखें तय नहीं हुईं और पाठक ने अस्पताल के एक सफाई कर्मचारी से वार्ड का उद्घाटन करवा दिया. 2016 में पाठक ने पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी को एक कानूनी नोटिस भेजा, जिसमें आरोप था कि सुशील ने शराबबंदी के मुद्दे पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की और निरंकुश और सनकी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया.

केके पाठक तुरंत फैसले लेने वाले अधिकारियों में से एक हैं. उन्होंने शराबबंदी को लेकर कानून का मसौदा तैयार किया. वह समय बर्बाद नहीं करते.

कृष्ण पासवान, संयुक्त आयुक्त, बिहार उत्पाद विभाग

लेकिन पाठक ने अपने कैरियर में अपने कामों के जरिए ख्याति पाई है. जब नीतीश कुमार ने 2016 में शराब पर प्रतिबंध लगाया, तो उन्होंने पाठक को मद्य निषेध, उत्पाद शुल्क और रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट का प्रमुख सचिव नियुक्त किया और उन्हें बिहार को ड्राई स्टेट बनाने की जिम्मेदारी सौंपी. एक साल में पाठक ने लाखों लोगों को हिरासत में लिया.

पाठक के साथ मिलकर काम करने वाले निषेध, उत्पाद शुल्क और रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट के संयुक्त आयुक्त कृष्ण पासवान ने कहा, “शराब माफिया के खिलाफ सुरक्षा के लिए उन्होंने अपने अधिकारियों को 9 मिमी पिस्तौल से लैस किया.” “केके पाठक तुरंत फैसले लेने वाले अधिकारियों में से एक हैं. उन्होंने शराबबंदी को लेकर कानून का मसौदा तैयार किया. वह समय बर्बाद नहीं करते.”

लेकिन गिरफ्तारी और हिरासत से राजनीतिक परिदृश्य खराब होने का खतरा था और पाठक 2017 में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए. वह 2021 में उत्पाद शुल्क विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में लौट आए. लेकिन अब वह बिल्कुल वहीं हैं जहां मुख्यमंत्री उन्हें चाहते हैं.

नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा, “केके पाठक जो कुछ भी कर रहे हैं, उन्हें नीतीश कुमार का पूरा समर्थन है.” राजद एमएलसी सुनील कुमार सिंह के अनुसार, मुख्यमंत्री अन्य दलों के राजनीतिक नेताओं और मंत्रियों को नियंत्रित करने के लिए पाठक जैसे नौकरशाहों का उपयोग करते हैं.

मुख्यमंत्री ने अभी तक पाठक पर लगाम नहीं लगाई है. नीतीश कुमार ने नवंबर में पटना के गांधी मैदान में शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरित करते हुए कहा, “वह अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन कुछ लोग उनके खिलाफ अल बल बोलते रहते हैं हैं.”

नवंबर में पटना के गांधी मैदान में नव नियुक्त शिक्षकों के नियुक्ति पत्र वितरण समारोह में नीतीश कुमार | फोटो: एक्स/@NitishKumar

अंजनी कुमार सिंह, जो पाठक के बॉस और बिहार के पूर्व मुख्य सचिव रह चुके हैं, आक्रामक पक्ष के बावजूद, उन्हें इस काम के लिए सबसे अच्छा व्यक्ति मानते हैं.

उन्होंने कहा, “यहां तक कि आईएएस लॉबी में भी उनके बारे में अलग-अलग राय है, लेकिन पाठक एक ऐसे अधिकारी हैं जो अपने रुख पर कायम रहते हैं. यही कारण है कि वह लंबे समय तक एक विभाग में टिक नहीं पाते हैं. उनका स्वभाव थोड़ा अधीर है.”


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इंस्पेक्शन राज

पटना के पास हाज़ीपुर के रजौली प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों को पाठक के अधीर पक्ष का प्रत्यक्ष अनुभव है. अगस्त में औचक निरीक्षण के बाद उन्होंने आदेश दिया कि उनका वेतन एक महीने के लिए रोक दिया जाए. एक टीचर ने कहा, “जब सर आये तो हमारे स्कूल का शौचालय बंद था. उन्होंने हमें बहुत डांटा.”

