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Wednesday, 24 April, 2024
होमदेशफूल भेजने वाले, घूरने और घटिया ई-मेल भेजने वाले- छोटे कस्बों में किन चुनौतियों से लड़ती हैं महिला जज

फूल भेजने वाले, घूरने और घटिया ई-मेल भेजने वाले- छोटे कस्बों में किन चुनौतियों से लड़ती हैं महिला जज

दशकों के अनुभव वाली उत्तर प्रदेश की सीनियर महिला जज भी यही कहती हैं कि यह हर दिन एक लड़ाई है, जो उन्हें अपने साथियों के बीच लड़नी पड़ती है.

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वह दिनभर महिला के ऑफिस के बाहर छिपा रहा. जब वह घर के लिए निकली, तो वह उनका पीछा करने लगा. उसने उनके लुक्स और कपड़ों की तारीफ की. यह पहली बार नहीं था. यमुना के किनारे शाम की सैर के लिए जब वह निकलती तो भी वह हमेशा वहां मौजूद रहता था. यह कहानी उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर हमीरपुर की महिला जज की है. और पीछा करने वाला युवक पेशे से वकील था.

हालांकि, सिविल जज हर्षिता सचान खुद न्याय देने वाली मशीनरी का हिस्सा हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने पीछा करने वाले को नजरअंदाज करने की कोशिश की. तंग आकर एक दिन वह उस युवक से भिड़ गईं. लेकिन इससे भी कुछ नहीं हुआ. हारकर 27 साल की सचान ने शाम की सैर पर जाना पूरी तरह से बंद कर दिया और अपनी दिनचर्या बदल दी.

उन्हें जज के रूप में बमुश्किल दो साल का अनुभव रहा था और हमीरपुर में फास्ट-ट्रैक जिला अदालत में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में कार्यभार संभाले हुए तो सिर्फ दो सप्ताह हुए थे. इसलिए वह कोई ऐसा काम नहीं करना चाहती थीं जो दूसरों के लिए परेशानी का सबब बन जाए.

उत्तर प्रदेश के छोटे शहर में कोई भी महिला, यहां तक कि जज भी किसी का ध्यान अपनी ओर खींचना नहीं चाहती है.

सचान ने शुरू में एफआईआर दर्ज करने के विचार को खारिज करते हुए अपने एक करीबी दोस्त से कहा था ‘मैं शहर में चर्चा का विषय नहीं बनना चाहती हूं. यह एक छोटा सा जिला है, यहां हर कोई, हर किसी को जानता है. हो सकता है कुछ समय बाद वह रुक जाए.’

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लेकिन जब उन्होंने उस युवक यानी मोहम्मद हारून को अपने घर के बाहर दुबके हुए पाया, तो वह समझ गई कि ये मामला ऐसे सुलझने वाला नहीं है. उसके तुरंत बाद उन्होंने अपने सीनियर्स और पुलिस को फोन किया.

उनके बचाव पक्ष के वकील ने इस घटना को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया. लेकिन सचान के साथ जो हुआ वह कोई असाधारण मामला नहीं है. यह उस राज्य में स्त्री के प्रति पुरानी मानसिकता का लक्षण है, जहां निचली न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सबसे कम है. शहर जितना छोटा होगा, एक खास वर्ग को प्रभावित करने वाली समस्याएं उतनी ही अधिक घातक होंगी.

पुरुष वकील कम उम्र की महिला जज के सामने अपने मामले पर बहस नहीं करना चाहते हैं. अगर जज सख्त है, तो उसे अक्खड़ करार दिया जाता है. अगर वह योग्य है, तो वह ‘बहुत सख्त’ है.

दशकों के अनुभव वाली उत्तर प्रदेश की सीनियर महिला जज भी यही कहती हैं कि यह हर दिन एक लड़ाई है, जो उन्हें अपने साथियों के बीच लड़नी पड़ती है. कैडर के भीतर शादी करने वाली महिलाओं को निशाना बनाते हुए सेक्सिस्ट कमेंट किए जाते हैं और चाइल्ड केयर लीव का मजाक उड़ाया जाता है.

