लंदन, 26 अगस्त (भाषा) कपारो उद्योग समूह के संस्थापक एवं परोपकारी कार्यों के लिए जाने जाने वाले लॉर्ड स्वराज पॉल के पुत्र आकाश पॉल ने कहा कि उनके पिता की ‘‘सच्चाई, विश्वास और पारदर्शिता’’ की स्थायी विरासत उनके परिवार एवं 1960 के दशक में उनके द्वारा स्थापित कपारो समूह के उद्योगों के लिए मार्गदर्शक का काम करती रहेगी।
जालंधर की गलियों से ब्रिटेन तक का सफर तय करने वाले लॉर्ड स्वराज पॉल का बृहस्पतिवार, 21 अगस्त की शाम लंदन में निधन हो गया। वह 94 वर्ष के थे।
पॉल भारतीय मूल के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 2008 में ‘हाउस ऑफ लॉर्ड्स’ के डिप्टी स्पीकर का पद संभाला और ब्रिटिश संसद में अपनी अलग पहचान बनाई। उन्होंने 2000 से 2005 के बीच भारत-ब्रिटेन गोलमेज सम्मेलन की सह-अध्यक्षता की और 1983 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
स्वराज पॉल को सोमवार को ‘लंदन जू’ में एक शोक सभा में श्रद्धांजलि दी गई। लॉर्ड पॉल ने इस चिड़ियाघर को बड़ी धनराशि दान करके बंद होने से बचाया था।
इस शोकसभा में व्यापार, राजनीति और परोपकार के क्षेत्र से जुड़े उनके कई सहयोगी शामिल हुए तथा ‘भवन यूके’ के निदेशक डॉ. एम. एन. नंदकुमार ने वैदिक मंत्रोच्चारण किया।
‘कपारो इंडिया’ के चेयरमैन और कपारो ग्रुप के निदेशक डॉ. आकाश पॉल ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि उनके पिता के निधन पर लोगों द्वारा दी जा रही श्रद्धांजलि से वह अभिभूत हैं।
उन्होंने कहा कि उनके पिता को मिला प्यार उन्हें उनके द्वारा छोड़ी गई वित्तीय और सैद्धांतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘सत्य, विश्वास और पारदर्शिता की उनकी विरासत हमेशा कायम रहेगी।’’
लॉर्ड पॉल की तरह ही ‘मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ (एमआईटी) के पूर्व छात्र आकाश ने अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता के बिना शर्त प्रेम को दिया।
आकाश ने बताया कि वह अपनी पत्नी निशा के साथ आइसलैंड जा रहे थे तभी उन्हें एक जरूरी संदेश मिला कि उनके पिता उनसे और अपने पोते आरुष से बात करना चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि उनसे फोन पर बात करते समय, ‘‘मैं फूट-फूट कर रो पड़ा। मैंने उन्हें बताया कि मैं उनसे कितना प्यार करता हूं। मैंने उनसे विनती की कि वह हमें छोड़कर नहीं जाएं और हम उनके पास आ रहे हैं…। मैं उनकी आंखों में देखना चाहता था और उनके करीब रहना चाहता था लेकिन वह मेरी आखिरी बातचीत थी। उसके कुछ ही मिनट बाद मुझे उनकी देखभाल कर रहे व्यक्ति का संदेश मिला कि वह आपकी आवाज सुनने का इंतजार कर रहे थे और आपसे बात करने के बाद उन्होंने दुनिया से विदा ले ली।’’
जालंधर में हाई स्कूल की शिक्षा और 1949 में पंजाब विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की उपाधि हासिल करने के बाद लॉर्ड पॉल एमआईटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने के लिए अमेरिका चले गए।
एमआईटी में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह भारत लौट आए और अपने पारिवारिक व्यवसाय एपीजे सुरेंद्र ग्रुप (जो भारत के सबसे पुराने व्यापारिक समूहों में से एक है) में शामिल हो गए। वह 1966 में अपनी बेटी अंबिका का ‘ल्यूकेमिया’ का इलाज कराने के लिए ब्रिटेन में जा बसे। दुर्भाग्यवश चार साल की उम्र में उनकी बेटी का निधन हो गया।
बाद में उन्होंने एक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में अंबिका पॉल फाउंडेशन की स्थापना की। लॉर्ड पॉल ने 1968 में लंदन में मुख्यालय के साथ कपारो की नींव रखी और यह कंपनी आगे चलकर ब्रिटेन की सबसे बड़ी इस्पात रूपांतरण और वितरण कंपनियों में से एक बन गई।
भाषा
सिम्मी मनीषा
मनीषा
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