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Thursday, 2 May, 2024
होमफीचर‘बिल्कुल भी भरोसा नहीं’ नीतीश सरकार के फैसले का विरोध क्यों कर रहे हैं बिहार के लाखों शिक्षक

‘बिल्कुल भी भरोसा नहीं’ नीतीश सरकार के फैसले का विरोध क्यों कर रहे हैं बिहार के लाखों शिक्षक

नीतीश कुमार ने 2006 में शुरू की गई शिक्षक भर्ती प्रणाली को खत्म कर दिया है. बिहार STET पास करके नियुक्ति पत्र की राह देखने वालों को अब BPSC की परीक्षा देनी होगी.

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पटना: राजीव रंजन रविवार सुबह 5 बजे पटना की अपनी 150 किलोमीटर लंबी ट्रेन यात्रा करने के लिए मोतिहारी स्थित अपने घर से निकले. इस यात्रा में वे अकेले नहीं थे बल्कि उनके शहर से करीब 15 और लोग उनके साथ थे. वो सभी नीतीश कुमार द्वारा किए गए उस वादे के खिलाफ लड़ाई लड़ने जा रहे थे जो शिक्षकों के लिए निकालने का उन्होंने वादा किया था.

2021 में बिहार राज्य शिक्षक पात्रता परीक्षा (एसटीईटी) पास करने के बावजूद राजीव की अभी तक नियुक्ति नहीं हुई है.

16 अप्रैल को पटना के गर्दनीबाग में दिन भर के धरने में शामिल रहे रंजन ने कहा, “हम नियुक्ति पत्र की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन अब हमें फिर से परीक्षा देने के लिए कहा जा रहा है.”

हालांकि, यह सिर्फ राजीव की कहानी नहीं है बल्कि उनके जैसे लगभग 80,000 अन्य शिक्षकों को भी दोबारा परीक्षा देनी होगी, जो अब बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) द्वारा आयोजित की जाएगी.

पटना के गर्दनीबाग इलाके में रविवार को एक दिवसीय धरना प्रदर्शन करते शिक्षक व अभ्यर्थी | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

बिहार में पंचायती राज संस्थाओं द्वारा बिना किसी टेस्ट के नियुक्त किए गए करीब 3.5 लाख शिक्षकों को भी सरकारी कर्मचारी का दर्जा चाहिए तो उन्हें दोबारा परीक्षा देनी होगी. 10 अप्रैल को नीतीश कुमार सरकार ने 2006 में उनके द्वारा शुरू की गई प्रणाली को खत्म करके और बिहार राज्य विद्यालय शिक्षक (नियुक्ति, स्थानांतरण, अनुशासनात्मक कार्यवाही और सेवा शर्तें) नियम 2023 को मंजूरी देकर राज्य के शिक्षकों और उम्मीदवारों को झटका दिया, जिसके तहत केंद्रीय टीईटी पास करने वालों को भी दोबारा परीक्षा देनी होगी.

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भर्ती प्रक्रिया में भारी “सुधार” करने के फैसले ने बिहार के कोने-कोने से शिक्षकों को सड़कों पर ला दिया है, जिससे 15 अप्रैल से शुरू हुए जातिगत जनगणना के दूसरे चरण पर भी प्रभाव पड़ा है. गणनाकर्णियों के रूप में शामिल शिक्षकों ने इसका बहिष्कार करने की धमकी दी है, यहां तक कि राज्य सरकार ने दोहराया भी है कि यह एक विकल्प नहीं था. यह जनता दल यूनाईटेड- राष्ट्रीय जनता दल- कांग्रेस-वाम मोर्चा पार्टियों के महागठबंधन में दरार पैदा कर रहा है.

रंजन ने कहा, “हमें दिसंबर में सड़कों पर पीटा गया था.” सैकड़ों शिक्षकों ने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया और अपने वादों को पूरा करने में विफल रहने के लिए सीएम और राजद के खिलाफ नारे लगाए.

लेकिन नीतीश कुमार ने दो टूक कहा है कि नए नियमों में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.

14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती के मौके पर अपने पार्टी कार्यालय में आयोजित एक समारोह में उन्होंने कहा, “इस साल दो लाख से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी और उन्हें राज्य सरकार के कर्मचारियों का दर्जा मिलेगा.” नए नियमों के तहत 2024 में एक लाख और शिक्षकों की भर्ती की जाएगी.