लेकिन ऐसा लगता है कि यह घटना बेहतरी के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ रही है. इंस्पेक्शन के बाद से स्कूल पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं. दिसंबर की एक कोहरे भरी सुबह में हाज़ीपुर के कम से कम चार स्कूलों में अटेंडेंस पूरी रही — जो कुछ महीने पहले तक दूर-दूर तक नहीं थी. कई प्रिंसिपल मानते हैं कि यह पाठक और उनके इंस्पेक्शन का डर है. जब भी कोई गाड़ी स्कूल में आती है, तो टीचर्स को लगता है कि आईएएस अधिकारी आ गए हैं.

Bihar school attendance graphic
चित्रण: प्रज्ञा घोष/दिप्रिंट

हाज़ीपुर के सेंदुआरी हाई स्कूल के प्रिंसिपल कृष्ण कांत ने अगस्त के एक दिन को याद किया जब पाठक अन्य अधिकारियों के साथ सुबह करीब दस बजे उनके स्कूल पहुंचे थे.

उन्होंने कहा, “जब स्कूल के मैदान में एक के बाद एक गाड़ियां घुसीं तो मैं हैरान रह गया और केके पाठक अचानक मेरे कमरे में आ गए.” लेकिन शीर्ष नौकरशाह के साथ उनकी बातचीत आंखें खोलने वाली थी.

कांत ने कहा, “मैंने पाया कि पाठक सर कड़क मिज़ाज़ के उलट हैं. उन्होंने मुझसे स्कूल की समस्याओं के बारे में पूछा और जाते समय उन्होंने मुझे छात्र विकास कोष को खर्च करने की अनुमति दे दी”. कुछ दिनों बाद स्कूल में दस कंप्यूटर भी लग गए.

सेंदुआरी हायर सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल कृष्ण कांत की स्कूल के दौरे के दौरान केके पाठक से उत्साहजनक मुलाकात हुई | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

अन्य स्कूलों में भी पाठक ने प्रिंसिपलों को बुनियादी ढांचे में सुधार पर इस फंड से पांच लाख रुपये तक खर्च करने की अनुमति दी है.

हालांकि, सेंदुआरी में एक अन्य स्कूल के दौरे ने एक दुर्भाग्यपूर्ण मोड़ ले लिया. पाठक ने फर्श पर बिखरे खेल के सामान को देखकर कथित तौर पर अपना आपा खो दिया और शिक्षकों को खूब फटकार लगाई, उन्हें सभी के सामने शर्मिंदा किया और बेवकूफ तक कहा.

पिछले सात महीनों में पाठक ने वैशाली, शिवहर और खगड़िया से लेकर बांका, सीतामढी और भागलपुर तक पूरे बिहार के सैकड़ों स्कूलों का दौरा किया है. उनकी औचक यात्राएं स्थानीय सुर्खियां बटोरने में कभी असफल नहीं होतीं — “नए साल में भी केके पाठक का चलेगा डंडा”, “केके पाठक का दिखा कड़क अंदाज़” और “कोचिंग में पढ़ने वाले शिक्षकों की अब खैर नहीं” इसके कुछ हालिया उदाहरण हैं.

उन्होंने दिसंबर के आखिरी सप्ताह में एक स्कूल में शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा, “मज़दूरों के बच्चे स्कूलों में पढ़ने आते हैं. यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि वे भी मज़दूर न बनें. अगर ऐसा होता है तो हम इसके लिए ज़िम्मेदार होंगे.”

पाठक के ओएसडी (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) रविशंकर ने दिप्रिंट को बताया कि पाठक की पहली प्राथमिकताओं में से एक निष्क्रिय पड़ चुकी निरीक्षण प्रणाली को दोबारा से जगाना था. उन्होंने कहा, दशकों तक किसी ने भी स्कूलों की निगरानी नहीं की, लेकिन अब एक ऐसी प्रणाली है जहां प्रत्येक स्कूल का इंस्पेक्शन स्थानीय जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा हर दो दिन में किया जाता है.

