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Thursday, 25 April, 2024
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बंगाल में हार को लेकर आलोचनाओं के बाद भी BJP आलाकमान की पसंद क्यों बने हुए हैं कैलाश विजयवर्गीय

कैलाश विजयवर्गीय भले ही अब राजनीतिक रूप से बहुत सक्रिय नजर नहीं आ रहे हों, लेकिन माना जाता है कि उन्हें अब भी केंद्रीय गृह मंत्री और पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का पूरा भरोसा हासिल है.

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नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में भाजपा की चुनावी हार के बाद कैलाश विजयवर्गीय भले ही बहुत सक्रिय न दिख रहे हों लेकिन पार्टी आलाकमान का उन पर भरोसा पहले की ही तरह अडिग है.

बंगाल के विधानसभा चुनावों की कमान संभालने के क्रम में भाजपा के प्रभारी नेता के तौर पर विजयवर्गीय पार्टी की चुनावी रणनीति से बहुत गहराई से जुड़े थे.

भाजपा सूत्रों ने कहा कि पार्टी के भीतर ही उनके विरोधियों, मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय आदि ने बंगाल में हार के बाद लगातार उन पर निशाना साधा. हालांकि, विजयवर्गीय ने कभी सार्वजनिक रूप से किसी आलोचना का जवाब नहीं दिया. पार्टी मंचों पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा जैसे दिग्गजों ने उनका बचाव किया.

पिछले हफ्ते भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की बैठक में नड्डा ने बंगाल में पार्टी की ‘मजबूत स्थिति’ पर संतोष जताया और राज्य का दौरा करने की बात कही. पिछले सप्ताह भाजपा आलाकमान ने विजयवर्गीय को दादर और नगर हवेली इकाई की कार्यसमिति की बैठक में भाग लेने के लिए दादर भी भेजा था.

हालांकि, मई में बंगाल के चुनाव परिणाम जारी होने के बाद से बंगाल भाजपा से संबंधित मामलों में उनकी भागीदारी काफी कम हो गई है और उन्होंने राज्य में पार्टी के प्रभारी नेता के तौर पर केवल दो वर्चुअल बैठकों में हिस्सा लिया है.

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भाजपा सूत्रों का कहना है कि भले इस समय उनके पास पार्टी कार्यक्रमों की व्यस्तता न हो लेकिन ऐसा इसलिए भी है क्योंकि बंगाल में अगला महत्वपूर्ण चुनाव- लोकसभा चुनाव- होने में अभी तीन साल का समय है. साथ ही उन्होंने कहा कि शाह को उन पर पूरा भरोसा है.

विजयवर्गीय, जो इस समय विदेश यात्रा पर हैं, ने इस रिपोर्ट के संबंध में प्रतिक्रिया के लिए दिप्रिंट की तरफ से भेजे गए टेक्स्ट मैसेज पर कोई जवाब नहीं दिया है.


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धर्म-कर्म में लीन

अमित शाह और जेपी नड्डा के अध्यक्ष रहने के दौरान भाजपा के सबसे शक्तिशाली राष्ट्रीय महासचिव माने जाने वाले विजयवर्गीय का ट्विटर प्रोफाइल यह बताने के लिए काफी है कि बंगाल चुनाव के छह महीने बाद उनकी गतिविधियां क्या रही हैं.

ऐसा लगता है कि इन दिनों विजयवर्गीय भगवान के आशीर्वाद की तलाश में हैं: चाहे उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन करने पहुंचना हो या फिर पितरेश्वर हनुमान मंदिर जाना, जैन भिक्षु आचार्य विद्यासागर से मिलना हो या नर्मदा परिक्रमा यात्रा में भाग लेना.

अभी कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश के मंत्री विश्वास सारंग के पिता कैलाश सारंग की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित एक प्रार्थना समारोह में विजयवर्गीय ने अपना पसंदीदा गीत, ‘तू कितनी अच्छी है तू कितनी भोली है, ओ मां ’ गाया था.