लंबा इंतज़ार और लंबा हो रहा

रंजन पिछले कुछ सालों में शिक्षकों के लगभग हर आंदोलन का हिस्सा रहे हैं. वे सम्मान और नौकरी की सुरक्षा के लिए लड़ रहे हैं. रंजन के परिवार में आठ सदस्य हैं जो पूरी तरह से खेती पर निर्भर हैं.

पटना में रविवार को अधिकतम तापमान 43 डिग्री सेल्सियस था, लेकिन प्रदर्शनकारी टस से मस नहीं हुए.

मोतिहारी के एक अन्य उम्मीदवार 28-वर्षीय मनोज कुमार भी अपने नियुक्ति पत्र का इंतज़ार कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “हम में से अधिकांश ने तीन या चार पेपर पास किए हैं. अब जब नियुक्ति का समय आ गया है, तो हमें एक और पेपर देने के लिए कहा जा रहा है.”

नए नियम के तहत नियोजित शिक्षकों (2006 से नियुक्त) को बीपीएससी परीक्षा पास करने और सरकारी शिक्षक बनने के लिए तीन मौके मिलेंगे. यदि वे परीक्षा नहीं दे पाते हैं या असफल हो जाते हैं, तो उनकी वर्तमान स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.

रविवार के विरोध में शामिल होने के लिए नालंदा से बस यात्रा कर यहां पहुंचीं 26-वर्षीय प्रियंका ने 2021 में एसटीईटी 2019 दिया था – पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद इसे पहले स्थगित कर दिया गया था और फिर पेपर लीक के कारण रद्द कर दिया गया था.

उन्होंने कहा, “पिछले चार सालों से हम नौकरी को लेकर चिंतित हैं और अब इस नए नियम से सारी उम्मीदें टूट गई हैं.”

राजीव रंजन (बाएं) और मनोज कुमार (दाएं), बिहार के मोतिहारी जिले के उम्मीदवार, जिन्होंने 2021 में STET पास किया था, लेकिन नियुक्ति पत्र का इंतज़ार कर रहे हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

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गठबंधन के साथी चिंतित

शिक्षक बिना शर्त सरकारी कर्मचारी का दर्जा चाहते हैं. बिहार में 20 से अधिक शिक्षक संघ एक एकीकृत निकाय के तौर पर एकजुट हुए हैं और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं. पिछले हफ्ते हज़ारों लोगों ने राजद के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया था.

टीईटी-एसटीईटी उत्तर नियोजित शिक्षक संघ के प्रदेश महासचिव सैयद शाकिर इमाम ने इसे विश्वासघात बताते हुए चेतावनी दी कि अगर उनकी (शिक्षकों) मांगें नहीं मानी गईं तो इस महीने के अंत तक पटना में शिक्षकों का महासम्मेलन आयोजित किया जाएगा.

इन नए नियमों से जदयू के सहयोगी दलों में भी असंतोष पैदा हो गया है.

बिहार शिक्षक संघर्ष मोर्चा के संयोजक सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) के पालीगंज विधायक संदीप सौरव ने कहा, “राज्य सरकार का यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि इन शिक्षकों को नीतीश कुमार सरकार के दौरान बहाल किया गया था और अब उन्हें फिर से परीक्षा देने के लिए कहना पूरी तरह से अन्याय है. यह स्कूलों के भीतर के लोकतंत्र को प्रभावित करेगा.”

सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) बिहार में सात दलों की गठबंधन सरकार का हिस्सा है, लेकिन इसके सदस्यों का दावा है कि महागठबंधन में उनके विचारों को ध्यान में नहीं रखा गया है.

सौरव ने कहा, “हम एक समन्वय समिति की मांग कर रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार गठबंधन सहयोगियों की राय नहीं लेते हैं. शिक्षकों के हित में हम गठबंधन के नेताओं से मिलेंगे और मिलकर इस फैसले का विरोध करेंगे.”

दिप्रिंट ने राज्य के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर से फोन के जरिए संपर्क की कोशिश की, लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी. हालांकि, उनका जवाब आने के बाद इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.

राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि सरकार स्वास्थ्य और शिक्षा से कोई समझौता नहीं करेगी.

उन्होंने कहा, “शिक्षकों को खुश होना चाहिए क्योंकि नए नियम उनके हित में हैं. जो सक्षम हैं वे इस परीक्षा को आसानी से पास कर लेंगे. उन्हें डरना नहीं चाहिए बल्कि इस मौके का फायदा उठाना चाहिए.”