हालांकि मौजूदा समय में ज्यादा से ज्यादा महिलाएं न्यायपालिका, पुलिस और प्रशासनिक सेवाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, लेकिन उनके काले कोट, बैज और वर्दी भी अनियंत्रित लिंगवाद को नहीं रोक पा रहे हैं.

एक स्टॉकर, एक एफआईआर

हमीरपुर में स्थानीय पत्रकार हमेशा अगली रसेदार कहानी की तलाश में रहते हैं. हर्षिता सचान के मामले में भी यही हुआ. दैनिक जागरण के एक स्थानीय संस्करण में इस कहानी को इस शीर्षक के साथ प्रकाशित किया गया- ‘एक सिविल जज का पीछा करने वाले वकील पर मुकदमा दर्ज’. इसके बाद वह खाने की मेज पर बातचीत का विषय बन गईं: प्राथमिकी की प्रतियां वकीलों, न्यायाधीशों और पत्रकारों के बीच वितरित की गईं.

हमीरपुर के एक रिपोर्टर शशिकांत कहते हैं, ‘जब मुझे एफआईआर की कॉपी मिली, तो मुझे तुरंत पता चल गया कि यह खबर बड़ी हो जाएगी.’

कानपुर के टीयर-टू शहर में पली-बढ़ी और दिल्ली में पढ़ाई करने के बाद सचान को इस बात का अंदाजा नहीं था कि एक छोटे से शहर में एक कामकाजी महिला का जीवन कैसा होगा. दौलत राम कॉलेज से इतिहास में स्नातक और दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय से एलएलबी करने के बाद, उन्होंने 2019 में यूपी न्यायिक सेवा परीक्षा पास की.

उनकी पहली पोस्टिंग हमीरपुर की जिला अदालत में हुई थी, लेकिन जल्द ही सचान को उसी जिले के ग्राम न्यायालय सरिला में पीठासीन न्यायिक अधिकारी बना दिया गया. उनके पूर्व सहयोगियों के अनुसार, उन्होंने अपनी नौकरी में तेजी से सीखा और बेहतर काम करते हुए आगे बढ़ गईं. एक वरिष्ठ कर्मचारी ने बताया, ‘उन्होंने छह महीने के भीतर 28 दीवानी मामलों और 31 आपराधिक मामलों का निपटारा किया. इसमें कुछ सबसे पुराने मामलों की फाइल भी शामिल थीं.’

जुलाई 2022 में सिविल जज के रूप में फिर से उनका तबादला हमीरपुर जिला अदालत में कर दिया गया. और तब से उनकी ये परेशानी शुरू हुई. अपनी नई नौकरी में बमुश्किल तीन सप्ताह में उन्होंने नोटिस किया कि एक वकील उनके चैंबर के पीछे की दीवार के बीच मौजूद गैप से लगातार उन्हें घूर रहा है. प्राथमिकी के अनुसार, उन्होंने उसे ऐसा करते हुए 18 से 24 जुलाई के बीच दो बार पकड़ा था.

Illustration by Manisha Yadav | ThePrint
इलस्ट्रेशन- मनीषा यादव, दिप्रिंट

उन्होंने अपनी पुलिस शिकायत में कहा, ‘उस समय मैं वकील का नाम नहीं जानती थी. लेकिन मैंने उसे पहचान लिया क्योंकि वह 25 जुलाई को मेरे कोर्ट रूम में पेश हुआ था. 1 अगस्त को रात करीब 8:45 बजे जब मैं यमुना वॉकवे पर अकेले जा रही थी, तो मैंने देखा कि जिस बेंच पर मैं बैठी थी, उसके बगल में वही वकील खड़ा था. और फिर वह कुछ कहने लगा.’

हारून ने कथित तौर पर उससे बात करने की कोशिश की थी. उसने सचान से एक बार कहा कि जब वह सरिला में थी तो वह उन्हें मिस कर रहा था. इस कमेंट ने सचान के इस विश्वास को गलत ठहरा दिया कि वह सुरक्षित है. वह 2019 से उनका पीछा कर रहा था.

