‘रात के 9 बजे हैं. सिया के पास ‘ड्रिंक’ करने के लिए बहुत कुछ है क्योंकि वह फिलहाल अपनी ही बैचलर पार्टी में है. वह बहुत खुश है. और हो भी क्यों नहीं? कल उसका बड़ा दिन है. वह उस शख्स के साथ शादी करने जा रही जिससे वह बेहद प्यार करती है. वह शराब पीकर घर आती है.’ कुछ इस तरह से प्रतीक्षा त्रिपाठी की एक लंबी चौड़ी रोमांटिक लव स्टोरी ‘अनोखी शादी दिल की आवाज़’ की शुरुआत होती है. 276 पेजों की इस स्टोरी को सेल्फ-पब्लिशिंग और ऑडियो-बुक प्लेटफॉर्म प्रतिलिपि पर 16.6 मिलियन बार पढ़ा जा चुका है.
‘प्रतिलिपि’ को बेंगलुरु से 2014 में शुरू किया गया था. आज यह आठ लाख लेखकों और 2.5 करोड़ मासिक पाठकों का ठिकाना है. ये ऑनलाइन प्लेटफार्म उन तमाम महत्वाकांक्षी युवा लेखकों के लिए एक ऐसी जगह है जहां वो पब्लिशिंग हाऊस के चक्कर लगाए बिना अपनी रचनात्मकता को पाठकों तक पहुंचा सकते हैं. यहां आपको 12 भाषाओं और शैलियों की एक बड़ी संख्या में साहित्य मिल जाएगा. ऐतिहासिक कहानियों से लेकर पौराणिक कथाओं और फिक्शन से लेकर इरोटिका तक- सब कुछ इस मंच पर मौजूद है. अगर आंकड़ों को देखें तो यह मंच मुख्य रूप से महिला लेखकों और पाठकों के लिए एक सुरक्षित जगह बन गया है. हिंदी, मलयालम, बंगाली और मराठी भाषी किताबों में खासा उछाल आया है. पिछले महीने, इसके टॉप टेन लेखकों में शुमार सभी महिलाएं थीं.
13 सालों तक फिजियोथेरेपिस्ट पेशे से जुड़ी रही प्रतीक्षा ने जब ‘प्रतिलिपि’ पर फुल टाइम लेखक बनने के बारे में सोचा तो उनकी जिंदगी ने 180 डिग्री का मोड़ ले लिया. उन्होंने कहा, ‘मैंने इसे फुल टाईम प्रोफेशन बनाने के बारे में कभी नहीं सोचा था.’ लेकिन जब एक महामारी ने आपको महीनों तक घर पर रहने के लिए मजबूर कर दिया हो तो फिर आपको अपने जीवन में कुछ नया करने के लिए मिल ही जाता है.
आप अच्छे से जानते हैं कि यहां आपको क्या मिल रहा है- बहुत सारा सेलसियस फन और अच्छे लेखक होने का कोई दिखावा भी नहीं. अच्छे लेखन की परिभाषा भी धीरे-धीरे बदल रही है – पिरामिड के टॉप पर पहुंचने के लिए किसी बनावटी लेखन या फिर किसी विशेष लेखन की जरूरत नहीं है. प्रतीक्षा कहती हैं, ‘लोग सामान्य बातचीत पढ़ना चाहते हैं. वे साहित्य में घुसना नहीं चाहते हैं. आपके पास भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता होनी चाहिए.’
वह लव स्टोरी लिखती हैं. शायद इसलिए, क्योंकि उन्हें यही पढ़ना पसंद है.
प्रतिलिपि पर मलयालम में लिखने वाले 32 साल की राजी पीवी ‘प्रतिलिपि’ पर आने वाले पाठकों के ‘प्यार’ की ओर झुकाव से सहमत हैं. हालांकि उन्होंने कई विषयों पर लिखा है- हास्य से लेकर सच्ची अपराधी कहानियों तक. वह कहती हैं, ‘लोग सुखद अंत पसंद करते हैं.’