स्कूल के एक इंस्पेक्शन के दौरान आईएएस अधिकारी केके पाठक | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

पाठक का नाम बिहार में डर पैदा करता है, लेकिन यह आशा से भी जुड़ा है. असहाय, लेकिन महत्वाकांक्षी माता-पिता के लिए पाठक एक असफल शिक्षा प्रणाली का उत्तर हो सकते हैं.

हाजीपुर के एक मज़दूर सरयू सिंह ने कहा कि वह सरकारी स्कूल में जो बदलाव देख रहे हैं, उससे वह खुश हैं, जहां उनका बेटा राकेश छठी कक्षा में पढ़ता है.

उन्होंने कहा, “हम अपने बच्चों को निजी स्कूलों में कैसे भेज सकते हैं? हमें सरकारी स्कूलों से ही उम्मीद है, लेकिन वहां भी पढ़ाई नहीं होती थी, पर अब बदलाव आ गया है. उम्मीद है कि मेरा बच्चा भी पढ़ेगा.” 11-वर्षीय राकेश ने कहा कि वे स्कूल में पहले की तुलना में अधिक रेगुलर हैं. उन्होंने कहा, “पहले हम कभी-कभार आते थे, लेकिन पिछले कुछ महीनों में सख्ती बढ़ गई है और पढ़ाई भी होने लगी है, इसलिए अब हम हर रोज़ आते हैं.”


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सुधारों की ओर तेज़ी

बिहार की शिक्षा व्यवस्था में दरारें गहरी हैं. 1990 में जब लालू प्रसाद यादव पहली बार सीएम बने तो तीन दशक में आखिरी बार स्थायी शिक्षकों की भर्ती की गई. 2003-2004 में शिक्षकों की भर्ती पंचायत और नगरपालिका स्तर पर की गई, जिससे गुणवत्ता को लेकर चिंताएं पैदा हुईं.

डीएम दिवाकर ने कहा, “यह वो समय था जब राज्य में निजी स्कूल तेज़ी से बढ़ रहे थे, जो अब लगभग हर गांव में फैल गए हैं.” उन्होंने कहा कि कॉन्ट्रेक्ट पर भर्ती ने राज्य की स्कूल प्रणाली को “नष्ट” कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप शैक्षिक गुणवत्ता को काफी नुकसान पहुंचा है.

Bihar educational attainment graphic
चित्रण: प्रज्ञा घोष/दिप्रिंट

वर्तमान में कई छात्र पढ़ाई जारी रखने के लिए निजी कोचिंग संस्थानों पर निर्भर हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 12,761 कोचिंग संस्थान हैं, जिनमें 38 जिलों में 9.9 लाख से अधिक छात्र नामांकित हैं.

पाठक यह सब बदलने की कोशिश कर रहे हैं. उनके नेतृत्व में पिछले कुछ महीनों में बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) परीक्षाओं के माध्यम से 2 लाख से अधिक नए शिक्षकों की भर्ती की गई. दो जनवरी को उन्होंने एक आदेश जारी कर सभी जिला शिक्षा अधिकारियों से निजी कोचिंग संस्थानों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की सूची मांगी, ताकि उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सके.

अगर शिक्षक गांव में नहीं रह सकते तो उन्हें अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए. आपने परीक्षा पास करके अपनी मेरिट साबित की, अब अपनी निष्ठा साबित कीजिए

केके पाठक, मुजफ्फरपुर में नए शिक्षकों को संबोधित करते हुए

बिहार के पूर्व डीजीपी डीएन गौतम जो पाठक से तब मिले थे जब वह एक जूनियर अधिकारी थे, ने कहा, “बिहार में शिक्षा व्यवस्था बहुत पहले ही चरमरा गई थी, लेकिन ये अच्छा है कि अब कोई इसे सुधारने की कोशिश कर रहा है. पाठक एक डायनिमिक अधिकारी और ईमानदार व्यक्ति हैं.”

