scorecardresearch
Friday, 15 November, 2024
होमविदेशजिनके दादा दादी मोटे होते हैं, उन बच्चों में मोटापे का शिकार होने की आशंका दोगुनी ज्यादा होती है

जिनके दादा दादी मोटे होते हैं, उन बच्चों में मोटापे का शिकार होने की आशंका दोगुनी ज्यादा होती है

Text Size:

एडमंड वेदम कनमिकी, अब्दुल्ला मामून, क्वींसलैंड विश्वविद्यालय और याकूत फातिमा, जेम्स कुक यूनिवर्सिटी

क्वींसलैंड, 21 जनवरी (द कन्वरसेशन) स्कूल की छुट्टियां विस्तारित परिवारों के इकट्ठा होने का एक विशेष समय होता है। कामकाजी माता-पिता के बच्चे अमूमन बाल देखभाल केन्द्रों में रहते हैं इसलिए वह त्यौहारों या छुट्टियों में ही अपने दादा दादी से मिल सकते हैं। नए शोध से पता चला है कि जीव विज्ञान, पर्यावरण और उनके द्वारा साझा किया जाने वाला भोजन बच्चों के भविष्य के स्वास्थ्य में योगदान देता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के तीन करोड़ 90 लाख बच्चे अधिक वजन वाले हैं। लगभग 25% ऑस्ट्रेलियाई बच्चे और किशोर अधिक वजन वाले या मोटे हैं।

माता-पिता अपनी संतान के मोटापे के जोखिम में कैसे योगदान करते हैं, यह अच्छी तरह से स्थापित है लेकिन दादा-दादी और पोते-पोतियों के बीच की कड़ी कम स्पष्ट है। दुनिया भर में 200,000 से अधिक लोगों को शामिल करने वाले अध्ययनों की हमारी व्यवस्थित समीक्षा पुष्टि करती है कि मोटापा परिवारों की कई पीढ़ियों में फैलता है। हमें अभी भी यह पता लगाने की जरूरत है कि इस चक्र को क्यों और कैसे तोड़ा जाए।

जीवन भर के लिए स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों से जुड़ा

बच्चों और किशोरों में मोटापा स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होने से जुड़ा हुआ है। इनमें उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल असंतुलन, इंसुलिन प्रतिरोध, मधुमेह मेलिटस, अधिक बढ़वार और परिपक्वता, हड्डी रोग संबंधी कठिनाइयां, मनोसामाजिक समस्याएं, हृदय रोग का जोखिम और समय से पहले मृत्यु दर शामिल हैं।

हमने दादा-दादी जो अधिक वजन वाले या मोटे हैं और उनके पोते के वजन की स्थिति के बीच संबंध पर वर्तमान वैश्विक साक्ष्य की जांच की। हमने 25 अध्ययनों को देखा जिसमें 17 देशों के 238,771 लोग शामिल थे। संयुक्त डेटा पुष्टि करता है कि मोटापा पीढ़ी दर पीढ़ी फैलता है – न केवल माता-पिता से बच्चे में बल्कि दादा-दादी से पोते तक भी।

हमने पाया कि जिन बच्चों के दादा-दादी मोटे या अधिक वजन वाले हैं, उनकी ‘‘सामान्य’’ वजन वाले दादा-दादी के बच्चों की तुलना में मोटे या अधिक वजन वाला होने की संभावना लगभग दोगुनी है।

प्रकृति और पोषण?

बच्चों के मोटापे की स्थिति उनके दादा-दादी से कैसे प्रभावित होती है, इस पर और शोध की आवश्यकता है, लेकिन इसमें दो कारकों के शामिल होने की संभावना है। मोटापे का प्रभाव बच्चे पर माता-पिता के जीन के माध्यम से अप्रत्यक्ष हो सकता है या बच्चों के पालन-पोषण में दादा-दादी द्वारा निभाई गई भूमिकाओं के माध्यम से सीधे हो सकता है।