एक दिन जब वह यमुना बैंक वॉकवे के किनारे एक बेंच पर बैठी थी, तो उसने उनसे कहा कि क्या वह उन्हें परेशान कर रहा है. ‘मैंने जवाब दिया, ‘मुझे यहां से जाना चाहिए. ‘ जैसे ही मैं उठने लगी, उसने कहा, ‘वैसे, तुम अच्छी लग रही हो.’ चार्जशीट में जज और एडवोकेट के बीच हुई इस बातचीत का जिक्र है.

सचान ने कई दिनों तक इवनिंग वॉक पर जाना छोड़ दिया. लेकिन फिर उसने उन्हें उनके कोर्ट रूम में परेशान करना शुरू कर दिया. वह एक दीवार के साथ चिपक कर खड़ा हो जाता और उन्हें घूरता रहता. एक अगस्त को अपने घर के बाहर टहलने के लिए गई और एक बेंच पर बैठ गई. चारों ओर नजर घुमाई तो देखा कि वह फिर वहीं था.

इस बार सचान ने उसका सामना किया. ‘तुम्हारा क्या नाम है? … मैं तुम्हारे इस व्यवहार से परेशान हो चुकी हूं. इवनिंग वॉक में तुम मेरा पीछा करते हो, चैंबर की दीवार के पीछे से घूरते रहते हो. आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए और अगर फिर ऐसा हुआ तो मैं पुलिस में तुम्हारी शिकायत दर्ज करा दुंगी.

इस घटना का जिक्र भी चार्जशीट में है. इसमें कहा गया है कि वकील का व्यवहार ठीक नहीं था. वह शाम को दूर से ही उसका पीछा करता था. कोई मामला न होने पर भी वह घंटों कोर्ट रूम में बैठा रहता.

18 अगस्त को जब वह शाम की सैर के लिए अपने घर से बाहर निकली, तो उसने देखा कि वह उसी तरह के कपड़े पहने – एक काली स्वेटपैंट, नीली-काली चेक वाली शर्ट और सफेद जूते- फिर से उसका पीछा कर रहा था.

मामले के प्रभारी एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘वह अपने क्वार्टर में वापस चली गईं और अपने सीनियर्स को फोन किया. अगले दिन एक एफआईआर दर्ज की गई.’ बार एसोसिएशन को भी कथित उत्पीड़न के बारे में सूचित किया गया था. हमीरपुर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और एडवोकेट दिनेश शर्मा ने कहा, ‘हमने तुरंत उसकी बार मेंबरशिप को खारिज कर दिया. हम महिला अधिकारी के साथ खड़े थे.’

हारून को गिरफ्तार कर लिया गया और जिला अदालत ने उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी. उसके मामले की पैरवी कर रहे वकील ने दिप्रिंट को बताया कि उसने जमानत के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. वकील अल्ताफ हुसैन ने कहा, ‘ महिला जज ने सही काम किया. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण मामला है. लेकिन हम अपने बचाव के लिए लड़ेंगे.’

सर्कल ऑफिसर, क्राइम रवि प्रकाश सिंह ने हारून से पूछताछ की और निष्कर्ष निकाला कि वकील को यकीन था कि अगर वह कोशिश करता रहेगा तो सचान उसे ‘हां’ कह देगी. सिंह ने कहा, ‘(यह) एक टिपिकल स्टॉकर केस है.’


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न्यायपालिका के भीतर ताने, जिब और जोक्स

पुरुष-प्रधान न्यायपालिका में व्यवस्था महिलाओं के खिलाफ खड़ी दिखती है. एक जिला मजिस्ट्रेट ने अपना नाम न जाहिर करते हुए कहा, ‘जब मैं 2000 के दशक की शुरुआत में अपनी कानून प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही थी, तो मैंने यह पंक्ति पढ़ी थी- सामाजिक दृष्टिकोण कानूनी नजरिए को पीछे छोड़ देता है.. अब मैं इसे पहले से कहीं ज्यादा समझती हूं’. एक महिला जज के रूप में यह उनका अनुभव था.

