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Saturday, 4 May, 2024
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बिहार के नतीजों से UP के नेताओं के लिए ये तीन बड़े सबक जो 2022 में अहम साबित हो सकते हैं

बेरोज़गारी के मुद्दे ने जिस तरह से नीतीश कुमार को बिहार में कुछ वक्त के लिए तकलीफ में ला दिया उसी तरह ये मुद्दा यूपी में भी बड़ा बन सकता है.

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लखनऊ: बिहार चुनाव के नतीजों का असर उत्तर प्रदेश की सियासत पर भी पड़ना तय लग रहा है. 2022 की तैयारी में जुटी सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए ये नतीजे नई चुनौतियां सामने लेकर आए हैं तो वहीं बेरोज़गारी के मुद्दे ने जिस तरह से नीतीश कुमार को कुछ वक्त के लिए तकलीफ में ला दिया उसी तरह ये मुद्दा यूपी में भी बड़ा बन सकता है.

बिहरा चुनाव के नतीजों के बाद ये तीन बड़े सबक यूपी के नेताओं के लिए अहम हैं-

ओवैसी फैक्टर साबित हो सकता है अहम

बिहार चुनाव में 5 सीटें जीतकर महागठबंधन के मंसूबों पर पानी फेरने वाले असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के यूपी में भी कैंडिडेट्स चुनाव के लिए तैयार हैं.

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली का कहना है, ‘यूपी में 25% सीटों पर लड़ने का प्लान है. 56 जिलों में हम सीटें चिन्हित करके कैंडिडेट्स तैयार कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि बीजेपी को रोकने के लिए एक सेक्युलर एलायंस यहां भी हो.’

पार्टी से जूड़े सूत्रों की मानें तो पश्चिम व पूर्वी यूपी की मुस्लिम व दलित बहुल्य सीटों पर अपने कैंडिडेट्स उतारने की तैयारी है जिससे पश्चिम यूपी में बसपा व आरएलडी वहीं पूर्वी यूपी में समाजवादी पार्टी को काफी नुकसान हो सकता है. वहीं विपक्षी दलों को अपने कई मुस्लिम नेताओं के छिटक कर ओवैसी की पार्टी में जाने का खतरा भी सता रहा है.

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उत्तर प्रदेश में सुगबुगाहट एक नए गठबंधन की भी है.

बिहार में उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में बने डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट में बसपा, एआईएमआईएम और ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा (सोहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) भी शामिल थी जो कि यूपी में 2017 का चुनाव बीजेपी के साथ लड़ी थी और बाद में अलग हो गई थी. अब यूपी में इन तीन दलों के साथ आने की सुगबुगाहट है. ऐसे में समाजवादी पार्टी व कांग्रेस की राह यूपी में और भी कठिन हो सकती है.

एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष ने भी कहा कि वे बीजेपी को रोकने के लिए किसी के साथ भी गठबंधन कर सकते हैं.

इसके अलावा चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) भी विपक्ष की कई सीटों पर वोट काट सकती है.

हाल ही में हुए उपचुनाव में इस पार्टी को बुलंदशहर सीट पर कांग्रेस व आरएलडी-सपा गठबंधन के उम्मीदवार से अधिक वोट मिले थे और तीसरे नंबर पर रही थी. आजाद की पार्टी ने पप्पू यादव के साथ मिलकर बिहार में भी चुनाव लड़ा था. हालांकि वे एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकी. ऐसे में सपा व कांग्रेस के लिए ये नए समीकरण चैलेंजिंग साबित हो सकते हैं.


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कांग्रेस की दुर्गती, अखिलेश के लिए भी सबक

बिहार में कांग्रेस की हुई दुर्गति के कारण आरजेडी को नुकसान झेलना पड़ा. 70 सीटों पर लड़कर महज 19 सीटें ही पार्टी जीत सकी.

