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Friday, 22 November, 2024
होमदेश'मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी': मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने SC में कर्नाटक HC के 'हिजाब फैसले' को चुनौती दी

‘मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी’: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने SC में कर्नाटक HC के ‘हिजाब फैसले’ को चुनौती दी

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं के लिए 'दरवाजे बंद' करने वाले कर्नाटक हाई कोर्ट के 15 मार्च के फैसले पर हमला किया और कहा कि अदालत ने खुद को ही ‘गुमराह' किया है.

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नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने सुप्रीम कोर्ट के सामने कहा है कि कर्नाटक उच्च न्यायालय का वह फैसला, जिसके तहत इसने राज्य के कुछ प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में हिजाब पर लगाई गई रोक को बरकरार रखा और यह घोषणा की कि सिर पर पहने जाने वाले वस्त्र (या हिजाब) इस्लाम में आवश्यक धार्मिक परिपाटी का हिस्सा नहीं है, अनुचित और अपमानजनक टिप्पणियों वाला है और इसमें दिए गए बयानों से हिजाब पहनने की परंपरा का पालन करने वाली मुस्लिम महिलाओं के सम्मान को चोट पहुंचती है.

इस मामले में विचाराधीन आदेश कर्नाटक की राज्य सरकार द्वारा 5 फरवरी को जारी किया गया था, जो मूल रूप से उडुपी स्थित एक पीयू कॉलेज द्वारा हिजाब पहनने पर लगाई गई रोक का समर्थन करता था.

कर्नाटक हाई कोर्ट के 15 मार्च के फैसले को चुनौती देने वाली सोमवार को दायर की गई एक याचिका में AIMPLB ने   कहा कि यह उन सभी मुस्लिम महिलाओं के लिए ‘दरवाजे बंद’ करने के समान है जो सरकारी संस्थानों, एजेंसियों में हिजाब पहन कर जाती हैं और सरकारी या अर्ध-सरकारी संस्थाओं में अपने लिए रोजगार की तलाश करती हैं.

AIMPLB भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा और इसे अमल में लाए जाने के मकसद से काम करता है.

बोर्ड ने जोर देकर कहा कि मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) और 21 से मिलता है. साथ ही, इसने यह भी कहा कि इस मामले में हाई कोर्ट ने गलत सवाल गढ़े हैं. खास तौर पर इस तर्क के संबंध में कि क्या हिजाब पहनना इस्लाम में एक आवश्यक धार्मिक परिपाटी है.

बोर्ड ने आगे कहा कि इस मामले में गढ़े गए सवाल इस मूल मुद्दे को संबोधित नहीं करते हैं कि क्या ऐसी स्थिति में आवश्यक धार्मिक परिपाटी के सिद्धांत पर विचार करना जरूरी है या नहीं. जहां याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अन्य प्रावधानों जैसे ‘अंतरात्मा की आवाज और गोपनीयता के अधिकार’ के तहत अपने अधिकारों का दावा किया है?

इसने आगे कहा कि हाई कोर्ट ने उन तर्कों पर बहुत अधिक जोर दिया है जिनके कारण एक खास वर्ग को मुख्यधारा की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली से भेदभाव, बहिष्कृत और समग्र रूप से वंचित किया गया है. बोर्ड ने कहा कि इसके अलावा यह निर्णय किसी व्यक्ति के पवित्र धार्मिक विश्वास का ‘गंभीर रूप से अतिक्रमण’ करता है.

गौरतलब है कि कर्नाटक हाई कोर्ट के समक्ष इस मामले पर हुई बहस के समय बोर्ड इसका एक पक्ष नहीं था. अब इसने सुप्रीम कोर्ट से उसके सामने इस मामले में एक पक्षकार बनने की अनुमति मांगी है और वो चाहता है कि जब सुप्रीम कोर्ट, कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों को सुनाता है तो उसकी बातें भी सुनी जाएं.

AIMPLB की दो महिला सदस्य भी कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए बोर्ड के साथ शामिल हुई हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अब तक हिजाब मामले में अपील पर तत्काल सुनवाई के लिए सहमति नहीं दी है.

पिछले हफ्ते, भारत के चीफ जस्टिस एन.वी. रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने इन अपीलों को जल्द सुनवाई के लिए लिस्ट करने से इनकार कर दिया. इसने इस मामले का जिक्र करने वाले वकील को डांट लगाते हुए कहा कि इस मुद्दे का राज्य के पीयू कॉलेजों की आगामी परीक्षाओं (कक्षा 11 और 12 के लिए) से कोई लेना-देना नहीं है.

इसके अलावा, बेंच ने वकील को सलाह दी कि वे ‘इस मुद्दे को सनसनीखेज’ न बनाएं.


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हाई कोर्ट ने खुद को ही गुमराह किया

अपनी याचिका में AIMPLB ने दावा किया कि हाई कोर्ट ने ‘पूरी तरह से गलत सवालों को गढ़ते हुए खुद को ही ‘गुमराह’ किया जिसने वास्तविक मुद्दों से इसका ध्यान हटा दिया’.

बोर्ड ने कहा, ‘अदालती फैसले का मूल सिद्धांत यह है कि फैसला लेने वाले प्राधिकारी को इसके समक्ष प्रस्तुत विवाद में शामिल मूर्त प्रश्नों पर ध्यान देना चाहिए.’

इसने कहा, यह फैसला ‘इस्लामी मजहबी पुस्तकों, विशेष रूप से इस्लामी कानून के प्राथमिक और उच्चतम स्रोत जो कि पवित्र कुरान है, की एक गलत व्याख्या प्रस्तुत करता है’

बॉर्ड ने हाई कोर्ट पर आरोप लगाया कि उसने एक पवित्र पुस्तक की व्याख्या करने के लिए अपनी शक्ति का ‘बिना किसी औचित्य के प्रयोग किया’और एक सरकारी आदेश को बरक़रार रखने के मकसद से किसी धर्म के लिए क्या ‘गैर-आवश्यक’ है इसके बारे में एक ‘गलत निष्कर्ष’ पर पहुंचने के लिए अर्जी को खींचा.

याचिका में कहा गया है कि ‘यह संदेहास्पद निर्णय बुनियादी धार्मिक स्वतंत्रता तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मुस्लिम महिलाओं के स्वाधिकार (एजेंसी), समानता, बंधुत्व के सिद्धांतों को ख़त्म करता है और सक्रिय रूप से भेदभाव, सांप्रदायिक कलह और गोपनीयता के संरक्षित माने जाने वाले क्षेत्र में हस्तक्षेप करता है.‘

इसमें आगे कहा गया है, ‘इसके अलावा, यह शैक्षणिक संस्थानों में ‘हिजाब पर लगी रोक’ को वैध स्वरूप प्रदान करता है, जो धर्मनिरपेक्षता की मूल संरचना के खिलाफ है.‘

याचिका कहती है, ‘ इस फैसले से मुस्लिम समुदाय के बच्चों के अधिकारों का गंभीर अतिक्रमण होगा और एक ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां मुस्लिम लड़कियों का एक बड़ा वर्ग सामान्य शिक्षा की धारा से वंचित हो जाएगा जिससे वे कमजोर और असुरक्षित बनी रहेंगीं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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