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Friday, 22 November, 2024
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नदियां किसी की बपौती नहीं होती, इन पर मालिकाना हक नहीं हो सकता

भारत ने मात्र 0.53 मिलियन एकड़ फीट पानी को रोका है जोकि मामूली है और ये तीनों नदियों का पानी समझौते के अनुसार भारत ही उपयोग करता रहा है.

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चुनावी माहौल है इसलिए हर नेता खुद को पाकिस्तान विरोधी योद्धा के रूप में दिखाने की कोशिश में जुटा है. जल-संसाधन राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल ने दावा किया, भारत ने तीन नदियों रावी, व्यास और सतलज का पानी रोक दिया.

इससे हड़बड़ाए पाकिस्तान ने भी इंटरनेशनल कोर्ट फॉर आर्बिट्रेशन में जाने की धमकी दी. वास्तविकता यह है कि भारत ने मात्र 0.53 मिलियन एकड़ फीट पानी को रोका है जोकि मामूली है और ये तीनों नदियों का पानी समझौते के अनुसार भारत ही उपयोग करता रहा है. लेकिन माहौल ऐसा बनाया जा रहा है मानो भारत ने संधि ही तोड़ दी है.

चुनावी माहौल में तिल को ताड़ की तरह दिखाना आसान होता है क्योंकि जब तक आप सवाल उठाएंगे कोई दूसरा दावा सामने आ चुका होगा. इससे पहले गंगा सरंक्षण मंत्री नितिन गडकरी ने सिंधु के जल को रोकने का इरादा जताया, ताकि पाकिस्तान में त्राहीमाम मच जाए. मंत्रियों की इन मासूम घोषणाओं पर चर्चा करने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि यह सिंधु नदी जल समझौता है क्या?


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यहां सिंधु नदी का मतलब एकमात्र नदी नहीं है बल्कि पांच अन्य नदियों को मिलाकर यह सिंधु नदी समझौता है. कुल छह नदियों को तीन–तीन भाग में बांटा गया है. पूर्व में सतलज, ब्यास और रावी तथा पश्चिम में झेलम, चिनाब और सिंधु. इनमें से पूर्वी नदियों का पानी भारत इस्तेमाल करता है और पश्चिमी नदियों का पाकिस्तान. चूंकि नदियां भारत से होकर बहती है इसलिए इन पश्चिमी धाराओं पर भी भारत के कुछ सीमित अधिकार तय किए गए हैं. भारत ने अब तक बड़प्पन दिखाते हुए अपने इन अधिकारों का प्रयोग नहीं किया और मोटे तौर पर झेलम, चिनाब और सिंधु का पूरा पानी पाकिस्तान उपयोग में लाता है. बेशक सिंधु नदी जल समझौता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब तक का सर्वाधिक उदार समझौता माना जाता है. यह एकमात्र संधि है जिसमें ऊपरी धारा के देश ने निचली धारा के देश को अस्सी फीसद से ज्यादा पानी दे दिया.

अब गंगा मंत्री अपने इसी सीमित अधिकार को असीमित तरीके से करने का माहौल बना रहे हैं. सरकार ने ऐसा करने के स्पष्ट संकेत भी दिए है. लेकिन समझौते को रद्द करना लगभग असंभव है यदि सरकार ने सिंधु का पानी रोक दिया तो क्या वह इस पानी को रातों रात दूसरी नदियों में शिफ्ट कर देगी या उस पर बड़े-बड़े डैम बनाकर बिजली उत्पादन किया जाने लगेगा, यह एक मज़ाक लगता है.

हकीकत यह है कि विश्व में कहीं भी ऊपरी हिस्सें में मौजूद राष्ट्र की नदी नीति निचले इलाके में कहर बरपाती आई है, भारत अक्सर मानसून के दौरान ज़रूरत से ज़्यादा पानी छोड़ता है, जो सिंधु और उसकी सहायक नदियों के नीचे बसे पाकिस्तान और गंगा के निचले हिस्सें में मौजूद बांग्लादेश में बाढ़ का सबब बनता है, यही काम चीन हमारे साथ करता है और बांग्लादेश अपने नीचे मौजूद म्यांमार को हैरान किए रहता है, इसी तरह पाकिस्तान के अनियंत्रित बहाव का शिकार कई बार अफगानिस्तान हो चुका है. यह एक ऐसी चेन है जिस पर राष्ट्रों का नियंत्रण नहीं है, नदियों ने राष्ट्र की सीमाओं को देखकर जन्म नहीं लिया बल्कि नदियों के किनारे सभ्यताओं ने जन्म लिया है यह इंसान का घंमड है जो उससे कहलवाता है कि अमुक नदी पर उसका नियंत्रण है.

