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Friday, 29 March, 2024
होमदेशबजट की कमी झेल रही भारतीय नौसेना 4 के बजाय 2 लैंडिंग प्लेटफार्म डॉक्स ही खरीदने की योजना बना रही

बजट की कमी झेल रही भारतीय नौसेना 4 के बजाय 2 लैंडिंग प्लेटफार्म डॉक्स ही खरीदने की योजना बना रही

रक्षा मंत्रालय की तरफ से 4 लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक्स संबंधी 2013 का आरएफपी रद्द किए जाने के दो महीने बाद अब नौसेना नई विशिष्टताओं के साथ नया आग्रह पत्र तैयार करने में जुटी है.

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नई दिल्ली: बजट की कमी भारतीय नौसेना की तरफ से खरीदे जाने वाले लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक्स (एलपीडी) की संख्या में कटौती के लिए बाध्य कर सकती है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक नौसेना अब चार की जगह दो एलपीडी खरीदने पर ही विचार कर रही है जिन्हें एंफीबिएश ट्रांसपोर्ट डॉक के रूप में भी जाना जाता है.

रक्षा सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि नौसेना एलपीडी में कुछ नई विशेषताओं के साथ एक नए आग्रह पत्र (आरएफपी) पर काम कर रही है और इनकी संख्या घटाकर दो करने पर विचार चल रहा है. हालांकि, एक वरिष्ठ रक्षा अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि नौसेना अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर दो अन्य एलपीडी खरीदने के लिए भविष्य में एक और निविदा जारी कर सकती है.

रक्षा मंत्रालय ने चार एलपीडी खरीदने संबंधी पूर्व के आरएफपी को सितंबर में वापस ले लिया था. नवंबर 2013 में नौसेना ने 20,000 करोड़ की लागत से इन चार एलपीडी के निर्माण के लिए निजी शिपयार्ड से प्रस्ताव आमंत्रित किया था. इसके बाद गत सितंबर में रद्द होने से पहले यानी पिछले सात वर्षों के दौरान इस आरएफपी का नौ बार विस्तार दिया गया और एक बार बोलियां फिर से मांगी गईं.

इस वर्ष के शुरू में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2010 में खरीद का निर्णय लेने के बावजूद नौसेना एलपीडी को खरीदने के अनुबंध को पूरा करने में विफल रही है.


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बजट की कमी

पिछले केंद्रीय बजट में भारतीय नौसेना को केवल 41,259 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जबकि अनुमानित राशि 64,307 करोड़ रुपये थी. बजटीय राशि नौसेना की मौजूदा देनदारियों को ही पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी जो उसे पहले के ऑर्डर और सौदों के संबंध में विक्रेताओं को चुकाने के लिए चाहिए थी.

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बजट में कटौती ने नौसेना को 2027 तक 200 जहाजों के बेड़े की दीर्घकालिक योजना पर पुनर्विचार के लिए बाध्य कर दिया, जो कि उसके 2012-2027 के मैरीटाइम कैपेबिलिटी पर्सपेक्टिव प्लान (एमसीपीपी) का हिस्सा थी. इसने 150 जहाज और पनडुब्बियों की अपनी मौजूदा क्षमता की तुलना में यह आंकड़ा संशोधित करके 175 जहाजों का कर दिया.

नौसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि नौसेना उपलब्ध संसाधनों के लिहाज से अपनी तात्कालिक जरूरतों को प्राथमिकता दे रही है.

अधिकारी ने कहा, ‘मौजूदा संसाधनों के मद्देनजर कई बातें ध्यान में रखी जाएंगी- जैसे एंफीबिएश ऑपरेशन में प्रशिक्षित सैनिकों की कितनी उपलब्धता है और शांतिकाल में उन जहाजों की कितनी जरूरत है.’ साथ ही आगे जोड़ा भारतीय नौसेना के पास एंफीबिएश अभियानों के लिए पांच बड़े लैंडिंग शिप टैंक (एलएसटी), दो मध्यम एलएसटी और आठ लैंडिंग क्राफ्ट यूटीलिटी (एलसीयू) नावें हैं.

