मुंबई: शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे को बगावत का झंडा बुलंद किए चार दिन से ज्यादा हो चुके हैं. फिर भी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित करने की मांग को लेकर न तो उनके विद्रोही गुट—जो कथित तौर पर 37 विधायकों का दावा करता है—और न ही महाराष्ट्र विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से संपर्क किया है.
उन्हें यह कदम उठाने से रोकने का कारण विधानसभा में आंकड़ों के खेल की नहीं है, दरअसल जैसा राजनेता और संवैधानिक विशेषज्ञ दावा कर रहे हैं—इसके पीछे असल वजह एक कानूनी बाधा और एक राजनीतिक दुविधा है.
लोकसभा के पूर्व महासचिव पी.डी.टी. आचारी ने दिप्रिंट को बताया कि 2003 में संविधान की दसवीं अनुसूची में संशोधन, जिसे सामान्य तौर पर दलबदल विरोधी कानून कहा जाता है, शिंदे गुट के लिए किसी अन्य पार्टी में विलय के बिना उनका अयोग्यता से बचना मुश्किल बना देता है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘2003 तक अगर दो-तिहाई सदस्य कोई पार्टी छोड़ते थे, तो वे एक अलग समूह बना सकते थे और दलबदल विरोधी कानून से बच सकते थे. लेकिन चूंकि दलबदल करना एकदम आम होता जा रहा था, इसलिए नियम कड़े कर दिए गए. अब, भले ही उनके (शिंदे गुट) पास दो-तिहाई सदस्य हों, वे कानून से बच नहीं सकते. उनके पास विकल्प यही है कि किसी दूसरी पार्टी में विलय कर लें.’
भाजपा सूत्रों ने दावा किया कि शिंदे गुट शिवसेना के 2019 के भाजपा से रिश्ते तोड़ने और साथ ही ‘अस्वाभाविक’ सहयोगी कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करते के फैसले से नाखुश होने का दावा करता है. लेकिन भाजपा में विलय से दूसरी ही समस्या उत्पन्न हो सकती हैं—और वो यह कि ये गुट शिवसेना की अपनी पहचान खो देगा.
शिंदे गुट के एक विधायक ने दिप्रिंट को बताया कि विद्रोही गुट कोर्ट जाने की योजना बना रहा है.
विधायक ने कहा, ‘हम अपनी लड़ाई कोर्ट में ले जाएंगे. नेता नियुक्त करने की हमारी पहली याचिका पर डिप्टी स्पीकर ने विचार नहीं किया. अब हम कानूनी स्तर पर लड़ेंगे.’
एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के गृह मंत्री दिलीप वालसे पाटिल ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘अगर शिंदे के पास संख्याबल है, तो उन्हें राज्यपाल से फ्लोर टेस्ट की मांग करने से क्या रोक रहा है? इसकी मुख्य वजह 2003 के संशोधन के बाद शामिल संविधान की दसवीं अनुसूची है. उनके सामने एक गुट बनाने और भाजपा या किसी अन्य पार्टी में विलय करने का विकल्प है, लेकिन इससे उनका करियर खत्म हो सकता है. जितनी मुझे जानकारी है, वे अभी भी भाजपा में शामिल होने पर कोई निर्णय नहीं कर पाए हैं.’
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दलबदल विरोधी कानूनी को लेकर दुविधा
संविधान की दसवीं अनुसूची किसी विधायक की अयोग्यता का आधार तय करती है. हालांकि, विलय एक अपवाद है. दसवीं अनुसूची के पैराग्राफ 4(1) में कहा गया है कि किसी सदन के सदस्य जो किसी एक राजनीतिक दल के हिस्से के तौर पर निर्वाचित हुए थे, उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता, बशर्ते उनकी मूल राजनीतिक पार्टी का किसी अन्य पार्टी में विलय हो जाए. इस तरह के मामले में सदस्यता वैध रहने के लिए जरूरी है कि विधायक दल के दो-तिहाई सदस्य विलय के लिए सहमत हों.