हमीरपुर की वरिष्ठ न्यायाधीश ने दिप्रिंट ने से बात करते हुए बताया कि उन्हें लगातार उनके लिंग की याद दिलाई जाती है, खासकर उनके पुरुष साथी ऐसा करते हैं. अक्सर, सेक्सिज्म को मजाक के रूप में पेश किया जाता है.

रिटायर्ड जज प्रभा श्रीदेवन, जो 2000 में मद्रास उच्च न्यायालय में पांचवीं महिला न्यायाधीश थीं, ने कहा, ‘मेरे अधिवक्ता मित्रों ने मुझे लंच पर बुलाया था. क्योंकि मैं एक बड़े पद पर (एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में) जाने के लिए तैयार थी. बधाई संदेशों देते हुए मेरे एक दोस्त ने कहा, ‘अब जब तुम जज बन गई हो , तो प्लीज क्या कोर्ट परिसर की साफ-सफाई करवा सकती हो?’ उसकी इस बात पर मुझे गुस्सा आ गया. उन्होंने कहा कि मुझे यकीन नहीं हुआ कि यह सच में साफ-सफाई की चिंता थी या एक महिला को लेकर उनके मन के गहराई से बैठे विचार थे कि एक महिला अच्छे से साफ-सफाई का काम करती है.

लेकिन ये सब यहीं खत्म नहीं हुआ. एक तमिल अखबार के संपादक ने श्रीदेवन से पूछा कि क्या अब और अधिक ‘महिला-समर्थक फैसले’ लिए जाएंगे. उन्होंने तुरंत जवाब दिया, ‘तीन पुरुष न्यायाधीश हैं उन्हें भी उच्च पद मिला है. क्या आप उनसे भी यही सवाल पूछने जा रहे हैं कि क्या वे पुरुष समर्थक फैसले लेंगे? मैं एक महिला न्यायाधीश के रूप में नहीं दिखना चाहती, लेकिन मैं इस बात पर भी जोर देती हूं कि मेरे निर्णय और व्यक्तित्व इस तथ्य को प्रतिबिंबित करेंगे कि मैं एक महिला हूं.’

चाइल्डकेअर लीव को लेकर सबसे ज्यादा फब्तियां कसी जाती हैं. इसका सामना हर महिला को करना पड़ता है. हमीरपुर की एक अन्य सीनियर जज ने कहा, ‘अगर हम किसी पार्टी में अपने बैचमेट्स से मिलते हैं, तो यह एक हल्के मजाक के रूप में सामने आता है; ‘ओह! आप इतना तनाव क्यों लेती हो. चाइल्डकेअर लीव का फायदा ले लो.’

उन्हें इस तरह की फब्तियों और हंसी-मजाक में दिल को आहत करने वाली बातों से हमेशा दो-चार होना पड़ता है. अपने कैडर के जजों से शादी करने वाली महिलाएं ज्यादा असुरक्षित होती हैं. न्यायाधीश ने कहा ‘दूसरे तुम्हें (इसके लिए) कमतर आंकते हुए नजर आएंगे.’

भारत भर की अदालतें लैंगिक असंतुलन से ग्रस्त हैं. उच्च न्यायालयों में मौजूदा समय में 713 न्यायाधीशों में महिलाओं की संख्या केवल 13.18 प्रतिशत है. विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, निचली न्यायपालिका में, 15,806 न्यायाधीशों में से सिर्फ 4,409 महिलाएं हैं. यह असमानता यूपी में साफ नजर आती है, जहां निचली अदालतों में सिर्फ 21.4 प्रतिशत न्यायाधीश महिलाएं हैं. दीपिका किन्हल ने कहा, ‘लेकिन अब हाल के बैचों में अधिक महिलाएं निचली न्यायपालिका में प्रवेश कर रही हैं.’

साल 2019 एक स्वागत योग्य बदलाव लेकर आया. जिस बैच ने 2019 की यूपी न्यायिक सेवा परीक्षा- जिसमें सचान भी शामिल थी- ने राज्य में स्थिति बदल दी. 22 साल से कम उम्र की महिलाएं, जो शहरों के लॉ कॉलेजों से अभी पास आउट हुई हैं, उनकी संख्या पुरुषों से ज्यादा है. लोक सेवा आयोग (यूपी) के आंकड़ों से पता चलता है कि चुने गए 610 उम्मीदवारों में से उनका प्रतिशत 51.6 प्रतिशत था.

