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Saturday, 16 November, 2024
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‘हम कहीं नहीं जा रहे हैं’: ‘गोटा गो’ के प्रदर्शनकारियों ने विक्रमसिंघे के पद छोड़ने तक हिलने से इंकार किया

गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे के दो दिन बाद भी विरोध का जोश कम नहीं हुआ है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि विक्रमसिंघे ने 'षड्यंत्रकारी तरीके' से सरकार पर नियंत्रण कर लिया है.

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कोलंबो: श्रीलंका में चल रहे विरोध आंदोलन के नेताओं ने शनिवार को घोषणा की कि देश में कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के इस्तीफा देने तक सरकार विरोधी प्रदर्शन जारी रहेगा.

द्वीप राष्ट्र के चारों तरफ से परेशानियों से घिरे राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के गुरुवार को इस्तीफा देने के दो दिन बाद उन्होंने यह बयान जारी किया है.

आंदोलन के 23 नेताओं में से एक और खुद को गोटा गो का प्रतिनिधि बताने वाले बौद्ध भिक्षु महानामा ने शनिवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया और आरोप लगाया कि विक्रमसिंघे ने ‘षड्यंत्रकारी तरीके से’ सरकार पर नियंत्रण कर लिया.

‘गोटा गो’ विरोध स्थल पर आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने बताया, ‘प्रदर्शनकारियों के रूप में हम कभी भी रानिल (विक्रमसिंघे) को राष्ट्रपति नहीं बनाना चाहते थे.’ उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन 9 मई को महिंदा राजपक्षे के प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद, रानिल लोगों की समस्याओं को हल करने या देश से प्यार के लिए नहीं बल्कि राजपक्षे के विरोध में पीएम बने हैं.’

एक अन्य विरोधी नेता नुजली हमीम ने कहा कि विक्रमसिंघे ने 9 मई को ‘लोगों द्वारा खारिज किए जाने’ के बावजूद राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला है.

‘हमने गोटा गो विलेज के अपने प्रमुख लक्ष्य को पाने यानी राष्ट्रपति गोटाबाया को बाहर करने में कामयाबी हासिल कर ली है. लेकिन 9 मई के बाद (जब पीएम महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया), राष्ट्रपति गोटाबाया ने रानिल को पीएम नियुक्त किया, तो हमने कहा कि हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें लोगों ने सांसद के रूप में नहीं चुना था. रानिल को (तत्कालीन) राष्ट्रपति ने चुना है और लोगों ने उन्हें खारिज कर दिया.

13 जुलाई को गोटाबाया देश छोड़कर मालदीव भाग गए और फिर वहां से सिंगापुर पहुंचकर उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा की. उसके बाद प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला. श्रीलंकाई संसद के स्पीकर ने राजपक्षे का इस्तीफा स्वीकार करने के बाद शुक्रवार को उन्हें शपथ दिलाई थी.

गोटाबाया का इस्तीफा शनिवार को संसद में जोर से पढ़ा गया. इसमें लिखा था, ‘राष्ट्रपति बनने के 3 महीने के भीतर ही श्रीलंका को कोविड-19 महामारी से जूझना पड़ा. उस समय तक श्रीलंका आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा था और मुझे खुशी है कि मैं उस दौरान लोगों को महामारी से बचाने में सक्षम रहा. 2020 और 2021 में देश को लॉकडाउन में रहना पड़ा. आर्थिक विकास और विदेशी मुद्रा प्रवाह धीमा हो गया. मेरा मानना है कि मैंने इन चुनौतियों को हल करने की पूरी कोशिश की, जिसमें सर्वदलीय सरकार बनाने का प्रयास भी शामिल है.’

श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव 20 जुलाई को होगा.


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‘हम कहीं नहीं जा रहे हैं’

इस्तीफे के बावजूद विरोध का जोश कम होता नजर नहीं आ रहा है. वास्तव में ‘गोटा गो’ में 9 अप्रैल को कोलंबो के गाले फेस में विरोध प्रदर्शन का मुख्य केंद्र पर प्रदर्शनकारियों की संख्या में केवल बढ़ोत्तरी हुई है.

गोटा गो साइट पर एक प्रदर्शनकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम कहीं नहीं जा रहे हैं. हम यहीं बने रहेंगे क्योंकि हमें एक ऐसा नेता ढूंढना है जो देश के लिए काम करे और इसे फिर से बेहतर बनाए.’ प्रदर्शनकारी 9 अप्रैल से यहां पर बनी हुई हैं और 17 अन्य लोगों के साथ एक टेंट में सोती हैं. गाले फेस से 74 किमी दूर एक कस्बे मैडम्पे की रहने वाली यह प्रदर्शनकारी वहां कैटरिंग का बिजनेस करती हैं.

जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का फैसला क्यों किया, तो उन्होंने दिप्रिंट को बताया, [यह] मंहगाई और भोजन की कमी के कारण जारी नहीं है. यह एक ऐसे बिंदु पर आ गया था जहां हम अपने देश में नहीं रह सकते.’