भाजपा नेताओं के मुताबिक, विजयवर्गीय इन दिनों अपना अधिकांश समय भोपाल या इंदौर में बिताते हैं. सूत्रों ने कहा कि अगस्त में विधानसभा सत्र के दौरान उन्होंने भोपाल में जो ‘भुट्टा पार्टी’ आयोजित की, उसमें विजयवर्गीय और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान- जो दावत में मौजूद थे- के बीच मजबूत संबंधों को दर्शाने के लिए पार्टी सर्किल में शोले के गीत ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे ’ का भी इस्तेमाल किया गया.

उस समय विजयवर्गीय को चौहान जैसे पुराने मित्र के सहयोग की आवश्यकता थी. इसी तरह, मुख्यमंत्री चौहान को विजयवर्गीय जैसे मजबूत नेता को अपने पाले में रखने जरूरत थी क्योंकि उन्हें अपने अधिकारों को लेकर नरोत्तम मिश्रा जैसे नेताओं से चुनौती मिल रही थी.

दशकों पहले, चौहान और विजयवर्गीय भाजपा युवा मोर्चा में एक साथ काम करते थे. बाद में, चौहान की राजनीतिक सफलता ने विजयवर्गीय को पीछे छोड़ दिया और मुख्यमंत्री (2008-2013) के तौर पर चौहान के दूसरे कार्यकाल के समय तक उनकी दोस्ती में दरारें दिखाई देने लगीं. एक समय तो विजयवर्गीय मुख्यमंत्री चौहान के राजनीतिक प्रतिद्वंदी के रूप में भी उभरे.


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अमित शाह के भरोसेमंद

अमित शाह 2014 में भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद जब दिल्ली शिफ्ट हुए तो उन्होंने विजयवर्गीय को वहां बुलाया. 2014 में विधानसभा चुनावों के दौरान उन्हें हरियाणा का भाजपा प्रभारी नियुक्त किया गया था. अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने जिन पहले चार राज्यों में जीत हासिल की, उनमें एक हरियाणा भी था, जहां उस वर्ष पहली बार भाजपा की सरकार बनी.

हरियाणा में विजयवर्गीय सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम सिंह इंसा को भाजपा का समर्थन करने के लिए मनाने में कामयाब रहे. राम रहीम के समर्थन को भाजपा की जीत के प्रमुख कारणों में से एक माना गया.

आक्रामक संगठनात्मक कौशल रखने वाले नेता माने जाने वाले विजयवर्गीय शाह के भरोसेमंद आदमी बन गए, जिन्हें तत्कालीन भाजपा प्रमुख ने भाजपा की एक बड़ी रणनीति तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी और यह थी पश्चिम बंगाल की सत्ता पर कब्जा होने की रणनीति.

2015 में विजयवर्गीय के पार्टी प्रभारी बनने के साथ भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान न केवल पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की, बल्कि पार्टी का वोट शेयर भी 10 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया.

हालांकि भाजपा को 2021 के बंगाल विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा लेकिन उसने 77 सीटों पर जीत हासिल की जो 2016 में जीती तीन सीटों के मुकाबले काफी ज्यादा है और वोट शेयर भी 38 प्रतिशत के करीब रहा.

शाह का विजयवर्गीय पर इतना भरोसा है कि वह अभी बंगाल में पार्टी प्रभारी बने रहेंगे. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, शाह के कार्यकाल में पार्टी के केवल दो प्रभारियों को स्वतंत्र निर्णय लेने की अनुमति थी- यूपी में ओम माथुर और बंगाल में कैलाश विजयवर्गीय.


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इंदौर के आदमी का उदय

विजयवर्गीय इंदौर से आते हैं, जो ऐसा शहर है जिसे मध्य प्रदेश की वित्तीय राजधानी माना जाता है और हमेशा से भाजपा और आरएसएस के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा है. शहर के भाजपा नेताओं, चाहे सुमित्रा महाजन हों या विजयवर्गीय ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी छाप छोड़ी है.