श्रीदेवन ने कहा, ‘मैं देख रही हूं कि युवा बैच अधिक आत्मविश्वासी है. और सच यही है कि उनकी संख्या बढ़ रही है.’

लेकिन फिर भी उन्हें अच्छे-खासे प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है. कुछ ने कहा कि उन्हें ‘कम चुनौतीपूर्ण कार्य’ दिए जाते हैं, जबकि अन्य ने दावा किया कि उन्हें अपने पुरुष साथियों के खिलाफ खड़ा किया गया है.

जनमत के दरबार में महिला शायद ही कभी जीती हैं

इलस्ट्रेशन- मनीषा यादव, दिप्रिंट

‘मेहनती’ और ‘सख्त’ के बीच की रेखा

विडंबना यह है कि लगभग सभी इस बात से सहमत हैं कि महिला न्यायाधीश बेहतर तरीके से अदालती कार्यवाही को संभालती है. वह ‘अपने काम से काम रखती हैं और मेहनती होती हैं.’

हमीरपुर महिला थाने में एक कांस्टेबल निशा शर्मा के लिए, एक महिला न्यायाधीश की उपस्थिति महिला पीड़ितों के बयान दर्ज करते समय स्थिति को काफी सहज बना देती हैं.

रवि प्रकाश ने कहा, ‘एक महिला जज कोर्ट रूम में संवेदनशीलता ले आती हैं.’

यह सिर्फ पुलिस अधिकारी ही नहीं, बल्कि वकील भी हैं, जो मामलो को तेजी से निपटारा किए जाने की बात कह रहे हैं. सचान के कोर्ट रूम के बाहर खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे अजय कुमार ने कहा, ‘मैंने पिछले 20 सालों में तीन-बीघा भूमि संपत्ति विवाद के लिए अलग-अलग शहरों में छह से ज्यादा अदालतों के चक्कर काटे है. लेकिन अब मैं मामले को आगे बढ़ते हुए देख रहा हूं.’

लेकिन बार अभी तक इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पाया है कि उन्हें एक महिला के समक्ष अपने मामले पर बहस करनी होगी, जो उनकी उम्र से आधी हो सकती है. हमीरपुर के बार एसोसिएशन के सदस्यों ने कहा कि हालांकि वे सचान के साथ खड़े हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि महिला न्यायाधीश अनावश्यक रूप से असभ्य, घमंडी और सख्त हैं.

एक वरिष्ठ महिला न्यायाधीश ने कहा, ‘हम डिफ़ॉल्ट रूप से सख्त नहीं होती हैं. हमने धीरे-धीरे इस गुण को आत्मसात किया है. हमें ऐसे मानदंडों पर टिके रहना पड़ता है क्योंकि तभी हमें गंभीरता से लिया जाता है. लोगों को अभी भी एक महिला को उच्च पद पर देखने की आदत नहीं है’ कहते-कहते उनकी आवाज में निराशा छा गई.

अगर किसी महिला को कोई पुरुष गलत निगाह से देख रहा है तो जरूर उसे ‘उकसाने’ के लिए महिला ने कुछ किया होगा. यह सामान्य नजरिया है और यह सिर्फ इसलिए नहीं बदलेगा क्योंकि महिला एक जज है. हां, इतना जरूर है कि कोई इस बात को ज़ोर से नहीं कह पाएगा.

‘एक खूबसूरत महिला के साथ बहस’

हमीरपुर से आठ सौ किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के छोटे से शहर रतलाम में 24 वर्षीय न्यायाधीश मिताली पाठक को एक अजनबी से कई फेसबुक फ्रेंड रिक्वेस्ट आई. उसने कथित तौर पर उसका ऑनलाइन पीछा किया और उसे पोस्टर व फूल भेजे. एक अजीब वाकये के दौरान उसने उनके ऑफिस के सामने एक कुर्सी लगाई और वहां घंटों बैठे पाठक को घूरते रहे.