पाठक अब बिहार की एक बड़ी चुनौती — स्कूलों में बुनियादी ढांचे — की कमी का सामना कर रहे हैं. वे कक्षाओं के लिए पूर्वनिर्मित संरचनाएं बनाने, अधिक लाइब्रेरी बनाना और कंप्यूटर लिटरेसी में सुधार करना चाहते हैं.

जर्जर रजौली प्राथमिक विद्यालय जहां पाठक ने अगस्त 2023 में दो शिक्षकों को निलंबित कर दिया था | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कहां हैं, या उनका कार्यक्रम कितना व्यस्त है, पाठक अटेंडेंस, बुनियादी ढांचे, रिक्त पदों और अन्य समस्याओं पर चर्चा करने के लिए जिला शिक्षा अधिकारियों के साथ हर दिन दो वीडियो कॉन्फ्रेंस करते हैं.

लेकिन बिहार की शिक्षा समस्याओं को केवल इच्छाशक्ति के बल पर हल नहीं किया जा सकता है. पटना से लगभग 16 किलोमीटर दूर, सबलपुर का सरकारी मिडल स्कूल, राज्य की शिक्षा प्रणाली में बुनियादी ढांचे की कमी से लेकर शिक्षकों की कमी तक सभी गड़बड़ियों को उजागर करता है. यह पाठक के सुधारों में से एक के लिए भी तैयार नहीं था.

कक्षा 1-12 के 1,212 छात्रों के लिए केवल चार कमरों के साथ, कक्षाएं अलग-अलग पाली में होती थीं, लेकिन पाठक के स्कूल के समय को बदलने के फैसले के परिणामस्वरूप अराजकता पैदा हो गई जब सभी बच्चे एक ही समय पर आए.

सबलपुर मिडल स्कूल में पढ़ते हुए कुछ स्टूडेंट्स | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

इस स्कूल में पढ़ाने वाले दीपक कुमार ने कहा, “पहले दिन ही इतने सारे बच्चे पहुंच गए. जिला शिक्षा अधिकारी से पूछने के बाद ही स्कूल को पहले की तरह तीन अलग-अलग शिफ्टों में चलाने की अनुमति दी गई.”

शिक्षक भी केके पाठक के आदेशों से नाखुश हैं, जिसमें यूनियन बनाने और मीडिया से बातचीत पर प्रतिबंध भी शामिल है.

बिहार राज्य विद्यालय शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अमित विक्रम बिहार के उन 500 शिक्षकों में शामिल हैं, जिन्हें जुलाई में नई भर्ती नीति के विरोध में भाग लेने के बाद वेतन कटौती के साथ निलंबित कर दिया गया था. जो शिक्षक अभी भी निलंबित है, उन्होंने चेतावनी दी है कि “ज़मीन पर” असंतोष पनप रहा है.

उनके अनुसार, बुनियादी ढांचे की कमी सबसे बड़ी समस्या है, लेकिन पाठक इसके बजाय शिक्षकों को निशाना बना रहे हैं. उनका आरोप है कि 5,400 स्कूलों के पास अपनी इमारतें तक नहीं हैं और ज्यादातर स्कूलों में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) नियम ठीक से लागू नहीं हो रहे हैं.

उन्होंने कहा, “लेकिन शिक्षा विभाग, विशेषकर पाठक ने शिक्षकों के बारे में एक धारणा बनाई है और उसी आधार पर कार्रवाई की जा रही है. शिक्षा व्यवस्था में सुधार ज़रूरी है लेकिन अलोकतांत्रिक दृष्टिकोण लक्ष्य से पीछे ले जायेगा. राजनीतिक नुकसान भी झेलना पड़ सकत है.”


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सत्ता के गलियारों में चर्चा

पाठक के तरीकों ने भले ही शिक्षा प्रणाली को नींद से जगा दिया हो, लेकिन अब उनके काम करने के कठोर तरीके की व्यापक आलोचना से शुरुआती लाभ पर ग्रहण लग रहा है. यहां तक कि उनके समर्थक भी अब कहते हैं कि उनके दृष्टिकोण से कम रिटर्न मिल सकता है और बिहार के सत्ता के गलियारों में हंगामा बढ़ रहा है. पाठक के लिए उनके दोस्तों की एक ही सलाह है- ‘सावधानी’.