वह कहती हैं लेकिन उन्हें ब्राउन भी पसंद है. राजी की ‘विदाउट नोइंग’ को 1.5 मिलियन बार पढ़ा जा चुका है. उनकी ये कहानी कुछ यूं चलती है- ‘चूंकि वह नीचे नहीं पहुंच सकी, उसने धीरे से अपनी आंखें खोलीं. पहली चीज जिस पर उसका ध्यान गया, वो थीं उसकी दो शरारती भूरी आंखें. फिर एक रुद्राक्ष के साथ सोने की माला. उसने उस शख्स को अच्छे से ताड़ा. वह लगभग छह फीट लंबा था. वह मोटा था. उनके पास एक गठीला शरीर और एक शरारती चेहरा था. मोटी मूंछें और ठुड्डी. उसने अपने होठों के बीच मुस्कान छिपा रखी थी.’
स्व-प्रकाशन और जवाबदेही
‘अच्छा साहित्य क्या है और कसा हुआ संपादन कितना जरूरी है’, इस पर कितनी ही बहस क्यों न हो, लेकिन फिर भी इसमें दर्शकों के महत्व को बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया सकता है. इस मंच पर लेखकों को उनके पाठक खुद से सीधे जवाबदेह ठहरा देते हैं. ऐप पर रिव्यू-फीचर एक ऐसा हथियार है जिसे बेरोक-टोक चलाया जाता है. राजी अपने पाठकों को अच्छी तरह से जानती हैं, क्योंकि वे उन्हें बेबाकी से अपनी राय और प्रतिक्रिया देते हैं. उनकी कहानियों में से एक का अंतिम भाग, जिसे वह एक शिक्षक की पारिवारिक ‘नैतिक’ कहानी के रूप में संदर्भित करती है, की एक हजार से अधिक समीक्षाएं हैं. कहानी में अपने आप में 110 भाग हैं और इसे पढ़ने वाले 30 लाख लोग हैं. उन्होंने कहा,‘जब पाठकों को कोई कहानी पसंद आती है, तो वे इसे प्रमोट करते हैं.’
यह योग्यता का एक दुर्लभ स्तर है. जहां सिलसिलेवार लिखी गईं कहानियां राजी जैसे लेखकों के लिए रोजी रोटी बन गईं हैं, तो वहीं उनके उत्साही अनुयायी पाठक अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाने में विश्वास करते हैं. यह एक अनूठा रिश्ता है. बंगाली भाषा में लिखने वाली रत्ना हलदर कहती हैं, ‘वे मेरे लिए एक दूसरे परिवार की तरह हैं.’ बंगाली प्रतिलिपि पर प्रकाशित 12 भाषाओं में से एक.
वह अपने उस एक पात्र का उदाहरण देती है जो उनकी कहानियों का हिस्सा है. उसके तीन उपनाम हैं – रॉकी, ऑरको और राशिद अंसारी. जब उन्होंने सोचा कि उनकी यह कहानी पूरी हो गई है, तो पाठक और ज्यादा की मांग करने लगे. इसने उन्हें एक और कहानी लिखने के लिए प्रेरित किया, जो रॉकी और उनकी महिला साथी मेघना पर आधारित है. हलदर कहती हैं, ‘मेरे पाठकों ने सोचा कि वह एक और कहानी थी. वे जानना चाहते थे कि राशिद अंसारी आखिर राशिद अंसारी कैसे बना? हलदर ने उनके सवालों का जवाब अपनी नई रचना ‘ हाव फॉर विल यू गो फॉर योर लव’ के रूप में दिया. उन्होंने कहा, इसमें सब कुछ है -‘रोमांस, अपराध, मनोविज्ञान’.
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आज का पाठक, कल का लेखक
प्रतिलिपि के लेखक अपने पाठकों की आवाज़ों और भावनाओं से अभ्यस्त हैं क्योंकि वो पहले ही उसका अनुभव कर चुके हैं. हलदर फुल टाइम लेखक बनने से पहले एक स्कूल में बंगाली पढ़ाती थीं. वह संघमित्रा रॉय चौधरी का उल्लेख करती हैं, जिन्हें वह ऐप पर पढ़ती थीं. उन्होंने कहा, ‘वह एक बंगाली शिक्षिका भी थीं. मैंने सोचा कि अगर वह कर सकती है तो मैं क्यों नहीं? हालांकि मैं पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी.’
प्रतीक्षा त्रिपाठी ने 2017 से प्रतिलिपि पर पढ़ना शुरू किया था. ऐप पर ‘राइट सेक्शन’ ने उन्हें लिखने के लिए किस तरह प्रेरित किया था, उन्हें आज भी याद है. प्रतिलिपि अपने यूजर के अनुकूल इंटरफेस के जरिए इच्छुक लेखकों को आत्मविश्वास देता है. वरना ऐसा करना आसान नहीं होता है. यहां पढ़ना-लिखना साथ-साथ चलता है.