इस मामले में भी वह शख्स वकील ही था. पाठक ने 2019 में मध्य प्रदेश सिविल जज परीक्षा पास की थी. सचान उसी साल जज बनीं थीं.

वह मध्य प्रदेश के सिविल जज क्लास 2 के पद के लिए चुनी गईं 113 सफल उम्मीदवारों में से एक थीं. प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्हें रतलाम की जिला अदालत में नियुक्त किया गया, जहां 42 न्यायिक अधिकारियों में से 14 महिलाएं हैं.

बार और बेंच ने पाठक का ‘दिल से स्वागत’ किया, लेकिन जब कोविड की पहली लहर के बाद अदालतें खुलीं, तो उनका बुरा सपना शुरू हो गया.

जिस साल पाठक जज बनी थीं, उसी साल 36 साल के विजय सिंह यादव ने राज्य बार काउंसिल से लॉ प्रैक्टिस करने के लिए एक प्रोविजनल सर्टिफिकेट प्राप्त किया था. इससे पहले वह एक राजनीतिज्ञ, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और इंजीनियर था.

28 जनवरी 2021 को पाठक को उनके आधिकारिक मेल अकाउंट पर 1:11 बजे यादव का एक ईमेल मिला. उसमें लिखा था, ‘ अपने सामने आए सभी सबूतों को देखते हुए मैं आपको उम्र बढ़ने का दोषी मानता हूं. शानदार बर्थडे सेलिब्रेशन’

उन्होंने मेल खारिज कर दिया. लेकिन कुछ हफ्ते बाद स्पीड मेल से एक पोस्टर मिला. यह एक मैसेज के साथ उनकी फेसबुक प्रोफाइल फोटो का प्रिंटआउट था: ‘एक खूबसूरत महिला के साथ बहस करना सॉफ्टवेयर लाइसेंस एग्रीमेंट को पढ़ने जैसा है. अंत में, आपको हर चीज़ को नज़रअंदाज़ करते हुए क्लिक करना होगा—एग्री’ यादव ने अपनी पहचान छिपाने की भी कोशिश नहीं की.

उनके जन्मदिन पर उसने उनके कोर्टरूम में फूलों का गुलदस्ता भेजा.

जब सीनियर जजों को एहसास हुआ कि क्या हो रहा है तो उन्होंने पुलिस से संपर्क करने के पाठक के फैसले का समर्थन किया. उन्होंने 8 फरवरी 2021 को एफआईआर दर्ज कराई.

पाठक ने पुलिस को दिए अपने बयान में कहा, ‘यह मुझे मानसिक पीड़ा दे रहा है और मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रहा है.’

यादव को भारतीय दंड संहिता और आईटी अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया. उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई. वकील और बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अभय शर्मा ने कहा, ‘पीठ ने बार को अपनी महिला न्यायिक अधिकारियों के साथ खिलवाड़ न करने का कड़ा संदेश देने के लिए उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया.’

125 दिन जेल में रहने के बाद यादव ने जमानत के लिए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का रुख किया. अब वह जेल से बाहर है और पुलिस के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से लेकर सोशल मीडिया पर सहानुभूति बटोरने तक अपने निपटान में हर चीज का इस्तेमाल करके अपना मामला लड़ने की योजना बना रहा है.

उसने दिप्रिंट को बताया कि वह दोषी नहीं हैं, ‘मैं सभी न्यायाधीशों को जन्मदिन की शुभकामनाएं भेजता हूं.’

पाठक ने पिछले साल ट्रांसफर का अनुरोध किया था और उन्हें श्योपुर जिला अदालत भेज दिया गया. वह सोशल मीडिया पर भी कम ही नजर आती हैं.

लेकिन यादव जिला अदालत में अभी भी वैसे ही नजर आ रहा है.

उसने कहा, ‘मैं अपने अन्य मामलों की पैरवी करने के लिए अदालत जाता हूं. लोग मुझसे बात करते हैं. मुझे कुछ जज भी जानते हैं. डरने की कोई बात नहीं है.’

वह ट्रायल के लिए तैयार है. उसने कहा, ‘आप अपनी पसंद से सर्विस में हैं, अबला नारी की तरह व्यवहार करना बंद करें.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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