‘एलपीडी की दोहरी भूमिका’

एलपीडी का इस्तेमाल एंफीबिएश ऑपरेशन या विदेशी युद्धक अभियानों के दौरान किया जाता है. वे सैन्य बटालियन, टैंकों और बख्तरबंद वाहक और हेलीकॉप्टरों को समुद्री रास्ते से युद्ध क्षेत्र में ले जा सकते हैं. भारतीय नौसेना के पास अभी केवल एक एलपीडी-आईएनएस जलाश्व है.

नौसेना के एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी ने समझाया कि एलपीडी की दोहरी भूमिका होती है—ये शांतिकाल और युद्ध के दौरान दोनों में ही उपयोगी होते हैं.

उक्त अधिकारी ने कहा, ‘शांतिकाल में इसका उपयोग मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) या गैर-युद्धक बचाव अभियानों (एनईओ) में किया जा सकता है. हिंद महासागर क्षेत्र के लिट्टोरल्स (हिंद महासागर से जुड़े तटीय क्षेत्रों वाले देशों) में एचएडीआर जैसे अभियानों की जरूरत होने पर सबसे पहले नौसेना ही आगे आती है. वहीं किसी युद्ध की स्थिति में बड़ी संख्या में एंफीबिएश सैनिकों और आवश्यक सैन्य उपकरणों को पहुंचाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

अधिकारी ने स्पष्ट किया कि भारत में एंफीबिएश आकस्मिकताओं का मतलब दुश्मन के तट पर बड़ी संख्या में सैनिकों को उतारना या नौसेना के दायित्व वाले क्षेत्र में किसी भी द्वीप या द्वीपों पर पुन: कब्जा हासिल करना होता है.

अन्य देशों में एलपीडी

अन्य देशों की नौसेनाओं ने कई सालों की अवधि में उन्नत एलपीडी विकसित किए हैं.

उदाहरण के तौर पर चीन अपने नए टाइप 71 एलपीडी का उपयोग करके अफ्रीकी देश जिबूती में अपने अड्डे तक सैन्य उपकरणों की आपूर्ति कर रहा है. ये चीन की पीएलएएन (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नौसेना) को अपनी सेना सीमाओं से दूर किसी क्षेत्र में उतारने की ‘ब्लू-वाटर’ क्षमता प्रदान करते हैं.

अमेरिकी नौसेना 2000 से ही सैन एंटोनियो-क्लास एलपीडी का निर्माण कर रही है, जो कि उसके एंफीबिएश वारफेयर फ्लीट के दो-तिहाई हिस्से के बराबर होने की संभावना है.

पोत तीन तरह से काम कर सकता है जहाज पर एंफीबिएश प्रशिक्षित समूह, एक बड़ी संयुक्त टास्कफोर्स और यहां तक कि स्वतंत्र रूप से भी.

रियर एडमिरल एस.वाई. श्रीखंडे (सेवानिवृत्त), जिन्होंने भारत की नौसेना की खुफिया इकाई का नेतृत्व किया है, ने दिप्रिंट को बताया कि एलपीडी किसी भी राष्ट्र की अभियान क्षमता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

श्रीखंडे ने कहा, ‘मैं इससे चिंतित हूं कि बजट की कमी के कारण नौसेना की योजनाओं में संसाधन संबंधी गंभीर बाधाएं उत्पन्न हो गई हैं. बेशक, प्राथमिकताएं तय करना नौसेना का काम है. यदि कोई बाधा आती है तो नौसैना की अभियान क्षमता का विस्तार सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं होगी. प्राथमिकता अन्य क्षमताओं पर काम करने की ही होगी.’

सेवानिवृत्त रियर एडमिरल ने कहा, ‘लंबे समय में हमारे जैसा एक प्रमुख इंडो-पैसिफिक राष्ट्र, जो रणनीतिक रूप से आक्रामक-रक्षात्मक है, हवाई और समुद्री अभियान क्षमताएं बढ़ाने के लिए सही दिशा में काम करेगा. ऐसी क्षमताओं की हमेशा जरूरत होगी…तकनीक और रणनीति बदल सकती है लेकिन समुद्री और वायु शक्ति को पॉवर प्रोजेक्शन कैपेबिलिटी की आवश्यकता है, और क्षमता में विस्तार संबंधी उपकरण इसी का हिस्सा हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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