फिर यहां मिलने वाला पैसा एक अतिरिक्त बोनस है. प्लेटफॉर्म के जरिए पैसे कमाने के तीन तरीके हैं – पहला है वर्चुअल कॉइन, जिसे सब्सक्राइबर अपनी पसंद के लेखकों को सीधे उपहार में दे सकते हैं. दूसरा ‘सुपर-फैन’ सब्सक्रिप्शन है, जिसमें से राइटर को लगभग 40-42 फीसदी मिलता है. तीसरा तरीका ‘प्रीमियम सब्सक्रिप्शन’ है, जो लेखकों को 40 से 42 फीसदी के बीच देता है.
होममेकर राजी ने इससे दो लाख रुपये कमाए हैं. वह कहती है, ‘यह मेरे जीवन का सबसे खुशी का दिन था.’ अपनी छुट्टियों में भी वह अपने परिवार के लिए पैसा कमाने में मदद कर रहीं थीं. प्रतीक्षा त्रिपाठी अपने काम करने की एक बेहतर तस्वीर पेश करती हैं. उन्होंने बताया, ‘ मैं अपने काम के साथ-साथ अपनी बेटी की देखभाल भी अच्छे से कर पाती हूं. मेरे पास आमदनी भी है. मैं अपने काम से पूरी तरह संतुष्ट हूं.’
कोविड के बाद की पारी
महामारी के बाद में ‘घर से काम करने’ का कल्चर अब आराम का जरिया नहीं रहा है. इसे कुछ ही लोग संभाल पाते हैं. यह एक ऐसा बदलाव था जिसने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को महत्वपूर्ण बना दिया. इस लेख में जिन तीन महिलाओं का जिक्र है. उनमें से दो ने 2020 में अपने प्रतिलिपि लेखक प्रोफाइल को तैयार किया था. जब उन्हें लगा कि उनके पास काम करने के लिए काफी समय है.
कोविड के दौरान रचनाकारों की संख्या में 50-60 फीसदी की वृद्धि हुई है. रंजीत प्रताप सिंह के मुताबिक, इसे मुश्किल समय में लेखन को ‘एस्केप मैकेनिज्म’ के रूप में इस्तेमाल करने का श्रेय दिया जाता है. हालांकि आज भी पाठकों की संख्या लगातार बढ़ रही है. हर दिन लगभग आठ मिलियन लोग ऐप पर आते हैं.
प्रतीक्षा कहती हैं, ‘यह मेरी जिंदगी का बेहद मुश्किल समय था. 13 साल तक नौकरी करने के बाद घर पर रहना आसान नहीं था.’ उनके खास दिनों में रात को लिखना, सुबह संपादन करना, और शाम को उसे पोस्ट करना शामिल था.
राजी ने अपने बच्चे के जन्म के बाद कहानियों को पोस्ट करना शुरू किया था. ऐसे समय में जब वह किताबें भी नहीं पढ़ सकती थीं, इसलिए उन्होंने प्रतिलिपि की तरफ जाना शुरू किया. उन्होंने सिर्फ सौ व्यूज के साथ शुरुआत की थी. वह उस दिन को बड़े उत्साह के साथ याद करती हैं जब उन्होंने अपने बढ़ते व्यूज को ट्रैक किया था.
तीनों आपने काम से संतुष्ट हैं और प्रकाशन के पारंपरिक तरीकों में बदलाव नहीं चाहती हैं. इस सफर में उन्हें अपने परिवार का भी सपोर्ट है. रत्ना हलदर गर्व के साथ कहती हैं, ‘अगर कोई मुझसे आज पूछता है कि क्या करती हो? तो कहती हूं -मैं एक लेखिका हूं.’
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प्रतिलिपि की स्क्रिप्ट- वर्तमान और भविष्य
वैसे तो प्रतिलिपि पर कंटेंट अंग्रेजी में भी प्रकाशित होता है, लेकिन प्रतीक्षा, राजी और रत्ना की लोकप्रिय होती कहानियां बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय भाषाओं में हैं. सीईओ रंजीत प्रताप सिंह खुद एक पाठक हैं. उन्होंने बताया कि जब वे ओडिशा के कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी में कंप्यूटर साइंस पढ़ रहे थे, तब अन्य भाषाओं की किताबें इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं थीं.
उन्होंने कमेंट किया ‘पहुंच की कमी थी. भारत के ज्यादातर लोग अंग्रेजी नहीं बोलते हैं. मैंने लोगों को अपनी भाषा और फार्मेट में फिर से पढ़ने के लिए प्रतिलिपि की शुरुआत की थी.’
प्रतिलिपि पर एक आईटी पेशेवर और तेलुगु लेखक विजया ने अपना अनुभव साझा करते हुए लिखा था कि वह तेलुगू में पढ़ना पसंद करती हैं, लेकिन हैदराबाद और उसके आस-पास बिकने वाली किताबें ज्यादातर अंग्रेजी में हैं.
कंपनी का ध्यान हमेशा आगे की तरफ रहा है. ‘जब तक हमारे पास पर्याप्त पाठक और लेखक नहीं थे, हम मोनेटाइजेशन पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहते थे. कारोबारियों को चमकदार चीजों के पीछे दौड़ने की आदत होती है.’
उस समय इसे एक जुआ की तरह लिया गया था. पुरानी कहावत सच हो गई- इंतजार करने वालों के लिए अच्छी चीजें आती हैं. कंपनी ने अब कई फार्मेट में कदम रखा है. यहां प्रतिलिपि कॉमिक्स है, जिसे ‘भारत में सबसे लोकप्रिय कॉमिक-रीडिंग प्लेटफॉर्म’ के रूप में जाना जाता है. आईवीएम पॉडकास्ट है, जिसे कॉमेडियन साइरस ब्रोचा और रोहन जोशी को होस्ट करते हैं. द वायर के सह-संस्थापक सिद्धार्थ भाटिया का ‘वायर टॉक’ और अमिताभ बच्चन की पोती नव्या नंदा का ‘व्हाट द हेल नव्या’ इसके कुछ नए नाम हैं.
मुर्दों की ट्रेन, एक हॉरर कॉमिक है. इसने अच्छे-खासे व्यूज और पॉपुलैरिटी हासिल की है. इसे मोशन कॉमिक को YouTube पर 13 मिलियन बार देखा गया हैं. प्रतिलिपि के भविष्य की ओर इशारा करते हुए प्रताप-सिंह कहते हैं, एपिसोडिक कंटेंट को फिल्म में ढालना मुश्किल हो सकता है, लेकिन वेब-सीरीज के रूप में ये अच्छी तरह से काम कर सकती है.
प्रतिलिपि की कॉमिक्स कॉलेज लव स्टोरी, सुपर नेचुरल थ्रिलर और हल्के हॉरर जैसे विषयों की तरफ जाती है.
पब्लिशिंग बनाम सेल्फ-पब्लिशिंग
इस साल की शुरुआत में जब अमेज़न ने वेस्टलैंड और उसके सभी इंप्रिंट्स को बंद कर दिया, तो प्रकाशन जगत में हलचल मच गई. ई-कॉमर्स की दिग्गज कंपनी ने कई बड़े नामों के साथ-साथ चेतन भगत की 36 करोड़ की छह-पुस्तकों की डील की. इसके तुरंत बाद यह घोषणा की गई कि वेस्टलैंड में टीम के सहयोग से प्रतिलिपि के साथ एक नई प्रकाशन कंपनी स्थापित की जाएगी.
यह डिजिटल स्टोरीटेलिंग बिजनेस का पारंपरिक प्रकाशन की तरफ पहला आधिकारिक विस्तार है. उन्होंने पहले हैरी पॉटर का हिंदी में अनुवाद करने के लिए मंजुल प्रकाशन हाउस को कुछ कहानियों का लाइसेंस दिया था. अपने पाठकों की पसंद के हिसाब से– ‘ताश्री’ एक सुपरनैचुरल मिस्ट्री रोमांटिक थ्रिलर और ‘अंगूरी का भूत’ एक रोमांटिक डरावनी कहानी मंजुल को दी गई.
सीईओ रंजीत प्रताप सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि न्यू वेस्टलैंड वर्टिकल द्वारा प्रकाशित की जाने वाली किताबें प्रतिलिपि के कंटेंट के साथ तालमेल बैठाते हुए तैयार की जाएंगी, जो प्रतिलिपि ऐप और वेबसाइट पर भी उपलब्ध होगी. उन्हें यह भी उम्मीद है कि वर्तमान में अनाम कंपनी भी प्रतिलिपि पर मौजूद कहानियों को ले सकती हैं.