नतीजों के बाद ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ऐलान कर दिया कि वह किस भी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. वहीं मायावती पर जिस तरह से प्रियंका गांधी पिछले दिनों मुखर रही हैं उससे ये भी तय है कि बसपा भी कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेगी. ऐसे में कांग्रेस को यूपी में अकेले ही चुनाव लड़ना होगा.

यूपी में हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस एक भी सीट नहीं निकाल पाई. इससे प्रियंका गांधी के नेतृत्व में 2022 विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही कांग्रेस के मनोबल पर काफी असर पड़ा है.

कांग्रेस एमएलसी दीपक सिंह की मानें तो- ‘बिहार और यूपी के अलग-अलग समीकरण हैं. यूपी में प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव लड़ेगी. बीजेपी भले ही ओवैसी या किसी नेता या दल को कांग्रेस का वोट काटने के लिए उतार दे लेकिन जनता हमारा साथ देगी. हाथरस रेप केस का मुद्दा रहा हो या सोनभद्र में आदिवासियों पर अत्याचार का, कांग्रेस पार्टी ने ही जनता की लड़ाई लड़ी है. ऐसे में उम्मीद है जनता 2022 में कांग्रेस का साथ देगी.’

वहीं बिहार में जिस तरह से तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी एग्जिट पोल्स में आगे होने के बावजूद क्लोज फाइट में हार गई उससे अखिलेश यादव के लिए भी बड़ा सबक है.

पॉलिटिकल कॉमेंटेटर व लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कविराज की मानें तो तेजस्वी ने अंतिम 2-3 महीने में अपना चुनाव प्रचार अभियान तेज किया. यूपी में बीजेपी को अगर चुनौती देनी है तो अभी से जमीन पर मेहनत करनी होगी.

उन्होंने कहा, ‘बिहार में बेरोज़गारी एक बड़ा मुद्दा था जिसे तेजस्वी ने काफी हद तक भुनाया लेकिन अन्य आयु वर्ग के वोटर्स को ज्यादा नहीं लुभा सके. इस तरह की तमाम सीख अखिलेश यादव के लिए यूपी में है.’

समाजवादी पार्टी के एमएलसी उदयवीर सिंह ने कहा, ‘बिहार चुनाव के नतीजे हमारे लिए भी सबक हैं. हमें बीजेपी की साजिशों से सतर्क रहना पड़ेगा. वे समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचाने के लिए किसी भी दल की मदद ले सकते हैं लेकिन हम ये बात जान चुके हैं और इसके लिए पूरी तरह तैयार हैं.’


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बेरोजगारी बन सकता है बड़ा मुद्दा

बिहार में तेजस्वी यादव ने अपने कैंपेन के दौरान बेरोजगारी के मुद्दे को जोर शोर से उठाया. यही कारण था कि वे एनडीए को क्लोज फाइट दे सके. यूपी में भी बेरोजगारी अहम मुद्दा बन सकता है.

इसी साल के फरवरी के महीने में सरकार ने बेरोजगारों की संख्या बढ़ने की बात स्वीकारी थी. दरअसल सरकार के श्रम व सेवा नियोजन मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक सवाल के जवाब में कहा कि श्रम मंत्रालय की ओर से संचालित ऑनलाइन पोर्टल पर 7 फरवरी 2020 तक करीब 33.93 लाख बेरोजगार रजिस्टर्ड हुए हैं.

स्वामी प्रसाद ने ही जून 2018 तक उत्तर प्रदेश में रजिस्टर्ड बेरोजगारों की संख्या 21.39 लाख बताई थी. इन आंकड़ों के मुताबिक यूपी में 12 लाख से अधिक युवा पिछले दो साल में खुद को बेरोज़गार के तौर पर रजिस्टर्ड करा चुके हैं.

समाजवादी पार्टी के एमएलसी उदयवीर सिंह का भी कहना है कि मुख्य विपक्षी दल के तौर पर सपा बेरोजगारी के मुद्दे को जोर-शोर से उठाएगी और ये 2022 चुनाव में अहम फैक्टर साबित होगा.


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