आइए जैविक कारकों से शुरू करें। अंडे और शुक्राणु कोशिकाओं दोनों में अणु होते हैं, जिनपर माता-पिता द्वारा किए जाने वाले भोजन का असर पड़ता है। इसका मतलब यह है कि अधिक वजन बढ़ने की आशंका वाले लक्षण दादा-दादी से माता-पिता और फिर उनके पोते-पोतियों को दिए जा सकते हैं। और सबूत से पता चलता है कि आनुवंशिकी, पर्यावरणीय कारक, जीवन शैली और खाने की आदतें सभी व्यक्तियों को मोटापे की ओर अग्रसर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

हम जो खाते हैं और अपने परिवार के सदस्यों को जो खिलाते हैं, उससे कुछ आनुवंशिक लक्षण (एक शब्द जिसे एपिजेनेटिक्स कहा जाता है) की अभिव्यक्ति हो सकती है, जिसे बाद की पीढ़ियों में स्थानांतरित किया जा सकता है।

साझा पारिवारिक, अनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों के कारण, मोटापा पूरे परिवार में देखा जाता है और अध्ययनों ने लगातार माता-पिता से बच्चों में मोटापे के एक अंतःक्रियात्मक संचरण की सूचना दी है।

भोजन का सेवन कई पीढ़ियों में स्वास्थ्य और जीव विज्ञान को भी प्रभावित कर सकता है। स्वीडन में, एक अध्ययन में बताया गया है कि दस साल की उम्र में दादा-दादी के लिए पर्याप्त भोजन से हृदय रोग और मधुमेह में कमी आई और उनके पोते-पोतियों की आयु में वृद्धि हुई।

भोजन और परिवार

इसलिए, दादा-दादी के वजन की स्थिति और उनके घर में क्या और कितना खाया जाता है, इस बारे में विकल्प उनके पोते के वजन को सीधे या बच्चों के माता-पिता के माध्यम से प्रभावित कर सकते हैं।

दादा-दादी प्राथमिक देखभाल करने वालों के रूप में या संयुक्त परिवार में रहने की व्यवस्था में भूमिका के आधार पर ये प्रभाव अधिक या कम महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के सीनियर्स के सर्वेक्षण के अनुसार, हर चार ऑस्ट्रेलियाई दादा-दादी में से एक अपने पोते-पोतियों को प्राथमिक देखभाल प्रदान करते हैं।

देखभाल करने वालों के रूप में दादा-दादी की भूमिका बच्चों के स्वस्थ खाने के ज्ञान, दृष्टिकोण और व्यवहार को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। यह भोजन साझा करने या प्रियजनों के लिए विशेष व्यवहार में देखा जा सकता है। इस तरह की आदतें आनुवंशिक कारकों से परे, बचपन में मोटापे के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।

रोकथाम पर काम करना

हमारा शोध मोटापे की रोकथाम की रणनीतियों में दादा-दादी को शामिल करने के महत्व को दर्शाता है। माता-पिता के अलावा, दादा-दादी को भी इस बात का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि बच्चे को कब और कितना स्वस्थ भोजन दिया जाना चाहिए। इसके अलावा वे नियमित व्यायाम को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकते हैं और अपने पोते-पोतियों को जबरदस्ती खिलाने की प्रथा को हतोत्साहित कर सकते हैं।

जबकि हमारा अध्ययन मोटापे के संचरण में एक बहु-पीढ़ीगत लिंक दिखाता है, अधिकांश उपलब्ध साक्ष्य उच्च आय वाले देशों से आते हैं – मुख्य रूप से अमेरिका और यूरोपीय देशों से। अधिक अध्ययन, विशेष रूप से कम आय वाले देशों से, मददगार होगा।

विभिन्न जातियों और वर्गों में पोते के मोटापे पर दादा-दादी के प्रभाव की आगे की जांच की भी आवश्यकता है। दुनिया भर में अपने पोते-पोतियों के पालन-पोषण में दादा-दादी की विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिकाएँ होती हैं। अधिक डेटा प्रभावी मोटापा निवारण कार्यक्रमों को डिजाइन करने में मदद कर सकता है जो दादा-दादी के महत्वपूर्ण महत्व को पहचानते हैं।

द कन्वरसेशन एकता

एकता

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments