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Thursday, 28 March, 2024
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पंजाब में 22 किसान संगठनों का राजनीतिक फ्रंट संयुक्त किसान मोर्चा नहीं जीत सका एक भी सीट

एसएसएम महासचिव कंवलप्रीत पन्नू के प्रयास भी व्यर्थ गए, जिन्होंने चुनाव तो नहीं लड़ा लेकिन माझा क्षेत्र की सीटों पर उम्मीदवारों का समर्थन किया था.

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नई दिल्ली: संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम)- 22 किसान यूनियनों का राजनीतिक मोर्चा, जिसने मोदी सरकार के अब वापस ले लिए गए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लिया था- पंजाब में एक भी सीट नहीं जीत पाया है.

इसके नेताओं का राजनीतिक भाग्य अब अनिश्चितता में है- जहां कुछ लोगों का कहना है कि पंजाब में उनके लिए अभी भी गुंजाइश है, वहीं कुछ दूसरों का मानना है कि उनका मतदान का जोखिम भरा अभियान अब समाप्त हो गया है.

चुनाव के रिकॉर्ड्स के अनुसार, इसके प्रमुख नेताओं जैसे बलबीर सिंह राजेवाल, जो मोर्चे का चेहरा थे और समराला से चुनाव लड़ रहे थे, और प्रेम सिंह भंगू जिन्होंने घनौर से चुनाव लड़ा, को अपनी सीटों पर 4 प्रतिशत वोट शेयर और घनौर से चुनाव लड़े प्रेम सिंह भांगू को 2 प्रतिशत वोट पाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा.

एसएसएम महासचिव कंवलप्रीत पन्नू के प्रयास भी व्यर्थ गए, जिन्होंने चुनाव तो नहीं लड़ा लेकिन माझा क्षेत्र की सीटों पर उम्मीदवारों का समर्थन किया था.

एसएसएम के मुख्य प्रवक्ता मंजीत सिंह ने कहा, ‘दो प्रमुख कारण हैं जिनकी वजह से किसानों का चुनाव एडवेंचर काम नहीं कर पाया’.

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उन्होंने आरोप लगाया, ‘एक, किसानों की एकता कमज़ोर है. आप उन्हें एक पेशे से जुड़े हुए देख सकते हैं, लेकिन वो अपने अपने राजनीतिक जुड़ावों से बंटे होते हैं. दूसरे, उनमें एक ज़बर्दस्त सत्ता संघर्ष है. जब कुछ नेताओं ने कहा कि वो चुनाव लड़ेंगे, तो दूसरे नेता उनकी राह में एक बड़ी बाधा बनकर खड़े हो गए’.

सिंह ने कहा, ‘लेकिन, मैं ये नहीं कहूंगा कि ये उनकी राजनीति का अंत है. अगर आप जैसी पार्टी पंजाब में आकर अपने लिए जगह बना सकती है, तो किसानों के समूह क्यों नहीं? लेकिन फिर उसके लिए उन्हें आत्ममंथन करना होगा और बेहतर रणनीतियां बनानी होंगी’.

दिप्रिंट ने फोन कॉल्स और व्हाट्सएप संदेशों के ज़रिए राजेवाल से संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित किए जाने तक, उनका जवाब हासिल नहीं हुआ था.

भारतीय किसान यूनियन उग्राहन गुट, जिसे बीकेयू (उग्राहन) कहा जाता है- जिसने चुनाव नहीं लड़ा- उसके महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी कलां ने कहा कि राजेवाल और दूसरे एसएसए सदस्यों का राजनीतिक भविष्य, अब अनिश्चितता में घिर गया है.

कोकरी कलां ने कहा, ‘लोगों ने इन नेताओं का समर्थन किया, जब वो तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ खड़े हुए थे. उन्होंने मानना शुरू कर दिया कि वही लोग चुनावी राजनीति में भी उनका समर्थन करेंगे. यहीं उनसे ग़लती हो गई. अब उनका भविष्य अनिश्चित है- उन्होंने अपने आपको किसान यूनियनों के दबाव समूह से दूर कर लिया है और अब वो चुनावी राजनीति में भी फेल हो गए हैं’.

किसान यूनियनों के छाता संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने, जिसने तीन विवादास्पद कानूनों के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई की थी, अब 14 मार्च को दिल्ली में अपने सदस्यों की एक बैठक बुलाई है, जहां एसएसएम नेताओं के भाग्य का फैसला किया जाएगा.


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चुनाव लड़ने का फैसला, उसके बाद फूट

दोनों पार्टियों के वरिष्ठ राजनीतिक पदाधिकारियों ने बताया, कि राजेवाल ने दिसंबर 2021 में एसएसएम लॉन्च किया था, जब उनके और आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख अरविंद केजरीवाल के बीच चली लंबी बातचीत का, कोई नतीजा नहीं निकल पाया था.

एसएसएम 22 किसान यूनियनों का एक समूह है, जो कहीं बड़े एसकेएम में भागीदार थे, जिसने कृषि कानून-विरोधी प्रदर्शनों की अगुवाई की थी, जिसमें एक साल से अधिक समय तक, दिल्ली की सीमाओं के कुछ हिस्सों को बाधित रखा गया था.

29 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने तीनों विवादास्पद कानूनों को रद्द कर दिया और उसके कुछ दिन बाद आंदोलन भी वापस ले लिया गया.

तीन किसान नेताओं ने, जो एसकेएम का हिस्सा हैं, दिप्रिंट को बताया कि हालांकि आंदोलन के दौरान भी, चुनावी राजनीति में दाख़िल होने के मामले पर, किसान समूहों के बीच अकसर बहस होती थी, लेकिन 9 दिसंबर को आंदोलन वापस लिए जाने के बाद, चीज़ें तेज़ी से आकार लेने लगीं.

दिसंबर अंत तक, एसएसएम ने जन्म ले लिया और राजेवाल मोर्चे का चेहरा बन गए, जिससे दूसरी किसान इकाइयों के ज़बर्दस्त विरोध के कारण, एसकेएम में तुरंत दरार पड़ गई.


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SSM नेताओं के भाग्य का फैसला करने के लिए SKM बैठक

किसान नेता और एसकेएम प्रतिनिधि दर्शन पाल ने बताया, कि एसकेएम ने 14 मार्च को दिल्ली में अपने सदस्यों की एक बैठक बुलाई है. उन्होंने आगे कहा कि बैठक के एजेंडा में नेताओं के भाग्य पर फैसला लिया जाना शामिल है- जिनमें राजेवाल सबसे प्रमुख हैं- जो किसान एकता में टूट की क़ीमत पर चुनावी राजनीति में कूद पड़े थे.

पाल ने कहा, ‘उन्हें फेल होना ही था, और ये हो गया. अब वो खुद को अलग-थलग महसूस कर सकते हैं, क्योंकि अब वो किसान यूनियनों के दबाव समूह के सक्रिय सदस्य नहीं हैं, जो अभी भी एमएसपी और दूसरे मुद्दों के लिए लड़ रहा है. उन नेताओं के भाग्य का पता चलने के मामले में, 14 मार्च की बैठक महत्वपूर्ण रहने जा रही है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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