भौगोलिक रूप से चीन का स्थान भारत से ऊपर है. दो साल पहले यह खबर तेज़ी से फैली कि ब्रह्मपुत्र की एक धारा जियाबुकु पर चीन बांध बना रहा है. वह पूरी ब्रह्मपुत्र को रोक देगा और चाहे जब बांध के गेट खोल भारत में तबाही मचा सकता है. वास्तव में चीन के बांध बनाने से ब्रह्मपुत्र के बहाव में बेहद मामूली फर्क आएगा. दरअसल ब्रह्मपुत्र में मिलने वाली सभी छोटी मोटी धाराओं को जोड़ा जाए तो उनकी संख्या करीब तीन सौ बैठेगी. तेज ढलान, सहायक नदियों का बहाव, टेढ़ी-मेढ़ी घाटियां ये सब मिलकर ब्रह्मपुत्र को एक तेज बहाव वाला नद बना देते हैं. वह समुद्र में सर्वाधिक पानी लेकर मिलने वाली नदियों में शीर्ष पर है.

वास्तव में इस तरह के पचास बांध भी यदि चीन बनाता है तो पानी की उपलब्धता के लिहाज से भारत पर उसका मामूली असर होगा क्योंकि ब्रह्मपुत्र अपने उद्गम से ही डेल्टा जैसी विविधता पैदा करता है उसके बहाव को स्थाई रूप से रोका नहीं जा सकता. ऊपर बांध बन जाने से ये खतरा ज़रूर है कि चीन जब चाहे अरुणाचल प्रदेश, असम और उत्तरी बंगाल में बाढ़ के हालात पैदा कर सकता है.

ऊपरी धारा से निचली धारा को खतरा हर जगह है. भारत भी अरुणाचल में कई बांध बना रहा है ये नदियां सीधे तौर ब्रह्मपुत्र की ही सहायक धाराएं हैं और इन बांधों के कारण भारत बांग्लादेश में बहने वाली जमुना(बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र का नाम) के किनारों पर खतरा पैदा कर सकता है.


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सिंधु घाटी को लेकर वैसे भी तनाव बना ही रहता है. पाकिस्तान अमूमन भारत की सभी जलविद्युत परियोजनाओं पाकल, रातले, किशनगंगा, मियार और ओलर कलनाई की शिकायत अंतराष्ट्रीय न्यायालय में कर चुका है. किशनगंगा पर फैसला भारत के पक्ष में आने के बावजूद उसमें पाकिस्तान के हितों का पूरा ध्यान रखा गया है.

सिंधु के मामले में भारत 3.6 मिलियन एकड़ फीट पानी का उपयोग अपने सिंचाई के लिए कर सकता है और यही एकमात्र कदम है जो कुछ हद तक व्यावहारिक है और जिसका पाकिस्तान पर सीधा असर पड़ेगा. जिन तीन नदियों का थोड़ा सा पानी रोका गया है उन्हे लेकर भी पाकिस्तान इंटरनेशनल कोर्ट फॉर आर्बिट्रेशन में जाने की तैयारी कर रहा है. इसी तनाव में भारत का इसी महीने होने वाला सिंधु घाटी दौरा भी रद्द हो गया है.

सत्ता की यह सोच ही चिंता का विषय है कि इन छह नदियों का पानी बहकर पाकिस्तान चला जाता है. वास्तव में यह पानी पाकिस्तान चला नहीं जाता. यह नदियां वहां भी बहती है जैसी कि हिंदुस्तान में बहती है. नदी किसी की बपौती नहीं होती. उसके साथ मालिकाना व्यवहार नहीं किया जा सकता.

नदी सिंधु को तोड़ा नहीं जा सकता यह अनिवार्य जल युद्ध की ओर एक कदम होगा. यह नहीं भूलना चाहिए कि ज़्यादातर नदियां हिमालय से निकलती है और हिमालय के अधिकांश भाग पर चीन और नेपाल का नियंत्रण हैं.

नदी संधि को तोड़ना कोई चौड़ी छाती का विषय नहीं है. नदी कोई हथियार भी नहीं है जिसे हमले के लिए उपयोग किया जाए. नदी एक पूरी जैव विविधता को लेकर चलने वाली जीवित इकाई है. उसे छेड़ने पर वह खुद सर्जिकल स्ट्राइक करती है. पिछला सर्जिकल स्ट्राइक 2013 में केदारनाथ में हुआ था. शवों की गिनती नहीं कर पाए थे हम लोग और मलबे के ऊपर ही सड़क बना दी. नदी जब सर्जिकल स्ट्राइक करती है तो धर्म, देश सीमा और मंदिर देखकर नहीं करती.

(अभय मिश्रा लेखक और पत्रकार हैं.)

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