साहित्यिक एजेंटों, प्रकाशकों और संपादकों तक पहुंच बनाने के बिना लिखने से मिलने वाले फायदे साफ हैं. लिखी गई किताबों की कोई भी सीमा नहीं है- यहां हजारों पेजो के बारे में सोचे बिना लगातार लिखा जा सकता हैं. कोई आईएसबीएन नहीं है, कोई खर्च नहीं है.
पब्लिशिंग हाऊस के अड़ियल रवैये के जवाब में प्रतिलिपि मौजूद है. रंजीत कहते हैं, कंटेंट को बिना संपादन के बेरोक-टोक प्रकाशित करना, रीडिंग के ‘डेमोक्रेटीजाइशन’ को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है. विजया ने प्रतिलिपि के कंटेंट और पाठकों की तुलना टेलीविजन की ताकत से की.
ओटीटी क्रांति के आने से पहले भी टेलीविजन को फिल्मों और किताबों जैसे अधिक ‘सम्मानजनक’ माध्यमों से कमतर माना जाता था. इसी तरह साहित्य को लेकर पहले से बना एक ब्रह्मांड है जिसमें प्रतिलिपि का प्रवेश प्रतिबंधित हो सकता है. प्रेमचंद द्वारा स्थापित एक साहित्यिक पत्रिका हंस, जिसे 1986 में राजेंद्र यादव ने अपने नियंत्रण में ले लिया था, की प्रकाशक रचना यादव कहती हैं, ‘यह साहित्य के एक निश्चित मानक के करीब नहीं आ सकता है.’ वह आगे कहती हैं, ‘ जब हंस में किसी लेख या कहानी को स्वीकार किया जाता है तो उसे सावधानीपूर्वक संपादन के दौर से गुजरना पड़ता है. प्रतिलिपि में कुछ ही चीजें सेंसर होती हैं. यहां लेखन को एक शिल्प के तौर पर सम्मानित नहीं किया जा रहा है.’
इस बात पर भी संदेह है कि इसकी लोकप्रियता डिजिटल से आगे निकल सकती है और बड़े पैमाने पर अंग्रेजी-प्रभुत्व वाली जगह पर अपना रुबाब बढ़ा पाएगी. जगरनॉट द्वारा किए गए पिछले प्रयास काम नहीं कर पाए हैं. अवनि दोशी और डेज़ी रॉकवेल जैसे लेखकों को आगे लाने वाली साहित्यिक एजेंट कनिष्क गुप्ता कहती हैं, ‘भारत में प्रिंट के बाहर किसी भी चीज़ के लिए बहुत कम भूख है. ई-बुक्स और ऑडियो बुक्स के प्रकाशकों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है. प्रतिलिपि की सबसे बड़ी चुनौती अंग्रेजी के पाठकों को आकर्षित करना है.’
प्रतिलिपि पर लेखकों की प्राथमिकता ‘एक कला के रूप में लेखन’ से जुड़ना या एक अंग्रेजी बोलने वाले पाठक की जरूरत को पूरा करना नहीं है. बल्कि कहानियों को सुनाने के लिए अपने शब्दों के इस्तेमाल उसे आगे बढ़ाने में है. बहुतायत में ऐसी कहानियां लिखी जा रही हैं. भारत में कहानियों की एक समृद्ध परंपरा है जिसे अलग-अलग तरीकों से संवारा जाता रहा है.
जब कई लोगों ने सोचा कि ‘सिरियलाइज्ड स्टोरी टेलिंग’ की पुरानी परंपरा खत्म होने का कागार पर हैं, तो नीलेश मिश्रा के रेडियो शो ‘यादों का इडियट बॉक्स’ ने इसे फिर से जिंदा कर दिया. मिश्रा का ‘अराउंड रिलेशनशिप्स एंड एवरी डे इंडिया’ शो लगभग एक दशक से ऑन एयर है.
प्रतिलिपि ने लेखकों और पाठकों को बुनियादी बदलाव का एक मंच मुहैया कराया है. यहां लिखने के लिए लेखक को किसी खास विषय या भाषा में पारंगत होने की जरूरत नहीं है. यहां जो उत्सुक पाठक हैं वही उभरते लेखक भी हैं. यहां मंच दोनों के बीच की रेखाओं को धुंधला कर रहा है.
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या)
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