आचारी का दावा है कि कानूनन शिंदे के पास बेहद सीमित विकल्प हैं, अयोग्यता से बचने के लिए उन्हें या तो अध्यक्ष और चुनाव आयोग के समक्ष साबित करना होगा कि उनके पास मूल शिवसेना होने के लिए पर्याप्त संख्या है या फिर वह भाजपा में विलय के इच्छुक हैं.
आचारी का कहना है कि सबसे पहले तो शिंदे को यह साबित करना हो गया कि उनमें पार्टी को सीधे दो-फाड़ करने की क्षमता है, जिसका मतलब है कि उन्हें न केवल विधायक दल बल्कि सांसदों, नगरसेवकों और कार्यकारी और जिला इकाइयों का भी समर्थन हासिल है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यह विकल्प फिलहाल संभव नहीं लगता है, क्योंकि वह (ठाकरे) जमीनी स्तर पर पार्टी कैडर की अगुआई कर रहे हैं.’
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने भी इस बात से सहमति जताई. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘शिंदे के पास एकमात्र विकल्प भाजपा में विलय करना ही है. वह अयोग्यता का जोखिम उठाए बिना पार्टी को तोड़कर कोई दूसरा गुट नहीं बना सकते. साथ ही जोड़ा कि अगर पार्टी में कोई सीधा विभाजन नहीं होता है तो दो-तिहाई विधायक दल का कोई मतलब नहीं है.
भाजपा में विलय से एक और समस्या खड़ी हो जाएगी—वो यह कि यह गुटा शिवसेना की पहचान खो देगा.
आचारी ने कहा, ‘इस तरह, वह अपनी यह दावेदारी गंवा देंगे जिसकी वह कोशिश कर रहे हैं कि वह बाला साहेब (पार्टी संस्थापक और उद्धव के पिता बाल ठाकरे) और शिवसेना का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. और वह भाजपा के किसी अन्य सदस्य की तरह ही बन जाएंगे.’
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भाजपा की चुप्पी
महाराष्ट्र में तेजी से बदलते सियासी घटनाक्रम के बीच आम तौर पर मुखर रहने वाली भाजपा ने एक असामान्य चुप्पी साध रखी है.
पिछले तीन दिनों में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के घर काफी ज्यादा राजनीतिक हलचल दिखी है. फडणवीस ने दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की है.
हालांकि, फिर भी भाजपा ने फ्लोर टेस्ट की मांग के लिए कोई कदम नहीं उठाया है. यही नहीं इसके सबसे मुखर नेता सार्वजनिक तौर पर भी खुलकर कुछ कहने से बच रहे हैं.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी कानूनी बाधाएं दूर होने का इंतजार कर रही है. एक अन्य भाजपा नेता ने कहा कि महाराष्ट्र में पार्टी का असली उद्देश्य शिवसेना को कमजोर करना है.
उन्होंने कहा, ‘अगर वे (बागी) भाजपा में शामिल हो जाते हैं, तो हम सरकार बनाने में सक्षम होंगे, लेकिन इससे राज्य में शिवसेना और पार्टी की मुख्य ताकत बीएमसी कमजोर नहीं होगी.’ यह खास तौर पर अहम है क्योंकि बृहन्मुंबई नगर निगम चुनाव मानसून बाद होने की संभावना है.
दूसरी ओर, शिवसेना के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया कि विलय से न केवल शिव सैनिक के रूप में बागी गुट की पहचान मिट जाएगी, बल्कि उन्हें राजनीतिक रूप से चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा. ‘भले ही शिंदे उपमुख्यमंत्री या यहां तक कि भाजपा के साथ सौदेबाजी के बाद मुख्यमंत्री ही क्यों ने बन जाएं.’
नेता ने कहा, ‘उनमें से कई ग्रामीण मराठवाड़ा क्षेत्र से आते हैं, जहां उन्हें एनसीपी से चुनौती मिल सकती है, जहां भाजपा का जनाधार कुछ खास मजबूत नहीं है.’
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