इंदौर की पूर्व मेयर और शहर से विधायक मालिनी गौड़ ने दिप्रिंट से कहा, ‘महापौर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान विजयवर्गीय ने इंदौर में जनता की भागीदारी के साथ एक सड़क निर्माण कार्यक्रम शुरू किया- ऐसी पहल भारत में पहली बार हुई. इसका असर ऐसा रहा कि इंदौर इतने सालों बाद भी स्वच्छ भारत मिशन की रैंकिंग में पिछले चार सालों से नंबर-1 पर है. मध्य प्रदेश में लोक निर्माण मंत्री रहने के दौरान ऐसी ही और परियोजनाओं के कारण वह पहले ही आलाकमान का ध्यान आकृष्ट करने में सफल रहे थे.’

मध्य प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष जीतू जराती ने कहा, ‘उनके शानदार संगठनात्मक कौशल और हिंदुत्व विचारधारा के प्रति उनकी निष्ठा को देखने के बाद शिवेंद्र शर्मा और नारायण राव जैसे नेताओं, जो उस समय मध्य प्रदेश के प्रमुख नेता थे, ने विजयवर्गीय के पिता से उन्हें राजनीति में लाने को कहा. बाद में कुशाभाऊ ठाकरे और सुरेश सोनी ने उन्हें पार्टी में आगे बढ़ाया.

चौहान के विपरीत विजयवर्गीय ने एक सशक्त नेता की छवि बनाई है. एक बार कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री रहने के दौरान इंदौर में एक फैशन शो में विजयवर्गीय ने टी-शर्ट और जींस पहनकन पुलिस को चकमा दिया और आयोजन स्थल पर पहुंच गए. उन्होंने मंच पर चढ़कर अपना विरोध दर्ज कराया.


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बंगाल की हार के बाद

बंगाल में भाजपा की हार और मुकुल रॉय की तृणमूल कांग्रेस में वापसी ने जाहिर तौर पर संगठन में व्यापक स्तर पर विजयवर्गीय के राजनीतिक कद को प्रभावित किया है.

दिलीप घोष, अरविंद मेनन और शिव प्रकाश जैसे कई भाजपा नेताओं ने विजयवर्गीय पर ऐसी रणनीति अपनाने का आरोप लगाया है जिसने पार्टी को बंगाल में जीतने से रोका. कुछ नेताओं ने उन पर भाजपा के फंड को मनमाने ढंग से उपयोग करने का आरोप भी लगाया.

पार्टी की बंगाल इकाई में उठापटक शांत करने के लिए भाजपा आलाकमान ने सितंबर में दिलीप घोष को भाजपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष पद से हटा दिया, उनकी जगह सुकांता मजूमदार को नियुक्त किया गया और शुभेंदु अधिकारी को ज्यादा अहमियत दी गई. हालांकि, विजयवर्गीय इस सबसे अछूते रहे.

माना जाता है कि उस समय, भाजपा की बैठकों के दौरान अमित शाह और जेपी नड्डा दोनों ने विजयवर्गीय का बचाव किया, यह तर्क देते हुए कि तीन से 77 विधायकों पर पहुंच जाना एक बहुत बड़ी बात है.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘अगले लोकसभा चुनाव तक बंगाल में पार्टी के सामने कोई बड़ी राजनीतिक चुनौती नहीं है. जो लोग तृणमूल में जाना चाहते हैं, वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं. बंगाल चुनाव को यूपी के चुनाव की तरह लड़ने के फैसले को एक गलती माना जा सकता है क्योंकि यह राज्य एक अनूठी पहचान रखता है लेकिन इसे सिर्फ विजयवर्गीय की गलती नहीं कहा जा सकता.’

नेता ने आगे कहा कि सभी रणनीतियां अमित शाह के स्तर पर बनाई और लागू की जाती हैं, जिन्हें विजयवर्गीय पर पूरा भरोसा है. उन्होंने कहा, ‘हालांकि, अभी उनके लिए एक तरह का कूलिंग-ऑफ पीरियड हो सकता है, क्योंकि चौहान मध्य प्रदेश में काफी शक्तिशाली नेता बने हुए हैं और केंद्रीय स्तर पर करने के लिए ज्यादा कुछ है नहीं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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