पाठक द्वारा जूनियर अधिकारियों को मौखिक रूप से गाली देने के कम से कम दो वीडियो सामने आए हैं, जिनमें से कई ने उन्हें बर्खास्त करने की मांग की है. ताज़ा विवाद इस हफ्ते तब खड़ा हुआ जब पटना के एक प्रमुख डॉक्टर और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने आरोप लगाया कि पाठक ने दिसंबर में उन्हें फोन किया और गाली गलौज की. घटना का एक कथित ऑडियो क्लिप अब वायरल हो रहा है और कुमार ने कहा है कि वे पाठक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे. कथित तौर पर आईएएस अधिकारी का गुस्सा डॉक्टर द्वारा सितंबर के एक इंटरव्यू में उन्हें “मानसिक रूप से असामान्य” और “पागल” बताए जाने से उपजा था.

बिहार के पूर्व मुख्य सचिव, विजय शंकर दुबे, आईएएस अधिकारी की “निडरता” की सराहना करते हैं, लेकिन सुझाव देते हैं कि इसमें कूटनीति का समावेश होना चाहिए.

दुबे ने कहा, “वह निडर हैं और उन्हें इसकी परवाह नहीं है कि सरकार उन्हें हटा सकती है. वह एक फाइटर हैं. और अब राज्य की जनता को भी लग रहा है कि वाकई कुछ हो रहा है, लेकिन उन्हें विवादित विषय चुनने से बचना चाहिए. प्रशासन लोगों की सेवा के लिए है न कि उपदेश देने के लिए. सभी को साथ लेकर चलना चाहिए.”

बिहार प्रशासनिक सेवा संघ (बीएएसए) भी उनकी बर्खास्तगी की मांग कर रहा है.

बीएएसए के महासचिव सुनील कुमार ने कहा, “उन्हें नियम-कायदों से ज्यादा लेना-देना नहीं है. वह खुद को कानून से ऊपर मानते हैं. वह विकृत दिमाग के व्यक्ति हैं.”

लेकिन पाठक इन आरोपों पर कम ही प्रतिक्रिया देते हैं. फिलहाल वह खाली पड़े पदों को भरने में व्यस्त हैं. अधिकांश नवनियुक्त शिक्षकों को गांव के स्कूलों में तैनाती दी जा रही है. पाठक ने रामबाग शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर में नवनियुक्त शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा, “अगर शिक्षक गांव में नहीं रह सकते, तो उन्हें अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए. आपने परीक्षा पास करके अपनी बुद्धिमत्ता साबित कर दी है, अब अपनी निष्ठा साबित कीजिए.” 13 जनवरी को सीएम नीतीश कुमार पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में 25 हज़ार नवनियुक्त शिक्षकों को ज्वाइनिंग लेटर बांटेंगे.

बांका जिले का महुआडीह प्राथमिक विद्यालय, जहां एक शिक्षिका सवित कुमारी कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को पढ़ाने की प्रभारी हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

इस बीच बांका जिले के महुआडीह गांव के एक साधारण से प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका सविता कुमारी मुट्ठी भर छात्रों को परिसर में खेलते हुए देख रही हैं. उनकी सह-शिक्षिका के मैटरनिटी लीव पर होने के कारण वह कक्षा 1-5 तक के छात्रों को शिक्षित करने की पूरी ज़िम्मेदारी अकेले ही उठा रही हैं.

पाठक के कुछ व्यापक बदलाव उनके स्कूल तक भी पहुंच गए हैं. इनमें अतिरिक्त कर्मचारी या बुनियादी ढांचा शामिल नहीं है, बल्कि जिला शिक्षा कार्यालय तक रोजाना जाकर रोज के कामों को दर्ज कराना है..

उन्होंने कहा, “अकेले सब कुछ संभालना बहुत मुश्किल काम है. मुझे पूरे दिन की डिटेल्स देने के लिए हर दिन कई किलोमीटर की यात्रा करके जिला शिक्षा अधिकारी के दफ्तर जाना पड़ता है.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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