गोटाबाया राजपक्षे जिन्हें गोटा कहा जाता है, के नाम पर रखा गया गोटा गो, अब एक पूर्ण गांव जैसा दिखता है.

पते के साथ साइनबोर्ड वाले तंबू हैं जो आयोजकों को उन लोगों पर नज़र रखने में मदद करते हैं जिन्हें उन्होंने भोजन दिया है.

A woman at the Go Gota protest site in Colombo | Regina Mihindukulasuriya | ThePrint
कोलंबो में ‘गोटा गो’ प्रोटेस्ट के दौरान एक महिला । रेजिना मिहिन्दकुलासुरिया । दिप्रिंट

एक युवा प्रदर्शनकारी ने दिप्रिंट को बताया कि दो तंबुओं का इस्तेमाल खेती के लिए किया जा रहा है. एक में जड़ी-बूटी का बगीचा और हरी बेल है.

नौजवान ने कहा, ‘यह किसान चाचा ने किया है. उनके लिए रुको, वह बस आने ही वाले हैं.’ हालांकि काफी देर के बाद भी ‘किसान चाचा’ वहां नजर नहीं आए.

पास में चमकीले नीले रंग के मोबाइल शौचालय बने हैं. प्रदर्शनकारी पास के एक होटल शांगरी ला के बाहर लगे नलों का इस्तेमाल नहाने के लिए करते हैं.

कपड़े सुखाने के लिए रस्सी बंधी है. एक स्कूल और पास में एक पुस्तकालय है.

पास में लंच कर रही एक महिला ने दिप्रिंट को बताया कि वह दो महीने से प्रदर्शन स्थल पर है. वह राजधानी से कई घंटे दूर जाफना के एक चर्च में काम किया करती थीं.

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति सचिवालय के आधिकारिक आवासों पर कब्जा करने के लिए 9 जुलाई के विरोध प्रदर्शन के दौरान मिले घाव को दिखाते हुए, उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने उन सभी परेशानियों के बारे में सुना जो हमारा देश झेल रहा था और यहां आने का फैसला कर लिया.’

एक प्रदर्शनकारी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि अब जब राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया है, तो संभावना है कि गोटा गो का नाम बदल दिया जाएगा, लेकिन उन्होंने कहा कि कुछ नेता उसके अनिच्छुक लग रहे हैं क्योंकि यह नाम काफी प्रसिद्ध हो गया है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर 20 जुलाई को संसद की बैठक के दौरान संसद सदस्यों द्वारा वोटिंग करके विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति चुना जाता है, तो संभावना है कि शायद नाम बदल दिया जाए.’


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‘लोगों की जीत’

प्रदर्शनकारी नेता हमीम ने बताया कि प्रदर्शनकारी विक्रमसिंघे के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं लेकिन प्रदर्शनकारियों को इस समय सड़कों पर उतरने का कोई आह्वान नहीं किया गया.

एक अन्य प्रदर्शनकारी नेता जीवनंत पीरिस, जो एक पादरी हैं, ने राजपक्षे के इस्तीफे को ‘लोगों की जीत’ कहा.

उन्होंने बताया ‘हम आज (16 जुलाई की शाम) उन लोगों की याद में एक स्मरण सेवा दिवस मनाएंगे, जिन्होंने विरोध आंदोलन के दौरान अपनी जान गंवाई. हम चाहते थे कि गोटाबाया बाहर हों अब रानिल को जाने के लिए कह रहे हैं. इसलिए यह विरोध जारी रहेगा.’

अप्रैल में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन में आठ लोगों की जान चली गई है.

प्रदर्शन करने वाले एक नेता ने कहा कि अब संभावना है कि राष्ट्रपति बनने के लिए विक्रमसिंघे को सांसदों से पर्याप्त वोट मिलें जाएं. वह अपनी पार्टी द्वारा नामित किए जाने के बाद 2021 में सांसद बने थे.

श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के अस्सी संसदीय सदस्य राष्ट्रपति के रूप में विक्रमसिंघे का समर्थन करते हैं. यह श्रीलंकाई संसद में कुल 225 में से 100 से अधिक सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है.

पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने मई में उनके और उनके भाई गोटाबाया के खिलाफ विरोध के बाद इस्तीफा दे दिया था. वह भी पार्टी से जुड़ी हैं. यह एसएलपीपी ही थी जिसने 2019 में अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में गोटबाया राजपक्षे का समर्थन किया था.

लेकिन पार्टी का एक टूटा हुआ हिस्सा इस पद के लिए दुल्लास अल्हाप्परुमा का समर्थन कर रहा है.

विक्रमसिंघे और अलहप्परुमा के अलावा, मार्क्सवादी जेवीपी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके और मुख्य विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा अन्य दो नेता हैं जिन्होंने अब तक राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की है. इनमें से कोई एक नवंबर 2024 तक अपने शेष कार्यकाल के लिए राजपक्षे का स्थान लेगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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