पटना के गर्दनीबाग इलाके में रविवार को एक दिवसीय धरना प्रदर्शन करते शिक्षक व अभ्यर्थी | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

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वादा किया, टूटा भरोसा

2005 में जब नीतीश कुमार सीएम बने तो उन्होंने बिहार में बड़े पैमाने पर शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की. हालांकि, यह पंचायती राज स्तर पर किया गया था, जिसमें मुखिया के माध्यम से ‘डिग्री दिखाओ नौकरी पाओ’ योजना के तहत भर्तियां की गईं थीं.

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अपने घोषणापत्र में राजद ने उन शिक्षकों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने का वादा किया था.

पिछले 20 वर्षों से कैमूर के एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने वाले प्रवीण कुमार (44) ने कहा, “हम पदोन्नति की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन सरकार ने हमें अभ्यर्थी (उम्मीदवार) बना दिया.” कुमार को 2003 में शिक्षा मित्र के रूप में बहाल किया गया और नीतीश कुमार के सत्ता में आने पर उन्हें नियोजित किया गया.

लेकिन बिहार शिक्षा विभाग के अधिकारी भी वहीं स्पष्टीकरण दे रहे हैं जो सरकार दे रही है कि नियुक्त शिक्षकों में गुणवत्ता में कमी पाई गई.

नाम न छापने की शर्त पर एक शिक्षा अधिकारी ने कहा, “भर्ती प्रक्रिया में कई खामियां थीं. इसलिए, नए नियमों के तहत बीपीएससी उन परीक्षाओं का आयोजन करेगा जो अधिक पारदर्शी होंगी और शिक्षकों की गुणवत्ता भी बेहतर होगी.”

पिछले कुछ वर्षों में बिहार में सरकारी शिक्षा की गुणवत्ता पर कई सवाल उठते रहे हैं.

अनुग्रह नारायण (एएन) कॉलेज में हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर कलानाथ मिश्रा ने कहा कि व्यवस्था धीरे-धीरे खराब होती चली गई. उन्होंने कहा, “जिन छात्रों के हाथों में स्लेट हुआ करती थी, उनके हाथों में अब थाली और बाटी नज़र आते हैं.”

उनके अनुसार, पिछली भर्ती प्रक्रिया उन उम्मीदवारों को बाहर करने में विफल रही है जिनके पास पढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कौशल नहीं है.

मिश्रा सरकार के नए नियम का समर्थन करते हुए कहते हैं, “शिक्षकों की भर्ती में पारदर्शिता की ज़रूरत है, जो बीपीएससी परीक्षा आयोजित करने पर होगा.”

राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी इस मसले पर सरकार को घेरा है.

वैशाली में एक जन सुराज यात्रा में उन्होंने कहा, “बीपीएससी 4 लाख शिक्षकों की परीक्षा कैसे लेगा? बीपीएससी के पास संसाधनों की कमी है. पेपर कौन चेक करेगा? कोई भी समझ सकता है कि सरकार यहां क्या करने की कोशिश कर रही है.”

एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल इमान ने नीतीश कुमार सरकार पर “शिक्षा नीति को बर्बाद करने” का आरोप लगाया और संदेह व्यक्त किया कि बीपीएससी प्रश्नपत्र लीक के इतिहास वाले राज्य में इतनी बड़ी संख्या में उम्मीदवारों की परीक्षा आयोजित कैसे की जाएगी.

उन्होंने कहा, “सुधार की ज़रूरत है लेकिन इसे धीरे-धीरे किया जाना चाहिए. यदि आप इसे तुरंत करते हैं, तो प्रदर्शन तो होंगे ही.”

इस बीच जाति जनगणना के दूसरे चरण की जिम्मेदारी ज्यादातर नियोजित शिक्षकों को ही दी गई है, लेकिन वे इसका बहिष्कार करने की धमकी दे रहे हैं.

कैमूर और गया के शिक्षक संघ ने भी 12 अप्रैल को जिलाधिकारी को पत्र जारी कर कहा कि वे गैर-शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगेंगे और जाति जनगणना का बहिष्कार करेंगे.

शाकिर इमाम ने कहा, “हम जनगणना का बहिष्कार नहीं करना चाहते, लेकिन सरकार हमें मजबूर कर रही है.”

रंजन जैसे लोगों का भरोसा अब पूरी तरह से टूट चुका है. उन्होंने कहा, “सरकार की कथनी और करनी में फर्क है. हमें अब उन पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं है.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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